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बच्चों के शोषण का अंत बहुत जल्द!

बच्चों के शोषण का अंत बहुत जल्द!

बच्चों के शोषण का अंत बहुत जल्द!

बच्चों के अधिकारों पर हुए एक सम्मेलन की शुरूआत में यह कहा गया: “संयुक्‍त राष्ट्र ने, मानव अधिकारों के विश्‍वव्यापी घोषणा-पत्र में ऐलान किया कि खासकर बचपन में बच्चों की अच्छी देखभाल और मदद करने की ज़रूरत है। यह उनका हक बनता है।” परिवार की अहमियत पर ज़ोर देते हुए यह भी कहा गया: “लड़का हो या लड़की, उसकी शख्सियत को पूरी तरह से निखारने के लिए ज़रूरी है कि उसकी परवरिश ऐसे परिवार में हो जहाँ लोगों में अपनापन, प्यार, खुशी और समझदारी हो।” लेकिन आज तक इस लक्ष्य को कोई हासिल नहीं कर पाया है।

बच्चों के लिए एक बेहतर दुनिया लाने की बात करना ही काफी नहीं। आज चारों तरफ बदचलनी का बोलबाला है और कई लोगों को इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती। कानून में भी इस बढ़ती हुई बदचलनी और लालच को रोकने की ताकत नहीं है। यहाँ तक कि जिन माँ-बाप पर अपने बच्चों की हिफाज़त करने और उन्हें प्यार करने की ज़िम्मेदारी है, वे खुद ही इन बुराइयों में योगदान देते हैं। तो क्या ऐसे में, बाल वेश्‍यावृत्ति के खत्म होने की कोई उम्मीद नज़र आती है?

इसमें दो राय नहीं कि यह भ्रष्ट दुनिया हमारे तमाम बच्चों को एक प्यार-भरा घर और सुरक्षित भविष्य देने में नाकाम रही है। लेकिन हमारा रचयिता बहुत जल्द इस पृथ्वी पर से हर तरह की दुष्टता और चरित्रहीनता को, साथ ही बाल वेश्‍यावृत्ति को भी जड़ से उखाड़ देगा। यह दुनिया उस समय देखती रह जाएगी जब परमेश्‍वर यहोवा अपने राज्य के ज़रिए इंसानी मामलों में दखल देगा। तब दूसरों को बदचलनी की खाई में ढकेलनेवाले और शोषण करनेवाले परमेश्‍वर के न्यायदंड से बच नहीं पाएँगे। परमेश्‍वर की नयी दुनिया में सिर्फ वही कदम रख पाएँगे जो एक-दूसरे से प्यार करते हैं। “धर्मी लोग देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। दुष्ट लोग देश में से नाश होंगे, और विश्‍वासघाती उस में से उखाड़े जाएंगे।”—नीतिवचन 2:21,22.

ज़रा कल्पना कीजिए, उस समय बच्चे और बड़े कैसी चैन की साँस लेंगे जब ना तो नैतिकता का पतन होगा और ना ही लैंगिक शोषण! जिनके साथ शोषण हुआ है या जिन्हें मारा-पीटा गया है, उन लोगों के शारीरिक और भावात्मक घाव भर दिए जाएँगे। लैंगिक शोषण के शिकार लोग एक खुशहाल ज़िंदगी जी पाएँगे और वे गुज़रे कल को एक बुरा सपना समझकर भूल जाएँगे। क्योंकि “पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।”—यशायाह 65:17.

तब दुनिया में कहीं भी, किसी बच्चे के साथ, न तो बुरा बर्ताव किया जाएगा और ना ही उसका लैंगिक शोषण होगा। यह एक हकीकत है कि उस समय खुशियाँ होंगी, लोगों में प्यार और समझदारी होगी। परमेश्‍वर की नयी दुनिया में रहनेवालों के बारे में यशायाह 11:9 कहता है: “न तो कोई दुःख देगा और न हानि करेगा।”

वाकई वह क्या ही खुशी का आलम होगा जब गरीबी, ड्रग्स, दुःखी परिवार और अनैतिकता का नामो-निशान नहीं रहेगा। हर तरफ शांति, धार्मिकता और सुरक्षा होगी। “मेरे लोग शान्ति के स्थानों में निश्‍चिंत रहेंगे, और विश्राम के स्थानों में सुख से रहेंगे।”—यशायाह 32:18. (g03 2/08)

[पेज 9 पर बक्स/तसवीरें]

माता-पिता की परवाह, परिवार को बिखरने से बचा सकती है

● “जब मैं स्कूल में पढ़ रही थी, उस दौरान मेरे माता-पिता ने मुझे बढ़ावा दिया कि मैं इन सालों का अच्छा इस्तेमाल करके कोई ऐसा हुनर हासिल करूँ जो मेरे लिए फायदेमंद हो। उन्होंने मुझ पर अपनी पसंद थोपने की कोशिश नहीं की, बल्कि ऐसा कोर्स चुनने में मेरी मदद की जिसकी मुझे ज़रूरत थी।”—टाइस।

● “जब मैं और मेरी बहन खरीददारी करने जाते थे तो मम्मी भी हमारे साथ आती थीं। मम्मी सिखातीं कि हम कैसे किफायत से सामान खरीदें। वह कपड़े खरीदने में भी हमारी मदद करतीं, ताकि हम कहीं चमक-धमकवाले, तंग या छोटे कपड़े न खरीद लें।”—बियांग्का।

● “जब हमें किसी पार्टी में जाना होता, तो हमारे माता-पिता पहले से ही पूछ लेते कि उसमें कौन-कौन आएगा, किस तरह का संगीत होगा, पार्टी कब शुरू होगी और कब खत्म होगी। वैसे, ज़्यादातर पार्टियों में हमारा पूरा परिवार साथ ही जाता था।”—प्रीसीला।

● “छुटपन से लेकर जवानी तक, मैंने हमेशा अपने माता-पिता से दिल खोलकर बातचीत की है। मेरे साथ पढ़नेवाली मेरी एक सहेली ने यह गौर किया और कहा: ‘तुम जिस तरह अपने मम्मी-पापा से हर विषय पर खुलकर बात कर लेती हो, यह देखकर तो मुझे कितनी जलन होती है। मैं तो अपनी मम्मी से भी खुलकर बात नहीं कर पाती। अगर मुझे कुछ जानना होता है तो मैं अकसर किसी और से पूछती हूँ।’”—सामारा।

● “मैं बड़ी ही ज़िंदादिल लड़की थी। कभी किसी को शक की निगाह से नहीं देखती थी और हमेशा खिलखिलाती रहती थी। अपने दोस्तों के बीच मुझे ज़रा भी झिझक महसूस नहीं होती थी, उनके साथ मौज-मस्ती की बातें करना मुझे बड़ा अच्छा लगता था। मेरे माता-पिता ने मेरी इस शख्सियत को पहचाना था इसलिए उन्होंने कभी भी मेरे तौर-तरीके बदलने की कोशिश नहीं की। मगर हाँ, उन्होंने प्यार से मुझे यह ज़रूर समझा दिया कि मैं थोड़ी सँभलकर रहूँ और लड़कों के साथ बात करते वक्‍त शालीनता से पेश आऊँ।”—टाइस।

● “जैसा आम तौर पर नौजवानों के साथ होता है, मैं भी लड़कों में दिलचस्पी लेने लगी थी। मेरे पापा ने मुझसे कहा कि एक खास उम्र के आने तक मैं शादी के बारे में सोच नहीं सकती, लेकिन मुझे उनकी बात का ज़रा भी बुरा नहीं लगा। इसके बजाय मैंने यह समझ लिया कि मेरे माता-पिता को मेरी चिंता है और भविष्य में मुझ पर कोई खतरा न आए इसलिए मुझे आगाह कर रहे हैं।”—बियांग्का।

● “शादी के बंधन को मैं एक खूबसूरत बंधन समझती हूँ, खासकर अपने माता-पिता के अच्छे उदाहरण की वजह से। उनका आपसी रिश्‍ता बहुत मज़बूत था और उनके बीच हमेशा अच्छी बातचीत होती थी। मुझे याद है जब मैं डेटिंग कर रही थी तब मेरी मम्मी ने मुझे सलाह दी कि किसी खास परिस्थिति में मुझे किस तरह पेश आना चाहिए और समझाया कि आगे चलकर इसका मेरी शादी पर कैसा असर होगा।”—प्रीसीला।

[पेज 10 पर तसवीर]

परमेश्‍वर की नयी दुनिया में किसी भी बच्चे के साथ बुरा सलूक नहीं किया जाएगा