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अपने लक्ष्य को हासिल करने पर अटल

अपने लक्ष्य को हासिल करने पर अटल

अपने लक्ष्य को हासिल करने पर अटल

मार्टा शावस सरना की ज़ुबानी

यह तब की बात है जब मैं 16 साल की थी। एक दिन घर पर काम करते-करते अचानक मैं बेहोश हो गयी। जब मुझे होश आया तो मैं बिस्तर पर थी। सिर दर्द से फटा जा रहा था और मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। थोड़ी देर के लिए मुझे न तो कुछ दिखायी दिया, न ही सुनायी दिया। डर के मारे मेरा दिल बैठ गया। यह मुझे क्या हो गया था?

मेरे मम्मी-डैडी बहुत परेशान हो गए और मुझे डाक्टर को दिखाने ले गए। उसने बताया कि नींद की कमी की वजह से मुझे दौरा पड़ा था और फिर उसने कुछ विटामिन लेने को कहा। मगर कुछ महीनों बाद मुझे दूसरी और तीसरी बार फिर दौरा पड़ा। इस बार मम्मी-डैडी मुझे दूसरे डाक्टर के पास ले गए। उसे लगा कि नसों में तनाव की वजह से मुझे दौरे पड़ रहे हैं, इसलिए उसने तनाव से राहत पहुँचाने के लिए कुछ दवाइयाँ दीं।

मगर हुआ यह कि मुझे पहले से ज़्यादा दौरे पड़ने लगे। मैं बार-बार बेहोश होकर गिर पड़ती थी और इस वजह से मैंने काफी चोटें भी खायीं। कभी-कभी तो मैं अपनी जीभ और अंदर के गाल को ज़ोर से काट लेती थी। और जब मुझे होश आता तो मेरे सिर में ज़बरदस्त दर्द होता था और मुझे मतली आती थी। बदन दर्द से मैं बेहाल रहती थी और अकसर दौरे से पहले की कुछ भी बातें मुझे याद नहीं रहती थी। ठीक होने के लिए मुझे कम-से-कम एक या दो दिन पूरी तरह आराम करना पड़ता था। इसके बावजूद, मुझे लगता था कि यह बीमारी बस कुछ ही दिनों की है और मैं जल्द ठीक हो जाऊँगी।

मेरे लक्ष्यों पर असर

मेरे परिवार ने जब यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया तब मैं काफी छोटी थी। हमें बाइबल सिखाने के लिए दो खास पायनियर यानी पूरे समय के प्रचारक आते थे। खास पायनियर, हर महीने दूसरों को बाइबल की सच्चाई सिखाने में कई घंटे बिताते हैं। मैंने देखा कि ये पायनियर अपनी सेवा में कितने खुश थे। और जब मैंने अपने स्कूल की टीचर और साथियों को बाइबल में दिए वादों के बारे में बताना शुरू किया, तो मैं भी उन पायनियरों की तरह खुशी महसूस करने लगी।

बाइबल अध्ययन शुरू करने के कुछ समय बाद, मेरे परिवार के कई सदस्य यहोवा के साक्षी बन गए। दूसरों को खुशखबरी सुनाना मुझे कितना अच्छा लगता था! जब मैं सात साल की थी, तो मैंने लक्ष्य रखा कि मैं भी बड़ी होकर खास पायनियर बनूँगी। और 16 साल की उम्र में मैंने अपने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सबसे ज़रूरी कदम उठाया। मैंने बपतिस्मा लिया। इसके बाद मुझे दौरे पड़ने शुरू हुए।

पायनियर सेवा

बीमार होने पर भी मुझे यकीन था कि मैं यहोवा की एक साक्षी के नाते पूरे समय की सेवा कर सकती हूँ। मगर उस वक्‍त मुझे हफ्ते में दो बार दौरे पड़ते थे। इसलिए कलीसिया के कुछ लोगों का कहना था कि मुझे इतनी भारी ज़िम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए। उनकी यह बात सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ और मैं निराश हो गयी। कुछ वक्‍त बाद, मेक्सिको के शाखा दफ्तर में सेवा करनेवाला एक जोड़ा हमारी कलीसिया में आया। जब उन्हें पता चला कि मैं पायनियर बनना चाहती हूँ, तो उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया। उन्होंने मुझे यकीन दिलाया कि मैं अपनी बीमारी के बावजूद पायनियर सेवा कर सकती हूँ।

फिर क्या था, सितंबर 1,1988 को मुझे अपने ही शहर, सान आनड्रेस चीआयूतला जो मेक्सिको में है, पायनियर नियुक्‍त किया गया। हर महीने मैं खुशखबरी सुनाने में कई घंटे बिताती थी। जब दौरा पड़ने की वजह से मैं प्रचार के लिए नहीं जा पाती, तो मैं चिट्ठियाँ लिखकर गवाही देती थी। मैं अपने प्रचार के इलाके में रहनेवालों को बाइबल के विषयों पर चिट्ठियाँ लिखती थी और इस तरह उन्हें बाइबल अध्ययन करने के लिए उकसाती थी।

बीमारी का पता चला

मम्मी-डैडी बहुत खर्च उठाकर मुझे एक बड़े डॉक्टर (न्यूरोलॉजिस्ट) के पास ले गए। डॉक्टर ने पता लगाया कि मुझे मिरगी की बीमारी है और मेरा इलाज शुरू किया गया। इससे मुझे चार साल तक कोई तकलीफ नहीं हुई और मेरी तबीयत लगभग ठीक रही। इस बीच, मुझे पायनियर सेवा स्कूल में हाज़िर होने का मौका मिला। हमेशा से मेरी यह इच्छा थी कि मैं ऐसे इलाके में जाकर प्रचार करूँ जहाँ प्रचारकों की सख्त ज़रूरत है। इस स्कूल से मुझे जो हौसला मिला, उससे मेरी यह इच्छा और ज़ोर पकड़ने लगी।

मम्मी-डैडी जानते थे कि अपनी सेवा बढ़ाने का मेरा बहुत मन है। दवाइयों की वजह से मेरी सेहत में पहले से काफी सुधार आया था, इसलिए उन्होंने मुझे मीचोआकान राज्य के सीताक्वारो कसबे में सेवा करने के लिए जाने दिया। यह कसबा हमारे घर से 200 किलोमीटर दूर था। वहाँ दूसरे पायनियरों के साथ काम करने से पूरे समय की सेवा के लिए मेरा प्यार और मेरी कदर और भी बढ़ी।

सीताक्वारो में दो साल सेवा करने के बाद, मुझे फिर से दौरे पड़ने लगे। इसलिए मुझे मम्मी-डैडी के पास लौटना पड़ा। मैं बहुत निराश और दुःखी थी और मुझे ठीक होने के लिए इलाज की भी ज़रूरत थी। मैं एक न्यूरोलॉजिस्ट के पास गयी तो उसने बताया कि मैं जो दवाइयाँ ले रही हूँ उनसे मेरे कलेजे को नुकसान हो रहा है। इस डॉक्टर की फीस बहुत ज़्यादा थी और मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं इलाज जारी रख सकूँ। इसलिए मैं इलाज का दूसरा उपाय ढूँढ़ने लगी। मेरी हालत बिगड़ती चली गयी और इस वजह से मुझे अपनी पायनियर सेवा छोड़नी पड़ी। मिरगी का हर दौरा, मेरी हिम्मत को कमज़ोर कर देता था। मगर ऐसे हालात में भी जब मैं भजनों की किताब पढ़ती और यहोवा से प्रार्थना करके मदद माँगती थी, तो वह हमेशा मुझे तसल्ली और हिम्मत देता था।—भजन 94:17-19.

मैंने अपना लक्ष्य पा ही लिया

मेरी ज़िंदगी का सबसे मुश्‍किल दौर वह था जब मुझे दिन में दो बार दौरे पड़ते थे। मगर एक वक्‍त ऐसा आया जब मुझे इस बीमारी से थोड़ी राहत मिली। एक डॉक्टर ने मेरी बीमारी का दूसरे तरीके से इलाज किया और इससे मेरे दौरे कम हो गए और मुझे थोड़ा अच्छा लगने लगा। इस वजह से मैंने एक बार फिर सितंबर 1995 में पायनियर सेवा शुरू की। मेरी सेहत में काफी सुधार होने लगा और दो साल तक मुझे एक बार भी दौरा नहीं पड़ा। इसलिए मैंने खास पायनियर सेवा के लिए अर्ज़ी भरी। इसका मतलब था कि मुझे सेवा में पहले से ज़्यादा घंटे बिताने थे और जहाँ ज़्यादा ज़रूरत है, वहाँ जाकर प्रचार करना था। ज़रा सोचिए मुझे कैसा लगा होगा जब मुझे खास पायनियर बनाया गया! आखिरकार, मैंने वह लक्ष्य पा ही लिया जो मैंने बचपन में रखा था।

अप्रैल 1,2001 को मैंने अपनी नयी सेवा ईडालगो राज्य के पहाड़ी इलाके में बसे एक छोटे-से गाँव में शुरू की। फिलहाल, मैं ग्वानावातो राज्य के छोटे-से शहर में सेवा कर रही हूँ। मुझे वक्‍त पर दवाइयाँ लेने और भरपूर आराम करने का पूरा-पूरा ध्यान रखना पड़ता है। खान-पान का भी मैं बहुत ध्यान रखती हूँ और खासकर ऐसी चीज़ों से परहेज़ करती हूँ, जैसे चिकना भोजन, डिब्बे बंद खाना और चाय, कॉफी और कोल्ड ड्रिंक्स जिसमें कैफीन पाया जाता है। मैं पूरी कोशिश करती हूँ कि गुस्सा या बहुत ज़्यादा चिंता जैसी गहरी भावनाओं को अपने ऊपर हावी न होने दूँ। रोज़ाना इन बातों को सख्ती से मानना मेरे लिए आसान नहीं है, मगर इससे मुझे काफी फायदा हुआ है। खास पायनियर सेवा के दौरान मुझे सिर्फ एक ही बार मिरगी का दौरा पड़ा।

मेरी शादी नहीं हुई, इसलिए मुझ पर घर-गृहस्थी की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है और इस वजह से मैं खास पायनियर के नाते अपनी सेवा जारी रख पायी हूँ। मुझे इस बात से बहुत सांत्वना मिलती है कि ‘यहोवा अन्यायी नहीं, कि हमारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए जो हमने उसके नाम के लिये दिखाया है।’ वाकई, यहोवा कितना प्यार करनेवाला परमेश्‍वर है, जो हमसे ऐसी कोई भी माँग नहीं करता जिसे पूरा करना हमारे बस में न हो! इस सच्चाई को कबूल करने से मुझे अपनी सेवा के बारे में सही नज़रिया बनाए रखने में मदद मिली है। मुझे यकीन है कि अगर बिगड़ती सेहत की वजह से मुझे पायनियर सेवा फिर से छोड़नी पड़ी, तो भी मैं तन-मन से जितनी सेवा करूँगी, उससे यहोवा खुश होगा।—इब्रानियों 6:10; कुलुस्सियों 3:23.

इसमें कोई शक नहीं कि हर दिन दूसरों को अपने विश्‍वास के बारे में बताने से खुद मेरा विश्‍वास भी मज़बूत होता है। यही नहीं, प्रचार से मुझे भविष्य में परमेश्‍वर से मिलनेवाली आशीषों पर अपना मन लगाने में भी मदद मिलती है। बाइबल वादा करती है कि एक ऐसी नयी दुनिया आनेवाली है जहाँ न कोई बीमारी, “न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती [रहेंगी]।”—प्रकाशितवाक्य 21:3,4; यशायाह 33:24; 2 पतरस 3:13. (g05 6/22)

[पेज 26 पर तसवीरें]

करीब 7 साल की (ऊपर); बपतिस्मे के कुछ ही समय बाद, जब मैं करीब 16 साल की थी

[पेज 27 पर तसवीर]

एक सहेली के साथ प्रचार में