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क्या मसीहियों के लिए गिरजे जाना ज़रूरी है?

क्या मसीहियों के लिए गिरजे जाना ज़रूरी है?

बाइबल का दृष्टिकोण

क्या मसीहियों के लिए गिरजे जाना ज़रूरी है?

“मैं गिरजे की सभाओं में जाया करता था, पर अब नहीं जाता।” “मेरे ख्याल से परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए गिरजे जाना ज़रूरी नहीं है, हम कहीं भी उसकी उपासना कर सकते हैं।” “मैं परमेश्‍वर और बाइबल, दोनों पर विश्‍वास रखता हूँ, मगर मेरे हिसाब से गिरजे जाना ज़रूरी नहीं है।” क्या आपने भी लोगों के मुँह से ऐसी बातें सुनी हैं? आज, खास तौर से पश्‍चिमी देशों में मसीही होने का दावा करनेवाले ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग यही कहते हैं। लोग जो पहले गिरजे जाते थे, वे अब वहाँ जाना ज़रूरी नहीं समझते। लेकिन बाइबल इस बारे में क्या कहती है? क्या मसीहियों को किसी खास जगह या भवन में जाकर उपासना करनी चाहिए ताकि परमेश्‍वर उनकी उपासना को स्वीकार करे?

इस्राएल जाति में उपासना

मूसा की व्यवस्था के मुताबिक, सभी यहूदी पुरुषों को साल में होनेवाले तीन पर्वों के लिए एक खास जगह पर मौजूद होना था। कई औरतें और बच्चे भी इन पर्वों के लिए जाते थे। (व्यवस्थाविवरण 16:16; लूका 2:41-44) कुछ दूसरे मौकों पर याजक और लेवी इकट्ठी हुई भीड़ के सामने परमेश्‍वर की व्यवस्था से पढ़कर उन्हें कई बातें सिखाते थे। उन्होंने व्यवस्था की पुस्तक से ‘पढ़कर अर्थ समझाया, और लोगों ने पाठ को समझ लिया।’ (नहेमायाह 8:8) सब्त के सालों के लिए यहोवा ने निर्देश दिया: “क्या पुरुष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकों के भीतर के परदेशी, सब लोगों को इकट्ठा करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्‍वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकसी करें।”—व्यवस्थाविवरण 31:12.

सिर्फ यरूशलेम के मंदिर में ही एक व्यक्‍ति यहोवा के लिए बलियाँ चढ़ा सकता था और याजकों से हिदायतें पा सकता था। (व्यवस्थाविवरण 12:5-7; 2 इतिहास 7:12) वक्‍त गुज़रने के साथ-साथ, इस्राएल देश में उपासना के लिए कई आराधनालय बनाए गए। इन जगहों का इस्तेमाल शास्त्रों को पढ़ने और प्रार्थना करने के लिए किया जाता था। फिर भी, यरूशलेम का मंदिर ही उपासना करने की मुख्य जगह थी। इस बात पर बाइबल लेखक लूका भी ज़ोर देता है। वह एक बुज़ुर्ग औरत हन्‍नाह का ज़िक्र करता है जो “मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात-दिन उपासना किया करती थी।” (लूका 2:36,37) दूसरे भक्‍तों के साथ सच्ची उपासना करना हन्‍नाह की ज़िंदगी का मकसद था। परमेश्‍वर का भय माननेवाले दूसरे यहूदियों के बारे में भी यही कहा जा सकता है।

मसीह की मौत के बाद सच्ची उपासना

यीशु की मौत के बाद, उसके शिष्य मूसा की व्यवस्था के अधीन नहीं रहे और ना ही अब उन्हें मंदिर में उपासना करने की ज़रूरत थी। (गलतियों 3:23-25) फिर भी, वे प्रार्थना करने और परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने के लिए इकट्ठा होते रहे। इसके लिए उनके पास कोई ऊँचे-ऊँचे और सुंदर भवन तो नहीं थे मगर वे घरों और सार्वजनिक जगहों पर इकट्ठा होते थे। (प्रेरितों 2:1,2; 12:12; 19:9; रोमियों 16:4,5) और पहली सदी की उन सभाओं में न तो कोई रीति-रिवाज़ माने जाते थे, न ही किसी किस्म की धूमधाम और दिखावा किया जाता था, बल्कि ये सभाएँ बिलकुल साधारण और तरो-ताज़ा कर देनेवाली होती थीं।

उस वक्‍त रोमी साम्राज्य में, जबकि चारों तरफ अच्छे आदर्शों का पतन हो चुका था सभाओं में सिखाए जानेवाले सिद्धांत हीरों की तरह जगमगा रहे थे। कुछ अविश्‍वासी लोग जो पहली बार सभा में आते, वे हैरान होकर बस यही कहते: “सचमुच परमेश्‍वर तुम्हारे बीच में है।” (1 कुरिन्थियों 14:24,25) जी हाँ, परमेश्‍वर वाकई उन लोगों के बीच मौजूद था। “इस प्रकार कलीसिया विश्‍वास में स्थिर होती गईं और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गईं।”—प्रेरितों 16:5.

अगर पहली सदी का एक मसीही गैर-ईसाई मंदिरों में या अकेले ही परमेश्‍वर की उपासना करता तो क्या यहोवा की आशीष उस पर होती? बाइबल इस सवाल का जवाब साफ-साफ देती है: जो व्यक्‍ति यहोवा की आशीष पाना चाहता है उसे एक ही सच्ची कलीसिया यानी सच्चे उपासकों की “एक ही देह” का भाग बनना होगा। यीशु के यही शिष्य मसीही कहलाए गए।—इफिसियों 4:4,5; प्रेरितों 11:26.

आज के बारे में क्या?

बाइबल, आज हमें उपासना के लिए किसी खास जगह जाने का बढ़ावा नहीं देती बल्कि “जीवते परमेश्‍वर की कलीसिया,” यानी उन लोगों के साथ उपासना करने का बढ़ावा देती है जो “आत्मा और सच्चाई से भजन” करते हैं। (1 तीमुथियुस 3:15; यूहन्‍ना 4:24) यहोवा की आशीष उन धार्मिक सभाओं पर रहती है जहाँ लोगों को “पवित्र चालचलन और भक्‍ति” के काम करने की शिक्षा मिलती हैं। (2 पतरस 3:11) इन सभाओं से, मौजूद लोगों को प्रौढ़ मसीही बनने और “भले बुरे में भेद करने” के लिए मदद मिलनी चाहिए।—इब्रानियों 5:14.

यहोवा के साक्षी, पहली सदी के मसीहियों के नक्शे-कदम पर चलने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। दुनिया-भर में 91,400 से भी ज़्यादा कलीसियाएँ, नियमित रूप से बाइबल का अध्ययन करने और एक-दूसरे को प्रोत्साहित करने के लिए किंगडम हॉल में, घरों में और दूसरी जगहों पर इकट्ठा होते हैं। ऐसा करने से वे प्रेरित पौलुस के इन शब्दों का सही तरीके से पालन कर रहे हैं: “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें।”—इब्रानियों 10:24,25.(g01 3/8)