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विश्‍व-दर्शन

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सफेद मगरमच्छ मिले

भारत का अखबार द हिंदू कहता है: “उड़ीसा के वन अधिकारियों को बितरकानीका नैशनल पार्क में मगरमच्छों की सालाना गिनती लेते वक्‍त . . . 15 सफेद मगरमच्छ मिले।” सफेद मगरमच्छ बहुत कम पाए जाते हैं और ये भारत को छोड़ “दुनिया की किसी भी जगह पर नहीं मिलते।” सन्‌ 1970 के दशक में इस इलाके में गैर-कानूनी तरीके से मगरमच्छों का अंधाधुंध शिकार किया गया था। इसलिए खारे पानी में रहनेवाले मगरमच्छ करीब-करीब लुप्त होने पर थे। मगर उड़ीसा की सरकार ने संयुक्‍त राष्ट्र के कार्यक्रमों की मदद से बितरकानीका पार्क में ही मगरमच्छ पालने की एक योजना शुरू की। इस पार्क में काफी झाड़ियाँ हैं, मगरमच्छों के लिए साफ पानी है, उन्हें भरपूर चारा दिया जाता है और इंसानों की दखलअंदाज़ी बहुत कम रही है, इसलिए इन्हें पालने की योजना काफी कामयाब रही। द हिंदू अखबार के मुताबिक इस पार्क में फिलहाल कुछ 1,500 आम रंगों के मगरमच्छ, साथ ही कुछ सफेद मगरमच्छ भी हैं। (g05 4/8)

तंबाकू, गरीबी और बीमारियाँ

स्पेन का डीआरयो मेडीको अखबार कहता है कि “विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी है कि सिगरेट पीनेवालों में से करीब 84 प्रतिशत लोग गरीब देशों के हैं। ये लोग तंबाकू और गरीबी के खतरनाक चक्रव्यूह में फँसे हुए हैं।” यही नहीं, हर देश में “ज़्यादातर गरीब तबके के लोगों को तंबाकू की लत है और वे ही सिगरेट पीने से होनेवाली तकलीफों के सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं।” हालाँकि ज़्यादातर अमीर देशों में तंबाकू का सेवन कम हो गया है, मगर यह अखबार बताता है कि पूरी दुनिया में “बीमारियों की चौथी सबसे बड़ी वजह” तंबाकू है। सिर्फ स्पेन में ही देखें तो तंबाकू से हर साल मरनेवालों की दर 60,000 हो गयी है। इसलिए, इस देश में सिगरेट पीना “तरह-तरह की बीमारियों, अपंगता और बेवक्‍त मौत का सबसे बड़ा कारण बन गया है।” (g05 4/8)

दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी?

पोलैंड और मिस्र के पुरातत्वज्ञानियों के एक दल ने मिस्र के प्राचीन शहर सिकंदरिया में, एक यूनिवर्सिटी खोज निकाली है। लॉस ऐन्जलॆस टाइम्स अखबार बताता है कि इस दल को 13 लैक्चर हॉल या कमरे मिले हैं, जिनका आकार एक बराबर है और इनमें कुल मिलाकर 5,000 विद्यार्थियों के बैठने की जगह है। अखबार आगे बताता है कि “हॉल के तीनों तरफ, दीवारों से लगी हुई सीढ़ीदार बेंचें हैं, जो बिलकुल अँग्रेज़ी अक्षर “U” जैसी दिखती हैं।” और हॉल के बीच में एक ऊँची-सी जगह है जिस पर बैठकर शायद शिक्षक सिखाया करता था। “भूमध्य सागर के तमाम यूनानी-रोमी इलाकों में पहली बार एक ही जगह पर इतने सारे लैक्चर हॉल खोज निकाले गए हैं।” यह बात मिस्र की ‘सुप्रीम काउंसिल ऑफ एन्टिक्विटीज़’ के प्रमुख और पुरातत्वज्ञानी ज़ही हावस ने कही। हावस ने कहा कि “शायद यह दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी” थी। (g05 6/8)

आइसक्रीम, और वह भी लहसुन की?

हमेशा से यह माना गया है कि लहसुन में कई बीमारियों को ठीक करने के गुण हैं। फिलीपीन स्टॉर अखबार रिर्पोट करता है कि उत्तरी फिलीपींस में मारयानो मारकोस स्टेट यूनिवर्सिटी ने लहसुन की आइसक्रीम तैयार की है जो “सेहत के लिए अच्छी है।” उम्मीद की जाती है कि जिन बीमारियों के लिए लहसुन खाना अच्छा है, अब यह नयी आइसक्रीम खाकर लोगों को उन बीमारियों से राहत मिलेगी। जैसे सर्दी, बुखार, हाई ब्लड प्रेशर, फेफड़ों की तकलीफ, गठिया, साँप का डसना, दाँत दर्द, टी.बी., काली खाँसी, घावों के भरने और गंजापन दूर करने के लिए भी यह आइसक्रीम फायदेमंद होगी। तो अब बताइए, कौन खाना चाहेगा लहसुन की आइसक्रीम? (g05 6/8)

मासूम बच्चे, लड़ाई के शिकार

संयुक्‍त राष्ट्र बाल निधि ने अनुमान लगाया है कि रुवाण्डा में जातियों के बीच हुए दंगे-फसाद के दौरान, जिन 8,00,000 लोगों का कत्लेआम हुआ उनमें से 3,00,000 मासूम बच्चे थे। यह रिपोर्ट जर्मनी के एक अखबार, लिपसीगर फॉल्कसाइतुंग में दी गयी थी। यह भी अनुमान लगाया गया कि रुवाण्डा में 1,00,000 से ज़्यादा बच्चे ऐसे हैं जिन पर माँ-बाप का साया नहीं है। अखबार यह भी कहता है कि “वे हर रोज़ घोर तंगी में ज़िंदगी काटते हैं।” (g05 4/22)

दो भाषाएँ बोलनेवाले बच्चे

मेक्सिको सिटी का अखबार मीलेनयो बताता है: “जब बच्चों को बड़े सब्र और कुशलता से दो भाषाएँ सिखायी जाती हैं, तो इससे न सिर्फ उन्हें, बल्कि उनके परिवार और समाज को भी बहुत फायदे होते हैं।” अध्ययन से पता चला है कि “जो बच्चे दो भाषाएँ बोलते हैं, वे उन बच्चों के मुकाबले पढ़ाई में ज़्यादा होशियार होते हैं जिन्हें सिर्फ एक ही भाषा आती है।” कभी-कभी जब बच्चे, बोलते समय एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों को मिला देते हैं या फिर उनके व्याकरण को मिलाकर भाषा में गड़बड़ी करते हैं तो माँ-बाप को चिंता होने लगती है। मगर बच्चों में भाषा सीखने की काबिलीयत पर अध्ययन करनेवाले मनोविज्ञानी, प्रोफेसर टोनी क्लाइन कहते हैं कि “व्याकरण की ये ‘गलतियाँ’ बहुत मामूली होती हैं, जिन्हें सुधारने में वक्‍त नहीं लगता।” अगर माँ-बाप अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं और ये भाषाएँ बच्चों को भी सिखायी जाएँ, तो बच्चे उन्हें आसानी से सीख लेंगे और आगे चलकर दोनों भाषाओं में कोई गड़बड़ी नहीं करेंगे। (g05 5/8)

अचानक उठनेवाली खौफनाक लहरें

कहा जाता है कि पूरी दुनिया में कहीं-न-कहीं, हर हफ्ते औसतन दो बड़े-बड़े जहाज़ सागर में डूब जाते हैं। यहाँ तक कि 200 मीटर से भी लंबे तेलपोतों और मालवाहक जहाज़ों को सागर निगल गया है। इसकी वजह? माना जाता है कि ऐसे कई जहाज़, खतरनाक और विनाशकारी लहरों की मार से डूब जाते हैं। एक वक्‍त था जब नाविक बड़े-बड़े जहाज़ों को डुबोनेवाली इन ऊँची और खौफनाक समुद्री लहरों के बारे में बताते थे, तो उनकी बात को महज़ एक कहानी कहकर रफा-दफा कर दिया जाता था। मगर, यूरोपीय संघ के एक खोजबीन दल ने इन कहानियों को सच बताया है। उपग्रहों से महासागर में उठनेवाली विशाल लहरों की रेडार से तसवीरें ली गयी हैं। सूएटडॉइच साइटुंग नाम के अखबार के मुताबिक, इस दल के अगुवे वॉल्फगान्ग रोज़नटाल का कहना है: “हमने यह साबित कर दिखाया है कि ये विशाल और खौफनाक लहरें वाकई समुद्र में कई बार उठती हैं।” तीन हफ्तों के दौरान, इस दल ने करीब दस लहरों की तसवीरें ली हैं। ये लहरें जब उठती हैं तो 40 मीटर की ऊँचाई तक एकदम सीधी खड़ी होती हैं। और जब इनकी मार जहाज़ पर पड़ती है तो जहाज़ को भारी नुकसान होता है या वह पूरी तरह डूब जाता है। सिर्फ मज़बूत जहाज़ ही इन लहरों के सामने टिक सकते हैं। रोज़नटाल आगे कहता है: “अब हमें यह देखना है कि इन लहरों के उठने से पहले इनका पता लगाया जा सकता है या नहीं।” (g05 6/8)

अपने शरीर से परेशान

कनाडा का ग्लोब एण्ड मेल अखबार कहता है कि “आज के नौजवान, खासकर लड़कियाँ छोटी उम्र से ही अपने रंग-रूप को लेकर बहुत परेशान हैं और इसका उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर हो सकता है।” हाल ही में, 10 से 14 साल की लड़कियों का एक सर्वे लिया गया, जिसमें उनके खाने-पीने की आदतों के बारे में उनसे सवाल किए गए और 2,200 से ज़्यादा लड़कियों ने जवाब दिया। ग्लोब बताता है: “इनमें से 7 प्रतिशत से कम लड़कियाँ मोटी थीं, लेकिन 31 प्रतिशत से ज़्यादा लड़कियों ने कहा कि वे ‘कुछ ज़्यादा ही मोटी हैं’ और 29 प्रतिशत ने कहा कि फिलहाल हम वज़न घटाने के लिए खाने-पीने में परहेज़ कर रही हैं।” क्या वजह है कि अच्छी-खासी सेहतमंद लड़कियाँ अपना वज़न कम करने के पीछे पड़ी हुई हैं? अखबार आगे बताता है कि इसकी दोषी आजकल की वे मशहूर हस्तियाँ हैं जो खुद खाने-पीने में परहेज़ करती हैं और ऐसे लोगों का मज़ाक उड़ाती हैं जिनका वज़न ज़्यादा है। ग्लोब आगे बताता है: “आज के किशोरों पर मीडिया का भी ज़बरदस्त असर होता है जिसमें वे दिन-रात बहुत-ही दुबली-पतली मॉडलों को देखते रहते हैं।” टोरोन्टो अस्पताल में बीमार बच्चों पर अध्ययन करनेवाली विशेषज्ञ, डॉ. गेल मक्वे ने कहा कि बच्चों, माँ-बाप और टीचरों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि “लड़कपन से जवानी में कदम रखनेवाले बच्चों का वज़न बढ़ना एक आम बात है और उनके सही विकास के लिए यह ज़रूरी भी है।” (g05 4/8)