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क्या हालात कभी अच्छे होंगे?

क्या हालात कभी अच्छे होंगे?

क्या हालात कभी अच्छे होंगे?

आज विश्‍व स्वास्थ्य संगठन और कीड़ों से फैलनेवाली बीमारियों से चिंतित समूह, ऐसे कई कार्यक्रम चला रहे हैं जिनसे इन बीमारियों पर निगरानी रखी जा सके और उन्हें फैलने से रोका जा सके। इस बढ़ती समस्या से जूझने के लिए दूसरे कई संगठन भी जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। वे लोगों को इन बीमारियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, नयी-नयी दवाओं और रोकथाम के नए तरीकों पर खोजबीन को भी बढ़ावा दे रहे हैं। हर इंसान और पूरा समाज चाहे तो बीमारी के बारे में वाकिफ होने और खुद का बचाव करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है। लेकिन हर इंसान अगर खुद को सुरक्षित रखता भी है, तो उससे ज़्यादा फायदा नहीं होगा, जब तक कि पूरी दुनिया में बीमारी को रोका ना जाए।

बहुत-से विशेषज्ञों का मानना है कि बीमारियों की रोकथाम में कामयाब होने के लिए पूरी दुनिया का सहयोग और आपसी भरोसा होना ज़रूरी है। “विश्‍व-भर में लोगों और देशों के बीच परस्पर संबंध तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं, इसलिए ज़रूरी है कि इस ग्रह पर रहनेवाला हर इंसान यह न सोचे कि उसका आस-पड़ोस, देश, प्रांत या जिस गोलार्ध में वह रहता है, बस वही उसकी दुनिया है।” यह बात, पुलत्ज़र पुरस्कार की विजेता और पत्रकार, लॉरी गैरेट ने अपनी किताब, आनेवाली महामारी—असंतुलित संसार में उभरनेवाली नयी-नयी बीमारियाँ (अँग्रेज़ी) में लिखी थी। वे आगे कहती हैं: “क्योंकि जहाँ तक रोगाणुओं और उनके वाहकों की बात है, उन्हें इंसान की ठहरायी कोई भी सीमा रोक नहीं सकती।” इसीलिए जब किसी एक देश में महामारी फैलती है तो यह सिर्फ आस-पास के देशों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन जाती है।

कुछ सरकारों और लोगों को विदेश से मिलनेवाली हर तरह की मदद के बारे में आशंका रहती है, यहाँ तक कि उनके रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के बारे में भी। इसके अलावा, जब सरकारें दूर की नहीं सोचतीं बल्कि सिर्फ अपना नफा-नुकसान सोचती हैं तो सभी देशों का एक होकर बीमारियों से मुकाबला करना मुश्‍किल हो जाता है। ऐसे हालात में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि इंसान और बीमारियों के बीच हो रही इस जंग में कहीं जीत रोगाणुओं की तो नहीं होगी? लेखक यूजीन लिन्डन को ऐसा ही लगता है, इसलिए वे कहते हैं: “इस खेल में तो आधी बाज़ी हम हार चुके हैं।”

उम्मीद की किरण

बीमारियाँ, इतनी तेज़ी से बढ़ रही हैं कि वे विज्ञान और टॆक्नॉलजी की तरक्कियों को पछाड़ रही हैं। और हाँ, कीड़ों से लगनेवाली बीमारियों के अलावा हमारी सेहत को और भी खतरे हैं। मगर हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि हालात ज़रूर अच्छे होंगे। जीवित प्राणी किस तरह एक-दूसरे पर निर्भर हैं, उसके बारे में हालाँकि वैज्ञानिकों ने अब तक बहुत कम जानकारी हासिल की है, लेकिन वे एक बात अच्छी तरह जान गए हैं कि पृथ्वी में खुद को दुरुस्त करने की काबिलीयत है। हमारे ग्रह में ऐसी कई प्रक्रियाएँ मौजूद हैं कि अगर प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाए तो उन प्रक्रियाओं की मदद से उसे दोबारा दुरुस्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अकसर जंगलों की कटाई के कुछ समय बाद दोबारा जंगल उभर आते हैं और समय के चलते रोगाणुओं, कीड़ों और जानवरों के बीच का बिगड़ा संतुलन फिर से बहाल हो जाता है।

इससे बढ़कर गौर करनेवाली बात यह है कि कुदरत की रचना में पायी जानेवाली जटिलता से यही ज़ाहिर होता है कि एक सिरजनहार, परमेश्‍वर है जिसने शुरूआत में पृथ्वी की सारी प्रक्रियाओं को स्थापित किया था। कई वैज्ञानिक खुद यह कबूल करते हैं कि किसी बुद्धिमान हस्ती ने पृथ्वी को बनाया होगा। जी हाँ, जो लोग इन बातों पर गंभीरता से सोचते हैं वे इस बात से कतई इनकार नहीं कर सकते कि परमेश्‍वर अस्तित्त्व में है। बाइबल बताती है कि सिरजनहार, यहोवा सर्वशक्‍तिमान और प्यार करनेवाला परमेश्‍वर है। वह दिल से हमारी खुशी चाहता है।

बाइबल यह भी बताती है कि पहले इंसान ने जानबूझकर पाप किया था और इसी वजह से इंसान को असिद्धता, बीमारी और मौत विरासत में मिली। लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि हमें कभी-भी इन तकलीफों से राहत नहीं मिलेगी? ऐसा बिलकुल नहीं है! परमेश्‍वर का मकसद है कि यह धरती फिरदौस में बदल जाए और इंसान वहाँ छोटे-बड़े, सभी प्राणियों के साथ शांति से रहे। बाइबल एक ऐसी दुनिया की भविष्यवाणी करती है जहाँ पर कोई भी प्राणी, इंसान के लिए खतरा साबित नहीं होगा, फिर चाहे वह बड़ा जानवर हो या छोटा-सा कीड़ा।—यशायाह 11:6-9.

बेशक, ऐसे हालात को हमेशा बरकरार रखने में इंसान को भी मेहनत करनी पड़ेगी ताकि ना तो इंसानी समाज को और ना ही पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान हो। शुरू में परमेश्‍वर ने इंसान को पृथ्वी की ‘रक्षा करने’ की आज्ञा दी थी। (उत्पत्ति 2:15) आनेवाले फिरदौस में इंसान, सिरजनहार की हिदायतों के मुताबिक उस आज्ञा का पालन करेगा और तब वह सही मायनों में पृथ्वी की रक्षा कर पाएगा। इसलिए हम उस दिन की आस लगा सकते हैं जब “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।”—यशायाह 33:24. (g03 5/22)