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हमारे पाठकों से

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अच्छी सेहत “सभी के लिए अच्छी सेहत—क्या यह मुमकिन है?” (जुलाई-सितंबर 2001) के श्रंखला लेख से मुझे कितनी तसल्ली मिली और मेरा कितना हौसला बढ़ा उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती। मुझे एक तरह की मानसिक बीमारी है और इसी वजह से पहले मैंने कई बार आत्म-हत्या करने की भी सोची। हर रोज़ मैं सोचती थी, ‘मैं आज का दिन कैसे जीऊँगी?’ इस पत्रिका ने मुझे यहोवा के उस वादे के बारे में याद दिलाया जो प्रकाशितवाक्य 21:4 में लिखा है कि वह ‘हमारी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा।’

सी. टी., जापान (g02 2/8)

आपके इन बेहतरीन लेखों के लिए शुक्रिया। मैं न्यूटरोपैथिक फिज़िशियन के तौर पर काम करता हूँ और इसलिए मैं उस दिन की आस में हूँ जब कोई बीमारी नहीं रहेगी। तब मुझे अपने इस पेशे से छुट्टी मिल जाएगी और मैं अपना दूसरा पसंदीदा काम यानी खेती कर सकूँगा।

बी. सी., अमरीका (g02 2/8)

पतंगे मैं 14 साल की हूँ और जब मैंने “खूबसूरत पतंगा” (जुलाई-सितंबर 2001) लेख पढ़ा तो मैं बहुत प्रभावित हुई। पहले मैं सोचती थी कि पतंगे डरावने होते हैं, मगर इस लेख को पढ़ने के बाद अब मैं उन्हें मारने के बारे में सोचूँगी भी नहीं!

डी. एस., अमरीका (g02 2/8)

मैं यह लेख पढ़ रही थी और तभी एक पतंगा उड़कर मेरे पैर पर आकर बैठ गया। मैंने ज़िंदगी में कभी इतना सुंदर पतंगा नहीं देखा! सचमुच, परमेश्‍वर की सृष्टि बेमिसाल है। और अगर हम उसे ध्यान से देखें तो परमेश्‍वर के लिए हमारा प्यार और भी गहरा होता जाएगा।

जी. पी., इटली (g02 2/8)

यहोवा ने जो खूबसूरत और तरह-तरह के पतंगे बनाए हैं, उनकी मैं कभी कदर नहीं करती थी। बस यही सोचती थी कि ये पतंगे भद्दे हैं। मगर इस लेख को पढ़ने के कुछ ही समय बाद जब मैं पौधों को पानी दे रही थी, तो एक खूबसूरत पतंगा मेरे पास आया। मैंने यहोवा को उसकी सृष्टि के लिए बहुत धन्यवाद दिया और इस लेख के लिए भी जिसने मुझे इन पतंगों पर गौर करने की प्रेरणा दी।

के. एस., अमरीका (g02 2/8)

नफरत हाल ही मेरा भाई मुझसे मिलने आया। मुझे पता नहीं था कि वह दूसरी जातियों के लिए अपनी नफरत की भावनाएँ खुलकर ज़ाहिर करता है। उसने कई जातियों की बात की और कहा कि वह उन्हें बिलकुल नीच समझता है। मैं उसकी मदद करना चाहती थी, मगर मुझे नहीं मालूम था कि उसके साथ इस विषय पर कैसे बात करूँ। जैसे ही मैंने अक्टूबर-दिसंबर 2001 का अंक, “नफरत के चक्रव्यूह को तोड़ना” लेख देखा, मैं समझ गयी कि मेरी प्रार्थना का जवाब मिल गया है।

एल. बी., अमरीका (g02 3/22)

आपने जो लिखा उसे कबूल करना एक समझदार इंसान के लिए बहुत मुश्‍किल है। आपने कहा: “बाइबल बताती है कि असिद्ध इंसानों में जन्म से ही बुराइयाँ और कमज़ोरियाँ होती हैं। (उत्पत्ति 6:5; व्यवस्थाविवरण 32:5) बेशक यह बात सभी लोगों पर लागू होती है।” मगर इन आयतों में अलग-अलग समय और जगह में जी रहे दो खास समूहों की बात की गयी थी। ये शब्द सभी इंसानों पर लागू हो ही नहीं सकते।

डी. ज़., चेक रिपब्लिक

“सजग होइए!” का जवाब: यह सच है कि ये शब्द खास तौर से जलप्रलय से पहले जीनेवाले लोगों और इस्राएल जाति पर लागू हुए। फिर भी, बाइबल यह बार-बार साफ बताती है कि “सब ने पाप किया है और परमेश्‍वर की महिमा से रहित हैं।” (रोमियों 3:23; 5:12; अय्यूब 14:4; भजन 51:5) और इंसान कितना असिद्ध है यह दिखाने के लिए ही इस्राएलियों और जलप्रलय से पहले जीए लोगों का उदाहरण दिया गया था।(g02 3/22)

नावहो सैंडी यौसी ड्‌ज़ोसी की ज़ुबानी, “परमेश्‍वर का नाम—जिसने मेरी ज़िंदगी बदल दी!” (अक्टूबर-दिसंबर 2001) इस उम्दा और उत्साह बढ़ानेवाले लेख के लिए मैं आपका धन्यवाद करना चाहती हूँ। उसके शब्दों का मेरे दिल पर गहरा असर पड़ा और मैं अपने आँसुओं को रोक नहीं पायी। प्यार और खुशी की तलाश में उसका भटकना और फिर निराशा का सामना करना, वाकई उसकी यह कहानी पढ़ने के बाद मेरे अंदर भी आशा की किरण जगी है। मुझे एहसास हुआ कि यहोवा परमेश्‍वर हम सभी से बेइंतहा प्यार करता है!

ए. ए., अमरीका (g02 3/22)