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टीचर—हमें उनकी ज़रूरत क्यों है?

टीचर—हमें उनकी ज़रूरत क्यों है?

टीचर—हमें उनकी ज़रूरत क्यों है?

“एक महान टीचर की शागिर्दी में एक दिन बिताना, हज़ार दिन खूब मेहनत करके पढ़ाई करने से ज़्यादा बेहतर है।”—एक जापानी कहावत।

क्या आप किसी ऐसे टीचर को याद कर सकते हैं जिसने आप पर सबसे ज़्यादा असर किया हो? और अगर आप एक विद्यार्थी हैं तो क्या कोई टीचर आपको सबसे ज़्यादा पसंद है? अगर हाँ, तो क्यों?

एक काबिल टीचर, विद्यार्थी में आत्म-विश्‍वास पैदा करता है और सीखने के काम को मज़ेदार बनाता है। भारत में रहनेवाला, अधेड़ उम्र का एक व्यापारी याद करता है कि उसे कोलकाता में अपना अँग्रेज़ी का टीचर बेहद पसंद था। “मि. ससून के पढ़ाने के उम्दा तरीके से न सिर्फ मुझे यह भाषा अच्छी लगने लगी बल्कि मेरा आत्म-सम्मान भी बढ़ा। वे मेरे सबसे अच्छे निबंधों के कुछ भाग लेकर, उन्हें थोड़ा-बहुत ‘निखारकर’ अलग-अलग अखबारों और पत्रिकाओं में छापने के लिए भेज देते थे। हालाँकि मेरे सभी निबंध स्वीकार नहीं किए जाते थे, मगर कुछ ज़रूर छपते थे। अखबारों से मिलनेवाले पैसे से ज़्यादा मुझे यह देखकर खुशी होती थी कि मेरा काम अखबारों और पत्रिकाओं में छपता है। और इससे मुझमें यह आत्म-विश्‍वास पैदा हुआ कि मेरे अंदर लिखने की योग्यता है।”

मार्गिट, जर्मनी के म्यूनिक शहर में रहनेवाली एक खुशमिजाज़ औरत है, जिसकी उम्र पचास से ऊपर है। वह कहती है: “मैं एक टीचर को बेहद पसंद करती थी। वह कठिन-से-कठिन बात को भी बड़े आसान तरीके से समझा देती थी। वह हमें उकसाती थी कि अगर हमें कोई बात समझ में न आए तो हम उसके बारे में सवाल पूछें। वह रूखे स्वभाव की नहीं बल्कि दोस्ताना थी, जिस वजह से उसकी क्लास में पढ़ने में बड़ा मज़ा आता था।”

ऑस्ट्रेलिया का पीटर अपने गणित के टीचर को याद करते हुए कहता है: “वे हमें व्यावहारिक उदाहरण देकर यह समझने में मदद देते थे कि जो हम सीख रहे हैं, उसका क्या फायदा है। जब हम ट्रिगनौमट्री पढ़ रहे थे, तो उन्होंने हमें सिखाया कि सिर्फ ट्रिगनौमट्री के सिद्धांत लागू करके, हम कैसे किसी इमारत को हाथ लगाए बिना उसकी ऊँचाई माप सकते हैं। मुझे आज भी याद है जब मैंने मन में कहा था, ‘वाह, यह हुई ना कोई बात!’”

उत्तरी इंग्लैंड की रहनेवाली पॉलीन ने अपने टीचर को अपनी समस्या बतायी: “गणित मेरे पल्ले नहीं पड़ता।” टीचर ने पूछा: “क्या तुम गणित अच्छी तरह सीखना चाहती हो? मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।” वह आगे कहती है: “अगले कुछ महीनों में उन्होंने मुझ पर खास ध्यान दिया। स्कूल की छुट्टी हो जाने के बाद भी वे मुझे सिखाते थे। मैं जान गयी कि उन्हें मेरी चिंता है और वे चाहते थे कि मैं सीख जाऊँ। यह जानकर मैंने बहुत मेहनत की, इसलिए मैं गणित में सुधार कर पायी।”

स्कॉटलैंड की ऐंजी, जिसकी उम्र अब 30 से ऊपर है, अपने इतिहास के टीचर मि. ग्राहम को याद करती है। “वे इतिहास बड़े दिलचस्प तरीके से समझाते थे! वे घटनाओं को कहानी के रूप में सुनाते थे और हर विषय को पूरे जोश के साथ पेश करते थे। वे सब कुछ ऐसे बताते थे मानो आँखों के सामने हो रहा हो।” ऐंजी के पास अपनी पहली क्लास की बुज़ुर्ग टीचर मिसेज ह्‍यूविट की भी मीठी यादें हैं। “वह बहुत प्यारी और परवाह करनेवाली थी। एक दिन क्लास में, मैं उससे एक प्रश्‍न पूछने गयी। उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। उसने मुझे एहसास दिलाया कि वह सचमुच मेरी परवाह करती है।”

दक्षिण यूनान का तिमथी अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर करता है: “मैं आज भी विज्ञान के अपने टीचर को नहीं भूला हूँ। उन्होंने, इस दुनिया और जीवन के बारे में मेरा नज़रिया ही बदल दिया। वे हमें ऐसे सिखाते थे कि हम बड़ी हैरानी से उनकी बात सुनते रहते। उन्होंने हमारे अंदर शिक्षा हासिल करने की भूख जगायी और समझ-बूझ से हमारा लगाव बढ़ाया।”

कैलिफोर्निया, अमरीका की रमोना एक और मिसाल है। वह लिखती है: “मेरी हाई-स्कूल की टीचर को अँग्रेज़ी बहुत पसंद थी। वह हमारे अंदर भी वैसा ही जोश भर देती थी! मुश्‍किल भागों को वह चुटकियों में समझा देती थी।”

कनाडा की जेन, शारीरिक प्रशिक्षण (पी.टी.) के अपने टीचर को याद करके बड़ी खुश होती है, जिसके “पास खेल-कूद के ज़रिए बच्चों को सिखाने के ढेरों तरीके थे। उन्होंने हमें बहुत बढ़िया पिकनिक करवाए। वे हमें शहर से दूर ले जाकर स्कीइंग करना और बर्फ में गड्ढा खोदकर मछली पकड़ना सिखाते थे। हमने अपने हाथों से बनायी अंगीठी पर एक तरह की रोटी भी पकायी जो अमरीकी आदिवासियों की बनोक रोटी जैसी थी। यह मेरे जैसी घर की चारदीवारी में रहनेवाली लड़की के लिए बहुत ही अनोखा अनुभव था, जो हमेशा एक कीड़े की तरह किताबों से चिपकी रहती थी!”

हेलन बहुत शर्मीली है, जो शांघाई में पैदा हुई और हांगकांग में पढ़ी। वह याद करती है: “जब मैं पाँचवी क्लास में थी तो मि. चैन मेरे टीचर थे। वे हमें शारीरिक प्रशिक्षण (पी.टी.) और पेंटिंग सिखाते थे। मैं बहुत दुबली-पतली थी और वॉलीबॉल और बॉस्केट बॉल अच्छी तरह नहीं खेल पाती थी। लेकिन उन्होंने कभी-भी मुझे सबके सामने नीचा नहीं दिखाया। उन्होंने मुझे बैडमिंटन और दूसरे खेल खेलने दिए जो मैं अच्छी तरह खेल सकती थी। वे बहुत परवाह करनेवाले और दिल के बड़े अच्छे थे।

“यही हाल मेरा पेंटिंग में भी था, मुझे चीज़ों और लोगों की पेंटिंग बनाना ठीक से नहीं आता था। इसलिए उन्होंने मुझे ऐसे पैटर्न और डिज़ाइन पेंट करने की इजाज़त दी, जो मेरे लिए आसान थे। मैं क्लास में दूसरे बच्चों से छोटी थी, इसलिए उन्होंने मुझे यह विश्‍वास दिलाया कि इसी क्लास में एक साल और बिताना मेरे लिए अच्छा होगा। इससे मेरी स्कूल की पढ़ाई को नयी दिशा मिली। मेरा आत्म-विश्‍वास बढ़ा और मैंने उन्‍नति की। मैं हमेशा उनकी आभारी रहूँगी।”

किस तरह के टीचर बच्चों पर सबसे ज़्यादा असर डालते हैं? इसका जवाब, विलियम एअर्स अपनी किताब, पढ़ाना—एक टीचर का सफर (अँग्रेज़ी) में देते हैं: “अच्छा टीचर वह होता है जो विद्यार्थियों के भविष्य को सँवारने के लिए समर्पित हो और उनकी परवाह करे। . . . अच्छी तरह पढ़ाने में किसी खास शैली से सिखाना, कोई योजना बनाना या किसी खास तरीके से काम करने की ज़रूरत नहीं है। . . . देखा जाए तो पढ़ाने के लिए प्रेम का गुण होना सबसे ज़रूरी है।” तो फिर किसे सफल टीचर कहा जा सकता है? वह कहता है: “वह टीचर जो आपके दिल को छू गया, वह जिसने आपको समझा और आपमें दिलचस्पी ली और जिसे कुछ चीज़ों का, जैसे संगीत, गणित, लैटिन भाषा या पतंगों का ऐसा शौक था कि आपमें भी वही शौक और वही लगन पैदा हो गयी।”

इसमें कोई शक नहीं कि माता-पिता और बच्चों ने बहुत-से टीचरों को अपनी कदरदानी ज़ाहिर की है। इससे टीचरों को मुश्‍किलों की वजह से अपना यह पेशा छोड़ने के बजाय उसे जारी रखने का बढ़ावा मिला है। ऊपर कही गयी बातों में एक बात आम है कि टीचर, बच्चों में सच्ची दिलचस्पी लेते हैं और उनके साथ प्यार से पेश आते हैं।

लेकिन सभी टीचर बच्चों में सच्ची दिलचस्पी नहीं दिखाते। और फिर, टीचरों पर भी ऐसे कई दबाव होते हैं जिनकी वजह से वे अपने विद्यार्थियों के लिए ज़्यादा कुछ नहीं कर पाते। इससे एक सवाल खड़ा होता है, क्यों लोग पढ़ाने का यह मुश्‍किल पेशा चुनते हैं?(g02 3/8)

[पेज 4 पर तसवीर]

“पढ़ाने के लिए प्रेम का गुण होना सबसे ज़रूरी है”