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इलाज की चुनौती

इलाज की चुनौती

इलाज की चुनौती

“डायबिटीज़ की ऐसी एक भी किस्म नहीं जो खतरनाक न हो। हर तरह की डायबिटीज़ खतरनाक है।”—ऐन डैली, अमेरिकन डायबिटीज़ एसोसिएशन।

“आपके खून की जाँच से पता चला है कि आपको एक गंभीर बीमारी है। आप फौरन अपना इलाज शुरू कीजिए।” डॉक्टर के ये शब्द सुनकर डेबरा ऐसी चकरायी मानो उस पर बिजली गिर पड़ी हो। वह कहती है: “सारी रात मैं बस यही सोचती रही कि हो-न-हो, लेबोरेटरी की जाँच में ज़रूर कोई गलती हुई होगी। मैं खुद को बार-बार यकीन दिलाती रही कि मैं बीमार नहीं हो सकती।”

बहुत-से लोगों की तरह डेबरा ने भी सोचा कि वह काफी सेहतमंद है, इसलिए बीमारी के लक्षण लगातार देखने पर भी वह उन्हें नज़रअंदाज़ करती रही। उदाहरण के लिए, जब उसे हरदम प्यास लगती, तो वह सोचती थी कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वह एलर्जी के लिए ऐंटीहिस्टामीन दवा ले रही है। और जब बार-बार उसे पेशाब आता, तो वह सोचती कि यह ज़्यादा पानी पीने की वजह से है। और थकान के बारे में क्या? वह सोचती, भला ऐसी कौन-सी कामकाजी माँ होगी जिसे थकान महसूस न होती हो?

लेकिन जब उसके खून की जाँच की गयी, तो यह साफ हो गया कि ये सारे लक्षण डायबिटीज़ के हैं। डेबरा को विश्‍वास ही नहीं हुआ कि उसे डायबिटीज़ है। वह कहती है: “मैंने अपनी बीमारी के बारे में किसी को नहीं बताया। रात को जब पूरा परिवार सो जाता, तो मैं जागती रहती और आँसू बहाती रहती।” डेबरा की तरह कुछ लोगों को जब पता चलता है कि उन्हें डायबिटीज़ है, तो वे भावनाओं के सैलाब में डूबने लगते हैं, साथ ही वे मायूस हो जाते हैं और उन्हें गुस्सा भी आता है। कैरन कहती है: “कुछ समय तक तो मैं बस रोती रही, और खुद से कहती रही कि नहीं, ऐसा मेरे साथ नहीं हो सकता।”

डायबिटीज़ के शिकार लोगों का ऐसी भावनाओं से जूझना स्वाभाविक है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है। लेकिन अगर उनकी मदद की जाए और उनका हौसला बढ़ाया जाए, तो वे अपने हालात के मुताबिक खुद को ढाल सकते हैं। कैरन कहती है: “मेरी नर्स ने मुझे अपने हालात को कबूल करने में मदद की। उसने मुझसे कहा कि अगर आप रोकर अपना जी हलका करना चाहती हैं, तो जी भर कर रो लीजिए। इस तरह रो-रोकर अपने मन का गुबार निकालने से, मुझे बदले हुए हालात के मुताबिक खुद को ढालने में मदद मिली।”

यह बीमारी इतनी गंभीर क्यों है

कहा जाता है कि डायबिटीज़, “ज़िंदगी की गाड़ी के इंजन में हुई गड़बड़ी” है। और ऐसा कहने की एक ठोस वजह है। जब शरीर ग्लूकोज़ का इस्तेमाल नहीं कर पाता, तो इसकी वजह से कई ज़रूरी काम ठप्प पड़ जाते हैं, जो कभी-कभी जानलेवा साबित हो सकता है। डॉ. हार्वी कैट्‌सेफ कहते हैं: “लोगों की मौत सीधे डायबिटीज़ से नहीं होती, बल्कि उससे पैदा होनेवाली गंभीर समस्याओं से होती है। हालाँकि इन समस्याओं से खुद को दूर रखने में हम सब माहिर हैं, लेकिन एक बार जब हम इन समस्याओं में पड़ जाते हैं, तो उनका हल करना हमारे बस की बात नहीं।” *

क्या डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों के लिए उम्मीद की कोई किरण है? ज़रूर है, मगर इसके लिए उन्हें पहचानना होगा कि यह गड़बड़ी कितनी गंभीर है, और इलाज के लिए जो-जो कदम उठाने की ज़रूरत है, उनका सख्ती से पालन करना होगा। *

खान-पान और कसरत

जिन परिवारों में डायबिटीज़ पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है, उनके लिए टाइप 1 डायबिटीज़ से बचना नामुमकिन है। फिर भी, वैज्ञानिक इस बारे में अध्ययन कर रहे हैं कि जीन्स की रचना में ऐसी कौन-सी बात है जिससे इस बीमारी के होने का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही, वे रोग-प्रतिरक्षा तंत्र पर होनेवाले हमले को रोकने की तरकीबें ढूँढ़ रहे हैं। (पेज 8 पर दिए बक्स, “ग्लूकोज़ का काम” देखिए।) डायबिटीज़—अपनी भावनाओं के साथ अपनी सेहत की देखभाल करना (अँग्रेज़ी) किताब कहती है: “टाइप 2 डायबिटीज़ से बचाव की उम्मीद ज़्यादा है। जिन लोगों को अपने जीन्स की वजह से डायबिटीज़ होने का खतरा रहता है, उन्हें अगर इस बीमारी से बचना है तो उन्हें सिर्फ संतुलित खान-पान और नियमित कसरत के ज़रिए अपनी सेहत दुरुस्त रखने और अपना वज़न काबू में रखने की ज़रूरत है।” *

कसरत के फायदों पर ज़ोर देते हुए जर्नल ऑफ दी अमेरिकन मॆडिकल एसोसिएशन ने औरतों पर बड़े पैमाने पर किए गए एक अध्ययन पर रिपोर्ट पेश की। अध्ययन से पता चला है कि “अगर थोड़े समय के लिए भी अच्छी तरह शारीरिक काम किया जाए, तो [शरीर की कोशिकाएँ] 24 घंटे से ज़्यादा समय तक उस ग्लूकोज़ को सोखने का काम करती हैं जिसे इन्सुलिन, शरीर की एक जगह से दूसरी जगह तक पहुँचाता है।” इसलिए रिपोर्ट आखिर में कहती है कि “पैदल चलने और कड़ी मेहनत करने से औरतों में टाइप 2 डायबिटीज़ का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।” खोजकर्ता यह सलाह देते हैं कि पूरे हफ्ते न सही, मगर हफ्ते के ज़्यादातर दिनों में कम-से-कम 30 मिनट के लिए सीमित मात्रा में अच्छी कसरत करनी चाहिए। एक आसान-सी कसरत है, पैदल चलना। अमेरिकन डायबिटीज़ एसोसिएशन कम्प्लीट गाइड टू डायबिटीज़ कहती है कि चलना “शायद सबसे बढ़िया और सबसे सुरक्षित कसरत है, जिसमें कुछ खर्चा भी नहीं होता।”

लेकिन, डायबिटीज़ के शिकार लोग जो भी कसरत करते हैं, उसके लिए उन्हें लगातार अपने डॉक्टर से सलाह-मशविरा करने की ज़रूरत है। इसकी एक वजह यह है कि डायबिटीज़ से वाहिका तंत्र (vascular system) और नसों को नुकसान पहुँच सकता है, जिससे नसों में खून ठीक से नहीं बह पाता है, साथ ही महसूस करने की इंद्रियों पर भी बुरा असर होता है। इसलिए पैरों में लगी एक मामूली-सी खरोंच को भी नज़रअंदाज़ करने पर वह नासूर बन सकती है और ऐसे में अगर फौरन इलाज न करवाया जाए, तो पैरों को कटवाना भी पड़ सकता है। *

बिना नागा कसरत करने की आदत बनाने से डायबिटीज़ को काबू में रखा जा सकता है। ए.डी.ए. कम्प्लीट गाइड कहती है कि “नियमित कसरत के फायदों पर खोजकर्ता जितना अध्ययन कर रहे हैं, उन्हें उतने ही ज़्यादा फायदे नज़र आ रहे हैं।”

इन्सुलिन थेरेपी

डायबिटीज़ के शिकार बहुत-से लोगों को अपने खान-पान पर ध्यान देने और नियमित रूप से कसरत करने के साथ-साथ, हर दिन अपने ग्लूकोज़ के स्तर की जाँच करनी और दिन में कई बार इन्सुलिन के इंजेक्शन लेने चाहिए। टाइप 2 के शिकार कुछ लोग, खान-पान में परहेज़ करने और कसरत करने की अच्छी आदत डालने की वजह से कम-से-कम कुछ वक्‍त के लिए इन्सुलिन थेरेपी को बंद कर पाए हैं। * कैरन, जिसे टाइप 1 डायबिटीज़ है, उसने पाया है कि कसरत करने से इन्सुलिन का इंजेक्शन और भी असरदार तरीके से काम करता है। इसका नतीजा यह हुआ है कि अब उसे रोज़ाना 20 प्रतिशत कम इन्सुलिन लेना पड़ता है।

अगर डायबिटीज़ से जूझनेवाले को इन्सुलिन लेने की ज़रूरत पड़े, तो उसे निराश नहीं होना चाहिए। डायबिटीज़ के बहुत-से मरीज़ों की देखभाल करनेवाली एक रेजिस्टर्ड नर्स, मॆरी ऐन कहती है: “अगर आपके लिए इन्सुलिन लेना ज़रूरी हो जाता है तो इसका यह मतलब नहीं कि आप में कोई खोट है। आपको चाहे किसी भी तरह की डायबिटीज़ हो, अगर आप अपने खून में पायी जानेवाली शक्कर की मात्रा को काबू में रखें, तो बाद में सेहत से जुड़ी कई समस्याओं से बचेंगे।” दरअसल, हाल में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि टाइप 1 के शिकार जिन लोगों ने अपने खून की शक्कर की मात्रा को पूरी सख्ती के साथ काबू में रखा है, उनमें “डायबिटीज़ से होनेवाली आँखों और गुर्दे की समस्या और नस की बीमारी काफी हद तक कम हुई है।” मसलन, आँखों की बीमारी (रेटिनोपेथी) होने का खतरा 76 प्रतिशत कम हो गया है! और जिन लोगों को टाइप 2 है, उन्हें भी अपने खून में शक्कर की मात्रा को सख्ती के साथ काबू में रखने से इसी तरह के फायदे हो रहे हैं।

इन्सुलिन थेरेपी में सिरिंजों और इन्सुलिन पैनों का ज़्यादा-से-ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है। अब तो ऐसी सिरिंजें और ऐसे इन्सुलिन पैन बनाए गए हैं जिनकी सुई बहुत ही पतली होती है और उनसे ज़्यादा दर्द नहीं होता। मॆरी ऐन कहती है: “आम तौर पर पहले इंजेक्शन के वक्‍त मरीज़ों का दर्द से बुरा हाल हो जाता है। मगर बाद में बहुत-से मरीज़ कहते हैं कि उन्हें सुई के चुभने का एहसास तक नहीं होता।” इन्सुलिन लेने के दूसरे उपकरण हैं, ऑटोमैटिक इंजेक्टर्स जिनकी सुई से ज़रा भी दर्द नहीं होता, जेट इंजेक्टर्स से इन्सुलिन को सीधे, इतनी तेज़ी से त्वचा के अंदर भेजा जाता है कि यह एक द्रव्यवाली सुई का काम करता है, और इंफ्यूसर्स जिनमें एक कैथिटर (catheter) का इस्तेमाल किया जाता है और उसे शरीर की किसी एक जगह पर दो-तीन दिन तक रखा जाता है। हाल के सालों में इन्सुलिन पंप काफी मशहूर हो गया है। इसका आकार एक छोटे पेजर के जितना होता है। यह पंप प्रोग्राम किया होता है और शरीर की हर दिन की ज़रूरत के मुताबिक एक तय की गयी रफ्तार पर, कैथिटर के ज़रिए इन्सुलिन पहुँचाता है। इससे शरीर को इन्सुलिन की एकदम सही खुराक देना और भी आसान हो जाता है।

सीखते रहिए

सबकुछ जाँच करने के बाद भी यह ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता कि डायबिटीज़ के इलाज के लिए कौन-सा तरीका सबसे असरदार है। हर इंसान को अपने इलाज का फैसला करते वक्‍त बहुत-सी बातों को ध्यान में रखने की ज़रूरत है। मॆरी ऐन कहती है: “हालाँकि चिकित्सक दल आपका इलाज कर रहा हो, मगर यह किस हद तक कामयाब होगा, यह आपके हाथ में है।” दरअसल, डायबिटीज़ केयर पत्रिका कहती है: “डायबिटीज़ का इलाज करवाने के साथ-साथ, अगर एक इंसान इसके बारे में लगातार, सही-सही जानकारी हासिल न करे, तो उसका इलाज अधूरा रह जाएगा और वह ठीक से अपनी देखभाल नहीं कर पाएगा।”

जिन्हें डायबिटीज़ है, वे अपनी बीमारी के बारे में जितनी ज़्यादा जानकारी लेंगे वे उतनी अच्छी तरह अपनी सेहत की देखभाल कर सकेंगे और लंबे समय तक बढ़िया सेहत का मज़ा ले पाएँगे। लेकिन अच्छी तरह सीखने के लिए सब्र से काम लेना ज़रूरी है। डायबिटीज़—अपनी भावनाओं के साथ अपनी सेहत की देखभाल करना किताब कहती है: “अगर आप एक ही दफे में सबकुछ सीखने की कोशिश करेंगे, तो आप ज़रूर चकरा जाएँगे और जानकारी का सही इस्तेमाल नहीं कर पाएँगे। एक और बात यह है कि ज़्यादातर फायदेमंद जानकारी आपको किसी किताब या पैमफ्लेट में नहीं मिलेगी। आपको ऐसी जानकारी, . . . यह गौर करने से मिलेगी कि आपके रोज़मर्रा के कामों या हालात में होनेवाले फेरबदल से खून में शक्कर की मात्रा कैसे बदलती है। यह सब सीखने में वक्‍त लगता है, और अलग-अलग तरीके आज़माकर और गलतियाँ कर-करके ही एक इंसान सीखता है।”

मिसाल के लिए, खुद पर अच्छी निगरानी रखने से आप पता लगा सकते हैं कि तनाव आपके शरीर पर कैसे असर करता है, क्योंकि तनाव से आपके खून में शक्कर की मात्रा अचानक बढ़ सकती है। कैन कहता है: “मुझे 50 साल से डायबिटीज़ है और मुझे पता है कि मेरा शरीर मुझसे क्या माँग करता है!” अपने शरीर का “कहना मानने” से कैन को वाकई फायदा हुआ है, क्योंकि आज उसकी उम्र 70 से भी ज़्यादा होने पर भी वह पूरे समय की नौकरी कर रहा है!

परिवार का साथ कितना ज़रूरी

डायबिटीज़ के इलाज में परिवार का साथ कितना ज़रूरी है, इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। दरअसल, एक किताब कहती है कि “बच्चे और जवान, डायबिटीज़ को काबू में रख पाएँगे या नहीं, यह सबसे ज़्यादा शायद इस बात पर निर्भर करता है कि परिवार के लोग एक-दूसरे के साथ कैसे पेश आते हैं।”

अगर परिवार के लोग भी डायबिटीज़ के बारे में सीखते हैं, यहाँ तक कि बारी-बारी से मरीज़ के साथ डॉक्टर के पास जाते हैं, तो इसके कई फायदे होते हैं। अगर उन्हें बीमारी के बारे में अच्छा ज्ञान होगा, तो वे बड़े मददगार साबित होंगे। वे ज़रूरी लक्षण पहचान पाएँगे और यह भी जान सकेंगे कि ऐसे लक्षण देखने पर उन्हें क्या कदम उठाने की ज़रूरत है। टेड, जिसकी पत्नी को चार साल की उम्र से टाइप 1 डायबिटीज़ है, कहता है: “मैं अपनी पत्नी बार्बरा को देखकर ही बता सकता हूँ कि उसके शरीर में शक्कर की मात्रा गिर गयी है। बात करते-करते वह अचानक चुप्पी साध लेती है। उसका पसीना पानी की तरह बहने लगता है और बिना कारण उसका पारा चढ़ जाता है। और वह न तो फौरन कोई जवाब दे पाती है, न ही कोई काम कर पाती है।”

उसी तरह कैन की पत्नी कैथरन जब देखती है कि कैन का शरीर पीला पड़ गया है, उसकी त्वचा चिपचिपी हो गयी है और उसका मिज़ाज़ बदला हुआ है, तो वह उसे गणित का एक आसान-सा प्रश्‍न हल करने को कहती है। जब वह गलत जवाब देता है, तो वह समझ जाती है कि कैन उलझन में है और इस वक्‍त जो भी फैसला करना है उसे खुद करना है। साथ में, उसे समस्या का हल करने के लिए जल्द-से-जल्द कदम उठाना है। कैन अपनी पत्नी के लिए और बार्बरा अपने पति के लिए दिल से एहसानमंद हैं जो उनकी बीमारी को अच्छी तरह समझते हैं और जिनसे वे बेहद प्यार करते हैं और पूरा भरोसा करते हैं। *

परिवार के अज़ीज़ों को हमेशा मरीज़ की मदद करने, उसके साथ प्यार से पेश आने और धीरज से काम लेने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसे गुण दिखाने से एक बीमार इंसान को ज़िंदगी की मुश्‍किलें झेलने की हिम्मत मिलेगी और इससे उसकी तबियत भी सुधर सकती है। कैरन के पति, नाइजल ने बार-बार उसे अपने प्यार का यकीन दिलाया, और इसका ज़बरदस्त असर हुआ। कैरन कहती है: “नाइजल ने मुझसे कहा, ‘जिस तरह लोगों को ज़िंदा रहने के लिए खाने और पीने की ज़रूरत है, उसी तरह तुम्हें भी खाने, पीने—और इन्सुलिन की थोड़ी खुराक लेने की ज़रूरत है।’ मुझे इन्हीं प्यार भरे लफ्ज़ों की ज़रूरत थी जिनसे मुझे सही काम करने का हौसला भी मिलता।”

परिवार के लोगों और दोस्तों को यह भी समझने की ज़रूरत है कि डायबिटीज़ के मरीज़ के खून में शक्कर की मात्रा जैसे-जैसे घटती-बढ़ती रहती है, वैसे-वैसे उसका मिज़ाज़ भी बदल सकता है। एक स्त्री कहती है: “डायबिटीज़ की वजह से जब मैं मायूस हो जाती हूँ, तो मैं एकदम गुमसुम और चिड़चिड़ी हो जाती हूँ, छोटी-छोटी बातों पर मुँह फुला लेती हूँ और बड़ी जल्दी खीज जाती हूँ। लेकिन बाद में अपनी इन्हीं बचकानी हरकतों के बारे में सोचकर मुझे बहुत बुरा लगता है। लेकिन फिर मुझे इस बात से तसल्ली मिलती है कि दूसरे मेरी इन भावनाओं की वजह जानते हैं और यह भी कि मैं इन्हें काबू करने की कोशिश करती हूँ।”

जी हाँ, डायबिटीज़ का सामना करते हुए जीना ज़रूर मुमकिन है, खासकर अगर इसके शिकार लोगों को अपने दोस्तों और परिवार का साथ मिल जाए। बाइबल के सिद्धांत भी ऐसे लोगों की मदद कर सकते हैं। वह कैसे? (g03 5/08)

[फुटनोट]

^ डायबिटीज़ से पैदा होनेवाली समस्याओं में दिल की बीमारी, मस्तिष्क आघात (स्ट्रोक), गुर्दे की खराबी, हाथ-पैर की धमनियों और शिराओं की बीमारी (पेरीफेरल आर्टीरियल डीज़ीज़) और नसों में खराबी शामिल है। पैरों तक खून ठीक से न पहुँचने की वजह से वहाँ फोड़े (अल्सर) हो सकते हैं और ये अगर नासूर हो जाएँ तो पैरों को कटवाना पड़ सकता है। इसके अलावा, बड़ों में अंधेपन की सबसे बड़ी वजह भी डायबिटीज़ है।

^ सजग होइए! पत्रिका किसी भी किस्म के इलाज को बढ़ावा नहीं देती है। अगर किसी को डायबिटीज़ होने का शक है, तो उसे ऐसे डॉक्टर के पास जाना चाहिए जिसे इस बीमारी से बचाव और इसके इलाज के बारे में तजुर्बा हो।

^ देखने में आया है कि जिन लोगों के कूल्हों पर चर्बी जमा हो जाती है, उनके मुकाबले उन लोगों को डायबिटीज़ होने का खतरा ज़्यादा रहता है जिनके पेट के ऊपरी हिस्से में ज़्यादा चर्बी होती है।

^ डायबिटीज़ की जकड़ में पड़े जो लोग धूम्रपान करते हैं, वे खुद को और भी बड़े खतरे डाल लेते हैं क्योंकि उनकी यह बुरी आदत उनके दिल और रक्‍त-संचार की व्यवस्था को नुकसान पहुँचाती है और खून की नलियों को तंग कर देती है। एक किताब कहती है कि जिन डायबिटीज़ के मरीज़ों को अपना कोई अंग कटवाना पड़ा है, उनमें से 95 प्रतिशत लोग धूम्रपान करनेवाले थे।

^ इनमें से कुछ लोगों को दवाइयों से भी मदद मिली है। कुछ दवाइयाँ, पैंक्रियाज़ (अग्न्याशाय) को और भी ज़्यादा इन्सुलिन छोड़ने के लिए उभारती हैं; दूसरी दवाइयाँ, खून में शक्कर की मात्रा बढ़ने की रफ्तार घटा देती हैं; साथ ही कुछ ऐसी दवाइयाँ हैं, जो इन्सुलिन प्रतिरोध को कम करती हैं। (आम तौर पर टाइप 1 डायबिटीज़ के लिए दवाइयाँ नहीं दी जातीं।) फिलहाल, इन्सुलिन को गोलियों के रूप में नहीं लिया जा सकता है क्योंकि प्रोटीन की ये गोलियाँ खून की नली में पहुँचने से पहले ही हज़म हो जाती हैं। लेकिन हाँ, चाहे एक इंसान इन्सुलिन थेरेपी अपनाए या फिर गोलियाँ ले, मगर इससे कसरत और सही खान-पान की अहमियत नहीं घटती।

^ चिकित्सा क्षेत्र के अधिकारी, डायबिटीज़ के शिकार लोगों को यह सलाह देते हैं कि उन्हें हमेशा अपने साथ ऐसा कार्ड रखना या टैगवाली चेन या ब्रेसलेट पहनना चाहिए जिसमें यह लिखा हो कि उन्हें डायबिटीज़ है। नाज़ुक घड़ी में ऐसी चीज़ें उनकी जान बचा सकती हैं। मिसाल के लिए, अगर शक्कर की कमी की वजह से उनमें कुछ लक्षण नज़र आते हैं, तो लोग यह गलत सोच सकते हैं कि उन्हें कोई दूसरी बीमारी है या फिर उन्हें यह भी गलतफहमी हो सकती है कि वे शराब के नशे में धुत्त हैं।

[पेज 6 पर बक्स/तसवीर]

बच्चे और जवान भी डायबिटीज़ के शिकार?

न्यू यॉर्क के माउंट सायनाय स्कूल ऑफ मॆडिसिन के एक बड़े अंतःस्राव वैज्ञानिक (endocrinologist) और अध्यक्ष, डॉ. आर्थर रूबनस्टाइन का कहना है कि “आजकल बच्चे और जवान भी डायबिटीज़ के शिकार हो रहे हैं।” पहले आम तौर पर जिस उम्र में लोगों को डायबिटीज़ होती थी, अब उससे कम उम्र में लोगों को यह बीमारी होने लगी है। डायबिटीज़ के विशेषज्ञ डॉ. रॉबन एस. गोलन्ड ने टाइप 2 डायबिटीज़ के बारे में कहा: “दस साल पहले हम मॆडिकल स्टूडैंट्‌स को सिखाते थे कि आपको यह बीमारी 40 साल से कम उम्र के लोगों में नहीं मिलेगी। लेकिन आज 10 से भी कम उम्र के बच्चे इसकी जकड़ में आ रहे हैं।”

आखिर, बच्चों और जवानों में यह बीमारी क्यों बढ़ रही है? कुछ लोगों में यह बीमारी खानदानी होती है। इसके अलावा, मोटापे और माहौल की वजह से भी यह बीमारी हो सकती है। पिछले बीस सालों में मोटे बच्चों की गिनती दुगुनी हो गयी है। इसका क्या कारण है? अमरीका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के डॉ. विल्लियम डीट्‌स कहते हैं: “पिछले बीस सालों में, खान-पान की आदतों और काम-काज करने के तरीकों में काफी बदलाव आया है। जैसे लोग घर के बजाय, बाहर ज़्यादा खाने लगे हैं; सुबह का नाश्‍ता नहीं कर रहे हैं; ज़्यादा-से-ज़्यादा सॉफ्ट ड्रिंक पीने और फास्ट फूड खाने लगे हैं; स्कूल में [खेल-कूद और दूसरे किस्म की कसरत] का वक्‍त कम कर दिया गया है; और क्लासों के बीच ब्रेक देना बंद कर दिया गया है।”

एक बार अगर डायबिटीज़ हो जाए, तो उससे निजात पाना नामुमकिन है। इसलिए डायबिटीज़ के शिकार एक किशोर की यह आसान-सी सलाह मानना बुद्धिमानी है: “तली-बघारी चीज़ों से दूर रहो और फिट-फाट रहो।”

[पेज 8, 9 पर बक्स/तसवीर]

ग्लूकोज़ का काम

ग्लूकोज़ (शक्कर), शरीर की खरबों कोशिकाओं को ऊर्जा देता है। लेकिन कोशिकाओं के अंदर जाने के लिए ग्लूकोज़ को एक “चाबी” की ज़रूरत पड़ती है और वह है, इन्सुलिन। इन्सुलिन एक ऐसा रसायन है जो पैंक्रियाज़ (अग्न्याशय) में तैयार होता है। टाइप 1 डायबिटीज़ के मरीज़ का शरीर, इन्सुलिन पैदा नहीं कर पाता। टाइप 2 में शरीर, इन्सुलिन पैदा तो करता है मगर वह काफी नहीं होता। * एक और मुश्‍किल यह है कि कोशिकाएँ, इन्सुलिन की चाबी को लगने नहीं देतीं। इस हालत को इन्सुलिन प्रतिरोध (insulin resistance) कहा जाता है। दोनों तरह की डायबिटीज़ का नतीजा एक-सा है: कोशिकाएँ भूखी रह जाती हैं यानी उन्हें ज़रूरी ग्लूकोज़ नहीं मिलता और खून में ग्लूकोज़ की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि यह खतरनाक साबित हो सकता है।

टाइप 1 डायबिटीज़ में रोग-प्रतिरक्षा तंत्र (बीमारियों से लड़ने की शरीर की ताकत), पैंक्रियाज़ की बीटा कोशिकाओं पर हमला करता है, जो इन्सुलिन पैदा करती हैं। वाइरस, ज़हरीले रसायन और कुछ दवाओं की वजह से भी रोग-प्रतिरक्षा तंत्र, कोशिकाओं पर हमला बोल देता है। इसके अलावा, इसमें जीन्स की रचना का भी हाथ हो सकता है क्योंकि अकसर देखा गया है कि टाइप 1 डायबिटीज़ खानदानी होती है, और यह कॉकेसस पर्वत-माला के आस-पास रहनेवालों में बहुत आम है।

टाइप 2 डायबिटीज़ के खानदानी होने की गुंजाइश और भी ज़्यादा है, मगर यह उन लोगों में ज़्यादा पायी जाती है जो कॉकेसस पर्वत-माला के आस-पास नहीं रहते। इस बीमारी की चपेट में आए सबसे ज़्यादा लोग ऑस्ट्रेलिया के एबॉरिजनी आदिवासी और अमरीकी आदिवासी हैं। और दुनिया में टाइप 2 डायबिटीज़ के शिकार सबसे ज़्यादा लोग अमरीकी आदिवासियों में पाए जाते हैं। खोजकर्ता इस बारे में अध्ययन कर रहे हैं कि जीन्स की रचना और मोटापे के बीच क्या ताल्लुक है, साथ ही कि मोटापा किस तरह एक ऐसे इंसान में इन्सुलिन प्रतिरोध की हालत को बढ़ावा देता है जिसके परिवार में यह बीमारी खानदानी होती है। * टाइप 2, टाइप 1 से अलग है, क्योंकि यह ज़्यादातर 40 साल से ज़्यादा उम्रवालों में पायी जाती है।

[फुटनोट]

^ डायबिटीज़ के मरीज़ों में से करीब 90 प्रतिशत लोगों को टाइप 2 डायबिटीज़ है। पहले इसे इन्सुलिन पर निर्भर न रहनेवाली या बड़ों में होनेवाली डायबिटीज़ कहा जाता था। लेकिन अब ऐसा कहना सही नहीं होगा, क्योंकि टाइप 2 के मरीज़ों में भी 40 प्रतिशत लोगों को इन्सुलिन लेने की ज़रूरत पड़ती है। और बड़ी चिंता की बात यह है कि अब ज़्यादा-से-ज़्यादा जवानों में टाइप 2 डायबिटीज़ पायी जा रही है, जिनमें से कुछ तो 13 साल के भी नहीं हैं।

^ आम तौर पर उस इंसान को बहुत ज़्यादा मोटा माना जाता है जिसका वज़न, उसके सामान्य वज़न से 20 प्रतिशत या उससे ज़्यादा होता है।

[तसवीर]

ग्लूकोज़ का अणु

[चित्र का श्रेय]

Courtesy: Pacific Northwest National Laboratory

[पेज 9 पर बक्स]

पैंक्रियाज़ का काम

पैंक्रियाज़, केले के आकार का होता है और यह पेट के ठीक पीछे की तरफ रहता है। दी अनऑफिशियल गाइड टू लिविंग विथ डायबिटीज़ किताब के मुताबिक, “खून में शक्कर का स्तर बनाए रखने में स्वस्थ पैंक्रियाज़ लगातार और बहुत बढ़िया तरीके से काम करता है। दिन-भर में एक तरफ जहाँ ग्लूकोज़ की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है, वहीं पैंक्रियाज़ सही मात्रा में इन्सुलिन पैदा करता है ताकि खून में शक्कर का सही स्तर कायम रहे।” पैंक्रियाज़ के अंदर पायी जानेवाली बीटा कोशिकाएँ, हार्मोन इन्सुलिन को तैयार करती हैं।

जब बीटा कोशिकाएँ सही तादाद में इन्सुलिन पैदा नहीं कर पातीं, तो खून में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ जाती है और इससे हाइपरग्लाइसीमिया (hyperglycemia) हो जाता है। इसके उलटे जब शक्कर की मात्रा घट जाती है, तो इस हालत को हाइपोग्लाइसीमिया (hyperglycemia) कहा जाता है। खून में ग्लूकोज़ ज़्यादा होने पर जिगर इन्हें ग्लाइकोजन (glycogen) के रूप में अपने अंदर जमा कर लेता है। इस तरह जिगर, खून में शक्कर का सही स्तर बनाए रखने में पैंक्रियाज़ की मदद करता है। बाद में पैंक्रियाज़ से हुक्म मिलने पर, जिगर ग्लाइकोजन को दोबारा ग्लूकोज़ में बदल देता है ताकि शरीर इसका इस्तेमाल कर सके।

[पेज 9 पर बक्स/तसवीर]

शक्कर का काम

लोगों में आम तौर पर यह गलतफहमी है कि बहुत ज़्यादा मीठा खाने से डायबिटीज़ होती है। लेकिन चिकित्सा क्षेत्र ने साबित किया है कि जिनके परिवार में यह बीमारी खानदानी है, अगर उनका वज़न बढ़ता जाए तो उनमें यह बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है, फिर चाहे वे कम मीठा खाएँ या ज़्यादा। फिर भी, ज़्यादा शक्कर लेना सेहत के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि इसमें पोषक तत्त्व बहुत कम होते हैं और इससे मोटापा बढ़ता है।

लोगों में एक और गलतफहमी यह है कि डायबिटीज़ के शिकार लोगों में मीठा खाने की कुछ ज़्यादा ही ललक होती है। लेकिन सच तो यह है कि उनमें मीठा खाने की उतनी ही इच्छा होती जितनी कि ज़्यादातर लोगों में होती है। डायबिटीज़ को काबू में न रखने पर एक इंसान को ज़्यादा भूख लग सकती है, मगर ज़रूरी नहीं कि मीठा खाने का ही उसका मन करे। जिन्हें डायबिटीज़ है, वे मीठा खा सकते हैं, मगर उन्हें ध्यान रखना है कि अपने पूरे खान-पान में कुल मिलाकर कितनी शक्कर ले रहे हैं।

हाल के अध्ययनों से पता चला है कि जिन फलों और सब्ज़ियों में शक्कर यानी फलशर्करा (fructose) ज़्यादा होती है, उन्हें खाने से जानवरों तक के शरीर में इन्सुलिन प्रतिरोध पैदा हो सकता है और उन्हें डायबिटीज़ हो सकती है, फिर चाहे उनका वज़न कितना भी हो।

[पेज 8, 9 पर रेखाचित्र/तसवीरें]

डायबिटीज़ के बारे में आसान-सी समझ

पैंक्रियाज़

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सेहतमंद इंसान टाइप I डायबिटीज़ टाइप 2 डायबिटीज़

खाना खाने के बाद, खून में पैंक्रियाज़ की जो बीटा कोशिकाएँ, ज़्यादातर मामलों में, पैंक्रियाज़

ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ जाती है इन्सुलिन पैदा करती हैं, उन पर बहुत कम इन्सुलिन पैदा

और इसका संदेश मिलते ही रोग-प्रतिरक्षा तंत्र धावा बोलता है। करता है

पैंक्रियाज़ सही मात्रा में इस वजह से इन्सुलिन पैदा नहीं

इन्सुलिन पैदा करने लगता है हो पाता

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इन्सुलिन के अणु, पेशी और बिना इन्सुलिन की मदद के कोशिका के बाहर लगे

दूसरी कोशिकाओं के ग्राहियों ग्लूकोज़ के अणु, कोशिकाओं में ग्राही अगर सही तरह से

(receptors) से चिपक घुस नहीं सकते इन्सुलिन को कबूल नहीं

जाते हैं। इससे कोशिकाओं पर करते, तो खून में मौजूद

लगे पोर्टल्स (portals) ग्लूकोज़ को सोखने के लिए

खुल जाते हैं और वे ग्लूकोज़ के पोर्टल्स नहीं खुलते

अणुओं को अंदर आने देते हैं

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पेशी कोशिकाएँ, ग्लूकोज़ खून में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ जाती है

को सोखकर उसे ऊर्जा में बदल जिससे शरीर के ज़रूरी कामों गड़बड़ी

देती हैं। इसलिए खून में ग्लूकोज़ पैदा हो जाती है और खून की नलियों की

का स्तर सामान्य हो जाता है दीवारों को नुकसान पहुँचता है

[रेखाचित्र]

(चित्र को और भी अच्छी तरह समझने के लिए पत्रिका देखिए)

कोशिका

ग्राही

पोर्टल

इन्सुलिन

न्यूक्लियस

ग्लूकोज़

[रेखाचित्र]

(चित्र को और भी अच्छी तरह समझने के लिए पत्रिका देखिए)

खून की नली

लाल रक्‍त कोशिकाएँ

ग्लूकोज़

[चित्र का श्रेय]

पुरुष: The Complete Encyclopedia of Illustration/J. G. Heck

[पेज 7 पर तसवीर]

डायबिटीज़ के शिकार लोगों को सही खान-पान की ज़रूरत है

[पेज 10 पर तसवीरें]

डायबिटीज़ के शिकार लोग एक आम ज़िंदगी जी सकते हैं