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फौलाद भी और नज़ाकत भी

फौलाद भी और नज़ाकत भी

फौलाद भी और नज़ाकत भी

इसके दम से पियानो का सुर निकलता है, जैट की गर्जन धरती पर सुनायी देती है, घड़ियाँ टिक-टिक करती हैं, मोटरें घूं-घूं करती हैं, इमारतें आसमान छूती हैं और लक्ष्मण झूला, झूल पाता है। आखिर, यह चीज़ क्या है?

यह है स्टील। हर बड़े निर्माण में स्टील ज़रूर इस्तेमाल किया जाता है। स्टील के बने विशाल जहाज़, सात समुंदर पार करते हैं। इनसे बने पाइप सैकड़ों किलोमीटर दूर गैस और पेट्रोलियम के कुओं से आप तक गैस और पेट्रोलियम पहुँचाते हैं। मगर हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस बहु-उपयोगी स्टील से बनी इतनी चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं कि उन्हें गिनना मुश्‍किल है। मसलन, जिस बस में सवार होकर आप नौकरी करने जाते हैं उसके टायरों की पट्टियाँ स्टील की बनी होती हैं या आप जिस बिल्डिंग में रहते हैं, उसकी लिफ्ट को ऊपर-नीचे ले जानेवाली रस्सियाँ स्टील की ही बनी होती हैं। इसके अलावा, आपके चश्‍मे के पेंच और चाय की प्याली में चीनी घोलने के चम्मच के बारे में क्या कहेंगे? इसी तरह ऐसी हज़ारों चीज़ें हैं जो इस नाज़ुक मगर टिकाऊ धातु की बनी होती हैं। स्टील कैसे बनता है और इसमें क्या गुण हैं जो इसे इतना फायदेमंद बनाते हैं?

कार्बन और क्रिस्टल

स्टील दो धातुओं से बना एक मिश्रण या मिश्र-धातु है। ये धातु हैं, लोहा और कार्बन। ज़्यादातर धातुओं की तुलना में खरा लोहा बहुत नाज़ुक होता है, इसलिए इसका इस्तेमाल सख्त कामों में नहीं किया जा सकता। कार्बन, धातु नहीं है। हीरे और चिमनी में पायी जानेवाली कालिख, कार्बन के ही दूसरे रूप हैं। लेकिन अगर इस कार्बन का छोटा-सा अंश पिघले हुए लोहे के साथ मिलाया जाए तो जो पदार्थ बनता है वह कार्बन से बिलकुल अलग और लोहे से भी कहीं ज़्यादा मज़बूत होता है।

स्टील के बनने में सबसे बड़ा हाथ जिसका होता है उसे क्रिस्टल कहा जाता है। क्या आपको मालूम है कि लोहा, क्रिस्टलों से बना हुआ होता है? * दरअसल सभी धातुएँ क्रिस्टल से बनी होती हैं और इन्हीं क्रिस्टलों की वजह से उन्हें अनेक कामों में लाया जाता है। धातुओं की चमक और दूसरे गुण क्रिस्टल की ही देन हैं। लेकिन लोहे के क्रिस्टलों में और भी कई गुण पाए जाते हैं।

लोहे के क्रिस्टल का स्टील पर असर

जब स्टील बनाया जाता है तो पिघले लोहे के साथ कुछ दूसरे तत्वों को भी मिलाया जाता है। जैसे-जैसे यह मिश्रण सख्त होने लगता है लोहा दूसरे पदार्थों को पिघला देता है, इस तरह लोहा उन्हें सोख लेता है और अपनी क्रिस्टल संरचना के अंदर उन्हें जकड़ लेता है। दूसरी धातुएँ भी यही करती हैं। तो फिर लोहे में क्या खासियत है?

लोहा बड़ा ही अनोखा धातु है क्योंकि ठोस अवस्था में होने के बावजूद इसकी क्रिस्टल संरचना को ऊँचे तापमान में बदला जा सकता है। इसी खासियत की वजह से लोहे के क्रिस्टलों की सघन संरचना को बदलकर कम सघन बनाया जा सकता है और फिर दोबारा पहले जैसा आकार दिया जा सकता है। कल्पना कीजिए कि आप एक मज़बूत घर में रहते हैं जिसकी दीवारें अंदर-बाहर की तरफ हिल सकती हैं और जब आप लिविंग रूम में बैठे हों तो उसकी ज़मीन ऊपर-नीचे हिलती हो। जब लोहे को बिना पिघलाए गरम करके फिर ठंडा किया जाता है तो उसके क्रिस्टल के अंदर कुछ ऐसा ही होता है।

जब ऐसा बदलाव होने के दौरान कार्बन मौजूद रहता है तो एक सख्त मिश्र-धातु नरम हो सकता है या नरम मिश्र-धातु सख्त हो सकता है। स्टील उत्पादक इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं। वे अपने उत्पादन को कम या ज़्यादा सख्त बनाने के लिए कम या ज़्यादा तापमान का इस्तेमाल करते हैं जिसे हीट ट्रीटमैंन्ट कहा जाता है। इनमें कुछ हैं क्वैंचिंग, टेम्परिंग और अनीलिंग। * मगर इसके अलावा और भी कुछ है।

जब मैंगनीज़, मोलिब्डेनम, निक्कल, वॆनेडियम, सिलिकन, सीसा, क्रोमियम, बोरोन, टंग्स्टन, या गंधक जैसे दूसरे तत्वों को स्टील में मिलाया जाता है, तो स्टील सिर्फ सख्त या नरम नहीं बनता बल्कि यह मज़बूत और टिकाऊ भी बन जाता है। इसे खींचकर तार बनाए जा सकते हैं। इसमें जंग नहीं लगता। इसे मशीन में मनचाहे ढंग से ढाला जा सकता है। इसमें लचीलापन आ जाता है। इसे चुंबकीय या गैर-चुंबकीय भी बनाया जा सकता है। इसकी खूबियों का कोई अंत नहीं। ठीक जिस तरह एक बेकरीवाला अलग-अलग तापमान रखकर और मैदे में अलग-अलग सामग्री डालकर तरह-तरह के ब्रेड बनाता है उसी तरह स्टील बनानेवाले, हज़ारों किस्म की बेजोड़ चीज़ें बनाने के लिए तरह-तरह के मिश्र-धातुओं और हीट ट्रीटमैंट का इस्तेमाल करते हैं। स्टील से बनी रेल की पटरियाँ बड़ी आसानी से 12,000 टन से भरी मालगाड़ियों का वज़न सह सकती हैं। लेकिन दूसरी तरफ सुई की नोक जितनी छोटी स्टील के बेयरिंग से आपकी घड़ी चलती रहती है।

स्टील बनाने का पुराना और नया तरीका

सदियों पहले धातुओं की ढलाई करनेवाले, लोहे से बर्तन और हथियार बनाते थे। उन्होंने यह खोज निकाला कि तपाए हुए लोहे (अयस्क या खनिज पत्थरों से निकाले गए लोहे) में कुछ दूसरे तत्व मौजूद होते हैं जिससे यह धातु मज़बूत और सख्त बन जाती है। उन्होंने यह भी पाया कि लोहे के औज़ारों को गरम करने के बाद फौरन पानी में ठंडा करने से औज़ार और भी सख्त बन जाता है। आज लोहार की छोटी-सी भट्ठी की जगह बड़ी-बड़ी भट्ठियों ने ले ली है; और उसके हथौड़े और निहाई के बदले विशाल रोलिंग मिल आ गए हैं। लेकिन नए ज़माने में उसी बुनियादी तरीके से स्टील बनाया जाता है जिससे पुराने ज़माने के तगड़े लोहार स्टील बनाया करते थे। वे लोहे को (1) पिघलाते हैं, (2) उसमें दूसरी धातुओं को मिलाते हैं, (3) स्टील को ठंडा करते हैं और (4) उसे आकार देने के बाद कम ज़्यादा तापमान देकर सख्त या नरम बनाते हैं।

बगल में दिए गए बक्स पर ज़रा नज़र डालिए और देखिए कि स्टील बनाने के लिए कितनी सामग्री की ज़रूरत पड़ती है। है ना ज़बरदस्त मात्रा! लेकिन ये सारी सामग्री एक स्टील मिल के लिए सिर्फ एक दिन की खुराक के बराबर है। स्टील कारखाना लंबे-चौड़े इलाके में मानो पैर पसारे पड़ा होता है जिसके आस-पास खनिजों के पहाड़ जैसे ढेर नज़र आते हैं जो इस भुक्खड़ कारखाने की भूख मिटाते हैं।

तरह-तरह के रूप लेनेवाली एक अनोखी धातु

स्टील कितना फायदेमंद है, यह बहुत-से अनोखे तरीकों से साफ ज़ाहिर होता है। अगर आप ग्रैंड पियानो के ऊपर का ढक्कन उठाकर देखेंगे तो आप पाएँगे कि उसके नीचे का तार एक तरह के मज़बूत स्टील से बना है और इससे क्या ही मधुर धुन निकलती है। हैडफील्ड मैंगनीज़ स्टील, बड़े-बड़े पत्थरों को चकनाचूर करने की मशीन बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और जितना ज़्यादा इसे चट्टानों के टुकड़े-टुकड़े करने में इस्तेमाल किया जाता है, उतना ही यह स्टील मज़बूत होता जाता है। स्टेनलॆस स्टील से सर्जरी के औज़ार, वाईन बनाने की टंकियाँ, और आइस्क्रीम मशीनें बनायी जाती हैं। जैसे आप अपने सिर के बालों को नहीं गिन सकते वैसे ही अगर आप स्टील से बनी फायदेमंद चीज़ों का हिसाब करने बैठेंगे तो आपकी गिनती कभी खत्म नहीं होगी।

हर साल दुनिया-भर में लगभग 80 करोड़ टन स्टील का उत्पादन होता है। लेकिन लोहे के बिना एक ग्राम स्टील तक नहीं बन सकता और लोहा ही वह तत्व है जो इस धरती पर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। और क्योंकि कोयले और चूना-पत्थरों के भंडार मौजूद हैं तो कहा जा सकता है कि आगे भविष्य में भी स्टील की कोई कमी नहीं रहेगी।

इसलिए अगली बार जब आप किसी धातु की बनी सुई से सिलाई करें, या मछली पकड़ने के लिए काँटा डालें, या कड़ियों से बने घेरे का दरवाज़ा खोलें, या अगली बार जब आप किसी गाड़ी से सफर करें या खेती करने के लिए सीधा हल चलाएँ तो ऐसे में ज़रा लोहे और कार्बन के अनोखे मिश्रण के बारे में सोचिए जिसकी वजह से आपके लिए ये सारे काम करने मुमकिन हो पाए हैं।(g01 9/8)

[फुटनोट]

^ क्रिस्टल, एक तत्व या यौगिक की ठोस अवस्था की ईकाई है जिसमें परमाणु एक क्रम में कई बार संगठित होते हैं।

^ ऊँचे तापमान से तुरंत ठंडा करने की प्रक्रिया को क्वैंचिंग कहा जाता है। जबकि टेम्परिंग और अनीलिंग में धीरे-से ठंडा करना शामिल है।

[पेज 23 पर बक्स]

दस हज़ार टन स्टील बनाने के लिए ज़रूरी सामग्री

6,500टन कोयला

13,000टन कच्ची धातु

2,000टन चूना-पत्थर

2,500टन स्टील की छीजन

1,50,00,00,000 लीटर पानी

80,000 टन हवा

[पेज 24, 25 पर बक्स/तसवीरें]

स्टील कैसे बनता है

तसवीरों को आसानी से समझने के लिए कुछ बारीकियाँ नहीं दी गयी हैं

स्टील बनाने के लिए ऊँचे तापमान की ज़रूरत होती है। थर्मोमीटर की मदद से आइए हम देखें कि स्टील को बनाने में क्या-क्या प्रक्रियाएँ शामिल हैं।

1400°C. हवाबंद चैंबरों के अंदर, बड़े-बड़े अवन में कोयले को सेंका जाता है जिससे उसमें से गैर-ज़रूरी पदार्थ भाप बनकर उड़ जाते हैं, मगर कोयले के टुकड़े जलकर राख नहीं बनते। इस प्रक्रिया से जो कोयला बनता है उससे कोक कहा जाता है, जो स्टील बनाने की प्रक्रिया में ताप और कार्बन हासिल करने के काम आता है।

1650°C. कोक, कच्चे लोहे और चूना-पत्थर (लाइमस्टोन) को एक-के-बाद-एक धमन भट्ठी या ब्लास्ट फर्नेंस में डाला जाता है, जहाँ इन्हें आग और बहुत ज़्यादा तापमानवाली गर्म हवा में पकाया जाता है। इससे कोक जल जाता है और दहकती गर्मी से कच्ची धातु का अनचाहा पदार्थ, चूना-पत्थर के साथ मिलकर धातु का मैल या स्लैग बन जाता है। पिघला लोहा तरल बनकर भट्ठी के निचले हिस्से में बैठ जाता है जबकि स्लैग ऊपर तैरता रहता है। इस स्लैग को अलग करने के लिए किसी बड़े-से पात्र में निकाल लिया जाता है। उसके बाद पिघले हुए लोहे को पनडुब्बी के आकार के टैंकों में उंडेला जाता है और उबलते लोहे को अगले मुकाम तक पहुँचाया जाता है।

1650°C. फिर साफ की गयी धातु की छीजन या स्क्रैप मॆटल को, 30 फुट लंबी और नाशपाती के आकारवाली फर्नेस में गिराया जाता है, जिसे बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस कहते हैं। इसके ऊपर एक विशालकाय चम्मच से पिघले हुए लोहे को स्क्रैप मॆटल पर डाला जाता है। इस फर्नेस में लैंस नाम की ठंडे पानी की ट्यूब होती है जिसमें से सुपरसॉनिक जेट की रफ्तार से शुद्ध ऑक्सीजन निकलती है। तब यह सारा तरल पदार्थ ऐसे उबलने लगता है जैसे स्टोव की आग पर सूप उबलने लगता है। यह एक रासायनिक क्रिया है और एक घंटे के अंदर फर्नेस का काम खत्म हो जाता है और 300 टनवाला पिघला हुआ स्टील (जिसे हीट कहा जाता है) आगे भेजने के लिए तैयार हो जाता है। इसे आगे ले जाने के लिए गाड़ियों में डाल दिया जाता है। इसके बाद इसमें दूसरे धातु (ऐलॉय) मिलाकर इसे कास्टिंग मशीनों में डाला जाता है। ये कास्टिंग मशीनें स्टील को आकार देती हैं।

1200°C. तपते हुए लाल स्टील को रोलर मशीन के बीच तब तक कसकर दबाया जाता है जब तक कि सही मोटाई हासिल नहीं हो जाती। इस तरह सख्ती से दबाए जाने से स्टील इतना मज़बूत हो जाता है कि इसे और दबाया नहीं जा सकता।

साधारण तापमान। स्टील की ढलाई होती है, फिर कटाई होती है, गरम और ठंडा करके उसे रोल किया जाता है और इसके बाद उसे तेज़ाब से साफ किया जाता है। उसे कई बार गरम और ठंडा किया जाता है। आखिर में, स्टील तैयार हो जाता है। पिघला हुआ स्टील या हीट अब सख्त स्टील की शीट बन चुका है। अब यह दुकानों पर जाने के लिए तैयार है जहाँ इसे अलग-अलग निर्माण के काम में इस्तेमाल किया जाएगा।

स्टील कारखानों के ज़्यादातर पुरज़े स्टील के ही बने होते हैं। तो फिर ये स्टील बनाते वक्‍त पिघलते क्यों नहीं? इसकी वजह यह है कि फर्नेस के अंदर की सतह, पनडुब्बी जैसे टैंक और विशालकाय चम्मच की सतहें ऐसी ईंटों से बनी होती हैं जो ऊँचे तापमान में नहीं गलतीं। उसी तरह बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस के अंदर एक मीटर मोटी परत इसी पदार्थ की बनी होती है। मगर ऊँचे तापमान से इन ईंटों को भी धीरे-धीरे नुकसान पहुँचता है और इसलिए उन्हें समय-समय पर बदलने की ज़रूरत पड़ती है।

[रेखाचित्र]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

कच्चा लोहा

चूना-पत्थर

कोयला

कोक के अवन

ब्लास्ट फर्नेस

छीजन

चूना-पत्थर और फ्लक्स

ऑक्सीजन

पिघला हुआ लोहा

बेसिक ऑक्सीजन फर्नेस

1.लोहा बनाना

2.स्टील बनाना

1400°C

1650°C

1650°C

स्टील की छड़

स्टील की सलाख

स्टील का आस्तर

स्टील की ढलाई

स्टील की रोलिंग

(सलाखें या कड़ियाँ)

जस्त चढ़ाना

ठंडा करके रोल करना

गरम करके रोल करना

3.ठंडा करना

4.आखिरी प्रक्रिया

1200°C

साधारण तापमान

[तसवीर]

ज़रा गौर कीजिए कि लोग कितने छोटे दिख रहे हैं

[पेज 23 पर चित्र का श्रेय]

घड़ी की तसवीर छोड़कर, पेज 23-5 की सारी तसवीरे: Courtesy of Bethlehem Steel