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ग्लाउकोमा—निगाहों का चोर

ग्लाउकोमा—निगाहों का चोर

ग्लाउकोमा—निगाहों का चोर

थोड़ी देर के लिए अपनी नज़र इस वाक्य के आखिरी शब्द पर टिकाए रखिए। अपनी आँखों को घुमाए बगैर, क्या आप इस पन्‍ने के ऊपर, नीचे और आस-पास की कुछ जगह देख पाए? आप ज़रूर देख पाए होंगे। यह पैरिफेरल विशन की वजह से मुमकिन होता है। इसी की बदौलत आप दाएँ या बाएँ से आपकी तरफ आनेवाले किसी अजनबी को देख पाते हैं। यही विशन आपको ज़मीन पर पड़ी किसी चीज़ पर पैर रखने और चलते-चलते दीवार से टकराने से बचाती है। अगर आप गाड़ी चला रहे हैं और किनारे पर चल रहा कोई इंसान अचानक सड़क पर आ जाता है, तो पैरिफेरल विशन की वजह से ही आप फौरन सावधान हो जाते हैं।

लेकिन जैसे-जैसे आप इस पन्‍ने को पढ़ रहे होते हैं, वैसे-वैसे आपका पैरिफेरल विशन शायद कमज़ोर होता जाए और आपको पता भी न चले। इस बीमारी को ग्लाउकोमा कहा जाता है और अंदाज़ा लगाया गया है कि दुनिया-भर में लगभग 6.6 करोड़ लोग इस रोग के शिकार हैं। यह आँखों की अलग-अलग बीमारियों का एक समूह है। उन 6.6 करोड़ लोगों में से 50 लाख से भी ज़्यादा लोग पूरी तरह अंधे हो चुके हैं, इसलिए ग्लाउकोमा को हमेशा के लिए अंधा होने की तीसरी सबसे बड़ी वजह बताया गया है। चिकित्सा पत्रिका द लैन्सेट कहती है: “विकसित देशों में आम जनता को ग्लाउकोमा के बारे में जानकारी देने के कार्यक्रम चलाए जाते हैं, फिर भी यहाँ इस रोग से पीड़ित आधे लोगों को खबर नहीं कि उन्हें यह बीमारी है।”

ग्लाउकोमा के शिकार होने का खतरा किसे है? इसका पता कैसे लगाया जाता है और इसका इलाज क्या है?

ग्लाउकोमा क्या है?

सबसे पहले, हमें अपनी आँखों के बारे में कुछ जानने की ज़रूरत है। ‘ग्लाउकोमा फाउंडेशन ऑफ ऑस्ट्रेलिया’ के द्वारा प्रकाशित एक ब्रोशर ने समझाया: “आँखों का आकार, उनके दबाव की वजह से होता है। जिस तरह गाड़ी के पहिये या गुब्बारे में हवा भरकर उसे फुलाया जाता है, उसी तरह आँखों के नर्म ऊतकों को ‘फुला’ दिया जाता है।” आँखों को फुलाने के लिए उसके अंदर एक पंप होता है जिसे सिलरी बॉडी कहा जाता है। यह पंप एक्वुअस ह्‍यूमर नाम के द्रव को खून की नलियों से खींचकर आँखों में भरता है। यह “एक्वुअस, आँखों के एकदम भीतर रहता है, और लैंस, आइरिस और कॉर्निया के अंदर के भाग को पोषित करता है। फिर यह ट्रेबेक्यूलर मेशवर्क नाम की छलनी जैसे ढाँचे से होते हुए खून की नली में लौट जाता है।”

अगर यह छलनी किसी कारण जाम हो जाए या सिकुड़ जाए, तो आँखों के अंदर दबाव बढ़ जाता है और इससे उनके पीछे, नसों के नाज़ुक रेशे धीरे-धीरे नष्ट होने लगते हैं। इसे ओपन-ऐंगल ग्लाउकोमा कहते हैं। ग्लाउकोमा से पीड़ित सभी लोगों में से तकरीबन 90 प्रतिशत को इस तरह का ग्लाउकोमा है।

आपकी आँखों के अंदर के दबाव को इन्ट्राऑक्यूलर प्रेशर (IOP) कहा जाता है। यह हरेक घंटे में बदलता रहता है। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे आपके दिल की धड़कन, आप पानी जैसे तरल पदार्थ कितना पीते हैं और आपके शरीर की मुद्रा क्या है। लेकिन दबाव के बदलते रहने से आपकी आँखों को कोई नुकसान नहीं पहुँचता। आँखों में दबाव का बढ़ना, ग्लाउकोमा का एकमात्र लक्षण नहीं है, क्योंकि लोगों में “सामान्य” दबाव का स्तर अलग-अलग होता है। फिर भी IOP का बढ़ना, ग्लाउकोमा के लक्षणों में से एक है।

एक तरह का ग्लाउकोमा जो बहुत कम लोगों में पाया जाता है, वह है, एक्यूट या ऐंगल-क्लोज़र ग्लाउकोमा। यह ओपन-ऐंगल ग्लाउकोमा से अलग है, क्योंकि इसमें आँखों का दबाव अचानक बढ़ जाता है। इससे आँखों में बहुत दर्द होता है, साथ ही नज़र धुँधली पड़ जाती है और उल्टियाँ होती हैं। अगर कुछ ही घंटों के अंदर इलाज न किया जाए, तो लोग अंधे हो सकते हैं। एक और तरह के ग्लाउकोमा को सेकेंडरी या द्वितीय ग्लाउकोमा कहते हैं। नाम से ही पता चलता है कि यह रोग, आँखों में कुछ समस्या होने के बाद होता है, जैसे ट्यूमर, मोतियाबिंद या आँखों में चोट लगना। चौथे किस्म के ग्लाउकोमा को कोंजेनिटल या पैदाइशी ग्लाउकोमा कहा जाता है। बहुत कम लोग इस रोग के शिकार हैं। यह रोग या तो पैदाइशी होता है या फिर जन्म के कुछ ही समय बाद होता है। इससे पीड़ित शिशुओं की आँखें बड़ी-बड़ी और सूजी हुई लगती हैं और उन्हें ज़रा-सी रोशनी से भी तकलीफ होती है।

यह आँखों की रोशनी कैसे “चुराता” है

ग्लाउकोमा आपकी एक आँख की तकरीबन 90 प्रतिशत रोशनी चुरा सकता है और आपको इसका पता तक नहीं चलेगा। यह कैसे मुमकिन है? हम सभी की आँखों के पीछे एक बिंदु होती है जिसे अंध-बिन्दु (blind spot) कहा जाता है। यह बिंदु, रेटिना का वह भाग है जहाँ पर नसों के रेशे साथ मिलकर ऑप्टिक नर्व बनते हैं। इस बिंदु में वे कोशिकाएँ नहीं होतीं जिन तक रोशनी पहुँचती है। दरअसल, इस बिंदु की वजह से आपको पूरी तसवीर नहीं मिलती, फिर भी आपको इसका पता नहीं चलता। क्योंकि हमारे मस्तिष्क में ऐसी काबिलीयत है जो किसी भी तसवीर के बचे-खुचे खाली हिस्सों को भर देती है। लेकिन दु:ख की बात है कि मस्तिष्क की इसी काबिलीयत की वजह से हम नहीं जान पाते कि ग्लाउकोमा धीरे-धीरे हमारी नज़रों को नष्ट कर रही है।

ऑस्ट्रेलिया के एक बड़े नेत्र-रोग विशेषज्ञ, डॉ. आइवन गोल्डबर्ग ने सजग होइए! को बताया: “ग्लाउकोमा को नज़रों का ऐसा चोर बताया गया है जो चुपके से आकर सबकुछ साफ कर जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि ग्लाउकोमा के शिकार एक इंसान में उसके लक्षण नज़र नहीं आते। सबसे आम किस्म का ग्लाउकोमा, धीरे-धीरे और लगातार बढ़ता जाता है। यह बिना कोई चेतावनी दिए उन तंत्रिकाओं को नष्ट करने लगता है जो आँखों को मस्तिष्क के साथ जोड़ती हैं। चाहे आपकी आँखों से पानी निकलता हो या नहीं, वे सूखी रहती हों या नहीं, कुछ पढ़ते-लिखते वक्‍त वे अच्छी तरह से देख पाती हों या नहीं, इन सबका ग्लाउकोमा के साथ कोई नाता नहीं। आपकी आँखें बिलकुल भली-चंगी लग सकती हैं, फिर भी आप ग्लाउकोमा के चंगुल में बुरी तरह फँसे हुए हो सकते हैं।

चोर का पता लगाना

अफसोस, आज ऐसी कोई चिकित्सीय जाँच मौजूद नहीं, जिससे एक ही बार में ग्लाउकोमा का ठीक-ठीक पता लगाया जा सके। टोनोमीटर नाम के यंत्र की मदद से, एक नेत्र-विशेषज्ञ सबसे पहले आपकी आँखों के अंदर द्रव का दबाव देखता है। इस यंत्र का इस्तेमाल करके आपकी आँखों के सामने के हिस्से, यानी कॉर्निया को धीरे-से चपटा किया जाता है। ऐसा करने के लिए कितना दबाव डालने की ज़रूरत पड़ती है, यह मापा जाता है। इस तरह आपकी आँखों के अंदर के दबाव का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा, नेत्र-विशेषज्ञ कुछ उपकरणों का इस्तेमाल करके, आँखों को मस्तिष्क से जोड़नेवाली तंत्रिकाओं की जाँच करता है ताकि यह जान सके कि कोई नस खराब तो नहीं हो गयी। डॉ. गोल्डबर्ग कहते हैं: “हम देखने की कोशिश करते हैं कि आँखों के पीछे, नसों के रेशे या खून की नलियाँ कहीं अजीब आकार की तो नहीं हैं, क्योंकि यह नसों के खराब होने की एक निशानी हो सकती है।”

ग्लाउकोमा का पता लगाने का एक और तरीका है, यह जाँचना कि एक ही दिशा में देखते वक्‍त आँखों को आस-पास का कितना इलाका नज़र आता है। इसे विज़ुअल-फील्ड टेस्टिंग कहते हैं। डॉ. गोल्डबर्ग समझाते हैं: “एक व्यक्‍ति सफेद रोशनी के गुम्मट के अंदर देखता है, और उस गुम्मट के अंदर एक छोटे-से भाग में उससे भी तेज़ सफेद रोशनी चमकायी जाती है। जब वह तेज़ रोशनी को देख पाता है, तो एक बटन दबाता है।” आपकी आँखों को नज़र आनेवाले इलाके के बाहर, जब तेज़ रोशनी चमकायी जाती है, तब अगर आप उसे पहचानने में नाकाम हो गए, तो इसका मतलब है कि आपको ग्लाउकोमा है। जाँच करने के इस लंबे-चौड़े तरीके को आसान बनाने के लिए फिलहाल कुछ नए उपकरण तैयार किए जा रहे हैं।

खतरा किसे है?

पॉल एक सेहतमंद आदमी है, और उसकी उम्र 40-45 के बीच है। वह कहता है: “नया चश्‍मा बनवाने के लिए, मैं अपनी आँखों की जाँच करवाने डॉक्टर (optomerist) के पास गया। डॉक्टर ने मुझसे पूछा कि क्या मेरे खानदान में किसी को ग्लाउकोमा है। अपने परिवारवालों से पूछताछ करने पर पता चला कि मेरी मौसी और मामा, दोनों को यह रोग था। फिर मुझे एक नेत्र-विशेषज्ञ के पास जाने की सलाह दी गयी, जिसने यह बात पुख्ता कर दी कि मुझे ग्लाउकोमा है।” डॉ. गोल्डबर्ग समझाते हैं: “अगर आपके माँ-बाप में से किसी एक को ग्लाउकोमा है, तो आपको इस बीमारी के होने का खतरा तीन से पाँच गुना बढ़ जाता है। और अगर आपका भाई या बहन इस रोग का शिकार है, तो आपको यह बीमारी लगने का खतरा पाँच से सात गुना बढ़ जाता है।”

अमरीका के ‘ग्लाउकोमा फाउंडेशन’ के डॉ. केविन ग्रीनिज, खतरे के दूसरे कारण समझाते हैं। वे कहते हैं: “अगर आपकी उम्र 45 से ऊपर है और आप अफ्रीकी वंश से हैं, या आगे दिए कारणों में से कोई भी एक आप पर लागू होता है, तो हर साल अपनी आँखों की जाँच करवाइए। ये कारण हैं: खानदान में किसी को ग्लाउकोमा है, दूर की चीज़ें दिखायी नहीं देतीं (nearsightedness), आपको डायबिटीज़ है, आँखों को पहले कभी चोट लगी है, या आप कॉर्टिसोन/स्टीरॉइड से बनी चीज़ें लगातार इस्तेमाल करते हैं।” अगर इनमें से कोई भी कारण आप पर लागू नहीं होता और आपकी उम्र 45 से कम है, तो भी ‘ग्लाउकोमा फाउंडेशन’ का सुझाव है कि हर चार साल में एक बार आपको यह पता करने के लिए अपनी आँखों की जाँच करवा लेनी चाहिए कि कहीं आपको ग्लाउकोमा तो नहीं है। और अगर आपकी उम्र 45 से ऊपर है, तो आपको यह जाँच हर दो साल में एक बार करवानी चाहिए।

इलाज कीजिए और काबू पाइए

पॉल को अपने ग्लाउकोमा के इलाज के लिए दिन में एक बार खास तरह की दवा आँखों में डालनी पड़ती है। वह कहता है: “मैं जो दवा डालता हूँ, वह आँखों के अंदर एक्वुअस द्रव को बनने से रोकता है।” इसके अलावा, पॉल ने अपना ऑपरेशन भी करवाया था। इसमें आँखों के सामने, जहाँ द्रव जाने की कई प्राकृतिक नलियाँ (ट्रेबेक्युलर मेशवर्क) हैं, उसके पास ही लेज़र किरणों से करीब दस छोटे-छोटे छेद “ड्रिल” किए गए। पॉल कहता है: “जब पहली बार लेज़र किरणों से मेरी एक आँख में छेद किया गया, तब मैं बहुत ही घबराया हुआ था, जिस वजह से मुझे अजीब-सा लगने लगा। लेकिन कुछ ही दिनों बाद, जब मेरी दूसरी आँख पर छेद किया गया, तब मैं जानता था कि इसमें क्या-क्या शामिल है। इसलिए मैं बिलकुल घबराया नहीं, और मुझे पता तक नहीं चला कि ऑपरेशन कब खत्म हो गया।” इस तरह इलाज करवाने की वजह से, पॉल की आँखों का दबाव काबू में है।

इसलिए अब पॉल अपनी आँखों के बारे में भले की उम्मीद करता है। वह कहता है: “मेरे रेटिना को सिर्फ हलका-सा नुकसान हुआ है। शुक्र है कि मेरी पैरिफेरल विशन अब भी सही-सलामत है। अगर हर दिन मैं याद से अपनी आँखों में दवा डालूँ, तो मेरी पैरिफेरल विशन आगे भी इसी तरह सही-सलामत रहेगी।”

क्या ‘चुपके से आनेवाला चोर’ आपकी आँखों की रोशनी चुरा रहा है? अगर आपने पहले कभी ग्लाउकोमा का पता लगाने के लिए अपनी आँखों की जाँच नहीं करवायी है, तो अक्लमंदी इसी में होगी कि आप अपने डॉक्टर से जाँच करने के लिए कहें। और अगर ग्लाउकोमा के जो कारण ऊपर बताए गए हैं, उनमें से एक भी आप पर लागू होता है, तो जाँच करवाना आपके लिए बहुत ज़रूरी है। जैसे डॉ. गोल्डबर्ग बताते हैं, “अगर वक्‍त पर और सही तरह का इलाज किया जाए, तो ग्लाउकोमा से होनेवाले ज़्यादातर नुकसान से बचा जा सकता है।” जी हाँ, आप चाहे तो आँखों की रोशनी चुरानेवाले इस चोर को मार भगा सकते हैं! (g04 10/8)

[पेज 26 पर बक्स/तसवीर]

आपको ग्लाउकोमा होने का ज़्यादा खतरा है, अगर

● आप अफ्रीकी वंश से हैं

● आपके खानदान में किसी को ग्लाउकोमा है

● आपको डायबिटीज़ है

● आपको दूर की चीज़ें दिखायी नहीं देतीं

● आप लंबे अरसे से लगातार कॉर्टिसोन/स्टीरॉइड से बनी चीज़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसे कुछ मरहम या दमा के लिए स्प्रे

● आपकी आँखों को पहले कभी चोट लगी थी

● आपकी उम्र 45 से ऊपर है

[पेज 28 पर तसवीर]

समय-समय पर जाँच करवाने से आँखों की ज़्यादातर रोशनी खोने का खतरा टाला जा सकता है

[पेज 25 पर रेखाचित्र/तसवीरें]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

ओपन-ऐंगल ग्लाउकोमा

कॉर्निया

लैंस

आइरिस

रेटिना

ऑप्टिक डिस्क या अंध-बिन्दु में नसों के रेशे साथ मिलकर ऑप्टिक नर्व बनते हैं

ऑप्टिक नर्व दिखनेवाली चीज़ों का संदेश मस्तिष्क तक पहुँचाता है

सिलरी बॉडी में द्रव बनता है

1 एक्वुअस ह्‍यूमर एक ऐसा साफ द्रव है जो लैंस, आइरिस और कॉर्निया के अंदर के भाग को पोषित करता है। यह हमारे आँसुओं की तरह नहीं है, जो आँख के बाहरी हिस्से को धोते हैं

2 ट्रेबेक्यूलर मेशवर्क द्रव को छानता है

3 अगर मेशवर्क जाम हो जाए या सिकुड़ जाए, तो आँख के अंदर दबाव बढ़ जाता है

4 अगर दबाव बढ़ जाए तो आँखों के पीछे, नसों के नाज़ुक रेशे नष्ट होने लगते हैं, जिससे ग्लाउकोमा होता है या नज़र कमज़ोर पड़ जाती है

[पेज 25 पर तसवीरें]

ऑप्टिक डिस्क

आपको क्या दिखायी देगा

आम नज़र

शुरूआती ग्लाउकोमा

ग्लाउकोमा बहुत बढ़ जाने पर

[चित्र का श्रेय]

ऑप्टिक डिस्क की तसवीरें: Courtesy Atlas of Ophthalmology