बच्चों की ज़रूरतें पूरी करना
बच्चों की ज़रूरतें पूरी करना
अब तक हमने जिन बातों पर चर्चा की, उनसे साफ ज़ाहिर होता है कि बच्चों को अपने माता-पिता से ढेर सारा प्यार चाहिए। अफसोस कि कई बच्चों को वह प्यार नहीं मिलता। आज के नौजवान इस बात के जीते-जागते सबूत हैं। कनाडा, टोरोन्टो के अखबार द ग्लोब एण्ड मेल में एक खोजकर्ता ने अपना दुःख ज़ाहिर करते हुए कहा: “आजकल के नौजवानों और उनके परिवारों के बीच फासला बहुत बढ़ गया है, उन्हें दुनियादारी की समझ और बुद्धि हासिल नहीं होती। इतनी बदतर हालत पहले कभी नहीं देखी गयी।”
इसमें गलती किसकी है? क्या इस समस्या के लिए माता-पिता को कुछ हद तक ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है कि जब बच्चे बहुत छोटे थे, तब उन पर ध्यान देने की अहमियत उन्होंने नहीं समझी? एक मनोविज्ञानी, जो कम वेतनवाली स्त्रियों को अपने नवजात शिशुओं की देखभाल करने में मदद देती हैं, उनका कहना है: “माता-पिता होने की ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह कैसे निभाएँ, यह हम सभी को सीखना है। हम माता-पिताओं को यह समझना चाहिए कि अभी हम नन्हे-मुन्नों के साथ जितना ज़्यादा समय बिताएँगे, आगे चलकर हमें उतने ही बढ़िया नतीजे मिलेंगे।”
छोटे बच्चों को भी हिदायतों की ज़रूरत है, और वह भी सिर्फ एकाध बार नहीं बल्कि पूरे दिन के दौरान नियमित रूप से। बच्चे को अच्छी तरह बढ़ने के लिए उनके साथ वक्त बिताना बेहद ज़रूरी है।
तैयारी की ज़रूरत
घर में नन्हे मेहमान के आने से पहले माता-पिता को तैयारी करनी चाहिए ताकि वे इस बड़ी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा सकें। पहले से अच्छी योजना बनाने की अहमियत के बारे वे यीशु मसीह के बताए इस सिद्धांत से कुछ सीख सकते हैं। उसने कहा: “तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और पहिले बैठकर खर्च न जोड़े?” (लूका 14:28) बच्चे की परवरिश को अकसर 20 साल की निर्माण-योजना कहा जाता है। गढ़ बनाने के मुकाबले यह काम और भी पेचीदा है। इसलिए इसमें कामयाबी हासिल करने के लिए ब्लूप्रिंट या एक तरह की रूप-रेखा की ज़रूरत होती है जिस तरह गढ़ बनाने के लिए ज़रूरी होती है।
यह ज़िम्मेदारी उठाने के लिए सबसे पहले माँ-बाप दोनों को चाहिए कि वे मानसिक और आध्यात्मिक रूप से खुद को तैयार करें। जर्मनी में 2,000 गर्भवती स्त्रियों का अध्ययन करने पर पता चला कि जिन माओं ने खुशी-खुशी बच्चे के आने का इंतज़ार किया उनके बच्चे, भावात्मक और शारीरिक रूप से ज़्यादा तंदुरुस्त थे जबकि जो स्त्रियाँ माँ नहीं बनना चाहती थीं, उनके बच्चे इतने तंदुरुस्त नहीं थे। दूसरी तरफ, एक खोजकर्ता का अनुमान है कि खुशहाल ज़िंदगी जीनेवाली स्त्रियों के मुकाबले उन स्त्रियों के बच्चों को शारीरिक और भावात्मक नुकसान पहुँचने का खतरा 237 प्रतिशत ज़्यादा है जिनके पति उन पर अत्याचार करते हैं।
इससे पता चलता है कि बच्चे के सही विकास में पिताओं का बड़ा हाथ होता है। डॉ. थॉमस वर्नी ने कहा: “एक पति अगर अपनी गर्भवती पत्नी के साथ बदसलूकी करता है या उसका खयाल नहीं रखता, तो इससे गर्भ में पल रहे बच्चे को भावात्मक और शारीरिक रूप से जितना नुकसान पहुँच सकता है, उतना शायद बहुत कम चीज़ों से पहुँचे।” इसलिए अकसर कहा जाता है कि बच्चे के लिए सबसे बड़ा तोहफा ऐसा पिता है जो उसकी माँ को प्यार करे।
चिंता और तनाव की वजह से अकसर माँ के शरीर में ऐसे हार्मोन पैदा होते हैं जो खून में मिल जाते हैं, और इसका गर्भ में पल रहे बच्चे पर बुरा असर पड़ सकता है। मगर सबूतों से पता चला है कि कभी-कभार होनेवाले तनाव या निराशा की भावनाओं से नहीं बल्कि माँ बनने की बात को लेकर गहरी चिंता में डूबे रहने से बच्चे पर यह बुरा असर होता है। यह बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है कि एक माँ अपने होनेवाले बच्चे के बारे में कैसा महसूस करती है। *
अगर आप माँ बननेवाली हैं और ज़रूरत की इस घड़ी में आपका पति आपका साथ नहीं देता या फिर खुद आप माँ बनने से खुश नहीं हैं, तब क्या किया जाना चाहिए? कभी-कभी एक स्त्री के हालात ही ऐसे होते हैं कि वह माँ बनने से खुश नहीं होती। और यह कोई नयी बात नहीं है। मगर एक बात हमेशा याद रखें कि इसमें आपके बच्चे की कोई गलती नहीं है। तो हालात चाहे कितने ही मुश्किल भरे हों, आप किस तरह शांति से काम ले सकती हैं?
परमेश्वर के वचन, बाइबल में दी गयी एक बढ़िया हिदायत से लाखों लोगों को फायदा हुआ है। वह कहती है: “हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” इस हिदायत पर चलने से आपके लिए यह सलाह मानना आसान हो जाएगा: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो।” (फिलिप्पियों 4:6, 7) आप यह महसूस कर पाएँगी कि सिरजनहार आपकी बेहद परवाह करता है। वही आपको हर घड़ी सँभाले रहेगा।—1 पतरस 5:7.
एक आम अनुभव
कुछ जवान माएँ प्रसव के बाद, पहले कुछ हफ्तों के दौरान बिना किसी वजह के उदास और सुस्त रहती हैं। यहाँ तक कि जो स्त्रियाँ बच्चे के आने से बहुत खुश होती हैं, वे भी चिड़चिड़ी हो जाती हैं। इस तरह मिज़ाज का बदलना आम है क्योंकि प्रसव के बाद स्त्रियों में ज़बरदस्त हार्मोनल बदलाव होते हैं। इसके अलावा, जो स्त्री पहली बार माँ बनती है, उसे अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाना मुश्किल लग सकता है। बच्चे को दूध पिलाना, उसका डायपर बदलना और दूसरे तरीकों से उसका खयाल रखना इतना आसान नहीं होता क्योंकि बच्चे को कभी-भी इन चीज़ों की ज़रूरत पड़ सकती है, आखिर उसे समय का एहसास जो नहीं रहता।
एक माँ को ऐसा लगा कि उसका बच्चा सिर्फ उसे परेशान करने के लिए रोता है। तभी तो बच्चों की परवरिश के मामले में जापान के एक विशेषज्ञ ने कहा: “बच्चों की परवरिश करते वक्त होनेवाले तनाव से कोई नहीं बच सकता।” इस विशेषज्ञ के मुताबिक “एक माँ के लिए बेहद ज़रूरी है कि वह अपनी सारी परेशानियाँ दिल में दबाकर न रखे।”
अगर एक माँ कभी-कभी मायूस हो जाती है, तब भी वह ऐसे कुछ कदम उठा सकती है जिससे बच्चे पर उसकी मायूसी का असर न पड़े। टाइम *
पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक “जिन माओं ने मायूसी की भावनाओं से जूझते हुए भी बच्चों को ढेर सारा प्यार दिया है, उनके साथ हँसने-खेलने में समय बिताया है, उनके बच्चे आम तौर पर ज़्यादा खुशमिज़ाज होते हैं।”पता कैसे मदद कर सकता है
अकसर माँ को ज़रूरी मदद और सहारा बच्चे के पिता से बेहतर और कोई नहीं दे सकता। जब आधी रात को बच्चा रोता है तो कई बार पिता उसे चुप करा सकता है ताकि उसकी पत्नी आराम से सो सके। बाइबल कहती है: ‘पतियो! अपनी पत्नी का ध्यान रखो।’—1 पतरस 3:7, बुल्के बाइबिल।
यीशु मसीह ने पतियों के लिए सबसे बेहतरीन मिसाल रखी है। उसने अपने चेलों की खातिर जान तक कुरबान कर दी। (इफिसियों 5:28-30; 1 पतरस 2:21-24) इसलिए जो पति अपने आराम की चिंता न करते हुए बच्चे की परवरिश में हाथ बँटाते हैं, वे मसीह की मिसाल पर चल रहे होते हैं। वाकई बच्चों की परवरिश करना किसी एक का काम नहीं है, इसमें माता-पिता को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए।
मिलकर ज़िम्मेदारी निभाना
दो साल की लड़की के पिता, योईचीरो का कहना है: “मैंने और मेरी पत्नी ने अपनी बच्ची की परवरिश के मामले में हर छोटी-से-छोटी बात पर चर्चा की। जब भी कोई समस्या आती तो हम साथ बैठकर बात करते कि हम इससे कैसे निपटेंगे।” योईचीरो समझ सकता है कि उसकी पत्नी को कभी-कभार आराम की ज़रूरत होती है, इसलिए जब वह खरीदारी करने या कोई छोटे-मोटे काम के लिए बाहर जाता है, तो अपनी बच्ची को भी साथ ले जाता है।
पुराने ज़माने में आम तौर पर परिवार बड़े होते थे और सभी एक-साथ रहते थे। ऐसे में अकसर बच्चे की देखभाल करने में माता-पिता को घर के बड़े बच्चों और रिश्तेदारों से मदद मिलती थी। इसे ध्यान में रखते हुए जापान के कावासाकी शहर में, ‘शिशु-पालन सहायक केंद्र’ में काम करनेवाली एक स्त्री की यह बात सुनकर ताज्जुब नहीं होता: “अपने बच्चे की परवरिश के बारे में दूसरों से बात करने से ज़्यादातर माओं को राहत मिलेगी। बस थोड़ी-सी मदद मिलने पर, कई माएँ आनेवाली मुश्किलों का सामना कर पाती हैं।”
माता-पिता (अँग्रेज़ी) पत्रिका कहती है कि नए-नए बने माता-पिताओं को “ऐसे लोगों का सहारा चाहिए जिनके साथ वे अपनी परेशानियाँ बाँट सकें।” ऐसे लोग कौन हो सकते हैं? माता-पिता या सास-ससुर। अगर पति-पत्नी उनकी सलाह लेने को तैयार हों तो उन्हें काफी *
फायदा हो सकता है। बेशक दादा-दादी/नाना-नानी को भी यह समझना होगा कि आखिर में फैसला लेने की ज़िम्मेदारी बच्चे के माँ-बाप की है।इनके अलावा विश्वासी भाई-बहन भी मददगार साबित हो सकते हैं। आपके इलाके में यहोवा के साक्षियों की जो कलीसिया है, उसमें आप ऐसे कई लोगों को पाएँगे जिन्हें बच्चों को पालने-पोसने का सालों का तजुर्बा है और जो आपकी समस्याएँ सुनने के लिए तैयार होंगे। वे आपको कुछ अच्छे सुझाव दे सकेंगे। अकसर आप मसीही उसूलों पर चलनेवाली तजुर्बेकार स्त्रियों से मदद माँग सकते हैं जिन्हें बाइबल में ‘बूढ़ी स्त्रियाँ’ कहा गया है। ऐसी स्त्रियाँ, जवान स्त्रियों की मदद करने को तैयार रहती हैं।—तीतुस 2:3-5.
बेशक माता-पिता को आँख मूँदकर हर किसी की सलाह नहीं मान लेनी चाहिए। योईचीरो कहता है: “एकाएक हमारे सभी जान-पहचानवाले, बाल-विशेषज्ञ बन गए और हमें सलाह देने लगे कि बच्चों की परवरिश कैसे करनी है।” उसकी पत्नी टाकाको कबूल करती है: “जब लोग हमें सुझाव देने लगे तो पहले-पहल मुझे बुरा लगा क्योंकि मुझे ऐसा महसूस हुआ मानो इस मामले में लोग मुझे अनाड़ी समझते हैं।” मगर कई पति-पत्नी दूसरों से सीखने की वजह से यह जान पाए हैं कि अपने बच्चों की ज़रूरतें कब-कैसे पूरी की जानी चाहिए।
सबसे बढ़िया मदद हाज़िर है
हो सकता है कि आपकी मदद करनेवाला कोई न हो, मगर एक शख्स ऐसा है जिससे आप कभी भी मदद माँग सकते हैं। और वह है यहोवा परमेश्वर जिसने हमें रचा है और जिसकी आँखें इंसान के पैदा होने से पहले ही उसके “बेडौल तत्व” को देख सकती हैं। (भजन 139:16) बाइबल बताती है कि प्राचीन समय में, एक मौके पर यहोवा ने अपने लोगों से कहा: “क्या यह हो सकता है कि कोई माता अपने दूधपिउवे बच्चे को भूल जाए और अपने जन्माए हुए लड़के पर दया न करे? हां, वह तो भूल सकती है, परन्तु मैं तुझे नहीं भूल सकता।”—यशायाह 49:15; भजन 27:10.
जी हाँ, प्राचीन समय में जिस तरह यहोवा अपने लोगों को नहीं भूला, ठीक उसी तरह आज भी वह माता-पिताओं को नहीं भूलता। बच्चों की परवरिश किस तरह करनी है, इस बारे में उसने बाइबल में बढ़िया हिदायतें दी हैं। मसलन, 3,500 साल पहले परमेश्वर के नबी मूसा ने लिखा: “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना।” फिर उसने आगे कहा: “ये आज्ञाएं [जिनमें यहोवा से प्रेम करने और उसकी सेवा करने का आग्रह भी शामिल है] जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; और तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।”—व्यवस्थाविवरण 6:5-7.
आपको क्या लगता है, परमेश्वर के वचन में दी गयी इस हिदायत का मुख्य मुद्दा क्या है? क्या यह नहीं कि आपको हर दिन, नियमित तौर पर अपने बच्चों को सिखाना चाहिए? इसके लिए कभी-कभार समय निकालकर अपने नन्हे-मुन्नों पर पूरा-पूरा ध्यान देना काफी नहीं है। बच्चे के दिल में आपसे बात करने की इच्छा कभी भी पैदा हो सकती है इसलिए ज़रूरी है कि जब भी वह आपसे बात करना चाहे, आप उसे अपना समय देने के लिए तैयार रहें। ऐसा करने से आप बाइबल की इस आज्ञा को पूरा कर पाएँगे: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये।”—नीतिवचन 22:6.
छोटे बच्चों को सही तालीम देने में उन्हें पढ़कर सुनाना शामिल है। पहली सदी के चेले तीमुथियुस के बारे में बाइबल बताती है कि वह ‘बालकपन से पवित्र शास्त्र को जानता था।’ इससे ज़ाहिर होता है कि जब वह शिशु ही था, तब से उसकी माँ, यूनीके और उसकी नानी, लोइस उसे पढ़कर सुनाया करती थीं। (2 तीमुथियुस 1:5; 3:14, 15) अपने शिशु को तभी से पढ़कर सुनाइए जब आप उससे बात करना शुरू करते हैं। मगर आप उसे क्या पढ़कर सुनाएँगे और एक बच्चे को सिखाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
आप अपने बच्चे को बाइबल पढ़कर सुना सकते हैं। शायद तीमुथियुस को भी बाइबल ही पढ़कर सुनायी गयी थी। इसके अलावा, रंगीन तसवीरोंवाली कुछ किताबें भी उपलब्ध हैं जिनसे बच्चे बाइबल के बारे में काफी कुछ जान सकते हैं। दरअसल इनमें दी गयी तसवीरों की मदद से वे बाइबल की बातों की कल्पना करना सीखते हैं। ऐसी कुछ किताबें हैं, बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक और वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा। इन किताबों की वजह से लाखों छोटे बच्चों के दिलो-दिमाग में बाइबल की शिक्षाएँ अच्छी तरह बिठायी गयी हैं।
बाइबल कहती है कि “लड़के [और लड़कियाँ] यहोवा के दिए हुए भाग [“विरासत,” NW] हैं, गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है।” (भजन 127:3) जी हाँ, ये नन्हे-मुन्ने सिरजनहार की तरफ से आपके लिए एक “विरासत” हैं जो आपके घर-आँगन को खुशियों से भर सकते हैं। आप, माता-पिताओं को इससे बढ़िया फल और क्या मिल सकता है कि आपके बच्चे बड़े होकर सिरजनहार की स्तुति करें! (g03 12/22)
[फुटनोट]
^ गर्भ में पल रहे बच्चे पर न सिर्फ स्ट्रेस हार्मोन का बल्कि निकोटीन, शराब और नशीली दवाओं का भी बुरा असर पड़ता है। गर्भवती स्त्रियों को ऐसी हर खतरनाक चीज़ से दूर रहना चाहिए। इसके अलावा, इलाज के लिए कोई भी दवा लेने से पहले डॉक्टर से पूछ लेना ज़रूरी है कि कहीं इससे गर्भ में पल रहे बच्चे पर बुरा असर तो नहीं पड़ेगा।
^ अगर एक माँ गहरे दुःख और निराशा से जूझ रही है, साथ ही वह अपने बच्चे और दुनिया से किसी तरह का लगाव महसूस नहीं करती तो शायद वह पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार हो। ऐसे हालात में उसे अपने डॉक्टर से सलाह-मशविरा करना चाहिए। कृपया सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के जुलाई 22, 2002 अंक के पेज 19-23 और जून 8, 2003 के पेज 21-3 पर दिए लेख पढ़िए।
^ कृपया मार्च 22, 1999 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) का लेख, “दादा-दादी/नाना-नानी होने की खुशियाँ और चुनौतियाँ” पढ़िए।
[पेज 8 पर तसवीर]
यह बात बहुत मायने रखती है कि एक माँ अपने होनेवाले बच्चे के बारे में कैसा महसूस करती है
[पेज 9 पर तसवीर]
पहली बार माँ बननेवाली स्त्री के मिज़ाज में शायद उतार-चढ़ाव आए, मगर फिर भी अपने बच्चे को प्यार और सुरक्षा का एहसास दिलाने के लिए वह बहुत कुछ कर सकती है
[पेज 10 पर तसवीर]
बच्चे की देखरेख करना पिता की भी ज़िम्मेदारी है
[पेज 10 पर तसवीर]
शिशुपन से ही बच्चे को पढ़कर सुनाएँ