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हमारे पाठकों से

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टीचर पिछले चार सालों से, मैं प्राथमिक-स्कूल की टीचर हूँ। “टीचर—उनके बिना हम क्या करते?” (अप्रैल-जून, 2002) के श्रृंखला लेखों को पढ़कर मुझे बहुत खुशी हुई। मुझे इस बात की बहुत चिंता लगी रहती है कि आजकल के बच्चों को सही-गलत के बीच फर्क करना ही नहीं आता। हम टीचरों के सामने एक और चुनौती तब आती है जब बच्चों को अपनी ज़िम्मेदारियों से पहले, अपने हक का एहसास होता है। ऐसी मुश्‍किलों के होते हुए भी पढ़ाना एक ऐसा पेशा है जिससे संतुष्टि मिलती है, खासकर तब जब विद्यार्थी सीखने में दिलचस्पी लेते हैं और प्रगति करते हैं।

जे. के., अमरीका (g02 10/22)

इन लेखों के लिए आपका धन्यवाद। इनसे मुझे यह समझने में मदद मिली है कि टीचर हमारे लिए कितने त्याग करते हैं, जबकि हम उनके लिए अकसर ऐसे त्याग नहीं करते।

ऐस. ऐम., इटली (g02 10/22)

में आठ साल का हूँ। आपके इन लेखों से मुझे यह जानने में मदद मिली कि टीचर अपने विद्यार्थियों से कितना प्यार करते हैं। उन्हें बच्चों को सिखाना बहुत अच्छा लगता है, इसके बावजूद कि कभी-कभी यह इतना आसान नहीं होता। मैंने अपनी टीचर को एक नोट लिखकर उनका शुक्रिया अदा किया। मैं और मेरी चार साल की छोटी बहन, सीख रहे हैं कि कैसे यहोवा के बारे में दूसरों को सिखाएँ। हालाँकि दूसरों को सिखाना हमारे लिए कभी-कभी मुश्‍किल होता है, फिर भी हम यह काम इसलिए करते हैं क्योंकि हम लोगों से प्यार करते हैं।

टी. एम., अमरीका (g02 10/22)

पढ़ाने के पेशे को छोड़ने के चार साल बाद, मुझे अपने एक विद्यार्थी का पत्र मिला जिसकी मैंने कई दफे मदद की थी। उसने अपना आभार व्यक्‍त करते हुए मुझे यह पत्र लिखा था। उस पत्र के साथ उसने अपने हाथों से बनाया हुआ एक बुक-मार्क भी भेजा। आप कल्पना कर सकते हैं कि मैं इसे पाकर कितना खुश हुआ!

ए. आर., स्लोवीनिया (g02 10/22)

मैंने यह पत्रिका अपने बच्चों के स्कूल के प्रिंसिपल और दो टीचरों को दी। मैं उनकी राय जानने के लिए दो दिन बाद उनके पास वापस गयी। उन्होंने अँग्रेज़ी और स्पैनिश भाषाओं में और 20 पत्रिकाओं की गुज़ारिश की ताकि वे बाकी माता-पिताओं को यह पत्रिका दे सकें।

एम. एम., अमरीका (g02 10/22)

पिछले साल, मैंने चार महीनों के लिए एक प्राथमिक-स्कूल में पढ़ाया था। वहाँ दूसरे टीचरों का कहना था कि जब माता-पिता उनकी कदर नहीं करते तो उनके लिए पढ़ाने का काम और भी मुश्‍किल हो जाता है। इसलिए मुझे बेहद खुशी हुई कि इस श्रृंखला में जी-जान से मेहनत करनेवाले टीचरों की बहुत कदर की गयी है। जब पढ़ाने का मेरा समय खत्म हुआ तो मेरे कई विद्यार्थियों से मुझे पत्र मिले जिनमें उन्होंने मेरा धन्यवाद किया। हरेक पत्र मेरे लिए बहुमूल्य है!

एस. आई., जापान (g02 10/22)

गुब्बारे की सैर “हवा के साथ-साथ” (अप्रैल-जून, 2002) इस बेहतरीन लेख के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। गुब्बारे में बैठकर आसमान की सैर करना, कई बरसों से मेरी तमन्‍ना रही है मगर अब तक यह पूरी नहीं हुई है। आपके इस लेख ने मानो मेरी यह तमन्‍ना पूरी कर दी, क्योंकि इसे पढ़ते वक्‍त मुझे ऐसा लगा कि मैं सचमुच आसमान की सैर कर रहा हूँ! मुझे वाकई ऐसा “लगा” कि मैं गुब्बारे की टोकरी में बैठकर धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठ रही हूँ और वह दायें से बाँयें हिल रही है। दुनिया ऊपर से ज़रूर बहुत छोटी नज़र आती होगी, मगर फिर भी यह और इसमें रहनेवाले इंसान परमेश्‍वर की नज़रों में बहुत अनमोल हैं।

एस. ए., जर्मनी (g02 10/22)

दोष की भावनाएँ “बाइबल का दृष्टिकोण: दोष की भावनाएँ—क्या ये हमेशा बुरी होती हैं?” (अप्रैल-जून, 2002) इस लेख की मुझे सख्त ज़रूरत थी। मेरी पायनियर साथी के साथ व्यवहार करते वक्‍त मुझे अपनी भावनाओं को काबू में रखना बहुत मुश्‍किल लगा क्योंकि मैं उससे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद करती थी। मगर इस लेख ने मुझे यह समझने में मदद दी कि जब दूसरे हमारी पसंद के मुताबिक काम नहीं करते हैं, तो उन्हें बार-बार दोषी महसूस कराना गलत होगा और उसका नतीजा बहुत बुरा होगा। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं अपने नज़रिए को बदल सकी। आपसे गुज़ारिश है कि इसी तरह आप हमें यहोवा का दृष्टिकोण सिखाते रहिए।

के. के., जापान (g02 10/22)