इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

क्यों दोबारा उभर आयीं?

क्यों दोबारा उभर आयीं?

क्यों दोबारा उभर आयीं?

करीब 40 साल पहले दुनिया ने ऐसा सोचा कि पृथ्वी के बड़े-बड़े हिस्सों में कीड़ों से फैलनेवाली आम बीमारियाँ जैसे मलेरिया, पीत-ज्वर और डेंगू करीब-करीब जड़ से मिटा दी गयी हैं। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी—ये बीमारियाँ दोबारा उभरने लगीं।

ऐसा क्यों हुआ? एक कारण है कि कुछ कीड़ों और उनमें पल रहे रोगाणुओं में कीटनाशकों और दवाइयों को बेअसर करने की शक्‍ति पैदा हो गयी है। हालात के मुताबिक खुद को ढालने के उनके इस प्राकृतिक गुण को कीटनाशकों के हद-से-ज़्यादा इस्तेमाल और दवाइयों के दुरुपयोग से और भी बढ़ावा मिला है। किताब, मच्छर (अँग्रेज़ी) कहती है: “कई गरीब घरों में यह बहुत आम है कि लोग दवाई तो ले जाते हैं और खाना भी शुरू करते हैं मगर जैसे ही उन्हें थोड़ा आराम मिलता है, वे दवा बंद कर देते हैं और बची हुई दवा अगली बार के लिए रख देते हैं।” इस तरह बीमारी का पूरा-पूरा इलाज न होने की वजह से शरीर में ताकतवर रोगाणु रह जाते हैं और एक ऐसी पीढ़ी को जन्म देते हैं जिन पर दवाइयों का कोई ज़ोर नहीं चलता।

आबोहवा में बदलाव

कीड़ों से फैलनेवाली बीमारियों के दोबारा उभरने की एक और अहम वजह है, प्रकृति और समाज में होनेवाला बदलाव। पृथ्वी की आबोहवा का बदलना इसकी एक बढ़िया मिसाल है। आज पूरी पृथ्वी में गर्मी के बढ़ने की वजह से ठंडे प्रदेशों में भी तापमान बढ़ रहा है। इसलिए कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि बीमारी फैलानेवाले कीड़े इन ठंडे इलाकों में भी कहर ढाने लगेंगे। दरअसल, कुछ सबूतों से पता चलता है कि यह खतरा वहाँ नज़र आने लगा है। हार्वड मेडिकल स्कूल में स्वास्थ्य और विश्‍व पर्यावरण केंद्र के डॉ. पॉल आर. एपस्टाइन कहते हैं: “खबर मिली है कि आज अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमरीका के पहाड़ी इलाकों में कीड़े और उनसे फैलनेवाली बीमारियाँ (जिनमें मलेरिया और डेंगू बुखार भी शामिल है) पायी गयी हैं।” कुछ समय पहले, प्रशांत महासागर के कोस्टा रीका में डेंगू बुखार सिर्फ तटवर्ती इलाकों में था, लेकिन अब यह पहाड़ी इलाकों में भी फैल गया है और इस तरह पूरा देश इस बीमारी की चपेट में आ गया है।

लेकिन मौसम गरम होने की वजह से और भी दूसरे हालात पैदा होते हैं। कुछ इलाकों में गर्मी से नदियाँ सूखकर लगभग कीचड़ बन जाती हैं, जबकि दूसरे इलाकों में भारी वर्षा और बाढ़ आती है और जगह-जगह पर गड्ढों में पानी जमा हो जाता है। दोनों मामलों में पानी के जमा रहने से मच्छरों को प्रजनन के लिए एकदम सही माहौल मिलता है। इतना ही नहीं, गरमी के बढ़ने से मच्छरों के प्रजनन चक्र का समय कम हो जाता है जिसकी वजह से वे तेज़ी से पनपने लगते हैं। इससे उनकी गिनती बढ़ने लगती है और उनका प्रकोप लंबे समय तक बना रहता है। गर्मियों के मौसम में मच्छर ज़्यादा सक्रिय होते हैं। गर्मी से मच्छरों की आँत पर भी असर होता है और उनमें मौजूद रोगाणुओं के प्रजनन में तेज़ी आ जाती है। लिहाज़ा, मच्छर के बस एक बार काटने से संक्रमण होने की गुंजाइश बढ़ जाती है। लेकिन ऐसी और भी बातें हैं जो चिंता में डाल देनेवाली हैं।

बीमारी की शुरूआत और उनके फैलने पर एक गहरी जाँच

कीड़ों से फैलनेवाली बीमारियों के लिए इंसानी समाज में आनेवाले बदलाव भी ज़िम्मेदार होते हैं। यह कैसे हो सकता है, इसे समझने के लिए हमें करीब से मुआयना करना होगा कि कीड़े क्या भूमिका अदा करते हैं। रोग प्रसार की श्रृंखला में अकसर कीड़े सिर्फ एक कड़ी होते हैं। दरअसल ऐसा होता है कि जानवर या पक्षी अपने शरीर पर कीड़ों को लिए घूमते हैं या अपने खून में छोटे-छोटे जीवाणुओं को जगह देकर पोषक का काम करते हैं। अगर ये पोषक जानवर या पक्षी, जीवाणुओं को जगह देने के बाद भी जिंदा रहते हैं तो हालाँकि उन्हें खुद जीवाणुओं से कोई हानि नहीं पहुँचती मगर वे उनसे फैलनेवाली बीमारियों के संग्राहक बन जाते हैं।

मसलन, ज़रा लाइम रोग पर गौर कीजिए जिसका पता सन्‌ 1975 में लगाया गया था। यह रोग सबसे पहले अमरीका के कनॆटिकट राज्य में लाइम नाम की जगह में पाया गया था, इसी वजह से इसका नाम लाइम रोग पड़ा। सौ साल पहले, जहाज़ के ज़रिए यूरोप से उत्तर अमरीका आनेवाले चूहों और फार्म के जानवरों में लाइम रोग के जीवाणु मौजूद थे। इस जीवाणु से संक्रमित जानवरों का खून जब इकसोडीस नाम की एक छोटी किलनी चूसती है तो यह जीवाणु, ज़िंदगी-भर के लिए किलनी की आँत में रह जाता है। और जब किलनी किसी दूसरे जानवर या इंसान को काटती है तो जीवाणु उसके खून में चला जाता है।

अमरीका के उत्तर-पूर्वी इलाके में लाइम रोग का अस्तित्त्व बरसों से है। यहाँ पर इस जीवाणु के मुख्य संग्राहक, सफेद-पाँववाले चूहे हैं। ये चूहे, किलनी के लिए भी पोषक का काम करते हैं खासकर तब, जब किलनी का विकास हो रहा है। जब किलनी बड़ी हो जाती है तब वह हिरन में रहना पसंद करती है। वहीं पर उसे पोषण मिलता है और वह अपने साथी से सहवास करती है। खून चूसने के बाद जब मादा किलनी का शरीर फूल जाता है तो वह हिरन के शरीर से अलग होकर ज़मीन पर अंडे देती है। अंडों से निकलनेवाला लार्वा फौरन पनपकर दोबारा वही चक्र शुरू करता है।

हालात में तबदीली

रोगाणु, जानवरों और कीड़ों के शरीर में बरसों से रहते आए मगर इंसानों को उनसे कोई नुकसान नहीं हुआ था। लेकिन हालात में तबदीली आने पर एक आम बीमारी, महामारी का रूप ले लेती है। तो लाइम रोग के मामले में ऐसी क्या तबदीली आयी जिससे यह रोग इंसानों में फैलने लगा?

गुज़रे वक्‍त में शिकारी जानवर, हिरन का शिकार किया करते थे जिस वजह से हिरन की आबादी कम रहती थी। ऐसे में यह गुंजाइश कम थी कि हिरन पर डेरा जमानेवाली किलनी, इंसान को कोई नुकसान पहुँचाए। लेकिन जब यूरोप से पहली बार कुछ लोग अमरीका के पूर्वी इलाके में आकर बसे तो उन्होंने जंगलों को काटकर खेती-बाड़ी करनी शुरू कर दी। इस कारण हिरनों की आबादी पहले से और कम हो गयी और उनका शिकार करनेवाले जानवर भी दूसरी जगह चले गए। लेकिन सन्‌ 1850 के आस-पास किसान इन पूर्वी इलाकों के ज़्यादातर खेतों को छोड़कर पश्‍चिमी इलाकों में खेती-बाड़ी करने चले गए और यह इलाका फिर से जंगल बन गया। यह इलाका, हिरनों से दोबारा आबाद हो गया मगर उनका शिकार करनेवाले जानवर वापस नहीं आए। इसलिए हिरनों की आबादी तेज़ी से बढ़ती गयी और उनके साथ-साथ किलनी की आबादी भी बढ़ गयी।

कुछ समय बाद, लाइम रोग के जीवाणु यहाँ उभरने लगे और पोषक जानवरों में रहने लगे। मगर दशकों बाद जाकर ही ये जीवाणु इंसान के लिए खतरा बने। कैसे? जब जंगल के पास नए-नए उपनगर बनने लगे, तब बड़ी संख्या में बच्चे और बड़े लोग किलनी के इलाके में आ गए। फिर किलनी ने धीरे-धीरे इंसानों पर डेरा जमाया और इस तरह इंसान को लाइम रोग होना शुरू हुआ।

डगमगाती दुनिया में बीमारी

अभी-अभी हमने बीमारी शुरू होने और उसके फैलने के बस एक ही तरीके पर गौर किया है। और यह तो सिर्फ एक मिसाल है कि किसी बीमारी के उभरने के पीछे इंसान का कितना हाथ होता है। अपनी किताब, भविष्य बिलकुल साफ है (अँग्रेज़ी) में पर्यावरण-रक्षक, यूजीन लिन्डन लिखते हैं: “ज़्यादातर बीमारियों के दोबारा उभरने और भयानक रूप लेने के लिए इंसान की दखलअंदाज़ी ज़िम्मेदार है।” इंसान के दखल देने की कुछ और मिसालें हैं: आज दुनिया की किसी भी जगह में कम समय पर पहुँचने की सुविधाएँ इतनी आम हो गयी हैं कि इसके ज़रिए रोगाणु और उनके वाहक भी पूरी दुनिया में फैलते हैं। इंसान, छोटे-बड़े प्राणियों के रहने की कुदरती जगहों को नुकसान पहुँचा रहा है, जिस वजह से अलग-अलग जातियाँ लुप्त होती जा रही हैं। लिन्डन कहते हैं कि “प्रदूषण का हवा और पानी पर बुरा असर पड़ता है जिस वजह से इंसानों और जानवरों, दोनों में बीमारियों से लड़ने की शक्‍ति कमज़ोर हो रही है।” वे अपनी किताब में डॉ. एपस्टाइन की इस बात का हवाला देते हैं: “थोड़े शब्दों में कहें तो, इंसान ने पारितंत्र (इकॉलजी) के साथ छेड़छाड़ करके बीमारियों से लड़ने की पृथ्वी की शक्‍ति को कमज़ोर कर दिया है और जीवाणुओं के बढ़ने के लिए एक सही माहौल पैदा कर दिया है।”

राजनीति में उथल-पुथल होने से युद्ध छिड़ते हैं और इनकी वजह से पारितंत्र बिगड़ जाता है और स्वास्थ्य सेवा और खाद्य वितरण से संबंधित एक देश की व्यवस्था तहस-नहस हो जाती है। इसके अलावा, अमेरिकन म्यूज़ियम ऑफ नैचुरल हिस्ट्री के बायोबुलेटिन युद्ध का एक और अंजाम बताती है: “कुपोषण के शिकार और कमज़ोर शरणार्थियों को मजबूरन ऐसे शिविरों में रहना पड़ता है जो पहले से खचाखच भरे होते हैं और जहाँ चारों तरफ गंदगी होती है। ऐसे में लोगों को कई तरह के संक्रमण लगते हैं।”

देश की डगमगाती आर्थिक हालत से मजबूर होकर कई लोग या तो अपना देश छोड़कर दूसरे देश चले जाते हैं या वे उसी देश में दूसरी जगह जाकर बस जाते हैं, खासकर घनी आबादीवाले शहरों में। बायोबुलेटिन के मुताबिक “रोगाणु, भीड़-भाड़वाली जगहों में ही पनपते हैं।” शहरों में आबादी जिस रफ्तार से बढ़ती है, “उसी रफ्तार से बुनियादी शिक्षा, पोषण, टीका लगाने के कार्यक्रम वगैरह को बढ़ावा देना अकसर मुश्‍किल होता है, जो कि जनता के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी हैं।” और-तो-और भीड़-भाड़वाली जगहों में पानी कम पड़ जाता है, बड़ी-बड़ी नालियों और मल विसर्जन की व्यवस्था ठीक तरह से काम नहीं कर पाती है। ऐसे में एक साफ-सुथरा वातावरण बनाए रखना और लोगों के लिए अपनी स्वच्छता पर ध्यान देना मुश्‍किल हो जाता है, साथ ही गंदे माहौल में कीड़े और दूसरे रोगवाहक बढ़ने लगते हैं। लेकिन इन सारी बाधाओं के बावजूद हमारे पास उम्मीद की एक किरण है। इस बारे में अगला लेख हमें बताएगा। (g03 5/22)

[पेज 11 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“ज़्यादातर बीमारियों के दोबारा उभरने और भयानक रूप लेने के लिए इंसान की दखलअंदाज़ी ज़िम्मेदार है”

[पेज 7 पर बक्स/तसवीर]

वेस्ट नाइल वायरस, अमरीका पर धावा बोलता है

इंसानों में वेस्ट नाइल वायरस, खासकर मच्छरों से फैलता है। सन्‌ 1937 में पहली बार, युगाण्डा में इस वायरस का पता लगाया गया था। बाद में मध्य पूर्वी देशों, एशिया, प्रशांत महासागर के देशों और यूरोप में भी यह वायरस पाया गया। अमरीका जैसे पश्‍चिमी देशों में सन्‌ 1999 में जाकर इस वायरस का पता चला। तब से खबर मिली है कि अमरीका में 3,000 से भी ज़्यादा लोग इस वायरस से संक्रमित हैं और 200 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

ज़्यादातर लोगों को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि वे वेस्ट नाइल वायरस से संक्रमित हैं, हालाँकि कुछ लोगों में ऐसे लक्षण नज़र आते हैं जो फ्लू के लक्षणों से काफी मिलते-जुलते हैं। लेकिन इस वायरस से बहुत कम लोगों को भयानक बीमारियाँ लगती हैं, जैसे मस्तिष्क-ज्वर और स्पाइनल मेनिन्जाइटिस जिसमें रीढ़ की हड्डी के आस-पास की झिल्लियाँ सूज जाती हैं। वेस्ट नाइल वायरस से बचने के लिए अब तक किसी टीके की ईजाद नहीं हुई है, और ना ही कोई खास उपचार उपलब्ध है। अमरीका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र इस वायरस के फैलने के एक तरीके के बारे में आगाह करते हैं। वह यह है कि अगर इस वायरस से संक्रमित एक इंसान अपना कोई अंग या खून किसी दूसरे को दे तो उसे भी यह संक्रमण हो सकता है। सन्‌ 2002 में रॉयटर्स समाचार एजेन्सी ने यह रिपोर्ट दी कि “फिलहाल ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे हम खून में वेस्ट नाइल वायरस के मौजूद होने की जाँच कर सकें।”

[चित्र का श्रेय]

CDC/James D. Gathany

[पेज 8, 9 पर बक्स/तसवीर]

आप अपना बचाव कैसे कर सकते हैं? कुछ सुझाव

सजग होइए! ने उन प्रदेशों में रहनेवालों से बात की, जहाँ पर कीड़े और उनसे फैलनेवाली बीमारी एक समस्या है। उनसे पूछा गया कि इस समस्या से खुद को कैसे बचाया जा सकता है। शायद उनकी सलाह आपके भी काम आए।

स्वच्छता—बचाव का सबसे पहला उपाय

▪ अपना घर साफ-सुथरा रखिए

“भोजन सामग्रियों को डिब्बों में बंद रखें। खाना पकाने के बाद परोसने तक उसे ढककर रखिए। अगर भोजन पदार्थ यहाँ-वहाँ गिर जाते हैं, तो उन्हें तुरंत पोंछ दीजिए। बरतनों को रात भर के लिए जूठा न छोड़ें, ना ही बचे-खुचे खाने को यह सोचकर घर के बाहर डालें कि आप अगले दिन उसे कूड़ेदान में फेंक देंगे। इसके बजाय, कचरे को ढककर रखिए या गाड़ दीजिए क्योंकि रात में कीड़े और चूहे वगैरह खाने की तलाश में बाहर निकलते हैं। इसके अलावा, अगर घर का फर्श कच्ची मिट्टी का है, तो उस पर कंक्रीट की पतली-सी परत बनाना अच्छा होगा। इससे घर तो साफ-सुथरा रहेगा ही, ऊपर से कीड़े-मकोड़े भी नहीं आएँगे।”—अफ्रीका।

“फल या ऐसी कोई भी भोजन सामग्री, जिससे कीड़े आकर्षित होते हैं, घर से अलग किसी सुरक्षित जगह पर रखें। बकरी, सूअर और मुर्गी जैसे घरेलू पशु-पक्षियों को घर में न घुसने दें। अगर टॉयलॆट, घर के बाहर हो और खुला हो तो उसे ढककर रखिए। जानवरों के मल को तुरंत गाड़ दीजिए या उस पर चूना छिड़किए ताकि मक्खियाँ उस पर न बैठें। चाहे आपके पड़ोसी ये सारी एहतियात बरतें या नहीं मगर आप ऐसा ज़रूर कीजिए। इससे आप काफी हद तक अपने घर के अंदर और बाहर कीड़ों के आने पर रोक लगा सकते हैं। इतना ही नहीं, ऐसा करने से आप दूसरों के लिए भी एक अच्छी मिसाल साबित होंगे।”—दक्षिण अमरीका।

[तसवीर]

भोजन या कचरे को खुला छोड़ना, कीड़े-मकोड़ों को दावत देने जैसा है

अपनी स्वच्छता पर ध्यान दें

“साबुन महँगे नहीं होते, इसलिए नियमित तौर पर हाथों और कपड़ों को धोइए, खासकर तब, जब आप लोगों के संपर्क में आते हैं या जानवरों को छूते हैं। मरे हुए जानवरों को न छूएँ। हाथों से मुँह मत पोंछिए और नाक और आँखों को मत रगड़िए। नियमित तौर पर कपड़ों को धोइए, फिर चाहे वे साफ-सुथरे क्यों न दिखायी देते हों। मगर ध्यान रखिए कि कुछ खुशबुओं से कीड़े आकर्षित होते हैं, इसलिए ऐसे साबुन और साफ-सफाई की चीज़ों का इस्तेमाल ना करें जो खुशबूदार होती हैं।”—अफ्रीका।

एहतियात बरतने के कुछ तरीके

मच्छरों को पनपने की जगह न दें

पानी की टंकियों और कपड़े धोने के टबों को ढककर रखिए। बिना ढक्कनवाले ऐसे किसी भी बरतन को मत रखिए जिसमें पानी जमा हो सकता है। गमलों में पानी इकट्ठा होने मत दीजिए। किसी भी जगह पर अगर पानी जमा हुए चार दिन से ज़्यादा हो जाते हैं तो उसमें मच्छर पनपने लगते हैं।—दक्षिण-पूर्वी एशिया।

जहाँ तक मुमकिन हो, कीड़ों से दूर रहिए

कीड़ों के भोजन करने की मनपसंद जगहों और समय से दूर रहिए। गरम प्रदेशों में सूरज जल्दी ढलता है, इसलिए ज़्यादातर कीड़े रात के अँधेरे में ही हमला करते हैं। और खासकर जिन दिनों कीड़ों से बीमारी लगने की गुंजाइश ज़्यादा रहती है, तब बाहर बैठना या सोना खतरे से खाली नहीं है।—अफ्रीका।

[तसवीर]

मच्छर-ग्रस्त इलाके में बाहर सोना, मच्छरों के लिए दावत बनने के बराबर है

ऐसे कपड़े पहनिए जो आपके शरीर का ज़्यादातर हिस्सा ढक दें, खासकर जब आप किसी जंगल में होते हैं। अपने कपड़ों और अपनी त्वचा पर कीड़ों को भगानेवाली दवा या क्रीम (इंसेक्ट रिपेलैंट) लगाएँ, मगर हमेशा दवा के लेबल पर दिए गए निर्देशनों का पालन करें। बाहर से आने के बाद खुद की और अपने बच्चों की जाँच करें कि कहीं आप अपने साथ किलनी तो नहीं ले आए। अपने पालतू जानवरों को स्वस्थ और कीड़ों से मुक्‍त रखें।—उत्तर अमरीका।

जितना हो सके, फार्म के जानवरों को मत छूइए क्योंकि कीड़े उनसे चिपके रहते हैं और उन जानवरों के ज़रिए इंसानों में बीमारी फैला सकते हैं।—मध्य एशिया।

परिवार के सभी सदस्यों को मच्छरदानी इस्तेमाल करनी चाहिए। अच्छा होगा अगर ऐसी मच्छरदानी का इस्तेमाल किया जाए जिसे कीटनाशक घोल में डुबोया गया हो। खिड़कियों में जालियों का इस्तेमाल करें और फटी-पुरानी जालियों की मरम्मत करवाएँ। छप्पर और दीवारों के बीच की खाली जगहों से कीड़े घर में घुस सकते हैं इसलिए उन जगहों को बंद कर दीजिए। बेशक ऐसे कदम उठाने में थोड़ा-बहुत पैसा ज़रूर लगेगा मगर यह उस खर्च से बहुत कम होगा जो आपके बच्चे के बीमार पड़ने पर इलाज में होगा। या अगर घर का कमानेवाला बीमार पड़ जाए तो उससे होनेवाले नुकसान के मुकाबले बचाव के लिए किया जानेवाला खर्च कितना कम होगा।—अफ्रीका।

[तसवीर]

कीटनाशक घोल में सोखकर तैयार की गयी मच्छरदानियाँ, दवाओं और अस्पताल के बिल से कम महँगी होती हैं

अपने घरों में कीड़े-मकोड़ों को छिपने की जगह मत दीजिए। छत और दीवारों पर पलस्तर करवाइए, दरारों और छेदों को भर दीजिए। घर के अंदर की तरफ, छप्पर को ऐसे कपड़े से ढकिए जो घर को कीड़ों से सुरक्षित रखे। यहाँ-वहाँ चीज़ें मत पड़ी रहने दीजिए जैसे कागज़ों या कपड़ों का ढेर, और बहुत सारी तसवीरें दीवार पर मत लटकाइए क्योंकि इन सभी में कीड़े अपना अड्डा जमाए रहते हैं।—दक्षिण अमरीका।

कुछ लोग, कीड़ों और कुतरनेवाले जानवरों को अपने घर में यूँ ही रहने देते हैं मानो ये घर के मेहमान हों। यह एक बहुत बड़ी भूल है! उन्हें किसी भी हाल में अंदर मत घुसने दीजिए। कीड़े भगानेवाली दवाओं और कीटनाशकों का इस्तेमाल कीजिए, मगर ध्यान दें कि इनका इस्तेमाल दी गयी हिदायतों के मुताबिक ही किया जाना चाहिए। मक्खी पकड़नेवाले उपकरण और मक्खीमार का इस्तेमाल करें। कीड़ों को दूर भगाने के नए-नए तरीके ढूँढ़ें। जैसे एक औरत ने कपड़े की एक ट्यूब बनायी और उसमें रेत भरकर उसे दरवाज़े के नीचे की खाली जगह में अटका दिया ताकि कीड़े घर के अंदर न घुस सकें।—अफ्रीका।

[तसवीर]

कीड़े-मकोड़ों को घर आए मेहमान नहीं समझना चाहिए। उन्हें दूर भगाइए!

▪ बीमारी से बचने के उपाय

सही खान-पान, भरपूर आराम और अच्छी कसरत से बीमारियों से लड़ने की अपनी ताकत को बनाए रखें। तनाव कम करें।—अफ्रीका।

यात्रियों के लिए: सफर पर निकलने से पहले, कीड़ों से फैलनेवाली बीमारियों के खतरों की ताज़ा-तरीन जानकारी हासिल कीजिए। यह जानकारी, जन स्वास्थ्य विभागों और सरकारी इंटरनॆट साइट्‌स से पायी जा सकती है। आप जिस जगह जा रहे हैं, वहाँ के हालात के मुताबिक एहतियात के तौर पर ज़रूरी दवा लीजिए या टीका लगवाइए।

अगर तबीयत ठीक न लगे

फौरन डॉक्टरी इलाज करवाइए

रोग का पता जल्दी लगने से ज़्यादातर बीमारियों का इलाज करना आसान हो जाता है।

बीमारी के गलत निदान से खबरदार रहें

अगर आप गरम प्रदेशों की सैर करके आए हैं, तो अच्छा होगा अगर आप उन डॉक्टरों के पास जाएँ जो रोगवाहकों द्वारा फैलायी जानेवाली बीमारियों और गरम प्रदेशों में होनेवाली बीमारियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। अपने डॉक्टर को बीमारी के सारे लक्षण बताइए। साथ ही यह भी बताइए कि हाल ही में, और काफी समय पहले भी आपने किन-किन जगहों की यात्रा की थी। सख्त ज़रूरत पड़ने पर ही एंटीबायोटिक दवाइयाँ लें और उनका कोर्स पूरा करें।

[तसवीर]

कीड़ों से फैलनेवाली बीमारियाँ, दूसरी बीमारियों से काफी मिलती-जुलती हैं। इसलिए अपने डॉक्टर को सही-सही बताएँ कि आप यात्रा पर कहाँ-कहाँ गए थे

[चित्र का श्रेय]

पृथ्वी: Mountain High Maps® Copyright © 1997 Digital Wisdom, Inc.

[पेज 10 पर बक्स/तसवीर]

क्या कीड़े-मकोड़ों से एड्‌स का वायरस फैलता है?

कीड़े-मकोड़ों के विशेषज्ञों और चिकित्सा-क्षेत्र के विज्ञानियों ने 10 से भी ज़्यादा सालों तक खोजबीन और अध्ययन करने के बाद भी ऐसा कोई सबूत नहीं पाया, जिसकी बिनाह पर यह कहा जा सके कि मच्छर या कोई और कीड़ा, HIV यानी एड्‌स का वायरस फैलाता है।

मसलन, मच्छरों की बात लें तो उनके मुख-अंग, सिरिंज की तरह नहीं होते, जिसमें एक ही छेद हो और उसके ज़रिए मच्छर एक इंसान का खून दूसरे के शरीर में चढ़ा दें। दरअसल मच्छरों के मुँह में दो नलियाँ होती हैं, एक से वे खून चूसते हैं और दूसरे से लार शरीर में भेजते हैं। ज़ाम्बिया के मॉन्गू नगर के, डिस्ट्रिक्ट हॆल्थ मैनेजमेंट टीम के HIV विशेषज्ञ, थॉमस दामासो कहते हैं कि खून चूसने के बाद मच्छर का पाचन तंत्र, खून के अवयवों के टुकड़े-टुकड़े करके उसमें मौजूद HIV वायरस को नाश कर देता है। कीड़ों के मल-मूत्र में HIV वायरस नहीं पाया जाता। और जहाँ तक मच्छरों की लार ग्रंथियों का सवाल है, हालाँकि उनमें मलेरिया के परजीवी प्रवेश कर जाते हैं मगर HIV वायरस प्रवेश नहीं करते।

एक इंसान को एड्‌स तभी होता है जब वह इस वायरस के अनगिनत संक्रामक कणों के संपर्क में आता है। एक व्यक्‍ति का खून चूसते वक्‍त अगर मच्छर को मारने की कोशिश की जाती है और वह उड़कर दूसरे व्यक्‍ति का खून चूसने लगता है, तो उसके मुँह पर पहले व्यक्‍ति का जो खून रह जाता है उसकी मात्रा इतनी कम होती है कि इससे दूसरे व्यक्‍ति को कोई खतरा नहीं होता। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर एक मच्छर में HIV पॉज़िटिव खून भरा हो और उसे एक खुले घाव पर मारा जाए, तब भी HIV संक्रमण होने का कोई खतरा नहीं होता।

[चित्र का श्रेय]

CDC/James D. Gathany

[पेज 7 पर तसवीरें]

हिरन पर डेरा जमानेवाली किलनी (दाहिनी तरफ, बड़े आकार में दिखाया गया), इंसानों में लाइम रोग फैलाती है

बायीं से दायीं ओर: पूरी तरह से विकसित मादा, पूरी तरह से विकसित नर, और निम्फ, सभी का असली आकार दिखाया गया है

[चित्र का श्रेय]

सभी किलनियाँ: CDC

[पेज 10 पर तसवीरें]

बाढ़, गंदगी और इंसान का एक जगह से दूसरी जगह जाकर बसना, कीड़े-मकोड़ों से फैलनेवाली बीमारियों को बढ़ावा देता है

[चित्र का श्रेय]

FOTO UNACIONES (from U.S. Army)