विश्व-दर्शन
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दिमाग—काम के बोझ का मारा?
कनाडा के अखबार टोरोन्टो स्टार में दी गयी रिपोर्ट के मुताबिक कुछ खोजकर्ताओं का कहना है कि “एक-साथ ढेर सारे काम करने से दिमाग पर बहुत ज़्यादा दबाव पड़ता है।” अध्ययन दिखाते हैं कि एक ही वक्त पर कई काम करने से काम अच्छी तरह नहीं हो पाता और गलतियाँ ज़्यादा होती हैं। यहाँ तक कि एक इंसान तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो सकता है। जैसे, “याददाश्त कम होना, पीठ दर्द, शरीर का इतना कमज़ोर हो जाना कि आसानी से फ्लू और बदहज़मी होने का खतरा रहे, यहाँ तक कि दाँतों और मसूड़ों में तकलीफ।” ‘अमरीकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थानों’ के अध्ययन दिखाते हैं कि जब लोग कुछ कर रहे होते हैं, तो मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्से काम करने लगते हैं। लेकिन जब वे एक ही समय पर दो या उससे ज़्यादा काम करने की कोशिश करते हैं, जैसे गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल फोन पर बात करना, तो “असल में दिमाग काम करना बंद करने लगता है।” यह बात एमरी यूनिवर्सिटी के तंत्रिका-विज्ञानी, डॉ. जॉन स्लेडके ने कही। वे आगे कहते हैं, “दिमाग में ऐसे काम करने की काबिलीयत नहीं होती, इतना ही नहीं, वह काम करने से साफ इनकार कर देता है।” खोजकर्ताओं के मुताबिक, लोगों को चाहिए कि वे एक वक्त पर एक काम करें और इस हकीकत को कबूल करें कि उनका दिमाग वह सारे काम नहीं कर सकता जिनकी वे माँग करते हैं। (g04 10/22)
सबसे ज़्यादा अनुवाद की जानेवाली किताब
बाइबल, आज भी दुनिया में सबसे ज़्यादा अनुवाद की जानेवाली किताब है। दुनिया में तकरीबन 6,500 भाषाएँ बोली जाती हैं, जबकि पूरी बाइबल और इसके कुछ भाग 2,355 भाषाओं में मौजूद हैं। यह अफ्रीका की 665, एशिया की 585, प्रशांत महासागर के देशों की 414, लातीनी अमरीका और कैरिबियन की 404, यूरोप की 209 और उत्तर-अमरीका की 75 भाषाओं में उपलब्ध है। ‘द युनाइटेड बाइबल सोसाइटीस’ फिलहाल कुछ 600 भाषाओं में बाइबल का अनुवाद करने में मदद दे रही हैं। (g04 12/8)
टी.वी. नन्हे-मुन्नों के लिए खतरनाक?
मेक्सिको सिटी के अखबार द हेरल्ड में यह रिपोर्ट दी गयी कि “टी.वी. देखनेवाले नन्हे-मुन्ने जब स्कूल जाने की उम्र के होते हैं, तब उनमें ठीक से ध्यान न दे पाने की समस्या का ज़्यादा खतरा होता है।” इस रिपोर्ट में पीडिएट्रिक्स नाम की चिकित्सा पत्रिका में प्रकाशित किए गए एक अध्ययन का हवाला दिया गया था। वह अध्ययन कुल 1,345 बच्चों के दो समूहों पर किया गया था। एक समूह, एक साल के बच्चों का और दूसरा, तीन साल के बच्चों का था। इस अध्ययन के मुताबिक, जब बच्चे सात साल के होते हैं तब तक दिन में टी.वी. देखने में बिताए हर एक घंटे के हिसाब से ध्यान न दे पाने की समस्या 10 प्रतिशत बढ़ जाती है। खोजकर्ता मानते हैं कि “ज़्यादातर टी.वी. कार्यक्रमों में काल्पनिक बातें दिखायी जाती हैं, साथ ही ज़िंदगी का हर काम फटाफट होता हुआ दिखाया जाता है। [छोटे-छोटे बच्चे] जब यह सब देखते हैं, तो उनके दिमागी विकास पर बुरा असर पड़ सकता है।” इस अध्ययन के लेखक डॉ. डिमीट्री क्रिस्टाकिस कहते हैं: “सच तो यह है कि बच्चों को टी.वी. देखने से मना करने के कई कारण हैं। दूसरे अध्ययन दिखाते हैं कि [टी.वी. देखना] मोटापा और गुस्सैल स्वभाव को बढ़ावा देता है।” (g04 12/22)
हँसना अच्छी दवा है
यू.सी. बर्कले वैलनॆस लैटर रिपोर्ट करता है: “स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के तंत्रिका-विज्ञानियों ने एक और वजह का पता लगाया है कि हँसने पर हम क्यों अच्छा महसूस करते हैं। इन विज्ञानियों ने ठहाकेदार कार्टून्स पढ़ रहे लोगों के मस्तिष्क में हो रही हलचल की जाँच की। उन्होंने पाया कि मज़ाक करने और हँसने से दिमाग के ‘इनाम केंद्र’ (reward centers) काम करना शुरू कर देते हैं।” ये ‘इनाम केंद्र’ मस्तिष्क के वे भाग हैं जिन पर दिमाग को अच्छी तरह काम करने के लिए दिए जानेवाले ड्रग्स असर करते हैं। वैलनॆस लैटर कहता है: “हँसने से तनाव कम होता है, मन शांत होता है और दिल में उमंग भर आता है।” हँसने से हमारे अंदर ज़्यादा-से-ज़्यादा हार्मोन पैदा होने लगते हैं और दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। इतना ही नहीं, हमारे खून का बहाव भी अच्छा होता है और माँसपेशियों में लचीलापन आता है। वैलनॆस लैटर आगे कहता है: “वाकई, दिल खोलकर हँसना एक तरह की कसरत है। मगर, यह कोई कैलोरी घटाने की दवा नहीं है। इसलिए आप हँसते-हँसते लोट-पोट ज़रूर हो जाओगे, पर दुबले नहीं।” (g04 9/22)