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विश्‍व-दर्शन

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गमलोंवाले पौधों का महत्त्व

लंदन के अखबार, द टाइम्स के मुताबिक खोजकर्ता कहते हैं: “अगर स्कूल की सभी कक्षाओं में पौधे लगे गमले रखे जाएँ तो इससे हज़ारों बच्चों के अंकों में और बढ़ोतरी हो जाएगी।” रीडिंग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेरिक क्लेमॆन्स क्रूम ने पाया है कि जिन कक्षाओं में बहुत ज़्यादा बच्चे होते हैं और जो हवादार नहीं होतीं, वहाँ कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा, जितनी होनी चाहिए उससे 500 प्रतिशत ज़्यादा बढ़ जाती है। इससे बच्चों की एकाग्रता में कमी और उनकी प्रगति में बाधा आती है। वह ऐसी स्थिति को रोग कक्षा लक्षण कहता है। और समझाता है कि कक्षाओं में औसतन जितने बच्चे होते हैं, वे दफ्तरी इमारतों में काम करनेवालों से पाँच गुना अधिक होते हैं। जबकि ऐसी इमारतों को “रोग इमारत लक्षण” कहा जाता है और माना जाता है कि वहाँ काम करनेवालों और उनके काम पर इसका बुरा असर पड़ता है। मगर इसकी तुलना में स्कूल की कक्षाओं में, कामगारों की दफतरी इमारतों से पाँच गुना ज़्यादा भीड़ होती है। तो कमरे में वातावरण के स्तर को सुधारने के लिए किस तरह के पौधे इस्तेमाल करने चाहिए? अमरीका के एक अध्ययन में बताया गया कि मकड़ी पौधे सबसे ज़्यादा असरदार होते हैं। इसके अलावा, ड्रेगन पेड़, आइवी, रबर के पौधे, पीस लिलीज़ और यूक्कास भी हवा को प्रदूषण-मुक्‍त करने के लिए काफी अच्छे होते हैं। घर में लगाए पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलकर उसकी मात्रा कम कर देते हैं।(g03 6/08)

“बात करनेवाले” पौधे

जर्मनी में बोन यूनिवर्सिटी में इंस्टिट्यूट फॉर अप्लाइड फिज़िक्स के खोजकर्ताओं ने लेज़र से चलनेवाले ऐसे माइक्रोफोन बनाए हैं जो पौधों को “सुन” सकते हैं। जब पौधे तनाव में होते हैं तो वे इथिलिन गैस छोड़ते हैं और माइक्रोफोन इस गैस की ध्वनि तरंग को पकड़ लेते हैं। बोन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. फ्रॉन्क कूहनीमन कहते हैं: “पौधे जितना ज़्यादा तनाव में रहते हैं, हम अपने माइक्रोफोन पर उतनी ज़ोर से आवाज़ सुनते हैं।” एक बार मशीन पर देखा गया कि एक स्वस्थ खीरा “ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला” रहा है। “करीब से जाँच करने पर पता चला कि उस पर फफूँद लग गयी है, हालाँकि बाहर से उसके लक्षण दिखायी नहीं दे रहे थे।” दरअसल फफूँद के लक्षण आठ से नौ दिन के बाद ही बिन्दु के रूप में दिखायी देते हैं और तब जाकर किसान को समस्या का पता चलता है। लंदन का द टाइम्स अखबार कहता है “पौधों को सुनने से अब यह तरीका ईजाद किया जा सकता है जिससे कीट और दूसरी बीमारियों को पहले से जाना जा सके। फलों और सब्ज़ियों का तनाव जानने से, यह मदद मिलेगी कि इसे कितने समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है और कब इसे बेचने के लिए निकाला जा सकता है।”(g03 5/08)

पोप की याद में बनायी चीज़ों की बिक्री में गिरावट

न्यूज़वीक का पोलिश संस्करण रिपोर्ट करता है कि कई सालों से “[पोलैंड में] धार्मिक वस्तुएँ बेचकर अच्छा-खासा पैसा कमाया जाता था।” मगर हाल में पवित्र मूर्तियों की बिक्री में “चिंताजनक स्थिति” देखने को मिली है। सन्‌ 2002 में जब पोप, पोलैंड पधारनेवाले थे तो काफी प्रचार-प्रसार हुआ मगर पारंपरिक धार्मिक चीज़ें जैसे गले की चॆन और कलाकृतियों को कोई नहीं पूछ रहा था। पत्रिका कहती है कि “बाज़ार में पोप के लाखों, प्लास्टर ऑफ पैरिस और धातु की अर्ध-मूर्तियाँ, चटाइयाँ, चित्रकारियाँ और नक्काशियाँ थीं” मगर “अब ग्राहक खरीदने से पहले बहुत सोचते हैं।” मगर हाँ, एक डिज़ाइन काफी मशहूर हो गया है। वह है, प्लास्टिक का कार्ड, जिस पर एक तरफ “पवित्र छवियाँ” हैं और दूसरी तरफ “प्लास्टिक में सोने के मनके जड़े हैं।” पोलिश का दैनिकी वप्रॉस्ट कहता है कि “पोप [को याद करने के लिए] आजकल रोज़री कार्ड का फैशन ज़ोरों पर है।” (g03 5/22)

सुबह की बीमारी से राहत

आस्ट्रेलिया का अखबार सन-हेराल्ड कहता है: “माना जाता है कि करीब 70 से 80 प्रतिशत गर्भवती महिलाएँ अकसर सुबह के वक्‍त बीमार पड़ती हैं।” पहली बार गर्भवती होनेवाली ये महिलाएँ जब सुबह उठती हैं तो उन्हें जी मिचलाने की शिकायत के साथ-साथ अकसर उलटियाँ भी होती हैं। इसकी कई वजह हो सकती हैं, जिनमें से एक अनुमान यह है कि गर्भावस्था के दौरान हॉर्मोन प्रोजैस्टरॉन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे पेट में एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। इसके अलावा, “गंध का एहसास बढ़ जाने से गर्भवती महिलाओं को मितली के साथ-साथ तनाव और थकान भी बढ़ सकती है।” हालाँकि इस बीमारी का कोई पक्का इलाज नहीं है मगर अखबार कहता है कि गर्म जगहों से दूर रहना अच्छा है क्योंकि गर्मी से मितली की संभावना होती है इसके अलावा, बीच-बीच में थोड़ी झपकी लेना, रात को अच्छी नींद लेना, और कटे नींबू को सूँघना भी फायदेमंद होता है। अखबार आगे कहता है: “बिस्तर से उठने के पहले टोस्ट या अनाज के दाने बिना कुछ मिलाए खाने की कोशिश करें। बिस्तर से कभी जल्दबाज़ी में न उठें। समय-समय पर प्रोटीन युक्‍त नाश्‍ता करें।” अखबार यह भी कहता है कि “सुबह की बीमारी के कुछ फायदे भी हैं। हाल के अध्ययन दिखाते हैं कि जिन माँओं को यह परेशानी रही है, उनका गर्भपात कम हुआ है।” (g03 4/22)

भारत में मीडिया के प्रति बढ़ती दिलचस्पी

नैशनल रीडरशिप स्टडिज़ काउंसिल के किए गए एक सर्वे से पता चला कि सन्‌ 1999 से 2002 तक, इन तीन सालों में भारत में अखबार पढ़नेवालों की संख्या 13.1 करोड़ से बढ़कर 15.1 करोड़ हो गयी है। जब अखबार, पत्रिकाएँ और अन्य मासिकों के पाठकों की गिनती की जाती है तो कुल मिलाकर देश के पाठकों की गिनती 18 करोड़ होती है। लेकिन भारत की 1 अरब से भी ज़्यादा आबादी में से, 65 प्रतिशत से भी ज़्यादा लोग साक्षर हैं तो इससे पाठकों के बढ़ने की उम्मीद और भी नज़र आती है। टेलिविज़न देखनेवालों की गिनती 38.36 करोड़ है जबकि रेडियो सुननेवालों की गिनती 68.08 करोड़ है। सन्‌ 1999 में 14 लाख लोग इंटरनॆट का इस्तेमाल करते थे मगर अब उनकी गिनती बढ़कर 60 लाख से भी ज़्यादा हो गयी है। भारत में जितने घरों में टेलिविज़न है, उनमें से आधे घरों में अब केबल और सेटलाइट प्रसारित होता है यानी पिछले तीन सालों में इसमें 31 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। (g03 5/08)

रोज़री में नवीकरण

न्यूज़वीक पत्रिका रिपोर्ट करती है: “करीब 500 साल से रोमन कैथोलिक भक्‍त आवर फादर और हेल मेरी, जैसे मंत्र जाप को करने के लिए रोज़री का इस्तेमाल करते आए हैं जो यीशु और उसकी माँ के जीवन में हुए ‘रहस्यों’ या 15 मुख्य घटनाओं पर मनन करने के लिए तैयार की गयी है। . . . पिछले [अक्टूबर में] पोप जॉन पॉल II ने एक प्रेरितिक पत्र लिखा जिसमें उसने इस रोज़री में चौथा चरण जोड़ दिया” जो यीशु की सेवा पर आधारित था, यानी उसके बपतिस्मे से लेकर उसके आखिरी संध्या भोज तक। पत्रिका आगे कहती है: “पोप का मकसद है, प्रार्थना करने के उसके इस ‘पसंदीदा’ तरीके में फिर से दिलचस्पी बढ़ायी जाए जिसकी अहमियत वेटिकन काउंसिल II के समय से घट गयी थी। पोप ने ऐसा इसलिए किया ताकि कैथोलिकों की भक्‍ति दिखाने के इस अनोखे तरीके के ज़रिए मसीह के साथ मेरी के रिश्‍ते पर खास ज़ोर दिया जाए, खासकर जिसके नाम से रोज़री जपी जाती है।” पोप ने कहा कि इससे यह उम्मीद की जाती है कि “जब मसीहियत पर पूर्वी धर्मों के ध्यान-योग परंपराओं का असर पड़ेगा” तब कैथोलिकों में उनकी रोज़री की यह आदत उन्हें मनन करने का बढ़ावा देगी। (g03 6/08)

शादी तुड़वानेवालों का निगम

टोक्यो के IHT आसाही शीमबुन अखबार के मुताबिक, जापान में जो अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी से खुश नहीं हैं, वे एजेंसियों को पैसा देकर अपनी शादी तुड़वाते हैं। अगर पति अपनी पत्नी से पीछा छुड़ाना चाहता है, मगर तलाक का कोई आधार नहीं है तो वह ‘शादी-तुड़वानेवाले’ एजेंटों को पैसा देता है जो एक बहुत आकर्षक व्यक्‍तित्ववाले आदमी का इंतज़ाम करता है। यह आदमी ग्राहक की पत्नी से “अचानक” किसी दिन मुलाकात करके उसके साथ इश्‍क लड़ाना शुरू करता है। जल्द ही वह पत्नी तलाक के लिए राज़ी हो जाती है। इस तरह जब उस खरीदे हुए प्रेमी का काम खत्म होता है और वह नौ-दो-ग्यारह हो जाता है। ठीक वैसे ही जब पत्नी अपने पति से छुटकारा पाना चाहती है तो वह एजेंट के ज़रिए एक छैल-छबीली सुंदर स्त्री को अपने पति के पास भेजती है जो उसे बहला-फुसलाकर अपने साथ रात गुज़ारने के लिए राज़ी कर लेती है। एक 24 वर्षीय स्त्री कहती है कि वह जिस भी आदमी के पास जाती है, वह “लगभग, हाँ ही कहता है। मैं कह सकती हूँ कि मैं अपने काम में 85 से 90 प्रतिशत तक कामयाब रही हूँ।” अखबार के मुताबिक एक एजेंसी का अध्यक्ष अपने ऐसे कामगारों को नौकरी से निकाल देता है जो 5 में से 3 बार नाकाम हो जाते हैं। अध्यक्ष का कहना है: “उन्हें कामयाब तो होना ही पड़ेगा, आखिर, यह हमारा धंधा जो है।” (g03 6/22)

बच्चे सड़कों पर क्यों?

ब्राज़ील का अखबार ओ एस्टाडो डी साउं पाउलू कहता है: “बच्चों और किशोरों के घर से भागकर सड़कों पर रहने की खास वजह है, घर में होनेवाली हिंसा।” सड़क पर रहनेवाले 1,000 बच्चे, जिन्हें बच्चों और किशोरों के रियो दे जेनेरो फाऊँडेशन में पनाह दी गयी थी, हाल में उनके लिए एक सर्वे से पता चला कि 39 प्रतिशत बच्चों ने घर में या तो दुर्व्यवहार सहा था या लड़ाई-झगड़े देखे थे। समाजविज्ञानी लेनी श्‍मीट्‌स कहती है, “ये बच्चे अपने आत्म-सम्मान को तलाशते हैं और इन्हें यह भ्रम होता है कि सड़कों पर वे इसे पा लेंगे।” अध्ययन से यह ज़ाहिर हुआ कि 34 प्रतिशत बच्चे सड़कों पर कभी-कभार कोई छोटा-मोटा काम करते हैं या भीख माँगते हैं, इनमें से 10 प्रतिशत बच्चों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे ड्रग्स लेने लगे थे और 14 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि बस वे ऐसा ही करना चाहते थे। खोजकर्ताओं के मुताबिक आखिरी कारण अकसर दूसरे कारणों को छिपाने के लिए दिया जाता है, जैसे घर में हुए उनके साथ लैंगिक दुर्व्यवहार को छिपाने के लिए। लगभग 71 प्रतिशत बच्चे, सड़क पर रहनेवाले दूसरे बच्चों के साथ रहने लगते हैं और श्‍मीट्‌स कहती हैं कि वे “खुद ही अपने लिए परिवार बनाते हैं, दूसरे बच्चों को अपना भाई, चाचा-मामा या माँ-बाप” मानते हैं। (g03 6/22)