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नफरत की जड़ें

नफरत की जड़ें

नफरत की जड़ें

नफरत की भावना उतनी ही पुरानी है जितना कि इंसान। इंसान की सृष्टि के कुछ ही समय बाद हुई एक घटना के बारे में बाइबल में उत्पत्ति 4:8 कहता है: “जब [कैन और हाबिल] मैदान में थे, तब कैन ने अपने भाई हाबिल पर चढ़कर उसे घात किया।” कैन ने हाबिल को “किस कारण घात किया?” यह सवाल बाइबल लेखक, यूहन्‍ना ने पूछा और खुद ही इसका जवाब दिया: “इस कारण कि उसके काम बुरे थे, और उसके भाई के काम धर्म के थे।” (1 यूहन्‍ना 3:12) कैन ने हाबिल की हत्या इसलिए की क्योंकि वह उससे जलता था। और जलन आज भी नफरत की सबसे आम वजह है। नीतिवचन 6:34 (NHT) कहता है: “जलन मनुष्य के क्रोध को भड़काती है।” आज लोग एक-दूसरे के रुतबे, धन-संपत्ति, सुख-सुविधा के साधन और उनको मिलनेवाली सहूलियतों से जलते हैं। और इसी जलन की वजह से लोगों में नफरत का चक्रव्यूह चलता रहता है।

सच्चाई से अनजान और डर

जलन, नफरत की कई वजहों में से बस एक है। अकसर देखा गया है कि सच्चाई ना जानने या डर की वजह से भी नफरत भड़कती है। एक हिंसक कट्टरपंथी दल के नौजवान सदस्य ने कहा: “इससे पहले कि मैं दूसरी जाति के लोगों से नफरत करना सीखूँ मेरे दिल में उनका डर बिठाया गया।” असल में इस तरह का डर तब पैदा होता है जब हम सच्चाई से अनजान होते हैं। द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक, पूर्वधारणा रखनेवाले लोग सच्चाई को जानने की कोशिश किए बिना ऐसी धारणाएँ अपना लेते हैं “जिनकी कोई बुनियाद नहीं होती। . . . पूर्वधारणा रखनेवाला ऐसे तथ्यों को झुठला देता है जो पहले से कायम की गयी उसकी राय के खिलाफ होते हैं, या वह उनके बारे में झूठी अफवाहें फैलाता है या सुनने से पूरी तरह इंकार कर देता है।”

ऐसी धारणाओं की शुरूआत कैसे होती है? इंटरनॆट का एक लेख कहता है: “ज़्यादातर मामलों में इतिहास में सदियों पहले हुई घटनाओं की वजह से किसी जाति या संस्कृति के नाम पर बुरा होने का ठप्पा लग जाता है। मगर हमारी निजी ज़िंदगी में हुई घटनाओं की वजह से भी हम दूसरे लोगों के बारे में गलत राय कायम कर लेते हैं।”

मिसाल के लिए, एक ज़माने में हब्शियों को अमरीका में गुलामी करने के लिए बेच दिया जाता था। इसी वजह से श्‍वेतों और अश्‍वेतों के बीच पुश्‍त-दर-पुश्‍त तनाव चला आ रहा है और यह तनाव आज भी बरकरार है। कई बार तो माता-पिता खुद अपने बच्चों के मन में जाति-भेद का बीज बोते हैं। श्‍वेत जाति के एक कट्टरपंथी ने कबूल किया कि उसके माता-पिता ने ही उसके मन में अश्‍वेतों के खिलाफ भेदभाव पैदा किया था जबकि वह खुद “अपनी ज़िंदगी में एक भी अश्‍वेत के संपर्क में नहीं आया था।”

कुछ लोग, ऐसे किसी भी इंसान को नालायक समझते हैं जो उनकी जाति या संस्कृति का नहीं। और हो सकता है कि उन्होंने यह धारणा सिर्फ इसलिए बना ली क्योंकि दूसरी जाति या संस्कृति के किसी एक व्यक्‍ति के साथ उनका कड़वा अनुभव रहा हो। उस एक अनुभव को लेकर वे बिना सोचे-समझे सीधे इस नतीजे पर पहुँच जाते हैं कि उस जाति या संस्कृति का हर आदमी ऐसा ही होगा।

किसी एक इंसान के मन में ऐसा भेदभाव कितना खतरनाक हो सकता है मगर सोचिए कि जब यही भेदभाव पूरी जाति या देश में फैल जाए तो यह जंगल की आग बनकर तबाही मचा सकता है। जब लोग यह मानने लगते हैं कि उनका देश, रंग-रूप, उनकी संस्कृति या भाषा दूसरों से श्रेष्ठ है, तो इससे उनके अंदर भेदभाव की भावना पैदा होती है और वे पराए लोगों या उनकी चीज़ों से घृणा करने लगते हैं। इसी भावना की वजह से बीसवीं सदी के दौरान खून की नदियाँ बहायी गयी हैं।

दिलचस्पी की बात है कि नफरत और भेदभाव सिर्फ रंग-रूप या देश को लेकर ही पैदा नहीं होता। यूनिवर्सिटी ऑफ पॆंसिल्वेनिया के खोजकर्ता, क्लार्क मकौली लिखते हैं कि “लोगों में भेदभाव पैदा करने के लिए सिर्फ सिक्का उछालकर उन्हें दो गुटों में बाँट देना ही काफी है।” यह बात एक मशहूर परीक्षण के तहत की गयी जाँच से सही साबित हुई। उसमें एक टीचर ने अपनी तीसरी क्लास के बच्चों को दो समूहों में बाँट दिया, एक नीली आँखोंवालों का और दूसरा भूरी आँखोंवालों का। कुछ ही समय के अंदर दोनों समूहों के बीच मन-मुटाव पैदा हो गया। देखा गया है कि छोटी-छोटी बातों में भी जैसे, खेल के मामले में अपनी पसंद की टीम का पक्ष लेते हुए दर्शक खून-खराबे पर उतारू हो जाते हैं।

इतनी हिंसा क्यों?

मगर ऐसी दुश्‍मनी की भावना ज़ाहिर करने के लिए लोग अकसर हिंसा पर क्यों उतर आते हैं? खोजकर्ताओं ने ऐसे मुद्दों की गहराई से जाँच-पड़ताल तो की लेकिन अब तक वे सिर्फ अटकलें ही लगा पाए हैं। क्लार्क मकौली ने ऐसे कई लेख इकट्ठा किए जिनमें हिंसा और खून-खराबे पर की गयी खोजों के बारे में बारीक जानकारी दी गयी है। उन्होंने एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि “हिंसा और अपराध का ताल्लुक युद्ध लड़ने और जीतने से है।” खोजकर्ताओं ने पता लगाया कि “जिन देशों ने पहले और दूसरे विश्‍वयुद्ध में हिस्सा लिया था उनमें, खासकर जीतनेवाले देशों में युद्ध खत्म होने के बाद हत्या की वारदातें ज़्यादा बढ़ गयी हैं।” बाइबल के मुताबिक यह युद्धों का ज़माना है। (मत्ती 24:6) क्या ऐसा नहीं हो सकता कि दूसरे किस्म की हिंसाओं को बढ़ाने में इन्हीं युद्धों का हाथ रहा है?

दूसरे खोजकर्ताओं ने इंसान के खूँखार हो जाने का कारण जानने के लिए जीव-विज्ञान की मदद ली। इसे साबित करने के लिए जो खोज की गयी उसके मुताबिक कुछ हद तक इसका कारण किसी के “मस्तिष्क में सेरोटोनिन की कमी” हो सकता है। एक और आम विचार यह है कि खूँखार स्वभाव हमारे खून में होता है। राजनीति-शास्त्र के एक विद्वान ने दावा किया: “[नफरत की भावना] काफी हद तक हमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में मिलती है।”

बाइबल बताती है कि असिद्ध इंसानों में जन्म से ही बुराइयाँ और कमज़ोरियाँ होती हैं। (उत्पत्ति 6:5; व्यवस्थाविवरण 32:5) बेशक, यह बात सभी लोगों पर लागू होती है। मगर सभी के मन में दूसरों के लिए हद-से-ज़्यादा नफरत नहीं होती, बल्कि वे नफरत करना सीखते हैं। इसलिए एक जाने-माने मनोवैज्ञानिक, गॉर्डन डब्ल्यू. ऑलपॉर्ट ने, नन्हें शिशुओं की करीब से जाँच करने के बाद पाया कि उनमें “किसी को नुकसान पहुँचाने की . . . ज़रा-सी भी भावना नहीं होती। . . . बच्चे बिलकुल मासूम होते हैं। उन्हें कोई भी, कुछ भी सिखाए वे सीख लेते हैं।” इन जाँचों से यही साबित होता है कि खूँखार होना, पूर्वधारणा रखना और नफरत करना पैदाइशी नहीं होता बल्कि सीखा जाता है! और नफरत पैदा करनेवाले इसी बात का फायदा उठाते हुए इस आग को और हवा देते हैं।

मन में ज़हर घोलना

नफरत को भड़काने में अलग-अलग नफरत-दल के गुरू सबसे अव्वल रहे हैं। नफरत-दल की दो मिसालें हैं: नियो-नात्ज़ी स्किनहैड्‌स और कू क्लक्स क्लैन। इन दलों को अकसर ऐसे नौजवानों की तलाश रहती है जिन्होंने बचपन से अपने परिवार में सिवाय समस्याओं के और कुछ नहीं देखा। ऐसे दल उन्हें आसानी से अपनी बातों से फुसलाकर अपने गिरोह में शामिल कर लेते हैं। जिन नौजवानों पर डर और हीन-भावना हावी रहती है, वे अपनापन महसूस करने के लिए इन दलों में शामिल हो जाते हैं।

कुछ लोगों के लिए नफरत फैलाने में इंटरनॆट सबसे असरदार ज़रिया रहा है। हाल ही में मिले आँकड़ों से पता चला कि इंटरनॆट पर नफरत भड़कानेवाले लगभग 1,000 वॆब साइट्‌स मौजूद हैं। दि इकॉनमिस्ट पत्रिका के मुताबिक नफरत बढ़ानेवाले एक वॆब साइट का मालिक गर्व के साथ कहता है: “इंटरनॆट ने हमें हज़ारों लोगों के सामने खुलकर अपनी राय बयान करने का बढ़िया मौका दिया है।” उसके वॆब साइट पर “बच्चों के लिए पेज” भी है।

जब किशोर, संगीत सुनने के लिए इंटरनॆट का इस्तेमाल करते हैं तो इत्तफाक से वे ऐसे वॆब साइट पर पहुँच जाते हैं जहाँ से वे नफरत भड़कानेवाले संगीत की रिकॉर्डिंग कर सकते हैं। आम तौर पर, ऐसा संगीत हो-हल्ला और हिंसा से भरा होता है, और इसके बोल दूसरी जाति के खिलाफ सख्त नफरत पैदा करनेवाले होते हैं। यही नहीं, ये वॆब साइट्‌स ऐसे न्यूज़ग्रूप, चैट रूम या दूसरे वॆब साइट्‌स से जुड़े होते हैं जो उन्हीं की तरह नफरत फैलाने का काम करते हैं।

नफरत बढ़ानेवाले कुछ वॆब साइट्‌स खासकर नौजवानों के लिए बनाए जाते हैं जिनमें खेल और दूसरे कार्यक्रम होते हैं। नियो-नात्ज़ी का एक वॆब साइट तो जाति-भेद और यहूदियों के खिलाफ नफरत को जायज़ ठहराने के लिए बाइबल का इस्तेमाल करता है। इस गुट ने एक ऐसा वॆब पेज भी बनाया है जिसमें भेदभाव पैदा करनेवाली शब्द-पहेलियों के साथ-साथ, दूसरी जाति के खिलाफ टिप्पणियाँ दी गयी हैं। इसका मकसद क्या है? वे कहते हैं “ताकि हमारे गोरे नौजवान यह समझ सकें कि हम यह संघर्ष क्यों कर रहे हैं।”

लेकिन नफरत फैलानेवाला हर कोई पागलपन की हद तक नहीं जाता। एक समाज-वैज्ञानिक ने, जिन्होंने हाल में बालकन में हुए युद्ध के बारे में लिखा था, कुछ जाने-माने लेखकों और आम-जनता पर सिक्का जमानेवालों के बारे में कहा: “[उन लोगों की] लेखन शैली देखकर तो मैं दंग रह गया। वे अपनी कलम की ताकत से लोगों की वासना पूरी करते हैं, उनमें नफरत का ज़हर भर देते हैं और उन्हें यह एहसास दिलाते हैं कि किसी भी तरह का आचरण गलत नहीं होता . . . , और हकीकत को झुठला देते हैं जिससे कि उनकी आँखों पर परदा पड़ जाता है।”

नफरत की आग भड़काने में पादरी भी पीछे नहीं रहे हैं। लेखक, जेम्स ए. हॉट ने अपनी किताब पवित्र नफरत: 1990 के दशक के धार्मिक संघर्ष (अँग्रेज़ी) में यह चौंका देनेवाली बात लिखी: “लोगों की भलाई करने और उनका ख्याल रखने की पहली ज़िम्मेदारी धर्म की है, मगर 1990 के दशक में यह उल्टी बात देखी गयी कि धर्म, ऐसा करने के बजाय नफरत, युद्ध और आतंकवाद को फैलाने में सबसे आगे रहा है।”

तो जैसा हमने देखा कि नफरत के कारण ढेरों भी हैं और जटिल भी। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि इंसान नफरत के इस खतरनाक चक्रव्यूह से कभी-भी बाहर नहीं निकल सकेगा? क्या हर इंसान, साथ ही दुनिया के सभी लोग मिलकर ऐसा कुछ कर सकते हैं जिससे नफरत भड़कानेवाली चिंगारियाँ, जैसे गलतफहमियाँ, सच्चाई से अनजान रहना और डर मिटाए जा सकें?(g01 8/8)

[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

पूर्वधारणा और नफरत सीखी जाती है!

[पेज 4, 5 पर तसवीर]

नफरत की भावना और भेदभाव . . .

. . . हममें पैदाइशी नहीं होते

[पेज 7 पर तसवीर]

नफरत-दल इंटरनॆट के ज़रिए नौजवानों को अपने गिरोह में शामिल करते हैं

[पेज 7 पर तसवीर]

धर्म ने अकसर लड़ाई-झगड़े की आग भड़काई है

[चित्र का श्रेय]

AP Photo