इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अपने बच्चे की परवरिश करने की अहमियत

अपने बच्चे की परवरिश करने की अहमियत

अपने बच्चे की परवरिश करने की अहमियत

एक इंसान बचपन में क्या सीखता है या क्या नहीं सीखता, इसका आगे चलकर उसकी काबिलीयतों पर असर पड़ सकता है। तो फिर, बच्चों को अपने माता-पिता से क्या चाहिए ताकि वे बड़े होकर समझदार बनें और ज़िंदगी में कामयाब हो सकें? गौर कीजिए कि हाल के दशकों में की गयी खोजों से कुछ लोग किस नतीजे पर पहुँचे हैं।

सिनैप्सिस का काम

नयी टैक्नोलॉजी की बदौलत आज एक इंसान के मस्तिष्क को काम करते हुए देखना मुमकिन हो गया है। अब वैज्ञानिक, कंप्यूटर की मदद से मस्तिष्क के विकास का और भी बारीकी से अध्ययन कर पाते हैं। ये अध्ययन दिखाते हैं कि बचपन का शुरूआती दौर बहुत ही नाज़ुक होता है, क्योंकि तब बच्चे का दिमाग जानकारी को समझना, आम लोगों की तरह अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करना और भाषा अच्छी तरह बोलना सीखता है। पत्रिका, देश (अँग्रेज़ी) कहती है: “माता-पिता से मिली खूबियों और परवरिश की वजह से बच्चे के मस्तिष्क की रचना जैसे-जैसे बदलती है, वैसे-वैसे मस्तिष्क में पायी जानेवाली तंत्रिका कोशिकाओं की कड़ियाँ तेज़ी से बनने लगती हैं।”

वैज्ञानिकों का मानना है कि इन तंत्रिका कोशिकाओं के बीच की ज़्यादातर कड़ियाँ बच्चे के शुरूआती सालों में ही बनती हैं। इन कड़ियों को सिनैप्सिस कहा जाता है और इन्हीं के ज़रिए शरीर के अलग-अलग हिस्सों तक संदेश पहुँचाया जाता है। बाल-विकास विशेषज्ञ, डॉ. टी. बेरी ब्रेज़लटन के मुताबिक, यही वह उम्र है जब “बच्चे के भविष्य की नींव डाली जाती है। यानी तंत्रिका कोशिकाओं की जो कड़ियाँ अभी बनती हैं, उन्हीं से आगे चलकर तय होता है कि बच्चा कितना होशियार बनेगा, वह खुद को कितना समझ पाएगा, दूसरों पर कितना भरोसा रख पाएगा और उसमें सीखने की कितनी उमंग होगी।”

बच्चे के पहले चंद सालों में उनके मस्तिष्क का आकार और उसकी रचना तेज़ी से बढ़ती है, साथ ही उनका दिमाग तरह-तरह के काम करने लगता है। अगर बच्चे को एक भरे-पूरे माहौल में नयी-नयी बातें सिखायी जाएँ और उनके दिमाग को काम करने के लिए उभारा जाए, तो सिनैप्सिस की ज़्यादा कड़ियाँ बनेंगी और इससे मस्तिष्क की कोशिकाओं का एक बड़ा जाल तैयार होगा। इसी बड़े जाल की मदद से वे सोचने, सीखने और तर्क करने की काबिलीयत बढ़ा पाएँगे।

एक शिशु के मस्तिष्क को जितना ज़्यादा उभारा जाएगा, उतनी ही ज़्यादा तादाद में तंत्रिका कोशिकाएँ काम करने लगेंगी। नतीजा, इन कोशिकाओं के बीच और ज़्यादा कड़ियाँ बनेंगी। यह गौरतलब है कि बच्चे को सिर्फ जानकारी देकर, गिनती या भाषा सिखाकर उसके मस्तिष्क को उभारा नहीं जाता। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इसके लिए उन्हें प्यार देना भी ज़रूरी है। अध्ययनों से पता चला है कि जिन शिशुओं को कभी गोद में उठाया नहीं जाता, प्यार से सहलाया नहीं जाता, उनके साथ खेला नहीं जाता या उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता, उनके मस्तिष्क में सिनैप्सिस की बहुत कम कड़ियाँ बनती हैं।

क्या परवरिश का बच्चे की काबिलीयतों पर असर पड़ता है?

जब बच्चा बड़ा होने लगता है, तो उसके मस्तिष्क में एक तरह की काट-छाँट होती है। उसका शरीर, मस्तिष्क की उन कड़ियों को छाँट देता है जो किसी काम की नहीं होतीं। इसका बच्चे की काबिलीयतों पर गहरा असर पड़ सकता है। मस्तिष्क का अध्ययन करनेवाले मैक्स सीनाडर कहते हैं: “अगर सही उम्र में बच्चे के मस्तिष्क को ठीक से न उभारा जाए, तो तंत्रिका कोशिकाओं की कड़ियाँ ठीक से नहीं बन पाएँगी।” डॉ. जे. फ्रेज़र मस्टर्ड कहते हैं कि अंजाम यह हो सकता है कि बच्चे का आई.क्यू. लेवल कम हो (दिमाग तेज़ न हो), वह बातचीत करने और गणित में इतना होशियार न हो, बड़ा होने पर उसे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ हों, यहाँ तक कि वह दूसरों के साथ ठीक से बर्ताव भी न कर पाए।

इन सारी बातों से ऐसा लगता है कि छुटपन में एक शिशु जो अनुभव करता है, उसका असर बड़े होने पर ज़रूर होता है। बचपन के शुरूआती सालों में वह जो भी तजुरबा हासिल करता है, उससे तय होगा कि वह आगे चलकर कैसा इंसान बनेगा। वह समस्याओं या बदलावों का डटकर सामना करनेवाला इंसान बनेगा या नहीं, समझ से काम लेगा या सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करेगा, और उसमें हमदर्दी जताने की काबिलीयत होगी या नहीं। लिहाज़ा, बच्चों की परवरिश में माता-पिता एक अहम भूमिका निभाते हैं। एक बाल-चिकित्सक का कहना है: “बचपन के इस नाज़ुक दौर में प्यार और परवाह करनेवाले एक माँ या पिता की मौजूदगी बेहद ज़रूरी है।”

यह कहना तो आसान है कि अगर आप अपने बच्चों की सही परवरिश करेंगे, उनका खयाल रखेंगे, तो वे फूले-फलेंगे। मगर माता-पिता जानते हैं कि बच्चों की सही तरह से देखभाल करना हमेशा आसान नहीं होता। अपने बच्चों की अच्छी परवरिश कैसे करें, यह एक माता-पिता अपने आप नहीं सीख जाता।

एक अध्ययन में जब माता-पिताओं से सवाल पूछे गए, तो जवाब में 25 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें इस बात की खबर नहीं थी कि वे जिस तरह अपने बच्चों की देखभाल करते हैं, उससे उनकी दिमागी काबिलीयत तेज़ या धीमी हो सकती है, उनका आत्म-विश्‍वास और सीखने की ललक बढ़ या घट सकती है। इससे कुछ सवाल उठते हैं: आपके बच्चों में जो काबिलीयतें हैं, उन्हें अच्छी तरह बढ़ाने का सबसे उम्दा तरीका क्या है? आप उनके लिए सही माहौल कैसे पैदा कर सकते हैं? आइए अगले लेख में इनका जवाब देखें। (g04 10/22)

[पेज 6 पर तसवीर]

जिन बच्चों के दिमाग को उभारने के बजाय, उन्हें अकेला छोड़ दिया जाता है, उनका विकास दूसरों के बनिस्बत कम होता है