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एक प्राचीन शपथ जो आज भी मायने रखती है

एक प्राचीन शपथ जो आज भी मायने रखती है

एक प्राचीन शपथ जो आज भी मायने रखती है

सामान्य युग पूर्व 400 के करीब, यूनानी वैद्य हिप्पोक्रेटिस जो चिकित्सा विज्ञान का जन्मदाता कहलाता है, उसने अपने नाम से एक शपथ लिखी जो हिप्पोक्रेटी शपथ कहलाती है। चिकित्सा क्षेत्र में, आज भी इस शपथ में दर्ज़ ऊँचे सिद्धांतों को लागू किया जाता है। क्या आपको हिप्पोक्रेटी शपथ के बारे में यही सिखाया गया है? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। लेकिन क्या यह सौ-फीसदी सच है?

सबूत दिखाते हैं कि हिप्पोक्रेटिस ने शायद वह शपथ नहीं लिखी जो उसके नाम से जानी जाती है। इसके अलावा, इस शपथ में जो सिद्धांत शुरूआत में लिखे गए थे, आज का चिकित्सा क्षेत्र हमेशा उनसे सहमत नहीं होता।

उस प्राचीन शपथ को लिखनेवाला असल में कौन था, क्या हम इस बात का पता लगा सकते हैं? और अगर पता लगा भी लें, तो क्या यह शपथ आज हमारे लिए कोई मायने रखती है?

क्या हिप्पोक्रेटिस ने यह शपथ लिखी थी?

इस बात पर शक करने की कई वजह हैं कि क्या शपथ का लेखक वाकई हिप्पोक्रेटिस था? पहली वजह है, शपथ की शुरूआत में कई देवी-देवताओं का नाम लिया गया है। लेकिन माना जाता है कि हिप्पोक्रेटिस वह पहला शख्स था जिसने चिकित्सा क्षेत्र को धर्म से अलग रखा और जिसका मानना था कि इंसान शारीरिक कारणों से बीमार पड़ते हैं, ना कि दैविक प्रकोप से।

इसके अलावा, शपथ में इलाज के ऐसे बहुत-से तरीकों की मनाही थी जिन्हें हिप्पोक्रेटिस के ज़माने में गलत नहीं माना जाता था। (पेज 23 पर दिया बक्स देखिए।) मिसाल के लिए, उन दिनों गर्भपात और खुदकुशी को गैरकानूनी नहीं माना जाता था और ना ही ज़्यादातर धर्म, इन बातों को अपने स्तरों के खिलाफ मानते थे। इसके अलावा, शपथ लेनेवाला इस बात की कसम खाता था कि वह किसी की सर्जरी नहीं करेगा, बल्कि यह काम सर्जरी करनेवालों के लिए छोड़ देगा। लेकिन अगर हम हिप्पोक्रेटिस के नाम से मशहूर किताबें देखें, तो उनमें सर्जरी के तरीके दर्ज़ हैं। ये किताबें, चिकित्सा से जुड़े अलग-अलग साहित्य से मिलकर बनी हैं और इनका श्रेय अकसर हिप्पोक्रेटिस और दूसरे प्राचीन लेखकों को दिया जाता है।

हालाँकि आज भी इस बात को लेकर विद्वानों में बहस चल रही है कि हिप्पोक्रेटी शपथ किसने लिखी, फिर भी यह ज़्यादा सच लगता है कि इसे हिप्पोक्रेटिस ने नहीं लिखा था। इस शपथ में जो तत्त्वज्ञान की बातें लिखी हैं वे दरअसल सा.यु.पू. चौथी सदी के पायथागोरस के चेलों की धारणाओं से ज़्यादा मेल खाती हैं। उन चेलों का मानना था कि जीवन पवित्र है और उन्हें सर्जरी करने के तरीकों से घिन थी।

शपथ की अहमियत कम होना और फिर से उभरना

शपथ चाहे जिसने भी लिखी हो मगर इसकी एक सच्चाई को कोई नहीं नकार सकता। वह यह है कि पश्‍चिमी देशों के चिकित्सा क्षेत्र पर और खासकर नैतिक सिद्धांतों पर इस शपथ का ज़बरदस्त असर रहा है। इस शपथ को कई नाम दिए गए हैं जैसे “चिकित्सा क्षेत्र में सही सिद्धांतों को मान्यता देने की सबसे बड़ी उपलब्धि,” “विकसित देशों में मरीज़-डॉक्टर के आपसी रिश्‍ते की बुनियाद,” और “पेशेवरों के चालचलन के सबसे ऊँचे सिद्धांत।” सन्‌ 1913 में, कनाडा के एक जाने-माने डॉक्टर, सर विल्लियम ऑसलर ने कहा: “यह बात खास मायने नहीं रखती कि शपथ हिप्पोक्रेटिस के ज़माने में लिखी गयी थी या किसी और ज़माने में . . . अहम बात तो यह है कि 25 सदियों से यह चिकित्सा क्षेत्र का ‘सिद्धांत’ रहा है, और आज भी कई विश्‍व-विद्यालयों में डॉक्टर बनने के लिए यह शपथ लेनी होती है।”

लेकिन बीसवीं सदी के शुरूआती सालों में, इस शपथ की अहमियत कम हो गयी थी। शायद इसकी वजह, विज्ञान में होनेवाली तरक्की थी। ऐसे दौर में जब तर्क पर ज़्यादा-से-ज़्यादा ज़ोर दिया जाने लगा, हिप्पोक्रेटी शपथ बहुत ही पुरानी और दकियानूसी लगी होगी। लेकिन विज्ञान चाहे कितना भी आगे निकल जाए, मगर उसूलों की ज़रूरत हमेशा रहेगी। और शायद इसी वजह से हाल के दशकों से इस शपथ को दोबारा अहमियत दी जाने लगी है।

एक बार फिर ज़्यादातर मैडिकल स्कूलों में दाखिला लेने, या उससे ग्रेजुएशन करने के लिए शपथ खाना ज़रूरी हो गया है। सन्‌ 1993 में, अमरीका और कनाडा के मैडिकल स्कूलों का एक सर्वे लिया गया। उस सर्वे के मुताबिक 98 प्रतिशत स्कूलों में किसी-न-किसी तरह की शपथ खाने का रिवाज़ है। पहले तो सन्‌ 1928 में, सिर्फ 24 प्रतिशत स्कूल ऐसा करते थे। ब्रिटेन के मैडिकल स्कूलों का भी एक सर्वे लिया गया, जो दिखाता है कि फिलहाल 50 प्रतिशत स्कूलों में शपथ खाने या खुलेआम ऐलान करने का दस्तूर है। ऑस्ट्रेलिया और न्यू ज़ीलैंड में भी लगभग 50 प्रतिशत स्कूलों में ऐसा किया जाता है।

वक्‍त के साथ बदलना

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हिप्पोक्रेटी शपथ में कोई बदलाव नहीं किया गया है। बीती सदियों के दौरान, ईसाईजगत की खास शिक्षाओं को ज़ाहिर करने के लिए इसमें तबदीलियाँ की गयी थीं। कभी-कभी तो दूसरे मसलों को ध्यान में रखकर इसमें फेरबदल किए गए थे, जैसे कि प्लेग के मरीज़ों के साथ कैसे पेश आना चाहिए, वगैरह। और हाल ही में, नए ज़माने की सोच के मुताबिक इसे ढाला गया है।

शपथ के बहुत-से अनुवादों में उन धारणाओं को मिटा दिया गया है, जो आज के चिकित्सा क्षेत्र से मेल नहीं खातीं, और ऐसी कुछ धारणाओं को जोड़ा गया है जो हमारे ज़माने के लिए खास अहमियत रखती हैं। जैसे एक सिद्धांत है जो आज के चिकित्सा क्षेत्र में सबसे ज़रूरी है, वह है मरीज़ को अपने लिए इलाज का तरीका चुनने का हक देना। प्राचीन यूनानी चिकित्सा क्षेत्र में मरीज़ को ऐसा हक नहीं दिया जाता था, इसलिए हिप्पोक्रेटी शपथ में इसका कोई ज़िक्र नहीं है। मरीज़ के हक की धारणा, आज के कई घोषणा-पत्रों का एक अहम हिस्सा है।

इसके अलावा, जैसे-जैसे इस तरह की धारणाओं की अहमियत बढ़ रही है कि मरीज़ को इलाज की पूरी जानकारी पाने और चुनाव करने का हक है, वैसे-वैसे मरीज़ और डॉक्टरों के रिश्‍ते में सुधार आया है। इसलिए हम देख सकते हैं कि आज बहुत कम मैडिकल स्कूलों में उस हिप्पोक्रेटी शपथ का इस्तेमाल किया जाता है जिसे शुरूआत में लिखा गया था।

शपथ में आए दूसरे बदलाव तो और भी हैरतअंगेज़ हैं। सन्‌ 1993 में, अमरीका और कनाडा में जो शपथ दिलवायी गयीं उनमें से सिर्फ 43 प्रतिशत में यह कसम शामिल थी कि डॉक्टर अपने कामों के लिए जवाबदेह होंगे। लेकिन हिप्पोक्रेटी शपथ के कई नए अनुवादों में यह कसम शामिल है कि अगर कोई डॉक्टर शपथ को तोड़ता है, तो इसके लिए उसे कोई सज़ा नहीं दी जाएगी। अब ऐसे कुछ कामों की इजाज़त दी जा रही है जिनकी पहले शपथ में मनाही थी, जैसे उन बीमारों पर दया करके उन्हें मौत देना जिनके बचने की कोई उम्मीद नहीं (यूथेनेशिया), और गर्भपात करवाना। साथ ही, देवी-देवताओं से बिनती करना और भी कम हो गया है। इसके अलावा, जिन स्कूलों का सर्वे लिया गया था, उनमें इस्तेमाल की गयी शपथ में से सिर्फ 3 प्रतिशत में वादा किया गया कि मरीज़ों के साथ किसी भी तरह का लैंगिक संबंध नहीं रखा जाएगा।

शपथ की अहमियत

हालाँकि हिप्पोक्रेटी शपथ में बहुत-से बदलाव किए गए हैं, फिर भी ऐसे पेशों में शपथ लेना ज़रूरी समझा जाता है जिनमें ऊँचे आदर्शों के मुताबिक चलने की कसम खायी जाती है। सन्‌ 1993 के जिस सर्वे का पहले ज़िक्र किया गया था, उसके मुताबिक आज की ज़्यादातर शपथों में एक बात पर खास ध्यान दिया गया है। और वह है, मरीज़ की तरफ डॉक्टर का फर्ज़, यानी नए डॉक्टर मरीज़ की देखभाल करने में कोई भी कसर न छोड़ने की कसम खाते हैं। इस तरह सरेआम कसम खाना इस बात पर ध्यान खींचता है कि चिकित्सा क्षेत्र के आदर्श कितने ऊँचे हैं।

द मैडिकल जर्नल ऑफ ऑस्ट्रेलिया में छपे एक लेख में, प्रोफेसर एडमंट पेलेग्रीनो ने लिखा: “आज बहुत-से लोगों को शायद लगे कि चिकित्सा से जुड़ी यह शपथ, प्राचीन समय की टूटी-फूटी धारणा का सिर्फ एक छोटा-सा टुकड़ा है। लेकिन यह छोटा-सा टुकड़ा चिकित्सा क्षेत्र के लोगों को इस बात की याद दिलाने के लिए काफी है कि अगर वे उस प्राचीन धारणा को पूरी तरह भूल जाएँगे, तो उनका पेशा सिर्फ एक धंधा, कारोबार या मज़दूरी बनकर रह जाएगा जो सिर्फ अपने फायदे के लिए किया जाता है।”

हिप्पोक्रेटी शपथ या उसकी बिनाह पर बनायी गयी नए ज़माने की कई कसमें, आज हमारे लिए मायने रखती हैं या नहीं, यह शायद आगे भी विद्वानों के बीच वाद-विवाद का विषय बना रहे। इसका नतीजा चाहे जो भी हो, मगर डॉक्टर जिस तरह तन-मन से मरीज़ों की देखभाल करते हैं, वह सचमुच काबिले-तारीफ है। (g04 4/22)

[पेज 23 पर बक्स]

हिप्पोक्रेटी शपथ

लूटविक ऐडलस्टाइन का अनुवाद

मैं अपोलो वैद्य, अस्क्लीपिअस, ईयईआ, पानाकीआ और सारे देवी-देवताओं की कसम खाता हूँ और उन्हें हाज़िर-नाज़िर मानकर कहता हूँ कि मैं अपनी काबिलीयत और परख-शक्‍ति के मुताबिक इस शपथ को पूरा करूँगा:

जिस इंसान ने मुझे यह पेशा सिखाया है, मैं उसका उतना ही गहरा सम्मान करूँगा जितना अपने माता-पिता का करता हूँ। मैं ज़िंदगी-भर उसके साथ मिलकर काम करूँगा और उसे अगर कभी पैसों की ज़रूरत पड़ी, तो उसकी मदद करूँगा। उसके बेटों को अपना भाई समझूँगा और अगर वे चाहें, तो बगैर किसी फीस या शर्त के उन्हें सिखाऊँगा। मैं सिर्फ अपने बेटों, अपने गुरू के बेटों, और उन सभी विद्यार्थियों को तालीम दूँगा जिन्होंने चिकित्सा के नियम के मुताबिक शपथ खायी और समझौते पर दस्तखत किए हैं। मैं उन्हें चिकित्सा के उसूल सिखाऊँगा, ज़बानी तौर पर हिदायतें दूँगा और जितनी बाकी बातें मैंने सीखी हैं, वे सब सिखाऊँगा।

मरीज़ की सेहत की खातिर अगर मुझे खान-पान में परहेज़ करना पड़े, तो मैं अपनी काबिलीयत और परख-शक्‍ति के मुताबिक ऐसा ज़रूर करूँगा; किसी भी नुकसान या नाइंसाफी से उनकी हिफाज़त करूँगा।

मैं किसी के माँगने पर भी उसे ज़हरीली दवा नहीं दूँगा, और ना ही ऐसी दवा लेने की सलाह दूँगा। उसी तरह मैं किसी भी स्त्री को गर्भ गिराने की दवा नहीं दूँगा। मैं पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ अपनी ज़िंदगी और अपनी कला की हिफाज़त करूँगा।

मैं किसी की सर्जरी नहीं करूँगा, उसकी भी नहीं जिसके किसी अंग में पथरी हो गयी हो, बल्कि यह काम उनके लिए छोड़ दूँगा जिनका यह पेशा है।

मैं जिस किसी मरीज़ के घर जाऊँगा, उसके फायदे के लिए ही काम करूँगा, किसी के साथ जानबूझकर अन्याय नहीं करूँगा, हर तरह के बुरे काम से, खासकर स्त्रियों और पुरुषों के साथ लैंगिक संबंध रखने से दूर रहूँगा, फिर चाहे वे गुलाम हों या नहीं।

इलाज के दौरान या दूसरे वक्‍त पर, अगर मैंने मरीज़ की निजी ज़िंदगी के बारे में कोई ऐसी बात देखी या सुनी जिसे दूसरों को बताना बिलकुल गलत होगा, तो मैं उस बात को अपने तक ही रखूँगा, ताकि मरीज़ की बदनामी न हो।

अगर मैं इस शपथ को पूरा करूँ और कभी इसके खिलाफ न जाऊँ, तो मेरी दुआ है कि मैं अपने जीवन और कला का आनंद उठाता रहूँ और लोगों में सदा के लिए मेरा नाम ऊँचा रहे; लेकिन अगर मैंने कभी यह शपथ तोड़ी और झूठा साबित हुआ, तो इस दुआ का बिलकुल उल्टा असर मुझ पर हो।

[पेज 22 पर तसवीर]

हिप्पोक्रेटिस के नाम से मशहूर एक किताब का पन्‍ना

[पेज 22 पर चित्र का श्रेय]

हिप्पोक्रेटिस और पन्‍ना: Courtesy of the National Library of Medicine