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आदमी, औरतों को क्यों पीटते हैं?

आदमी, औरतों को क्यों पीटते हैं?

आदमी, औरतों को क्यों पीटते हैं?

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि औरतों के खिलाफ हिंसा करनेवाले सारे अभियुक्‍तों की कुल संख्या के मुकाबले अपने पुरुष-साथी के हाथों औरतों की हत्या होने की ज़्यादा संभावना होती है। पत्नियों पर अत्याचार की बढ़ती वारदातों को रोकने के लिए कई अध्ययन किए गए हैं। जैसे किस किस्म के आदमी अपनी पत्नी को मारते-पीटते हैं? उनका बचपन कैसे बीता था? क्या वे शादी से पहले की मुलाकातों के वक्‍त भी हिंसा पर उतारू हो जाते थे? चिकित्सीय सहायता देने का उन पर क्या असर पड़ता है?

विशेषज्ञ एक बात जान गए हैं कि मारपीट करनेवाले सभी पुरुष एक जैसे नहीं होते। एक तरफ तो वह पति है जिसे हिंसा पर उतारू होने की आदत नहीं, वह कभी-कभार ही ऐसा करता है। वह किसी हथियार का इस्तेमाल नहीं करता और अगर कभी भड़कता भी है तो सामाजिक या निजी हालात से मजबूर होकर ऐसा करता है। दूसरी तरफ, ऐसा भी पति है जिसने अपनी पत्नी को मारने का एक ढर्रा बना लिया है। उसके ज़ुल्म कभी नहीं रुकते और शायद ही उसे अपने बर्ताव पर किसी किस्म का अफसोस होता है।

मारपीट करनेवाले सभी पुरुष एक जैसे नहीं होते, इसका यह मतलब नहीं कि कुछ किस्म की मारपीट गंभीर नहीं होती। दरअसल, किसी भी तरह का शारीरिक अत्याचार नुकसानदेह, यहाँ तक कि जानलेवा हो सकता है। इसलिए अगर दूसरे के मुकाबले एक आदमी कभी-कभार मारपीट करता है या कम हिंसक है तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह निर्दोष है। सीधे-सीधे कहा जाए तो किसी भी किस्म की मारपीट को “जायज़” करार नहीं दिया जा सकता। फिर क्या वजह है कि एक पति अपनी पत्नी को मारता है, जिसका हाथ थामते वक्‍त उसने आखिरी साँस तक उसे दिलो-जान से प्यार करने की कसम खायी थी?

परिवार का असर

इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि दुर्व्यवहार करनेवाले ज़्यादातर आदमी खुद ऐसे परिवार में बड़े हुए, जहाँ मारपीट और रगड़े-झगड़े रोज़ की बात थी। पत्नियों के साथ अत्याचार के मामलों का बीस से भी ज़्यादा साल से अध्ययन करनेवाले माइकल ग्रोच लिखते हैं: “दुर्व्यवहार करनेवाले ज़्यादातर आदमियों का बचपन ऐसे घरों में बीता है जिन्हें ‘लड़ाई का मैदान’ कहना ठीक होगा। बचपन से जवानी तक वे ऐसे माहौल में बड़े हुए जहाँ मारपीट करना और जली-कटी सुनाना ‘आम बात’ थी।” एक विशेषज्ञ के मुताबिक ऐसे माहौल में बड़ा होनेवाला इंसान “बहुत कम उम्र से ही अपने पिता की तरह औरत-ज़ात को नीच समझने लगता है। लड़कपन से ही वह सीख जाता है कि औरतों को हमेशा अपनी मुट्ठी में रखा जाना चाहिए। और वह यह भी सीख जाता कि ऐसा करने का एक तरीका है, उन्हें डरा-धमकाकर रखना, उन्हें चोट पहुँचाना या उनकी बेइज़्ज़ती करना। साथ ही वह यह भी जान लेता है कि अपने पिता की नकल करने से वह उसका दिल जीत सकता है।”

बाइबल साफ-साफ बताती है कि एक माँ या पिता के अच्छे या बुरे चालचलन का बच्चे पर गहरा असर पड़ता है। (नीतिवचन 22:6; कुलुस्सियों 3:21) लेकिन एक दुर्व्यवहार करनेवाले आदमी को सिर्फ इसलिए बेकसूर नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उसकी परवरिश हिंसा-भरे परिवार में हुई थी। हाँ, उसके अतीत से हम यह ज़रूर जान पाते हैं कि आखिर उसके ऐसे व्यवहार की बुनियाद कहाँ पड़ी थी।

संस्कृति का असर

कुछ देशों में औरतों को पीटने पर समाज उँगली नहीं उठाता, यहाँ तक कि इसे सामान्य बात समझा जाता है। संयुक्‍त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक “बहुत-से समुदायों में इस विश्‍वास की जड़ें बड़ी गहराई तक फैली हुई हैं कि पत्नी को पीटना और उसे डराना-धमकाना पति का हक बनता है।”

यहाँ तक कि जिन देशों में औरतों को पीटना गलत माना जाता है, वहाँ भी ऐसे कई पुरुष हैं जो हिंसा का रास्ता इख्तियार करते हैं। इस बारे में कुछ पुरुषों की सोच चौंका देनेवाली है। दक्षिण अफ्रीका के वीकली मॆल एण्ड गार्डियन के मुताबिक, केप पेनिनस्यूला में एक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में अपनी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार न करने का दावा करनेवाले ज़्यादातर पुरुषों ने यह कहा कि औरतों पर हाथ उठाने में कोई बुराई नहीं है और ऐसी छोटी-मोटी बातों को हिंसा करार नहीं दिया जा सकता।

ज़ाहिर है कि ऐसी गलत सोच की बुनियाद अकसर बचपन में ही पड़ती है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में एक अध्ययन किया गया जिसमें ग्यारह और बारह साल के 75 प्रतिशत लड़कों ने अपनी राय दी कि अगर एक आदमी आग बबूला हो जाए तो उसका अपनी पत्नी पर हाथ उठाना जायज़ है।

मारपीट करना जायज़ नहीं है

ऊपर बताए गए कारणों से हम यह तो समझ पाते हैं कि पति अपनी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार क्यों करता है, लेकिन इनकी आड़ में पत्नियों के साथ मारपीट करने को किसी भी हाल में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। चंद शब्दों में कहें तो अपने साथी के साथ मारपीट करना, परमेश्‍वर की नज़रों में घोर पाप है। उसके वचन, बाइबल में हम यह पढ़ते हैं: “पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है।”—इफिसियों 5:28,29.

बाइबल में बहुत पहले भविष्यवाणी की गयी थी कि संसार के “अन्तिम दिनों” के दौरान बहुत-से लोग “ज़ुल्म ढानेवाले” (न्यू इंग्लिश बाइबल), “स्नेहरहित” और “क्रूर” होंगे। (2 तीमुथियुस 3:1-3, NHT) आज, पत्नियों पर हो रहे अत्याचारों की बढ़ती वारदातों से यही संकेत मिलता है कि हम भविष्यवाणी में बताए गए अंतिम दिनों में जी रहे हैं। लेकिन मारपीट की शिकार औरतों की मदद कैसे की जा सकती है? क्या इस बात की कोई उम्मीद है कि मारपीट करनेवाला अपना व्यवहार बदल देगा?(g01 11/8)

[पेज 5 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“पत्नी को मारने-पीटनेवाला पति उस अपराधी से कम नहीं जो एक अनजान आदमी पर हमला करता है।”—जब आदमी, औरत को पीटता है (अँग्रेज़ी)

[पेज 6 पर बक्स]

मर्दानगी दिखाना—एक आम समस्या

दुनिया में ऐसे अहंकारी पुरुष भरे पड़े हैं जो औरतों को नीच समझकर उनके साथ बुरे-से-बुरा सलूक करते हैं। यह बात नीचे दी गयी रिपोर्टों से साबित होती है।

ईजिप्ट: एलेक्जैंड्रिया में औरतों पर किए गए तीन-महीने के अध्ययन से पता लगा कि उन्हें पहुँची चोटों की खास वजह है, उनका घर पर मारा-पीटा जाना। यही वजह है कि सतायी गयी 27.9 प्रतिशत औरतें, आस-पास के चिकित्सा केंद्रों में मदद के लिए जाती हैं।—महिलाओं पर चौथे विश्‍व सम्मेलन का सार 5.

थाइलैंड: बैंगकॉक के सबसे बड़े उपनगर में 50 प्रतिशत शादी-शुदा औरतों को हर दिन मारा-पीटा जाता है।—महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए पैसिफिक इंस्टीट्यूट।

हांगकांग: अपने पुरुष-साथी के हाथों मार खानेवाली औरतों की गिनती, पिछले साल के मुकाबले 40 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ गयी है।—साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट, जुलाई 21,2000.

जापान: ज़्यादा-से-ज़्यादा औरतें, महिला आश्रमों में पनाह ले रही हैं। सन्‌ 1995 में इनकी गिनती 4,843 थी, मगर 1998 में यह बढ़कर 6,340 हो गयी। “लगभग एक-तिहाई औरतों का कहना है कि इन आश्रमों में पनाह लेने की वजह उनके पति का क्रूर व्यवहार है।”—द जपैन टाइम्स, सितंबर 10,2000.

ब्रिटेन: “ब्रिटेन में, किसी-ना-किसी घर में हर छः सेकेंड में बलात्कार, मारपीट या छुरे से प्रहार करने की घटना घटती है।” स्कॉटलेंड यार्ड के पुलिस विभाग के मुताबिक “घर में मारपीट का शिकार होनेवालों से उन्हें हर दिन 1,300 फोन आते हैं। और साल-भर में तो 5,70,000 से भी ज़्यादा हिंसा की शिकायतें मिलती हैं। इनमें से 81 प्रतिशत मामले ऐसी औरतों के होते हैं जिन्हें किसी पुरुष ने मारा-पीटा है।”—द टाइम्स, अक्टूबर 25,2000.

पेरू: पुलिस जितने अपराध दर्ज़ करती है, उनमें से 70 प्रतिशत पतियों के हाथों पत्नियों की पिटाई के मामले होते हैं।—महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए पैसिफिक इंस्टीट्यूट।

रशिया: “एक साल में, 14,500 रूसी औरतों की हत्या उनके पतियों के हाथों हुई। इनके अलावा 56,400 औरतें, पतियों की मार से या तो अपाहिज हो गयीं या उन्हें गंभीर चोटें पहुँची।”—द गार्डियन।

चीन: जिंगलुंन पारिवारिक केंद्र की निर्देशक प्रोफेसर चॆन यीयुन कहती हैं: “घर में हो रही हिंसा एक ऐसी नयी समस्या है जो दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। खासकर शहरों में यह ज़्यादा देखने को मिल रही है। घरों में हो रही हिंसा को रोकने के लिए अब पड़ोसियों की रोक-टोक भी नाकाम साबित हो रही है।”—द गार्डियन।

निकारागुआ: “निकारागुआ में औरतों पर होनेवाली हिंसा ज़ोर पकड़ रही है। एक सर्वे से पता चला कि पिछले साल ही 52 प्रतिशत औरतों पर किसी-न-किसी तरह का अत्याचार किया गया। और इस अत्याचार के ज़िम्मेदार उनके पति हैं।”—बीबीसी न्यूज़।

[पेज 7 पर बक्स]

खतरे के निशान

अमरीका में यूनिवर्सिटी ऑफ रोड आइलॆंड के रिचर्ड जे. जेल्स द्वारा चलाए गए अध्ययन के मुताबिक नीचे कुछ ऐसे चिन्ह दिए गए हैं जिनसे घरों में शारीरिक और भावात्मक दुर्व्यवहार होने का खतरा नज़र आता है:

1.एक आदमी, पहले भी किसी-न-किसी रूप में घरेलू झगड़ों या मारपीट में शामिल रहा है।

2.वह बेरोज़गार है।

3.वह साल में कम-से-कम एक बार ड्रग्स लेता है।

4.बचपन में उसने अपने पिता के हाथों अपनी माँ को पिटते देखा है।

5.एक जोड़ा बगैर शादी किए एक-साथ रहता है।

6.अगर आदमी नौकरी करता है तो उसे बहुत कम वेतन मिलता है।

7.उसने अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई भी पूरी नहीं की है।

8.उसकी उम्र 18 और 30 के बीच है।

9.पति-पत्नी में से एक या दोनों, बच्चों को बेदर्दी से पीटते हैं।

10.उनके रहन-सहन का स्तर गरीबी की रेखा से नीचे है।

11.पति-पत्नी की परवरिश एकदम अलग-अलग माहौल में हुई हैं।

[पेज 7 पर तसवीर]

घर पर होनेवाली हिंसा का बच्चों की ज़िंदगी पर बहुत गहरा असर हो सकता है