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गूटेन बर्ग जिसने दुनिया को मालामाल कर दिया!

गूटेन बर्ग जिसने दुनिया को मालामाल कर दिया!

गूटेन बर्ग जिसने दुनिया को मालामाल कर दिया!

जर्मनी के सजग होइए! संवाददाता द्वारा

पिछले हज़ार सालों में हुए आविष्कारों में से किसने आपकी ज़िंदगी पर सबसे ज़्यादा असर किया है? टेलिफोन? टेलीविज़न? या मोटरगाड़ी? शायद इनमें से एक भी नहीं। बहुत-से विशेषज्ञों के मुताबिक वह अविष्कार है, छपाई की मशीन। छपाई का सबसे पहला कारगर तरीका आविष्कार करने का श्रेय योहानॆस जेन्सफ्लिश ट्‌सुर लेडन को जाता है, जो योहानॆस गूटेनबर्ग के नाम से जाना जाता है। वह एक बड़े खानदान का था, इसलिए उसे आम लोगों की तरह किसी के यहाँ जाकर काम सीखने की ज़रूरत नहीं पड़ी।

गूटेनबर्ग की दिमागी उपज को “दुनिया को जर्मनी का नायाब तोहफा” कहा गया है। 42-पंक्‍तियोंवाली गूटेनबर्ग बाइबल, उसकी छपाई की एक बेमिसाल रचना है जिसकी बची हुई एक कॉपी खरीदना बड़े-बड़े रइसों के भी बस की बात नहीं।

सुनहरा मेयॉन्स

गूटेनबर्ग का जन्म करीब 1397 में मेयॉन्स नगर में हुआ था। मेयॉन्स, राईन नदी के तट पर है जिसकी आबादी उस वक्‍त लगभग 6,000 थी। उसे सुनहरा मेयॉन्स कहा जाता था क्योंकि यह कई नगरों के बड़े-बड़े राजनेताओं का केंद्र था। मेयॉन्स के आर्चबिशप, पवित्र रोमी साम्राज्य के चुनाव में हिस्सा लेते थे। यह नगर सुनारों के लिए भी मशहूर था। जवान योहानॆस ने धातु-कारीगरी के बारे में काफी कुछ सीखा, उसने धातुओं से अक्षरों की उभारदार नक्काशी करना भी सीखा था। राजनैतिक उथल-पुथल की वजह से उसे मेयॉन्स नगर छोड़कर स्ट्रॉसबर्ग में कुछ साल तक रहना पड़ा। वहाँ उसने रत्न तराशने का काम किया, साथ ही दूसरों को भी यह कारीगरी सिखायी। मगर उसने अपना ज़्यादातर वक्‍त एक नयी चीज़ ईजाद करने में बिताया जिसके बारे में उसने किसी को भी नहीं बताया। गूटेनबर्ग, छपाई-मशीन में और भी सुधार लाने की कोशिश में लगा रहा।

गूटेनबर्ग का दिमाग और फुस्ट का पैसा

बाद में, जब गूटेनबर्ग मेयॉन्स लौट आया तब भी वह अपनी नयी ईजाद करने के लिए परीक्षण में लगा रहा। वह पैसे की मदद के लिए योहान फुस्ट के पास गया और फुस्ट ने उसे 1,600 गल्डन कर्ज़ में दिया। यह बहुत ही भारी रकम थी क्योंकि उस ज़माने में एक कुशल कारीगर की साल-भर की कमाई सिर्फ 30 गल्डन होती थी। फुस्ट बड़ा ही होशियार बिज़नॆसमैन था, इसलिए हालाँकि गूटेनबर्ग को उधार देने में खतरा था, फिर भी उसने सोचा कि गूटेनबर्ग अपनी योजना में कामयाब हो गया तो उसे बहुत मुनाफा होगा। गूटेनबर्ग ने कैसी योजना हाथ में ली?

गूटेनबर्ग हर चीज़ को बड़े ध्यान से देखता था। उसने गौर किया कि किस तरह कुछ चीज़ें बड़ी तादाद में बनायी जाती हैं जिनमें सभी चीज़ें हूबहू एक-जैसी होती हैं। मिसाल के लिए, सिक्कों का बनाया जाना और धातु से बंदूक की गोलियों को ढालना। तो क्या एक ही तरह के पन्‍नों की सैकड़ों कॉपियाँ छापकर, उनको क्रमानुसार जोड़ने से एक किताब की कई कॉपियाँ नहीं बन सकतीं? मगर किन किताबों की? गूटेनबर्ग के दिमाग में सबसे पहले बाइबल का खयाल आया क्योंकि यह इतनी महँगी थी कि इसकी कॉपियाँ सिर्फ गिने-चुने खास लोगों के पास होती थीं। इसलिए गूटेनबर्ग ने बड़ी संख्या में बाइबल की कॉपियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा जो हाथ से लिखी कॉपियों से सस्ती होतीं मगर उनकी सुंदरता हाथ से लिखी कॉपियों से कुछ कम नहीं होती। मगर यह सब कैसे मुमकिन होता?

ज़्यादातर किताबों की नकल हाथ से की जाती थी, इसलिए इस काम में मेहनत और वक्‍त लगता था। लकड़ी के ब्लॉक के ज़रिए छापने की कोशिश की जा चुकी थी और हर ब्लॉक में एक पन्‍ने की लिखाई को हाथ से तराशा जाता था। बी शेंग नाम के एक चीनी आदमी ने, एक-एक अक्षर भी मिट्टी से बनाया था ताकि उन्हें छपाई में इस्तेमाल किया जा सके। कोरिया के एक सरकारी छापेखाने में ताँबे के बने अक्षरों का इस्तेमाल किया जाता था। मगर मूवबल टाइप से छपाई करने के लिए भारी मात्रा में अक्षर बनाए जाने की ज़रूरत थी क्योंकि इसमें उन्हीं अक्षरों को हर नए पन्‍ने के लिए दोबारा क्रम में रखा जा सकता था। अब तक ऐसे मूवबल टाइप का ईजाद नहीं हुआ था। यह ईजाद गूटेनबर्ग के हाथों होना था।

गूटेनबर्ग को धातुओं की कारीगरी में काफी तजुर्बा था, इसलिए वह समझ पाया कि सबसे बेहतरीन छपाई के लिए ऐसे अक्षरों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जिन्हें बार-बार किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। मगर ये अक्षर, मिट्टी या लकड़ी के नहीं बल्कि धातु के होने थे। इन्हें बनाने के लिए धातुओं को तराशने या आग में सेंकने के बजाय उन्हें पिघलाकर साँचे में ढालना था। इसके लिए गूटेनबर्ग को इतने सारे साँचों की ज़रूरत थी जिनसे वह वर्णमाला के सभी 26 अक्षरों के छोटे और बड़े अक्षर, इनके अलावा साथ-साथ जुड़े अक्षर, विराम-चिन्ह, संकेत और संख्याएँ बना सके। उसने हिसाब लगाया कि कुल मिलाकर 290 अलग-अलग अक्षर बनाने होंगे और हर अक्षर की दर्जनों नकलें भी बनानी होंगी।

काम में लग जाना

गूटेनबर्ग ने अपनी किताब में लातीनी भाषा की गॉथिक लिपि का इस्तेमाल किया। बाइबल की नकल उतारने में मठवासी इसी लिपि का इस्तेमाल करते थे। धातु की ढलाई करने में अपने तजुर्बे से उसने एक छोटे-से स्टील ब्लॉक पर हरेक अक्षर और चिन्ह को उलटा तराशा यानी स्टील की सतह पर उभारदार नक्काशी की। (तसवीर 1) उसके बाद स्टील के बने इस ठप्पे से नरम धातुओं के एक छोटे-से टुकड़े यानी ताँबे या पीतल पर अक्षर की छाप बनायी। इसका नतीजा यह हुआ कि नरम धातु में सीधे अक्षर का ढाँचा बन गया, जिसे मैट्रिक्स कहा जाता है।

अगला कदम था, साँचे से अक्षर बनाना। इस ईजाद के लिए गूटेनबर्ग के दिमाग की वाकई दाद देनी पड़ेगी। यह साँचा, हमारी मुट्ठी के बराबर था, जो ऊपर-नीचे दोनों तरफ से खुला था। उसने अक्षर के ढाँचे को साँचे में नीचे की तरफ लगाया, फिर ऊपर से पिघला धातु उंडेला। (तसवीर 2) यह धातु टिन, सीसा, ऐन्टिमनी और बिसमत का बना था, जो तुरंत ठंडा और सख्त हो जाता है।

साँचे में ढाले गए इस धातु की एक छोर पर उलटा अक्षर नक्श हो गया जिसे टाइप कहा जाता है। फिर वह ज़रूरत के मुताबिक एक अक्षर के टाइप को ढालता रहा। उसके बाद वह दूसरे अक्षरों को भी इसी तरह ढालता रहा। इस तरह देखते ही देखते, हरेक अक्षर और चिन्ह के लिए जितने भी टाइप ज़रूरी थे, वे कुछ ही समय में तैयार हो गए। गूटेनबर्ग ने सभी टाइप एक-सी लंबाई के बनाए थे।

अब छपाई शुरू की जा सकती थी। गूटेनबर्ग ने छापने के लिए बाइबल का एक भाग चुना। फिर उसने टाइप बिठाने की सॆटिंग स्टिक पर एक-एक अक्षर रखकर पूरे शब्द बनाए और शब्दों से पूरी-पूरी पंक्‍तियाँ बनायीं। (तसवीर 3) हर पंक्‍ति एक-सी लंबाई की थी। उसके बाद उसने एक बड़ी ट्रे यानी गैली पर हर पंक्‍ति को सजाकर दो कॉलम बनाए और इस तरह एक पन्‍ना तैयार हो गया। (तसवीर 4)

अब इस गैली को उसने प्रॆस की सपाट सतह पर सही तरह बिठाया ताकि यह हिल ना सके और फिर इसे काली स्याही से गीला किया। (तसवीर 5) यह प्रॆस दाखरस बनानेवाली मशीन जैसी दिखती थी। इसी प्रॆस के ज़रिए स्याही लगे टाइप को एक कागज़ पर छापा गया जिससे पन्‍ना तैयार हो गया। जितनी ज़रूरत होती उतनी कॉपियाँ बनाने के लिए स्याही और कागज़ का इस्तेमाल किया गया। अक्षरों के ये टाइप ट्रे से निकाले जा सकते थे, इसलिए इन्हें दूसरे पाठ छापने के लिए दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता था।

बेमिसाल रचना की छपाई

गूटेनबर्ग के छापेखाने में काम करनेवाले 15 से 20 कारीगरों ने 1455 में इस तरीके से बाइबल की सबसे पहली छपाई की। बाइबल की तकरीबन 180 कॉपियाँ बनायी गयीं। हर कॉपी में कुल मिलाकर 1,282 पन्‍ने और हर पन्‍ने पर 42-42 पंक्‍तियों के दो कॉलम थे। ऐसी बाइबल के दो खंड थे जिन पर जिल्द चढ़ाने, उनकी सजावट करने, और शीर्षकों और हर अध्याय के पहले अक्षर को हाथ से पेंट करने के लिए दूसरे छापेखानों में भेजा गया।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बाइबल की छपाई के लिए कितने टाइप अक्षरों का इस्तेमाल किया गया? हर पन्‍ने पर लगभग 2,600 अक्षर थे। अगर हम यह मानकर चलें कि गूटेनबर्ग के पास छः लोग थे जो छपाई के लिए टाइप को सजाते थे और ये छः जन एक ही वक्‍त पर तीन पन्‍ने छापते थे तो उन्हें तकरीबन 46,000 टाइप अक्षरों की ज़रूरत होती। इसलिए हम समझ सकते हैं कि अगर गूटेनबर्ग ने साँचे पर ढालकर टाइप तैयार करने का तरीका नहीं ईजाद किया होता तो शायद मूवबल टाइप मशीन से छपाई नामुमकिन होती।

जब लोगों ने उसकी बाइबलों को देखा तो वे दंग रह गए कि बाइबलों में हर शब्द एक सीधाई में थे, जबकि हाथ से लिखी गयी बाइबलों में ऐसी सीधाई लाना नामुमकिन था। गुनटर एस. वैगनर ने लिखा कि 42-पंक्‍तियोंवाली बाइबलों का हरेक पन्‍ना “ऐसी क्रमबद्धता, सीधाई और खूबसूरती की बेजोड़ रचना है कि आज भी लोग उसे देखकर दाँतों तले उँगलियाँ दबाने लगते हैं।”

पैसे की तंगी

लेकिन जहाँ तक फुस्ट का सवाल था उसे बेमिसाल रचना बनाने में नहीं बल्कि पैसे में दिलचस्पी थी। उसने गुटनबर्ग को इस काम के लिए जो पैसे दिए थे, उसे वापस मिलने में देर हो रही थी। इसलिए गूटेनबर्ग और फुस्ट में तकरार हो गयी और फुस्ट ने और पैसा लगाने से अपना हाथ खींच लिया। और पहला उधार भी माँगने लगा। यह 1455 की बात है जब गूटेनबर्ग की बाइबल छपकर तैयार होने ही वाली थी। गूटेनबर्ग अपना कर्ज़ चुका नहीं पाया और बाद में उसके खिलाफ दायर किया गया मुकद्दमा भी हार गया। उसे मजबूरन अपनी छपाई के कुछ सामान, साथ ही बाइबल के टाइप, फुस्ट के हवाले करने पड़े। उसके बाद फुस्ट ने गूटेनबर्ग के हुनरमंद कारीगर, पीटर शोफर को अपने साथ मिलाकर अपना एक छापाखाना खोल दिया। उन्होंने अपनी नयी कंपनी का नाम फुस्ट और शोफर रखा। छपाई की दुनिया में उन्हीं का छापाखाना दुनिया के पहले छापेखाने के नाम से मशहूर हो गया। लेकिन इस नाम और रुतबे का असली हकदार गूटेनबर्ग था।

गूटेनबर्ग ने अपना काम जारी रखने के लिए एक और छापाखाना खोला। कुछ विद्वान 15वीं सदी में छापी गयी दूसरी किताबों का श्रेय गूटेनबर्ग को देते हैं। मगर उनमें से एक भी किताब, 42-पंक्‍तियोंवाली बाइबल की खूबसूरती की बराबरी न कर सकी। सन्‌ 1462 में गूटेनबर्ग पर एक और संकट टूट पड़ा। कैथोलिक चर्च में सत्ता को लेकर पादरियों में छीना-झपटी हो रही थी, जिससे मेयॉन्स में लूटमार की गयी और पूरे नगर में आग लगा दी गयी। एक बार फिर गूटेनबर्ग का छापाखाना उससे छिन गया। इसके छः साल बाद, फरवरी 1468 में उसकी मृत्यु हो गयी।

गूटेनबर्ग की विरासत

गूटेनबर्ग की ईजाद बहुत जल्द मशहूर हो गयी। सन्‌ 1500 तक जर्मनी के 60 नगरों और यूरोप के 12 देशों में छापेखाने खुल चुके थे। द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है: “संचार की दुनिया में हुई तरक्की ने एक नयी क्रांति ला दी। अगले 500 सालों में हालाँकि छपाई की मशीन में काफी सुधार लाया गया मगर छापने के बुनियादी तरीके में ज़्यादा बदलाव नहीं हुए।”

छपाई से यूरोप के लोगों की ज़िंदगी कायापलट हो गयी क्योंकि अब न सिर्फ अमीर और ऊँचे घराने के लोग बल्कि आम लोग भी अपना ज्ञान बढ़ा सकते थे। अब खबरें और जानकारी आम इंसान तक पहुँच रही थीं, और इस तरह वह जान सकता था कि उसके चारों तरफ क्या हो रहा है। छपाई की ईजाद से अब हर भाषा की लिपि के राष्ट्रीय स्तर निर्धारित करना ज़रूरी पड़ा जिन्हें सब समझ सकें। इसलिए अँग्रेज़ी, फ्राँसीसी और जर्मन भाषाओं के राष्ट्रीय स्तर निर्धारित किए गए जो आज तक कायम हैं। किताबों की माँग रातों-रात बढ़ गयी। यूरोप में गूटेनबर्ग के ज़माने से पहले किताबों के नाम पर सिर्फ कुछ हज़ार हस्तलिपियाँ मौजूद थीं; लेकिन उसके मरने के 50 साल बाद, लाखों-लाख किताबें तैयार हो चुकी थीं।

अगर छपाई-मशीन न होती, तो सोलहवीं सदी का धर्म-सुधार आंदोलन वहीं का वहीं दब गया होता। बाइबल को चेक, डच, अँग्रेज़ी, फ्राँसीसी, जर्मन, इतालवी, पॉलिश, और रूसी भाषाओं में अनुवाद किया गया और छपाई-मशीन की वजह से इनकी हज़ारों-लाखों कॉपियाँ प्रकाशित करना आसान हो गया। मार्टिन लूथर ने अपना संदेश चारों तरफ फैलाने में छपाई-मशीन का अच्छा इस्तेमाल किया। इस वजह से मार्टिन लूथर वह सब कर सका जो गूटेनबर्ग से पहले के लोग करने में नाकाम रहे थे। इसलिए लूथर ने कहा कि “सारे संसार में सच्चा धर्म फैलाने” में छपाई-मशीन, वाकई परमेश्‍वर की देन है।

गूटेनबर्ग बाइबल की बची हुई कॉपियाँ

आज गूटेनबर्ग बाइबल की कितनी कॉपियाँ बची हुई हैं? अब तक यह माना जाता था कि यूरोप और उत्तर अमरीका में गूटेनबर्ग बाइबल की 48 कॉपियाँ हैं, जिनमें से कुछ अधूरी हैं। इनकी एक सबसे शानदार कॉपी है, चर्मपत्र पर छपी हुई बाइबल, जो वॉशिंगटन, डी.सी. की लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस में रखी गयी है। लेकिन 1996 में एक ऐसी खोज मिली जिससे सनसनी दौड़ गयी: रेन्ट्‌सबर्ग, जर्मनी के चर्च के संग्रह में गूटेनबर्ग बाइबल का एक और हिस्सा पाया गया।—फरवरी 8,1998 की सजग होइए! का पेज 29 देखिए।

हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि आज हर कोई बाइबल आसानी से हासिल कर सकता है! बेशक, इसका मतलब यह नहीं कि गूटेनबर्ग की 42-पंक्‍तियोंवाली बाइबल कोई भी खरीद सकता है! क्या आप जानते हैं कि इस एक बाइबल का दाम कितना है? सन्‌ 1978 में मेयॉन्स के गूटेनबर्ग म्यूज़ियम ने इसकी एक कॉपी को 37 लाख डॉश मार्कस्‌ (आज के हिसाब से करीब 20 लाख अमरीकी डॉलर) में खरीदा। आज इस बाइबल का दाम कहीं गुना ज़्यादा होगा।

गूटेनबर्ग बाइबल में ऐसी क्या अनोखी बात है? गूटेनबर्ग म्यूज़ियम के भूतपूर्व निर्देशक, प्रोफेसर हेलमुट प्रेस्सर ने कहा कि इसकी तीन वजह हो सकती हैं। पहली, गूटेनबर्ग की बाइबल वह पहली किताब है जो पश्‍चिम में मूवबल टाइप मशीन के ज़रिए छापी गयी थी। दूसरी, यह पहली छपी हुई बाइबल है। तीसरी, यह इतनी खूबसूरत है कि इसे देखकर लोगों की साँस थम जाए। प्रोफेसर प्रेस्सर ने लिखा कि गूटेनबर्ग की बाइबल में हमें “उस वक्‍त की गॉथिक लिपि देखने को मिलती है जब वह अपनी शिखर पर थी।”

हर संस्कृति के लोग गूटेनबर्ग की कमाल की ईजाद के लिए एहसानमंद हैं। साँचे, धातु, स्याही और प्रॆस का संगम करनेवाला वही था। उसने छपाई की मशीन तैयार करके सचमुच दुनिया को मालामाल कर दिया।(g98 11/8)

[पेज 16, 17 पर तसवीरें]

1. स्टील के बने एक ठप्पे से ताँबे के मैट्रिक्स पर अक्षर की छाप बनायी जाती थी

2. धातुओं को पिघलाकर साँचे में ढाला जाता था। जब यह सख्त हो जाता तो उससे बने टाइप पर उलटा अक्षर नक्श हो जाता था

3. अक्षरों को सॆटिंग स्टिक पर बिठाकर शब्द बनाए जाते थे जिससे एक पंक्‍ति बनती थी

4. गैली पर पंक्‍तियों को सजाकर कॉलम बनाए जाते थे

5. गैली पर रखे गए पन्‍ने के पाठ को प्रॆस की सपाट सतह पर सही तरह बिठाया जाता था

6. सन्‌ 1584 के ताँबे की प्लेट पर गूटेनबर्ग की तसवीर की नक्काशी

7. आज, गूटेनबर्ग बाइबल की एक कॉपी का दाम लाखों डॉलर है

[चित्र का श्रेय]

तसवीर 1-4,6 और 7: Gutenberg-Museum Mainz; तसवीर 5: Courtesy American Bible Society

[पेज 17 पर चित्र का श्रेय]

Background: By Permission of the British Library/Gutenberg Bible