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आपका वैवाहिक-जीवन बच सकता है!

आपका वैवाहिक-जीवन बच सकता है!

आपका वैवाहिक-जीवन बच सकता है!

बाइबल में ऐसी ढेर सारी व्यावहारिक सलाह दी गई है जिसके मुताबिक चलने से मियाँ-बीवी दोनों को लाभ हो सकता है। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं क्योंकि जिसकी प्रेरणा से बाइबल लिखी गई है, वही शादी के बंधन की शुरूआत करवानेवाला भी है।

बाइबल शादी-शुदा ज़िंदगी की सही तसवीर पेश करती है। यह कहती है कि एक पति और पत्नी को “दुख” होगा जिसका मतलब है कि उनके वैवाहिक-जीवन में क्लेश होगा। (1 कुरिन्थियों 7:28) मगर बाइबल यह भी कहती है कि शादी से खुशी और संतुष्टि मिल सकती है और मिलनी भी चाहिए। (नीतिवचन 5:18,19) ये दो विचार एक-दूसरे का विरोध नहीं करते। इनसे सिर्फ यह पता लगता है कि गंभीर समस्याओं के बावजूद, पति-पत्नी के बीच करीबी और प्यार-भरा रिश्‍ता कायम हो सकता है।

क्या आपकी शादी-शुदा ज़िंदगी में ऐसे प्यार की कमी है? क्या आपके रिश्‍ते में दर्द और निराशा के काले बादल इस कदर छाये हुए हैं कि खुशी और अपनापन खत्म हो चुके हैं? आपकी शादी-शुदा ज़िंदगी में चाहे कई सालों से प्यार का अभाव क्यों न रहा हो, फिर भी जो खोया जा चुका है उसे वापस पाया जा सकता है। बेशक, आपको सच्चाई कबूल करनी होगी। कोई भी असिद्ध स्त्री या पुरुष वैवाहिक-जीवन में सिद्धता हासिल नहीं कर सकते। लेकिन आप गलत तौर-तरीकों को सुधारने के लिए कुछ कदम ज़रूर उठा सकते हैं।

आगे दी गई जानकारी को पढ़ते वक्‍त यह देखने की कोशिश कीजिए कि खासकर कौन-सी बातें आपके वैवाहिक-जीवन पर लागू होती हैं। अपने साथी की कमज़ोरियों पर ध्यान देने के बजाय, ऐसे कुछ सुझाव चुनिए जिन पर आप अमल कर सकते हैं, साथ ही बाइबल में दी गई सलाह को भी मानिए। ऐसा करने से आप देख सकेंगे कि आपकी शादी-शुदा ज़िंदगी के बचने की आशा है, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की थी।

आइए हम सबसे पहले रवैये के बारे में चर्चा करें, क्योंकि वादा निभाने के बारे में आपका नज़रिया और साथी की तरफ आपकी भावनाएँ कैसी हैं इसकी बहुत बड़ी अहमियत है।

वादा निभाने के बारे में आपका नज़रिया

अगर आप अपने वैवाहिक-जीवन को सुधारना चाहते हैं तो उसके लिए उम्र-भर साथ निभाने का नज़रिया रखना ज़रूरी है। आखिरकार, परमेश्‍वर ने विवाह-बंधन की शुरूआत इसलिए करवाई थी ताकि दो इंसान हमेशा-हमेशा के लिए एक हो जाएँ। (उत्पत्ति 2:24; मत्ती 19:4,5) इसलिए आपके साथी के साथ आपका रिश्‍ता एक नौकरी की तरह नहीं है जिससे आप इस्तीफा देकर छुटकारा पा सकते हैं। और न ही यह भाड़े पर लिए हुए फ्लैट जैसा है जिसका कॉन्ट्रैक्ट बीच में ही तोड़कर आप कहीं और जा सकते हैं। इसके बजाय, शादी करते वक्‍त आपने एक गंभीर वादा किया था कि चाहे जो हो जाए आप अपने साथी का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे। इस वादे की गंभीरता उन शब्दों में देखी जा सकती है जो यीशु मसीह ने लगभग 2,000 साल पहले कहे थे: “जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।”—मत्ती 19:6.

कुछ लोग कह सकते हैं, ‘हम लोग अभी भी साथ-साथ रहते हैं। क्या इससे साबित नहीं होता है कि हमें अपना वादा निभाने का एहसास है?’ शायद। लेकिन जैसे पहले लेख में बताया गया था कि कुछ पति-पत्नी एक-साथ रहते तो हैं मगर उनकी शादी-शुदा जीवन की नैया एक ही जगह पर खड़े-खड़े सड़ रही है, यानी वे बगैर प्यार के वैवाहिक-जीवन में फँसे हुए हैं। आपका लक्ष्य अपने वैवाहिक-जीवन को खुशियों से भर देने का होना चाहिए ना कि एक-दूसरे को बर्दाश्‍त करते हुए किसी तरह ज़िंदगी काटने का। वादा निभाने की भावना में सिर्फ विवाह-बंधन के लिए ही नहीं बल्कि उस व्यक्‍ति के लिए भी निष्ठा साफ ज़ाहिर होनी चाहिए जिसे प्यार करने और जिसकी कदर करने की आपने शपथ खायी है।—इफिसियों 5:33.

आप अपने साथी से जो कुछ बोलते हैं, उससे यह साफ पता चलता है कि वादा निभाने के बारे में आप कितने गंभीर हैं। मिसाल के तौर पर, तकरार के वक्‍त बिना सोचे-समझे कुछ पति-पत्नी उल्टी-सीधी बातें बोल जाते हैं जैसे “बहुत हो गया, मैं जा रहा/ही हूँ तुम्हें छोड़कर!” या “मैं चला/ली, किसी और को ढूँढ़ने, जो मेरी कदर करे!” हालाँकि उनके ऐसा करने का कोई इरादा नहीं होता, मगर फिर भी वे साथ निभाने के वादे को बार-बार यह कहकर कमज़ोर कर देते हैं कि अलग होने का रास्ता उनके सामने हमेशा खुला है और वे ऐसा करने के लिए तैयार भी हैं।

अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी को दोबारा प्यार से भरने के लिए, बातचीत में इस तरह की धमकियाँ देना बंद कीजिए। अगर आपको मालूम है कि आपको एक-दो दिन में अपना फ्लैट छोड़कर जाना है तो क्या आप उसे सजाएँगे? तो फिर, आप अपने साथी से इस बात की उम्मीद क्यों करते हैं कि आपका साथी एक ऐसे रिश्‍ते को मज़बूत करने की कोशिश करे जो ज़्यादा दिन तक टिकनेवाला नहीं? इसलिए संकल्प कीजिए कि आप समस्याओं का समाधान करने के लिए पूरी-पूरी कोशिश करेंगे।

अपने पति के साथ मुसीबतों से गुज़रने के बाद एक पत्नी ने वही किया। वह कहती है, “मैं बहुत बार उनसे नाराज़ हो जाती थी, मगर मैंने कभी-भी उन्हें छोड़ने की बात नहीं सोची। जो कुछ बिगड़ चुका था उसे हम दोनों किसी-न-किसी तरह ठीक करने की कोशिश करते। इसलिए दो साल बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करने के बाद, आज मैं सच्चे दिल-से कह सकती हूँ कि अब हम दोनों फिर से एक-साथ काफी खुश हैं।”

जी हाँ, वादा निभाने का मतलब है साथ मिलकर काम करना—सिर्फ एक साथ रहना ही नहीं बल्कि एक ही लक्ष्य को हासिल करने के लिए साथ-साथ मेहनत करना। लेकिन, शायद आपको लगे कि आज आप सिर्फ अपने फर्ज़ की खातिर अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी को कायम रखे हुए हैं। अगर ऐसा है, तो हार मत मानिए। आपके वैवाहिक-जीवन में शायद दोबारा प्यार भरना मुमकिन है। कैसे?

अपने जीवन-साथी का आदर कीजिए

बाइबल कहती है: “विवाह सब में आदर की बात समझी जाए।” (इब्रानियों 13:4; रोमियों 12:10) जिस यूनानी शब्द को यहाँ “आदर” अनुवादित किया गया है, उसी शब्द के लिए बाइबल में दूसरी जगहों पर “प्रिय,” “सम्मानित” और “अनमोल” शब्द इस्तेमाल किए गए हैं। जब कोई चीज़ हमारे लिए बहुत कीमती होती है तो हम उसे बड़े यत्न से सँभालकर रखने के लिए पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। शायद आपने इस बात की सच्चाई एक ऐसे आदमी में देखी होगी जिसके पास एक नयी और कीमती गाड़ी होती है। वह अपनी कीमती गाड़ी को चमकाता है और उसे अच्छी स्थिति में रखता है। उस पर ज़रा-सी खरोंच आ जाए तो आसमान टूट पड़ता है! इसी तरह कुछ लोग अपने स्वास्थ्य का भी ख्याल रखते हैं। क्यों? क्योंकि वे खुश रहना चाहते हैं और इसलिए अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं।

अपने वैवाहिक-जीवन की भी इसी तरह रक्षा कीजिए। बाइबल कहती है कि प्रेम “सब बातों की आशा रखता है।” (1 कुरिन्थियों 13:7) इसलिए हार मानने के बारे मत सोचिए। और सुधार करने की संभावना को नज़रअंदाज़ करके ऐसा मत कहिए कि “जब हमारी शादी हुई तो हम नादान थे,” “हमें एक-दूसरे से प्यार कभी था ही नहीं,” या “हमें नहीं मालूम था कि हम क्या कर रहे थे।” इसके बजाय, क्यों न अच्छी बातों की आशा करें और सुधार करने के लिए मेहनत करें, और अच्छा अंजाम पाने तक धीरज धरें? विवाह संबंधी एक सलाहकार ने कहा, “मैंने अपने बहुत-से ग्राहकों को यह कहते हुए सुना है कि ‘मुझसे अब और नहीं सहा जाता!’ अपने रिश्‍ते की जाँच करके यह देखने के बजाय कि कहाँ पर सुधार करने की ज़रूरत है, वे जल्दबाज़ी में विवाह-बंधन को ही तोड़ देते हैं, जिसे बनाए रखने में बहुत मेहनत लगती है। साथ में, जिन सिद्धांतों को वे दोनों मानते हैं, एक-दूसरे के साथ की हसीन यादों, और भविष्य की योजनाओं को भी त्याग देते हैं।”

बीते समय में अपने साथी के साथ आपका क्या अनुभव रहा है? चाहे आपके रिश्‍ते में कितनी ही मुश्‍किलें क्यों न आई हों, बेशक साथ मिलकर बिताए गए कुछ खुशियों के पल होंगे, साथ-साथ आपने कुछ काम किए होंगे और मिलकर कुछ चुनौतियों का सामना भी किया होगा। इन सभी मौकों के बारे में सोचिए, और सच्चे दिल-से अपने रिश्‍ते को सुधारने की कोशिश करने के ज़रिए, अपने विवाह और अपने जीवन-साथी के लिए आदर दिखाइए। बाइबल दिखाती है कि पति-पत्नी जिस तरह एक-दूसरे के साथ पेश आते हैं, उसमें यहोवा परमेश्‍वर बहुत दिलचस्पी लेता है। मिसाल के लिए, भविष्यवक्‍ता मलाकी के ज़माने में, यहोवा ने इस्राएल जाति में उन पतियों की निंदा की जिन्होंने बिना किसी ठोस वजह के अपनी पत्नियों को तलाक देकर उनके साथ विश्‍वासघात किया था। (मलाकी 2:13-16) मसीही चाहते हैं कि उनकी शादी से यहोवा परमेश्‍वर का सम्मान हो।

खटपट—कितनी गंभीर?

बगैर प्यार के वैवाहिक-जीवन बिताने की सबसे अहम वजह है कि पति-पत्नी अपने बीच की खटपट को सही तरीके से निपटा नहीं पाते। क्योंकि दो इंसान कभी-भी एक जैसे नहीं हो सकते, इसलिए हर विवाह-बंधन में समय-समय पर मतभेद होते रहेंगे। मगर जिन पति-पत्नियों के बीच लगातार तकरार होती रहती है, कुछ सालों बाद उनका प्यार ठंडा पड़ सकता है। वे इस नतीजे पर भी पहुँच सकते हैं, ‘हम एक-दूजे के लिए बिलकुल नहीं बने हैं। हम तो बस हमेशा झगड़ते ही रहते हैं!’

लेकिन वैवाहिक-जीवन में खटपट होने का मतलब यह नहीं है कि शादी का अंत कर दिया जाए। सवाल यह उठता है कि झगड़े को कैसे निपटाया जाता है? एक कामयाब वैवाहिक-जीवन में पति और पत्नी अपने समस्याओं के बारे में बातचीत करना सीखते हैं और जैसे एक डॉक्टर ने कहा वे बिना “जानी दुश्‍मन” बने यह बातचीत करते हैं।

‘वाणी की शक्‍ति’

क्या आपको और आपके साथी को पता है कि अपनी समस्याओं के बारे में कैसे बात करें? पति-पत्नी दोनों में अपनी समस्याओं के बारे में बात करने की इच्छा होनी चाहिए। सचमुच, ऐसी बातचीत एक कला है जिसको सीखना एक चुनौती है। क्यों? क्योंकि एक बात यह है कि असिद्ध होने की वजह से हम सब कई बार ‘वचन में चूकते’ हैं। (याकूब 3:2) इसके अलावा, कुछ लोग ऐसे घरों में पले-बड़े हैं जहाँ माता-पिता अकसर आग-बबूला होकर अपना क्रोध ज़ाहिर करते थे। इस तरह, उन्होंने छोटी उम्र से ही यह सीखा है कि बात-बात पर गुस्से से फूट पड़ना और गाली-गलौच करना आम बात है। एक लड़का जिसका पालन-पोषण ऐसे माहौल में होता है, वह बड़ा होकर “क्रोध करनेवाला मनुष्य” बन जाता है और वह “अत्यन्त क्रोध” करता है। (नीतिवचन 29:22) उसी तरह, एक लड़की जिसकी परवरिश ऐसे माहौल में हुई है वह बड़ी होकर “कड़वी बातें बोलनेवाली और गुस्सेवाली स्त्री” बन जाती है। (नीतिवचन 21:19, द बाइबल इन बेसिक इंग्लिश) जिस तरह के सोच-विचार और व्यवहार करने के तौर-तरीके इंसान के दिलो-दिमाग में घर कर चुके होते हैं, उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना बहुत मुश्‍किल हो सकता है। *

तो फिर, खटपट को निपटाने के लिए एक इंसान को अपने विचार ज़ाहिर करने के नये-नये तरीके सीखने चाहिए। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है क्योंकि बाइबल की एक कहावत है: “वाणी जीवन, मृत्यु की शक्‍ति रखती है, और जो वाणी से प्रेम रखते है, वे उसका फल खाते हैं।” (नीतिवचन 18:21, इज़ी-टू-रीड वर्शन) जी हाँ, चाहे यह बात सुनने में मामूली लगे, फिर भी आप अपने साथी के साथ जिस तरह बात करते हैं उससे या तो आपका संबंध पूरी तरह टूट सकता है या फिर से जोड़ा जा सकता है। बाइबल की एक और कहावत है: “ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोचविचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।”—नीतिवचन 12:18.

इस मामले में हो सकता है कि सारा कसूर आपके साथी का हो, मगर बहस करते वक्‍त ध्यान दीजिए कि आप क्या कह रहे हैं। क्या आपकी बातें चुभती हैं या उनसे लोग चंगे होते हैं? क्या आपकी बातें क्रोध की आग को भड़काती हैं या उसे बुझाती हैं? बाइबल कहती है, “कटुवचन से क्रोध धधक उठता है।” इसके विपरीत “कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है।” (नीतिवचन 15:1) कटुवचन चाहे कितने ही शांत स्वर से क्यों न कहे गए हों, उनसे सिर्फ गुस्से की आग और भी तेज़ होती है।

हाँ, अगर आपको कोई बात परेशान कर रही है, तो आपको पूरा हक है कि आप उसे बताएँ। (उत्पत्ति 21:9-12) मगर ऐसा आप अपमान, तानाकशी और बुरा-भला कहे बगैर ही कर सकते हैं। अपनी सीमाएँ तय कीजिए यानी पक्का इरादा कीजिए कि आप अपने साथी से ऐसी बातें नहीं कहेंगे जैसे “मैं तुमसे नफरत करता/ती हूँ” या “काश हमारी शादी ना हुई होती।” हालाँकि मसीही प्रेरित पौलुस खास तौर पर विवाह के बारे में बात नहीं कर रहा था, मगर फिर भी उसकी कही हुई बात को मानना अक्लमंदी होगी। उसने कहा कि “शब्दों पर तर्क करने” से और “व्यर्थ रगड़े झगड़े” * से हमें दूर रहना चाहिए। (1 तीमुथियुस 6:4,5) अगर आपका साथी ऐसे तरीके अपनाता है, तो ज़रूरी नहीं कि आप भी वही तरीका इस्तेमाल करें। जितना आप से बन पड़ता है, शांति बनाए रखने की कोशिश कीजिए।—रोमियों 12:17,18; फिलिप्पियों 2:14.

माना कि गुस्सा भड़कने पर ज़ुबान को लगाम देना मुश्‍किल हो जाता है। “जीभ भी एक आग है,” बाइबल लेखक याकूब ने कहा। “जीभ को मनुष्यों में से कोई वश में नहीं कर सकता; वह एक ऐसी बला है जो कभी रुकती ही नहीं; वह प्राण नाशक विष से भरी हुई है।” (याकूब 3:6,8) तो फिर, जब आपका पारा चढ़ने लगता है तब आप क्या कर सकते हैं? आप किस तरीके से अपने साथी से बात कर सकते हैं जिससे झगड़े की आग में तेल डालने के बजाय उसे बुझाया जा सके?

झगड़े का ज्वालामुखी फटने से पहले उसे शांत करना

कुछ लोगों ने यह अनुभव किया है कि अपने साथी के बर्ताव पर उँगली उठाने के बजाय वे खुद कैसा महसूस करते हैं इसके बारे में बताने से गुस्सा ठंडा करने में और समस्याओं का असली हल निकालने में आसानी होती है। मिसाल के तौर पर, यह कहने के बजाय कि “तुमने मुझे चोट पहुँचाई है” या “तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम क्या बोल रहे हो,” यह कहना ज़्यादा असरदार होगा कि “तुम्हारी बातों से मेरे दिल को ठेस पहुँची है।” बेशक, जब आप अपनी भावनाओं को व्यक्‍त करते हैं तो आपके लहज़े में कड़वाहट या नफरत नहीं होनी चाहिए। आपका मकसद होना चाहिए समस्या को सामने लाना ना कि अपने साथी पर हमला करना।—उत्पत्ति 27:46–28:1.

इसके अलावा, हमेशा याद रखिए कि “चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है।” (सभोपदेशक 3:7) जब दो लोग एक ही समय पर बात करते हैं, तो सुननेवाला कोई नहीं होता, और इससे कुछ हासिल नहीं होता। इसलिए जब आपकी बारी आती है तो आपको “सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा” होना चाहिए। ऐसे समय में “क्रोध में धीमा” होना भी बहुत ज़रूरी है। (याकूब 1:19) अपने साथी द्वारा कहे गए हर कठोर शब्द को गंभीरता से मत लीजिए; ना ही “अपने मन में उतावली से क्रोधित” होइए। (सभोपदेशक 7:9) इसके बजाय उन शब्दों के पीछे की भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए। “जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को भुलाना उसको सोहता है।” (नीतिवचन 19:11) बुद्धिमानी से काम लेने से पति या पत्नी को झगड़े की गहराई तक जाने में मदद मिलेगी।

मिसाल के लिए, जब पत्नी शिकायत करती है कि उसका पति उसके साथ वक्‍त नहीं बिताता तो वह सिर्फ घंटों और मिनटों की बात नहीं कर रही। इसके बजाय वह शायद यह कहना चाहती है कि उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा या उसकी कदर नहीं की जाती। उसी तरह जब पति को अपनी पत्नी से बेमतलब की खरीदारी का शिकवा हो तो शायद वह सिर्फ पैसे खर्च करने की बात नहीं कर रहा। वह शायद यह महसूस कर रहा हो कि फैसला करने से पहले उससे पूछा तक नहीं गया। बुद्धिमान पति या पत्नी मामले को गहराई से समझने की कोशिश करेंगे और समस्या की जड़ तक जाएँगे।—नीतिवचन 16:23.

क्या ऐसा कहना आसान और करना मुश्‍किल है? जी हाँ, बिलकुल! कभी-कभी, लाख कोशिश करने के बावजूद भी कठोर बातें मुँह से निकल सकती हैं और जिससे गुस्से की ज्वाला भड़क सकती है। जब ऐसा हो तो आपको नीतिवचन 17:14 में दी गई सलाह पर अमल करने की ज़रूरत है: “झगड़ा बढ़ने से पहिले उसको छोड़ देना उचित है।” जब तक गुस्सा ठंडा न हो जाए तब तक उस मामले पर बातचीत ना करने में कोई हर्ज़ नहीं है। अगर आपके बीच बातचीत को काबू में रखना मुश्‍किल है, तो अच्छा होगा कि आप दोनों अपने साथ एक प्रौढ़ दोस्त को बैठने और समस्याओं को सुलझाने में आपकी मदद करने के लिए कहें। *

हकीकत को ध्यान में रखना

अगर आपकी शादी-शुदा ज़िंदगी उस तरह नहीं गुज़र रही है जिसके आपने अपनी शादी से पहले की मुलाकातों में सपने देखे थे तो निराश मत होइए। विशेषज्ञों का एक दल कहता है: “ज़्यादातर लोगों की शादी-शुदा ज़िंदगी में ऐसा नहीं होता कि उन्हें हमेशा सुख ही सुख मिले। कभी इसमें खुशियों की बहार आती है, तो कभी यह काँटों से भर जाती है।”

जी हाँ, वैवाहिक-जीवन कहानी की किताबों में बताए गए रोमांस की तरह नहीं होता। लेकिन ज़रूरी नहीं कि यह उन कहानियों की तरह हो जिनका अंत बहुत दुःखद होता है। हालाँकि ऐसा वक्‍त आएगा जब आपको और आपके साथी को एक-दूसरे को बर्दाश्‍त करना पड़ेगा। मगर ऐसे मौके भी आएँगे जब आप दोनों अपनी नोंक-झोंक को भुलाकर, एक-दूसरे का साथ पाकर खुश होंगे, मज़े करेंगे, साथ ही दोस्तों की तरह एक-दूसरे से बात करेंगे। (इफिसियों 4:2; कुलुस्सियों 3:13) यही मौके होते हैं जब आप अपने खोए हुए प्यार को दोबारा पा सकते हैं।

याद रखिए कि असिद्ध स्त्री या पुरुष अपने वैवाहिक-जीवन में सिद्ध जोड़ा नहीं बन सकते। मगर वे कुछ हद तक खुशी ज़रूर पा सकते हैं। जी हाँ, मुश्‍किलों के बावजूद आप और आपके साथी के बीच का रिश्‍ता असीम संतुष्टि का सोता बन सकता है। एक बात तो पक्की है: अगर आप और आपका साथी दोनों मेहनत करें, बदलाव करने के लिए तैयार रहें और एक-दूसरे की भलाई का ध्यान रखें तो यह विश्‍वास करना जायज़ है कि आपके वैवाहिक-जीवन को बचाया जा सकता है।—1 कुरिन्थियों 10:24.(g01 1/8)

[फुटनोट]

^ माता-पिता के प्रभाव की वजह से इस बात की छूट नहीं मिल जाती कि एक व्यक्‍ति अपने साथी के साथ सख्ती से बात करे। मगर फिर भी यह जानकारी हमें समझने में मदद कर सकती है कि कैसे एक इंसान के दिलो-दिमाग पर उसके माता-पिता का असर हो सकता है जिसे दूर करना बहुत मुश्‍किल हो सकता है।

^ यूनानी भाषा के जिस मूल शब्द का अनुवाद “व्यर्थ रगड़े झगड़े” किया गया है उसका अनुवाद “आपसी तकरार” भी किया जा सकता है।

^ यहोवा के साक्षियों की मदद करने के लिए कलीसिया में प्राचीन होते हैं। हालाँकि व्यक्‍तिगत मामलों में दखल देना उनका काम नहीं, मगर फिर भी पति-पत्नी के बीच की समस्याओं को सुलझाने के लिए प्राचीन बढ़िया मददगार साबित हो सकते हैं।—याकूब 5:14,15.

[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

क्या आपकी बातें चुभती हैं या क्या उनसे लोग चंगे होते हैं?

[पेज 10 पर बक्स/तसवीरें]

गेंद हौले-से फेंकिए

बाइबल कहती है: “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।” (कुलुस्सियों 4:6) यह वचन बेशक शादी-शुदा ज़िंदगी में लागू होता है! उदाहरण के लिए: गेंद फेंकने का खेल खेलते समय आप गेंद इस तरह से उछालते हैं कि उसे आसानी से पकड़ा जा सके। आप गेंद को इतने ज़ोर से नहीं फेंकेंगे कि आपका साथी घायल हो जाए। अपने साथी से बातचीत करते वक्‍त भी यही सिद्धांत अपनाइए। ताने मारने से सिर्फ चोट पहुँचती है। इसके बजाय, नरमी और अदब से बात कीजिए, ताकि आपका साथी आपकी बात समझ सके।

[पेज 11 पर बक्स/तसवीर]

यादें ताज़ा कीजिए!

पुरानी चिट्ठियाँ और कार्ड पढ़िए। तसवीरें देखिए। अपने आप से पूछिए, ‘मेरे साथी में ऐसी क्या बात थी जिसकी वजह से मैं उसकी तरफ आकर्षित हुआ/हुई? उसके कौन-से गुण मुझे सबसे ज़्यादा पसंद थे? क्या-क्या काम हम दोनों ने मिलकर किए थे? किन बातों पर हमें हँसी आ जाती थी?’ इसके बाद इन यादों के बारे में अपने साथी से बात कीजिए। बातचीत जो इन शब्दों से शुरू होती है, “याद है, एक समय था, जब . . . ?” इनसे आपमें और आपके साथी में वो भावनाएँ फिर से जाग सकती हैं जो आप दोनों में एक-दूसरे के लिए पहले थीं।

[पेज 12 पर बक्स]

नया साथी, मगर समस्याएँ वही

कुछ पति-पत्नियों को लगता है कि वे बगैर प्यार के शादी-शुदा ज़िंदगी में फँसे हुए हैं। उनमें एक नये जीवनसाथी के साथ नये सिरे से ज़िंदगी शुरू करने की लालसा होती है। लेकिन बाइबल के मुताबिक व्यभिचार करना पाप है। बाइबल कहती है कि जो व्यक्‍ति यह पाप करता है “वह निरा निर्बुद्ध [“मूर्ख,” NHT] है” और “अपने प्राणों को नाश करना चाहता है।” (नीतिवचन 6:32) आखिरकार, व्यभिचार करनेवाला व्यक्‍ति जो पश्‍चाताप नहीं दिखाता, उससे यहोवा नफरत करता है, और इससे बड़ी सज़ा उस इंसान को मिल ही नहीं सकती।—इब्रानियों 13:4.

व्यभिचार करनेवाले व्यक्‍ति की मूर्खता और भी कई तरीकों से ज़ाहिर होती है। एक बात है कि व्यभिचार करनेवाला जो दूसरी शादी करता है, शायद उसे अब भी उन्हीं समस्याओं का सामना करना पड़े जिनकी वजह से उसकी पहली शादी बरबाद हुई थी। डॉ. डायेन मेडवेड एक और बात पर गौर करने के लिए कहती है: “आपका नया साथी आपके बारे में सबसे पहली बात यह सीखता है कि आप बेवफाई करने के लिए तैयार हैं। वह जानता/ती है कि आप जिसके साथ ज़िंदगी भर साथ निभाने का वादा करते हैं उसे धोखा दे सकते हैं। कि आप बहाने बनाने में बड़े माहिर हैं। कि आपको अपने वादे से मुकरने के लिए लुभाया जा सकता है। कि आपके सामने अगर शारीरिक इच्छाएँ या अपना स्वार्थ पूरा करने का लालच दिया जाए तो आप बड़ी आसानी से ऐसे फंदों में फँस जाएँगें। . . . क्या आपका साथी नम्बर दो, इस बात पर यकीन कर सकता/ती है कि आप दोबारा नहीं बहकेंगे?”

[पेज 13 पर बक्स]

बाइबल की कहावतों में बुद्धि की बातें

नीतिवचन 10:19: “जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपने मुंह को बन्द रखता वह बुद्धि से काम करता है।”

जब आप परेशान होते हैं, तब आप ऐसी बातें कह देते हैं जो कहना नहीं चाहते, और फिर बाद में पछताते हैं।

नीतिवचन 15:18, (NHT): “क्रोधी मनुष्य झगड़ा भड़काता है, परन्तु जो क्रोध में धीमा है, वह झगड़े को शांत करता है।”

अगर आप चुभनेवाले ताने मारेंगे तो आपका साथी अपना बचाव करने के लिए आपका विरोध कर सकता है, जबकि इतमीनान से एक-दूसरे की सुनने से आप दोनों को समाधान ढूँढ़ने में मदद मिलेगी।

नीतिवचन 17:27: “जो संभलकर बोलता है, वही ज्ञानी ठहरता है; और जिसकी आत्मा शान्त रहती है, सोई समझवाला पुरुष ठहरता है।”

जब आपको लगता है कि आपका पारा चढ़ रहा है, तो उस वक्‍त चुप रहना सबसे बेहतर होगा, ताकि झगड़े की चिंगारी भड़ककर ज्वाला न बन जाए।

नीतिवचन 29:11: “मूर्ख अपने सारे मन की बात खोल देता है, परन्तु बुद्धिमान अपने मन को रोकता, और शान्त कर देता है।”

आत्म-संयम बहुत ज़रूरी है। अगर आप बात-बात पर गुस्सा होकर कड़वी बातें उगलते रहेंगे, तो आपका साथी आपसे दूर हो जाएगा।