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विश्‍व-दर्शन

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बगैर दर्द के दिल का दौरा

बहुत-से लोगों को मालूम है कि जब सीने में दर्द उठता है तो वह दिल के दौरे का एक आम लक्षण है। लेकिन टाइम पत्रिका कहती है कि बहुत कम लोग यह जानते हैं कि “एक-तिहाई मरीज़ों को दिल का दौरा पड़ते वक्‍त सीने में किसी भी तरह का दर्द महसूस नहीं होता।” अमरीकी चिकित्सीय संस्था की पत्रिका (अँग्रेज़ी) में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि इससे यह बात समझ में आती है कि “जिन्हें दिल का दौरा पड़ता है और सीने में किसी भी तरह का दर्द न होने की वजह से वे आम तौर पर अस्पताल जाना [क्यों] टालते रहते हैं और औसतन दो घण्टे की देरी करते हैं।” लेकिन जिस इलाज से ज़िंदगी बचायी जा सकती है उसे शुरू करने में ज़रा-भी देर करना खतरनाक हो सकता है। तो फिर दिल के दौरे का पता कैसे लगाया जा सकता है? टाइम कहती है कि “बहुत ज़्यादा साँस का फूलना शायद दूसरी सबसे बड़ी चेतावनी हो सकती है।” यह लेख बताता है कि दूसरे चिन्ह ये हो सकते हैं जैसे मतली आना, बहुत ज़्यादा पसीना आना, “‘सीने में जलन’ होना जो चलने-फिरने या कोई और मेहनत का काम करने से बढ़ जाती है।”

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चिपचिपे पंजे

छिपकलियाँ शीशे के समान चिकनी छतों पर आसानी से चल सकती हैं। यह वे कैसे कर पाती हैं? कई दशकों से इस सवाल का जवाब ढूँढ़नेवाले वैज्ञानिकों को लगता है कि अब उन्हें इसका जवाब शायद मिल गया है। साइंस न्यूज़ पत्रिका की खबर के मुताबिक, वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के एक दल ने पता लगाया है कि “जब एक छिपकली किसी सतह पर अपना पैर रगड़ती है तब उसके पैरों में मौजूद छोटे-छोटे बालों (सीटा) से एक अजीब-सी शक्‍ति उत्पन्‍न होती है जो उनके पैरों को सतह पर आसानी से चिपकाए रहती है। हर एक सीटा से स्पैच्यूला नामक और भी छोटे-छोटे रोएँ निकलते हैं। जब एक छिपकली किसी सतह पर अपना पैर जमाती है तो उसके पैरों तले मौजूद करीब एक अरब स्पैच्यूला, सतह से इस कदर चिपक जाते हैं कि इनके अणुओं के बीच . . . परस्पर आकर्षण पैदा होता है।” खोजकर्ताओं ने यह भी देखा है कि जिस तरह छिपकली अपने पंजे गढ़ाती है उससे “सीटा न सिर्फ सतह पर दबते हैं बल्कि समान अंतर पर खिंचते भी हैं।” पत्रिका का कहना है कि इस क्रिया से “हर सीटा की पकड़, सिर्फ दबाने के मुकाबले दस गुना बढ़ जाती है।”

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ब्रिटेन के लोग, सबसे ज़्यादा टीवी देखते हैं

लंदन का अखबार दी इंडिपेंडंट रिपोर्ट करता है: “ब्रिटेन के करीब एक-चौथाई लोग औसतन हर हफ्ते जितना समय काम करते हैं उतना ही समय टीवी देखते हैं।” खोजकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि ब्रिटेन में एक आम इंसान हर हफ्ते टीवी देखने में 25 घंटे लगा देता है जबकि 21 प्रतिशत लोग 36 घंटे से भी ज़्यादा टीवी देखते हैं। यह अखबार कहता है कि “न सिर्फ जवान लोग, बल्कि स्त्री, पुरुष और बुज़ुर्ग भी टीवी देखने में ज़रूरत से ज़्यादा वक्‍त बरबाद करते हैं।” हर हफ्ते 30 घंटे टीवी देखनेवाले एक परिवार का कहना है कि टीवी देखने से उन्हें “ज़िंदगी की दौड़-धूप से राहत मिलती है।” मगर इस बुरी लत की भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है। लंदन का द गार्डियन वीकली अखबार रिपोर्ट करता है कि 20 देशों के अध्ययन करने पर यह पता चला है कि यूनाइटेड किंगडम, “दुनिया में सबसे ज़्यादा टीवी देखनेवालों की सूची में अव्वल है।” मगर जब “साक्षरता की तीन अहम कसौटियों पर इसे परखा गया तो उनके मुताबिक ब्रिटेन इस सूची में काफी नीचे था।”

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इंसान का सबसे वफादार साथी?

मेक्सिको शहर का अखबार, एल यूनिवर्सल यह रिपोर्ट पेश करता है कि छोटे बच्चों को कुत्तों के साथ अकेला छोड़ना खतरनाक है क्योंकि ये कुत्ते इन बच्चों को काट सकते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक “ज़्यादातर मामलों में इन हमलों के ज़िम्मेदार खुद बच्चे ही होते हैं और कुत्ता सिर्फ अपने बचाव के लिए हमला करता है।” पिछले पाँच सालों में मेक्सिको के एक अस्पताल ने 426 बच्चों का इलाज किया जिनको कुत्ते ने काट लिया था। और इनमें से 12 प्रतिशत बच्चों को गहरी और स्थायी चोट लगी या उनका रूप ही पूरी तरह बिगड़ गया। यह रिपोर्ट माता-पिताओं को बढ़ावा देती है कि अपने बच्चों को कुत्तों के बारे में कुछ ज़रूरी नियम सिखाएँ जैसे, कुत्तों के खिलौनों, उनके घर और खाने के बरतनों से छेड़-छाड़ न करना; जब वे खाना खा रहे हों या सो रहे हों तो उनके पास न जाना; उनकी पूँछ को न खींचना या उन पर सवारी करने की कोशिश न करना।

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भरपूर नींद लेना

यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के मनोविज्ञानी स्टैनली कोरेन कहते हैं: “हमारे समाज को नींद की इतनी सख्त ज़रूरत है कि इसके बिना हमारा समाज खतरे में है।” थ्री माइल आइलैंड में हुई परमाणु दुर्घटना और एगज़न वॉल्डी में तेल के बहने से हुई दुर्घटना की एक वजह थी, नींद की कमी। कैनडा की मैक्लेन्स पत्रिका रिपोर्ट करती है कि उत्तर अमरीका में हर साल 1,00,000 से भी ज़्यादा गाड़ियों की दुर्घटनाएँ, ड्राइवरों के उनींदेपन की वजह से होती हैं। स्टॆन्फर्ड यूनिवर्सिटी में नींद के विशेषज्ञ, डॉ. विलियम दीमेंत खबरदार करते हैं: “लोग नहीं जानते कि उन्हें नींद की कितनी ज़रूरत है।” अच्छी नींद के लिए खोजकर्ताओं का सुझाव है: रात का खाना खाने और सोने के बीच कम-से-कम तीन घंटे का फर्क होना चाहिए। हर दिन आपके सोने का समय और उठने का समय एक ही होना चाहिए। सोने के कमरे में न तो टीवी और ना ही कंप्यूटर रखें। कैफ़ीन, शराब और तंबाकू से दूर रहिए। बिस्तर में अपने पैरों को गरम रखने के लिए जुर्राबें पहनिए। सोने से पहले गरम पानी से स्नान कीजिए। रोज़ाना व्यायाम कीजिए मगर सोने से पहले नहीं। आखिर में मैक्लेन्स पत्रिका कहती है: “अगर आपको नींद नहीं आ रही है तो उठकर कुछ कीजिए। जब आप थक जाएँ तब जाकर वापस सो जाइए लेकिन अगले दिन अपने नियमित समय पर उठिए।”

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रसोईघर को साफ रखना

कैनडा का वैनकूवर सन अखबार कहता है कि “व्यस्त रसोईघरों में छिपे बीमारी फैलानेवाले रोगाणुओं से लड़ने के लिए [साधारण] ब्लीच बेहद असरदार है।” यह रिपोर्ट कुछ सुझाव देती है: हर दिन 4 लीटर हलके गरम पानी में 30 मिलीलीटर ब्लीच मिलाकर घोल तैयार करें। गरम पानी से ब्लीच भाप बन जाता है। फिर इस घोल और एक साफ कपड़े से रसोईघर की सतहों को पोंछिए। फिर इन्हें सूखने दीजिए। ऐसा करने से ज़्यादा-से-ज़्यादा रोगाणु नाश हो जाएँगे। बरतनों को भी साबुन मिले गरम पानी से धोइए और फिर रोगाणुओं को नाश करने के लिए उन्हें कुछ मिनटों के लिए ब्लीच और पानी के घोल में रखिए। जब ये बरतन सूख जाएँ, तो इनमें कोई भी रासायनिक पदार्थ नहीं रह जाएगा। रोज़ाना रसोईघर में काम आनेवाले स्पंज, बरतन पोंछने के कपड़े और बरतन माँजने के ब्रश को साफ करके ब्लीच कीजिए। और अपने हाथों से खाने की चीज़ों को दूषित करने के खतरों को कम करने के लिए अपने हाथों, खासकर अपने नाखूनों की अच्छी सफाई कीजिए।

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जीवाणुओं की रोकथाम, बेबुनियाद

यू.एस.ए टुडे का कहना है कि “अमरीकी उपभोक्‍ता जो अपने घरों से रोगाणु मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, दरअसल वे एक बेबुनियादी लड़ाई लड़ रहे हैं।” इस अखबार के मुताबिक, टफ्ट्‌स्‌ विश्‍वविद्यालय के डॉक्टर और सूक्ष्मजीवविज्ञानी, स्टूअर्ट लीवी ने कहा कि “जीवाणुओं से लड़ने के लिए भारी मात्रा में उत्पादन तैयार किए जा रहे हैं जिसकी वजह से . . . ऐसे जीवाणुओं के पैदा होने का खतरा बढ़ गया है जिन पर ना तो किसी जीवाणु-रोधक साबुन का असर होगा और ना ही किसी दवा का।” लीवी का कहना है कि अपने घरों को जीवाणुओं से सुरक्षित रखने के लिए इन उत्पादनों का इस्तेमाल करना, “एक हथौड़े से मक्खी मारने के बराबर है।” दूसरी तरफ ब्लीच, हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, गरम पानी और साबुन जैसी साफ-सफाई की घरेलू चीज़ों से न सिर्फ गंदगी दूर होती है बल्कि इन जीवाणुओं को दूसरे रूप में बदलने से भी रोकती हैं, क्योंकि अगर जीवाणु किसी दूसरे रूप में बदल जाएँ तो फिर इन घरेलू उत्पादनों का इन जीवाणुओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लीवी कहते हैं, “जीवाणु हमारे साथी हैं। हमें उनके साथ लड़ने के बजाय उनसे सुलह करनी होगी।”

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कीड़ों को मारने की कीमत

द टाइम्स ऑफ इंडिया खबर देता है कि भारत में उत्तर प्रदेश के वन विभाग ने होपलो नामक ढाई सेंटीमीटर लंबे, पंखोंवाले कीड़े को मारने का अभियान चलाया है। यह अभियान इसलिए चलाया गया है ताकि ये कीड़े जंगल में करीब 6,50,000 साल वृक्षों को पूरी तरह न उजाड़ दें। अब इस जाति के पेड़ और भी खतरे में हैं क्योंकि हाल ही में इन कीड़ों की संख्या बढ़ गयी है। ये कीड़े पेड़ की छाल और उसके तने पर बिल बनाकर रहते हैं जिससे पेड़ सूखकर मर जाता है। वन विभाग “फँदा पेड़” का तरीका अपनाकर इन कीड़ों को पकड़ रहे हैं। छोटे-छोटे साल के पेड़ों से लिए गए छाल के टुकड़ों को उस जगह पर बिखेर दिया जाता है जहाँ ये कीड़े पाए जाते हैं। इन टुकड़ों से निकलनेवाला तरल पदार्थ न सिर्फ इन कीड़ों को आकर्षित करता है बल्कि इससे वे नशे में चूर हो जाते हैं जिसकी वजह से उनको पकड़ना आसान हो जाता है। उस इलाके के लड़कों को इस काम के लिए पैसे दिए जाते हैं और हर कीड़े को पकड़ने की कीमत 75 पैसे (करीब दो सैंट) है।

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रिटायरमेंट से निराशा

समय से पहले अपनी नौकरी से रिटायर होने के कुछ फायदे हो सकते हैं मगर जज़्बाती तौर पर इसका बुरा असर भी हो सकता है। ब्राज़ील का अखबार, डीएरीओ द परनमब्यूको रिपोर्ट करता है कि सरकारी कर्मचारी रिटायर होने के बाद शिकायत करते हैं कि वे ‘खुश नहीं रहते, चिड़चिड़े हो जाते हैं, असुरक्षित महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि जैसे वे अपना वजूद ही खो बैठे हैं। इतना ही नहीं वे मायूस रहते हैं और उन्हें लगता है कि उनकी दुनिया उजड़ चुकी है।’ एक जराचिकित्सक (बुज़ुर्ग लोगों की चिकित्सा करनेवाला) गीडो शासनिक के मुताबिक “यह कोई नयी बात नहीं कि जल्दी रिटायर होने पर जहाँ पुरुष शराब का सहारा लेते हैं, वहीं औरतें दवाइयों का।” इसलिए, मनोविज्ञानी ग्रासा सान्तोस के मुताबिक जो अपनी नौकरी छोड़ने की सोच रहे हैं, उन्हें “नए-नए कामों में अपने हुनर का इस्तेमाल करते रहना चाहिए, उधार नहीं लेना चाहिए और साथ ही सलाह लेनी चाहिए कि वे कर्ज़ के सागर में डूबने से कैसे बचे रहें।”

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