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बियर—सुनहरी सुरा सुंदरी

बियर—सुनहरी सुरा सुंदरी

बियर—सुनहरी सुरा सुंदरी

चेक रिपब्लिक के सजग होइए! लेखक द्वारा

एक आदमी जिसका गला सूख रहा है, वह किस चीज़ के लिए तरसेगा? ज़्यादातर मुल्कों में, चाहे एक मामूली मज़दूर हो या कोई बिज़नेसमैन, वह मन-ही-मन ग्लास में भरे अपने मनचाहे सुनहरे जाम की कल्पना करेगा। जाम से उमड़ते झाग और उसके कड़वे स्वाद के बारे में सोचकर ही उसके मुँह में पानी आ जाएगा। वह अपने मन में कहेगा: “एक ग्लास ठंडी बियर के लिए मैं कुछ भी देने को तैयार हूँ!”

बियर बनाने की दास्तान लगभग उतनी ही पुरानी है जितना कि इंसान। सदियों से यह एक मनपसंद जाम रहा है, यहाँ तक कि कई जगहों पर यह लोगों की संस्कृति का एक अहम हिस्सा बन चुका है। लेकिन दुःख की बात है कि बहुत ज़्यादा बियर पीने की वजह से यह लोगों के लिए समस्याओं की जड़ बन चुकी है, यह हालत खासकर यूरोप के कुछ देशों में देखी गयी है। फिर भी, अगर सही मात्रा में ली जाए तो यह मन को खुश कर सकती है, क्योंकि बियर की खासियत ही ऐसी है और इसका स्वाद ही इतना निराला होता है। आइए इस सुनहरी सुरा सुंदरी के इतिहास पर एक नज़र डालें।

बियर की दास्तान कितनी पुरानी?

पुराने ज़माने में, मिसुपुतामिया के जिस इलाके में सुमेरी लोगों का बसेरा था, वहाँ से कुछ शिलालेख मिले हैं। उन शिलालेखों के मुताबिक बियर का इस्तेमाल सा.यु.पू. तीसरे मिलेनियम से शुरू हुआ है। उसी दौरान बाबुलियों और मिस्रियों के भी बियर पीने का पता चला है। बाबुल में तो 19 अलग-अलग किस्म की बियर बनायी जाती थीं। और-तो-और, हम्मूराबी के कायदे-कानूनों में भी बियर बनाने के बारे में कुछ नियम शामिल थे। एक नियम ऐसा भी था जिसके मुताबिक बियर की कीमत तय की जाती। जो कोई इन नियमों को तोड़ता, उसे सज़ाए-मौत दी जाती थी। प्राचीन मिस्र में बियर बनाना आम था, साथ ही यह लोगों का मनपसंद जाम भी था। पुरातत्त्वविज्ञानियों की खुदाई से यहाँ बियर बनाने की सबसे पुरानी रेसीपी मिली है।

वक्‍त के गुज़रते, बियर बनाने की तकनीक यूरोप तक पहुँच गयी। सामान्य युग की शुरूआत के कुछ रोमी इतिहासकारों ने बताया है कि सैल्ट, जर्मन और दूसरी जातियाँ भी बियर का मज़ा लेती थीं। वाइकिंग लोगों का यह मानना था कि नार्डिक कथाओं के मुताबिक वीर योद्धा अपनी मौत के बाद वॉलहॉला नाम की जिस जगह पर पहुँचते थे, वहाँ बियर की धारा बहती थी।

मध्य युग के दौरान, यूरोप में बियर मठों में बनायी जाने लगी। मठवासियों ने बियर को सड़ने से बचाने के लिए हॉप नाम के फूल का इस्तेमाल किया और इस तरह उन्होंने उसे बनाने की तकनीक में काफी सुधार किया। उन्‍नीसवीं सदी में जब कारखाने बनने लगे, तब से बियर मशीनों के ज़रिए बनायी जाने लगी और यह इस पसंदीदा जाम के इतिहास में एक नया मोड़ था। इसके बाद वैज्ञानिकों ने कुछ अहम खोजें कीं।

फ्रांसीसी रसायन-वैज्ञानिक और माइक्रोबायोलॉजिस्ट, लुई पैस्चर ने खोज करके पता लगाया कि बियर के फर्मेन्टेशन के लिए जिस यीस्ट या खमीर का इस्तेमाल किया जाता है, उसमें सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। इस खोज की वजह से बियर बनानेवाले जान गए कि शर्करा को ऐल्कोहॉल में बदलने के लिए ठीक कितना यीस्ट डालने की ज़रूरत है। डेन्मार्क के वनस्पति-वैज्ञानिक इमील क्रीस्ट्यैन हैन्सन, बियर बनानेवाले मशहूर लोगों में से एक थे। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी तरह-तरह की यीस्ट की खोज करने और उन्हें अलग-अलग वर्गों में डालने का काम किया। उनकी कई खोजों में से एक थी, बियर बनाने के लिए शुद्ध यीस्ट तैयार करना। इस तरह हैन्सन ने मानो बियर बनाने की तकनीक को एक नया रुख दिया।

लेकिन क्या बियर बनाना इतना मुश्‍किल है? शायद आप यकीन न करें, मगर यह वाकई मुश्‍किल है। आइए कुछ देर के लिए गौर करें कि यह स्वादिष्ट बियर कैसे तैयार की जाती है।

आपके ग्लास तक पहुँचने से पहले

सदियों से बियर बनाने की तकनीक में काफी बदलाव किया गया है और आज भी हर कारखाना अपने तरीके से बियर बनाता है। तरीका चाहे अलग हो, लेकिन हर बियर में एक आम बात यह है कि उसे तैयार करने में चार बुनियादी चीज़ें इस्तेमाल की जाती हैं। वे हैं: जौ, हॉप, पानी और यीस्ट। बियर बनाने की पूरी तकनीक को इन चार चरणों में बाँटा जा सकता है: मॉल्ट बनाना, वॉर्ट तैयार करना, फर्मेन्टेशन और मच्योरेशन।

मॉल्ट बनाना। इसमें पहले, बढ़िया किस्म के जौ को अलग करके उन्हें तौला जाता और फिर अच्छी तरह साफ किया जाता है। इसके बाद, उन्हें पानी में भिगोया जाता है। ऐसा करना ज़रूरी है ताकि उनमें अंकुर फूटें। अंकुर फूटने में पाँच से सात दिन लगते हैं, और जौ को करीब 14 डिग्री सॆलसियस के तापमान में रखा जाता है। इसके आखिर में जो मॉल्ट तैयार होता है, उसे हरा मॉल्ट कहा जाता है। फिर इसे सुखाने के लिए खास किस्म की भट्ठियों में डाला जाता है। हरे मॉल्ट की नमी को 2 से 5 प्रतिशत तक कम किया जाता है ताकि अंकुर फूटना रुक जाए। भट्ठी में सुखाने के बाद, मॉल्ट से अंकुर निकाल दिए जाते हैं और उन्हें पीसा जाता है। अब पिसा हुआ मॉल्ट अगले चरण के लिए तैयार है।

वॉर्ट तैयार करना। पिसे हुए मॉल्ट में पानी मिलाकर दलिया तैयार किया जाता है और उसे धीरे-धीरे पकाया जाता है। एक खास तापमान तक पहुँचने पर, दलिया में मौजूद एन्ज़ाइम स्टार्च को शर्करा (simple sugars) में बदलना शुरू कर देते हैं। ऐसा चार से भी ज़्यादा घंटे तक चलता है जिसके बाद वॉर्ट तैयार होता है। वॉर्ट से गंदगी निकालने के लिए उसे छाना जाता है। इसके बाद वॉर्ट को उबाला जाता है, जिससे एन्ज़ाइम का काम रुक जाता है। वॉर्ट को उबालते वक्‍त, उसमें हॉप मिलाया जाता है और इसी से बियर को अपना कड़वा स्वाद मिलता है। तकरीबन दो घंटे उबालने के बाद वॉर्ट को एक तय किए गए तापमान तक ठंडा किया जाता है।

फर्मेन्टेशन। यह बियर बनाने का शायद सबसे अहम चरण है। वॉर्ट में यीस्ट मिलाया जाता है जिससे शर्करा, ऐल्कोहॉल और कार्बन डाइऑक्साइड में तबदील हो जाती है। इसमें ज़्यादा-से-ज़्यादा एक हफ्ते का समय लगता है। वॉर्ट को कितने तापमान में रखा जाना चाहिए, यह इस बात से तय होता है कि किस तरह की बियर तैयार की जानी है, एल (ज़्यादा शक्करवाली) या लागर (हलकी) बियर। इसके बाद इस कच्ची बियर को मच्योरेशन या पूरी तरह तैयार होने के लिए टंकियों में भरकर, तहखाने के गोदाम में रखा जाता है।

मच्योरेशन। इस चरण के दौरान बियर में उसका अनोखा स्वाद और उसकी खुशबू आ जाती है; और कुदरती तौर पर पैदा किए गए कार्बन डाइऑक्साइड की वजह से उसमें गज़ब की चमक आती है। तरह-तरह की बियर को पूरी तरह से तैयार होने में तीन हफ्ते से लेकर कुछ महीने लगते हैं। आखिरकार, बियर को बैरल या बोतलों में भरा जाता है। अब यह अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए तैयार है—हो सकता है आप तक! मगर सवाल यह है कि आप कौन-सा बियर चखना चाहेंगे?

कई तरह की बियर

दरअसल, अलग-अलग किस्म की बियर में काफी फर्क हो सकता है। आप चाहें तो फीके या गाढ़े रंग की, मीठी या कड़वी बियर पी सकते हैं, या फिर जौ या गेहूँ से बनी बियर पी सकते हैं। बियर का स्वाद कई बातों पर निर्भर होता है जैसे पानी की क्वॉलटी, मॉल्ट के किस्म, बनाने के तरीके और यीस्ट पर।

दुनिया की एक सबसे मशहूर बियर है, पिलस्नर (या, पिल्स)। यह फीकी रंग की हलकी बियर है। वैसे तो यह दुनिया भर के सैकड़ों कारखानों में तैयार की जाती है, मगर असली पिलस्नर सिर्फ चेक रिपब्लिक के पलज़ेन्या या पिलज़न नाम के कस्बे में बनती है। इस बढ़िया बियर का राज़ न सिर्फ इसे बनाने की तकनीक है, बल्कि इसमें इस्तेमाल किए जानेवाले कच्चे माल भी हैं। जैसे मीठा पानी, बेहतरीन क्वॉलिटी का मॉल्ट और सही किस्म का यीस्ट।—साथ में दिया बक्स देखिए।

एक और उम्दा किस्म की बियर है, वाइस बियर। यह गेहूँ से बनायी जाती है और खास तौर से जर्मनी में जानी-मानी है। ब्रिटेन, पोर्टर और स्टाउट बियर के लिए मशहूर है। पोर्टर बहुत कड़वी और टॉप-फर्मेन्टिड बियर है, यानी इसके फर्मेन्टशन के पूरे होने पर यीस्ट ऊपर जम जाती है। यह भूने हुए मॉल्ट से बनायी जाती है, जिसकी वजह से इसे गहरा भूरा रंग मिलता है। पोर्टर बियर को पहली बार 18वीं सदी में लंदन में बनाया गया था। शुरू-शुरू में इसे खास तौर पर कूली (जिसे अँग्रेज़ी में पोर्टर कहा जाता है) जैसे मेहनत-मशक्कत करनेवाले मज़दूरों को “पौष्टिक” पेय के तौर पर दिया जाता था। स्टाउट बियर, जो बहुत गहरे रंग की और गाढ़ी होती है, वह गिनस परिवार की बदौलत आयरलैंड में और पूरी दुनिया में मशहूर हुई। स्टाउट बियर, बरसों से बनायी जानेवाली पोर्टर बियर की ही एक अलग किस्म है। आप चाहें तो इंग्लैंड की मीठी स्टाउट बियर आज़मा सकते हैं जिसमें आम तौर पर लैक्टोस (दूध में पायी जानेवाली शर्करा) होता है, या फिर आयरलैंड की बिना शक्करवाली स्टाउट बियर आज़मा सकते हैं, जो कड़वी होती है और उसमें ऐल्कोहॉल की मात्रा ज़्यादा होती है।

बियर का लुत्फ उठानेवालों के लिए यह भी मायने रखता है कि वे उसे कैसे पीना चाहेंगे, सीधे बोतल से, कैन से या फिर बियर के एक बैरल से। अमरीका के लोग बरफ जैसी ठंडी बियर पीना पसंद करते हैं। दूसरे इसे बिना ठंडा किए या फिर थोड़ा ठंडा करके और पब में रखे बैरल से सीधा पीना पसंद करते हैं।

वाकई बियर कई तरह की होती हैं। अगर सही मात्रा में पी जाए तो यह आपकी सेहत को भी फायदा पहुँचा सकती है। देखा जाए तो इसमें कई विटामिन और ऐसे खनिज हैं जैसे राइबोफ्लेविन, फॉलिक एसिड, क्रोमियम और जस्ता। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सही मात्रा में बियर पीने से दिल की बीमारी और त्वचा के रोगों से बचा जा सकता है। अगर आप बाज़ार में मिलनेवाली कई ब्रैंड की और कई किस्म की बियर में से सही चुनाव करें और एक हद में रहकर पीएँ, तो आप इस बढ़िया स्वादवाली और ताज़गी पहुँचानेवाली जाम का लुत्फ उठा पाएँगे। तो अगली बार जब आप उमड़ते झागवाली इस सुनहरी सुरा का जाम अपने हाथ में लेंगे, तो इसकी मज़ेदार दास्तान को ज़रूर याद कीजिएगा। (g04 7/8)

[पेज 25 पर बक्स/तसवीर]

मुख्य कलाकार

बियर बनाना एक नाटक की तरह है और बीते समय में, बियर बनाने के पीछे जिन पेशेवर लोगों का हाथ था, उन्होंने कलाकारों की तरह अपना-अपना किरदार निभाया। उनमें से कुछ के बारे में नीचे बताया गया है।

मॉल्टस्टर—बियर बनाने का सबसे पहला किरदार। उसे जौ या गेहूँ से मॉल्ट बनाने का काम सौंपा गया था। वह बीज के अंकुरित होने और हरे मॉल्ट को भट्ठी में सुखाने के काम की देखरेख करता। यह उसकी एक भारी ज़िम्मेदारी थी, क्योंकि बियर का स्वाद इस पर बात पर निर्भर था कि मॉल्ट सही तरीके से बनाया गया है या नहीं।

ब्रूअर (ऊपर दिखाया गया है)—उसका काम था, मॉल्ट को उबालना। सबसे पहले वह पिसे हुए मॉल्ट में पानी मिलाता और फिर इसके उबलते वक्‍त इसमें हॉप डालता। यह सब करने के बाद, आखिर में वॉर्ट तैयार होता था।

सैल्लर मास्टर—एक तजुर्बेकार विशेषज्ञ जो लकड़ी के बने टब में रखी बियर के फर्मेन्टेशन की, साथ ही तहखाने में रखी बियर के मच्योरेशन की भी देखरेख करता। बाद में, जब बियर बनकर तैयार हो जाती, तो वह उसे छोटे-छोटे बोतलों, बैरल वगैरह में भरता।

[चित्र का श्रेय]

S laskavým svolením Pivovarského muzea v Plzni

[पेज 26 पर बक्स/तसवीरें]

पिलस्नर—इसकी सबसे ज़्यादा नकल की गयी

पिलस्नर को बनाने की शुरूआत सन्‌ 1295 में हुई। बोहिमीआ के राजा, वेन्टसास्लॉस द्वितीय ने पलज़ेन्या नाम के नगर की बुनियाद डाली और इसके कुछ समय बाद उसने वहाँ के 260 नागरिकों को बियर बनाने का अधिकार दिया। शुरू-शुरू में ये लोग अपने घरों में ही कम मात्रा में बियर बनाया करते थे, मगर बाद में उन्होंने गिल्ड या बियर तैयार करने के संघ बनाए और फिर इन संघों ने कारखाने खड़े किए। लेकिन समय के गुज़रते, जैसे-जैसे बोहिमीआ की आर्थिक हालत बिगड़ने लगी और उसकी संस्कृति मिटने लगी, तो इसका असर बियर बनाने के काम पर भी पड़ने लगा। बरसों से जिस तरीके से बियर बनायी जाती थी, उसे ठुकराकर लोगों ने अपने-अपने नुस्खे इस्तेमाल करने शुरू किए। नतीजा, वे ऐसी बदतर बियर बनाने लगे कि वह बियर कहलाने के लायक ही नहीं थी।

इस दौरान यूरोप में दो किस्म की बियर बनायी जाने लगीं। खासकर बोहिमीआ में टॉप-फर्मेन्टिड बियर बनायी गयी। मगर इससे भी बेहतरीन किस्म की बियर बवेरीआ में मशहूर थी, यानी बॉटम-फर्मेन्टिड बियर जिसमें यीस्ट नीचे जम जाती थी। बवेरीआ की लागर बियर और पलज़ेन्या की बियर में ज़मीन-आसमान का फर्क था।

सन्‌ 1839 में एक नया बदलाव आया। पलज़ेन्या नगर के करीब 200 लोगों ने हालात में सुधार लाने का फैसला किया। उन्होंने बर्जेस ब्रुअरी नाम के कारखाने की शुरूआत की, ताकि बवेरीआ की तरह बियर बना सकें। फिर बियर बनानेवाली एक नामी हस्ती, योज़ेफ ग्रॉल को बवेरीआ से बुलाया गया। उसने आते ही बवेरीआ जैसी बॉटम-फर्मेन्टिड बियर बनानी शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि उसकी बियर, बवेरीआ की बियर से बिलकुल अलग थी, दरअसल उससे भी बेहतर थी। ग्रॉल ने कभी सोचा भी नहीं था कि यह इतनी बढ़िया होगी। ग्रॉल के तजुर्बे और पलज़ेन्या के बढ़िया कच्चे माल से जो बियर बनकर तैयार हुई, वह देखते-ही-देखते पूरी दुनिया में छा गयी। भला क्यों? क्योंकि उस बियर का स्वाद, रंग और उसकी खुशबू अपने आप में बेमिसाल थी। लेकिन, पलज़ेन्या की बियर के मशहूर होने के साथ-साथ काफी नुकसान भी हुआ। बियर बनानेवाले बहुत-से लोग ज़्यादा मुनाफा कमाने के लिए अपनी बियर को भी पिलस्नर नाम देने लगे। इस तरह पिलस्नर बियर न सिर्फ मशहूर हुई, बल्कि ऐसी सुनहरी सुरा बनी जिसकी दुनिया में सबसे ज़्यादा नकल की गयी।

[तसवीरें]

योज़ेफ ग्रॉल

पलज़ेन्या के एक कारखाने की पानी की मीनार

[चित्र का श्रेय]

S laskavým svolením Pivovarského muzea v Plzni

[पेज 24 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

पलज़ेन्या

[पेज 24 पर तसवीर]

एक मिस्री नमूना जिसमें रोटी और बियर तैयार करना दिखाया गया है

[चित्र का श्रेय]

Su concessione del Ministero per i Beni e le Attività Culturali - Museo Egizio - Torino

[पेज 27 पर तसवीर]

हॉप, मॉल्ट और बियर का एक कारखाना