हर किसी को ज़रूरत है एक घर की
हर किसी को ज़रूरत है एक घर की
“हर इंसान का यह हक बनता है कि उसके पास अपने और अपने परिवार की सेहत और खैरियत के लिए थोड़ी-बहुत सुख-सुविधा हो, . . . इसमें एक अच्छा-सा घर भी शामिल है।”—मानव अधिकारों के विश्वव्यापी घोषणा-पत्र की धारा 25.
खानाबदोश किसान मज़दूरों की एक बड़ी आबादी धीरे-धीरे एक इलाके में बस गयी और वे इसे अपना घर मानने लगे। यह इलाका एक कसबे के बाहर था जहाँ सैकड़ों परिवार अपने-अपने ट्रेलरों में रहने लगे और जहाँ रुकने का किराया काफी कम था। पारकेआडोरेस कहलानेवाली इन बस्तियों में साफ पानी की सप्लाई, मल-मूत्र और गंदगी की सफाई, कूड़ा-करकट फेंकने का इंतज़ाम, वगैरह जैसी बुनियादी सेवाएँ, अगर थीं तो बाबा-आदम के ज़माने कीं या फिर बिलकुल भी नहीं। एक रिपोर्टर कहता है कि “इस बस्ती की हालत इतनी खराब थी कि [खेतों पर काम करनेवाले मज़दूर] भी इसका खर्च उठा सकते थे।”
तीन साल पहले जब अधिकारियों ने इन बस्तियों को हटाना शुरू किया, तो कुछ परिवार अपना ट्रेलर बेचकर शहर चले गए और ऐसे घरों, फ्लैटों और गराजों में रहने लगे जहाँ पहले से ही कई लोगों ने बसेरा कर रखा था। दूसरों ने बस अपना बोरिया-बिस्तर बाँधा और ऐसी जगह की तलाश में निकल पड़े, जहाँ वे हर फसल की कटाई करने के बाद लौट सकें और जिसे वे अपना घर कह सकें।
क्या आपको ऐसा लगता है कि यह सब मध्य या दक्षिण अमरीका की किसी जगह हुआ होगा? अगर हाँ, तो एक बार फिर से सोचिए। आपको शायद यह जानकर ताज्जुब होगा कि ऐसा ट्रेलर पार्क या बस्ती अमरीका के केलिफॉर्निया राज्य के दक्षिण में मेक्का कसबे के पास बसी हुई है। और यह बस्ती, अपने धन-वैभव के लिए मशहूर शहर पाम स्प्रिंग्स के पूरब की तरफ है जहाँ गाड़ी से एक घंटे से कम समय में पहुँचा जा सकता है। हालाँकि कहा जाता है कि आज अमरीका में पहली बार, ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों के पास अपना घर है और सन् 2002 में परिवार की औसत आमदनी करीब 42,000 डॉलर (18,90,000 रुपए) थी। फिर भी, अनुमान लगाया गया है कि 50 लाख से भी ज़्यादा अमरीकी परिवारों के पास ढंग का घर नहीं है।
अमरीका जैसे अमीर देश के बाद, अगर आप गरीब देशों को लें, तो आप पाएँगे कि वहाँ घर-मकान की समस्या इससे कई गुना ज़्यादा बदतर है। इस समस्या से निपटने के लिए राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक योजनाओं की शुरूआत की गयी, फिर भी यह समस्या तेज़ी से बढ़ती ही जा रही है।
दुनिया-भर की समस्या
अनुमान है कि दुनिया-भर में एक अरब से भी ज़्यादा लोग गंदी बस्तियों में रहते हैं। ब्राज़ील के विशेषज्ञ, जो गाँव से शहरों में आकर बसनेवालों के बारे में अध्ययन करते हैं, उन्हें यह डर है कि देश में तेज़ी से फैल रहीं फावेलास, या झोंपड़पट्टियाँ बहुत जल्द “उन शहरों से भी बड़ी और घनी आबादीवाली बन जाएँगी जहाँ इनकी शुरूआत हुई थी।” नाइजीरिया के कुछ शहरों में 80 प्रतिशत से भी ज़्यादा लोग, या तो गंदी बस्तियों में रहते हैं या फिर दूसरी जगहों पर गैर-कानूनी तौर पर अपना डेरा जमाए हुए हैं। सन् 2003 में, संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेट्री-जनरल कोफी आन्नान ने कहा: “अगर अभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो अंदाज़ा लगाया गया है कि अगले 30 सालों के अंदर, दुनिया-भर में झोंपड़पट्टियों में रहनेवालों की आबादी बढ़कर करीब 2 अरब हो जाएगी।”
लेकिन सिर्फ आँकड़ों से यह पता नहीं लगता कि दुनिया के गरीब लोग किस बुरे हाल में जी रहे हैं, और इसमें उनकी क्या दुर्दशा हो रही है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, विकासशील देशों में 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा लोगों के लिए साफ-सफाई का कोई बंदोबस्त नहीं है, 33 प्रतिशत को साफ पानी नहीं मिलता, 25 प्रतिशत के पास ढंग का घर नहीं है और 20 प्रतिशत आजकल की स्वास्थ्य-सेवाएँ हासिल नहीं कर पा रहे हैं। जिस हालत में ये लोग रहते हैं, उस हालत में तो अमीर देशों के ज़्यादातर लोग अपने पालतू जानवरों को भी नहीं रखना चाहेंगे!
विश्वव्यापी अधिकार
सभी मानते हैं कि घर या मकान, हर इंसान की एक बुनियादी ज़रूरत है। सन् 1948 में, संयुक्त राष्ट्र ने ‘मानव अधिकारों के विश्वव्यापी घोषणा-पत्र’ को अपनाया था। उसमें यह ऐलान किया गया था, हर इंसान का हक बनता है कि उसके पास थोड़ी-बहुत सुख-सुविधा हो और इसमें एक अच्छा-सा घर भी शामिल है। जी हाँ, सभी को ज़रूरत है एक अच्छे घर की।
कुछ ही साल पहले, सन् 1996 में बहुत-से देशों ने एक दस्तावेज़ कबूल किया जो बाद में संयुक्त राष्ट्र का ‘आवास अजेंडा’ कहलाया। इस दस्तावेज़ में खासकर यह लिखा है कि सभी को एक अच्छा घर दिलाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जाएँगे। अजेंडा में लिखी बातों को अंजाम देने के लिए, संयुक्त राष्ट्र ने जनवरी 1,2002 को इसे संयुक्त राष्ट्र के एक संपूर्ण कार्यक्रम का रूप दिया।
यह बात सचमुच बेतुकी लगती है कि आज कुछ अमीर देशों ने चाँद पर कॉलोनियाँ बनाने और मंगल ग्रह पर खोज करने की गुज़ारिश की है, जबकि गरीबों की बढ़ती आबादी के पास इसी ज़मीन पर रहने के लिए ढंग का घर नहीं है। घर की समस्या का आप पर कैसे असर हो रहा है? क्या इस बात की कोई पक्की आशा है कि एक दिन सभी के पास अपना-अपना एक घर होगा जिसमें सुख-सुविधा की सारी चीज़ें मौजूद होंगी? (g05 9/22)
[पेज 4 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
कुछ देश, चाँद पर घर बनाने के बारे में खोजबीन कर रहे हैं, जबकि इन्हीं देशों में ज़्यादातर लोगों के पास इसी ज़मीन पर रहने के लिए ढंग का घर नहीं है
[पेज 2, 3 पर तसवीर]
एशिया का एक शरणार्थी परिवार।
एक शहर में 3,500 परिवार, फटी-पुरानी बोरियों और दूसरी कामचलाऊ चीज़ों से बने तंबुओं में जी रहे हैं और वे पानी और साफ-सफाई की सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं
[चित्र का श्रेय]
© Tim Dirven/Panos Pictures
[पेज 4 पर तसवीर]
उत्तर अमरीका