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पुलिस—इनका भविष्य क्या होगा?

पुलिस—इनका भविष्य क्या होगा?

पुलिस—इनका भविष्य क्या होगा?

अगर पुलिस ना होती तो शायद हमारे यहाँ अधर्म का बोलबाला होता। लेकिन पुलिस के होते हुए भी क्या हम चैन की नींद सो सकते हैं? बहुत-से शहरों, और गाँवों में भी लोग अपनी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित हैं। क्या हम पुलिस से यह अपेक्षा कर सकते हैं कि वह अपराधियों के गिरोह से या जुर्म करने से बाज़ न आनेवाले अपराधियों से हमारी रक्षा करेगी? क्या हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि पुलिस हमें ऐसी हिफाज़त देगी कि हम बेखौफ सड़कों पर घूम-फिर सकेंगे? क्या वह अपराध के खिलाफ अपनी जंग में कभी कामयाब हो सकेगी?

डेविड बेली अपनी किताब, भविष्य की पुलिस (अँग्रेज़ी) में अपनी राय ज़ाहिर करते हैं: “पुलिस अपराध को रोक नहीं सकती। . . . देखा जाए तो पुलिस कैंसर के लिए सिर्फ एक बैंड-एड के समान है। . . . अपराध को रोकने के लिए पुलिस चाहे कितनी ही मेहनत क्यों न करे, लेकिन हम इस बात के लिए पुलिस पर पूरी तरह निर्भर नहीं हो सकते कि वह समाज से अपराध खत्म कर देगी।” अध्ययन दिखाते हैं कि पुलिस के तीन खास काम हैं—सड़कों पर गश्‍त लगाना, अचानक उठनेवाली समस्या पर फौरन कार्यवाही करना, और अपराध की तहकीकात करना। लेकिन इन कामों से अपराध रोके नहीं जा सकते। ऐसा क्यों है?

अपराध रोकने के इरादे से किसी जगह पर भारी तादाद में पुलिस-बलों को तैनात करना, व्यवहारिक नहीं क्योंकि यह बहुत की महँगा पड़ता है। वैसे भी, अगर इतनी सारी पुलिस तैनात करना मुमकिन भी हो, तब भी इससे अपराधियों को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके अलावा, कार्यवाही करने में पुलिस चाहे कितनी ही फुर्ती क्यों न दिखाए, लेकिन इससे अपराध कम नहीं होते। पुलिस ने रिपोर्ट दी है कि घटनास्थल पर अगर वे एक मिनट के अंदर नहीं पहुँचते, तो अपराधी हाथ से निकल जाते हैं। अपराधी शायद बखूबी जानते हैं कि पुलिस का घटनास्थल पर इतनी जल्दी पहुँचना नामुमकिन है। और अपराधी के बारे में तफतीश करने का भी कोई खास फायदा नहीं होता। यहाँ तक कि अगर जासूस किसी अपराधी को कसूरवार ठहराकर जेल की सलाखों के पीछे डाल भी दे, तौभी इससे अपराध बंद नहीं होते। दूसरे देशों के मुकाबले अमरीका सबसे ज़्यादा अपराधियों को जेल में डालती है, फिर भी वहाँ सबसे ज़्यादा अपराध होते हैं। दूसरी तरफ जापान में, हालाँकि बहुत कम लोगों को जेल में डाला जाता है, फिर भी वहाँ अपराध बहुत कम होते हैं। पड़ोसियों में जागरूकता जैसी योजनाएँ भी खासकर ऐसी जगहों पर ज़्यादा समय तक नहीं टिकतीं, जहाँ हिंसा की बहुत-सी वारदातें होती हैं। ड्रग्स की तस्करी या चोरी जैसे अपराध के खिलाफ जब कड़ी कार्यवाही की जाती है, तो शुरू-शुरू में इसका असर बहुत अच्छा होता है, मगर फिर धीरे-धीरे असर खत्म हो जाता है।

भविष्य की पुलिस (अँग्रेज़ी) किताब कहती है: “किसी समझदार इंसान को यह बात अचंभे की नहीं लगनी चाहिए कि पुलिस, अपराध को रोकने में नाकाम है। कुछ ऐसी सामाजिक परिस्थितियाँ हैं जिन पर न तो पुलिस पूरी तरह काबू पा सकती है और न ही पूरी कानून व्यवस्था, इसलिए आम तौर पर यह समझा जाता है कि इन परिस्थितियों की वजह से अपराध की दर बढ़ती जा रही है।”

अगर पुलिस ना होती?

मान लीजिए कि किसी पुलिसवाले की नज़र आप पर नहीं है, तो आप क्या करेंगे? क्या आप उनकी गैर-हाज़िरी का फायदा उठाकर कोई कानून तोड़ेंगे? यह एक हैरत की बात है कि खुद को इज़्ज़तदार कहनेवाले कितने ही उच्च और मध्यम वर्गीय लोग, बेईमानी से मुनाफा पाने के लिए दफ्तरों में घोटाला करके अपने मान-सम्मान और भविष्य को खतरे में डाल लेते हैं। न्यू यॉर्क टाइम्स ने अभी हाल में यह रिपोर्ट दी कि ‘ऐसे 112 लोगों पर धोखाधड़ी का इलज़ाम लगाया गया है, जिन्होंने गाड़ियों की बीमा कंपनियों से छल करके पैसा निकालने की कोशिश की। इन आरोपियों में वकील, डॉक्टर, काइरोप्रैक्टर, थेरपिस्ट, एक्युपंक्चरिस्ट और पुलिस विभाग के प्रशासन की एक सहयोगी शामिल थी।’

हाल ही में न्यू यॉर्क की सदबी और लंदन की क्रिस्टी, नीलाम घरों में बड़े पैमाने पर हुए घोटाले ने उन कला-प्रेमी रईसों को हिलाकर रख दिया जो जनता की सेवा में अपना पैसा खर्च करते हैं। उन्हें यह जानकर धक्का लगा कि नीलाम घरों के भूतपूर्व मुख्य प्रशासकों पर प्राइज़-फिक्सिंग का इलज़ाम लगाया गया है यानी वे चीज़ों का नकली दाम लगवाकर उन्हें बेचते थे। उन प्रशासकों और नीलाम घरों के मालिकों को मुआवज़े और जुरमाने के तौर पर करोड़ों डॉलर भरने पड़े। तो देखिए समाज का कोई भी वर्ग पैसे के मोह से खुद को बचा नहीं पाया है।

सन्‌ 1997 में, ब्राज़ील के रसीफा शहर में पुलिस के हड़ताल कर देने पर जो लूटमार हुई वह यही दिखाती है कि जब सज़ा पाने का डर नहीं होता तो ज़्यादातर लोग बड़ी आसानी से अपराध कर बैठते हैं। ऐसे समय पर उनका धार्मिक विश्‍वास, उन्हें गलत काम करने से रोक नहीं पाता। वे बड़ी आसानी से अपने आदर्शों और सिद्धांतों को या तो अपनी सहूलियत के मुताबिक बदल देते हैं या उन्हें ताक पर रख देते हैं। इसमें शक नहीं कि छोटे-बड़े पैमाने पर लोग आज बुराई करने के लिए आमादा हैं और ऐसे में बहुत-से देशों की पुलिस एक ऐसी जंग लड़ रही है जिसमें उसकी हार तय है।

दूसरी तरफ, कुछ ऐसे लोग हैं जो कानून का पालन करते हैं क्योंकि वे अधिकार की इज़्ज़त करते हैं। प्रेरित पौलुस ने रोम के मसीहियों से कहा था कि उन्हें परमेश्‍वर की ओर से नियुक्‍त अधिकारियों के अधीन रहना चाहिए क्योंकि ये अधिकारी कुछ हद तक समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखते हैं। ऐसे अधिकार के बारे में उसने लिखा: “वह . . . परमेश्‍वर का सेवक है; कि उसके क्रोध के अनुसार बुरे काम करनेवाले को दण्ड दे। इसलिये अधीन रहना न केवल उस क्रोध से परन्तु डर से अवश्‍य है, बरन विवेक भी यही गवाही देता है।”—रोमियों 13:4,5.

समाज की स्थिति में बदलाव

बेशक समाज को सुधारने में पुलिस का काम काफी हद तक असरदार रहा है। जब सड़कों पर ड्रग्स के व्यापारी या हिंसा नहीं दिखायी देती, तो लोग भी समाज के अच्छे स्तरों के मुताबिक जीने की कोशिश करते हैं। मगर जहाँ तक समाज को पूरी तरह बदलने की बात है, वह किसी भी पुलिस-बल के बस में नहीं है।

क्या आप एक ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं, जहाँ लोगों के दिलों में कानून के लिए इतना गहरा आदर होगा कि पुलिस की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी? क्या आप अपने मन में एक ऐसे संसार की तसवीर उभार सकते हैं, जहाँ पड़ोसी एक-दूसरे की परवाह करेंगे और मदद करने के लिए हरदम तैयार रहेंगे और किसी को पुलिस बुलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी? शायद यह बात एक खयाली पुलाव लगे। मगर यीशु के ये शब्द हालाँकि दूसरे संदर्भ में कहे गए थे, बेशक यहाँ भी लागू होते हैं। उसने कहा: “मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्‍वर से सब कुछ हो सकता है।”—मत्ती 19:26.

बाइबल वर्णन करती है कि भविष्य में एक ऐसा वक्‍त आएगा जब सारी मानवजाति परमेश्‍वर यहोवा के ज़रिए स्थापित सरकार के अधीन होगी। “स्वर्ग का परमेश्‍वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो . . . उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा।” (दानिय्येल 2:44) यह नयी सरकार सभी सच्चे दिल के लोगों को परमेश्‍वर के प्रेम के मुताबिक शिक्षा देगी और अपराध से भरे इस पुराने समाज को पूरी तरह से बदल देगी। “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” (यशायाह 11:9) यहोवा का ठहराया हुआ राजा, यीशु मसीह हर तरह के अपराध को रोकने में काबिल होगा। “वह मुंह देखा न्याय न करेगा और न अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय करेगा; परन्तु वह कंगालों का न्याय धर्म से, और पृथ्वी के नम्र लोगों का निर्णय खराई से करेगा।”—यशायाह 11:3,4.

न अपराध होगा, न अपराधी। तो फिर पुलिस की भी ज़रूरत नहीं होगी। सभी लोग “अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेंगे, और कोई उनको न डराएगा।” (मीका 4:4) अगर आप उस “नई पृथ्वी” का भाग बनना चाहते हैं जिसका वर्णन बाइबल करती है, तो यही समय है कि परमेश्‍वर के वचन में लिखे उसके वादों के बारे में आप जाँच-परख करें।—2 पतरस 3:13.(g02 7/8)

[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

न अपराध होगा, न अपराधी

[पेज 11 पर बक्स/तसवीर]

पुलिस बनाम आतंकवादी

सितंबर 11,2001 को न्यू यॉर्क सिटी और वॉशिंगटन डी. सी. में जो घटना घटी उससे जग ज़ाहिर हो गया कि विमान अपहरण करनेवालों, बंदी बनानेवालों और आतंकवादियों की वजह से पुलिस-दलों के सामने जनता की हिफाज़त करना खासकर एक बड़ी चुनौती बन गयी है। दुनिया के कई भागों में विशेष सैनिक दस्तों को ट्रेनिंग दी गयी है कि वे कैसे खड़े विमान में झट-से घुसकर उसे अपने काबू में कर सकते हैं। उन्हें यह भी सिखाया गया है कि किसी इमारत में कैसे अचानक घुसना चाहिए, जैसे रस्सी के सहारे छत से उतरना, खिड़कियों से कूदकर अंदर आना, आँसू-गैस छोड़ना या कॉनकशन ग्रेनेड फेंकना जिसमें से शॉक देनेवाली तरंगे निकलती हैं और जिससे लोग कुछ देर के लिए बेहोश हो जाते हैं। ये माहिर अफसर अकसर आतंकवादियों को चौंका देने और उन्हें अपने कब्ज़े में कर लेने में कामयाब होते हैं और इस दौरान बंधक व्यक्‍तियों को भी कम-से-कम चोट पहुँचता है।

[चित्र का श्रेय]

James R. Tourtellotte/U.S. Customs Service

[पेज 12 पर तसवीर]

परमेश्‍वर की नयी दुनिया में इन चीज़ों की कोई ज़रूरत नहीं होगी