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मकबरे—प्राचीन धारणाओं की झलक देनेवाले झरोखे

मकबरे—प्राचीन धारणाओं की झलक देनेवाले झरोखे

मकबरे—प्राचीन धारणाओं की झलक देनेवाले झरोखे

कल्पना कीजिए कि आप हज़ारों साल पहले जी रहे हैं। आप ऊर नाम के फलते-फूलते शहर में हैं, जो बैबिलोनिया देश के सुमेर इलाके में बसा है। सुमेरी लोगों का एक बड़ा जुलूस शहर के बाहर निकलकर एक कब्रिस्तान के अंदर पहुँच गया है। और अब एक ढलान से उतरते हुए एक राजा के कब्र की तरफ बढ़ रहा है जिसकी हाल ही में मौत हुई है। मकबरे की दीवारों और ज़मीन पर गलीचे लगे हुए हैं और यह कमरा बेहद खूबसूरत सुमेरी कला-कृतियों से दमक रहा है। सैनिकों, नौकर-चाकरों और औरतों से बने इस जुलूस के साथ साज़ बजानेवाले भी हैं। हर कोई खूब बन-ठनके आया है। सेना के अफसर अपने ओहदे की नुमाइश करनेवाली निशानी पर इतरा रहे हैं। रंगों से झिलमिलाती इस भीड़ में गाय-बैल या गधों के रथ भी हैं जिनके आगे-आगे साईस चल रहे हैं। सभी अपनी-अपनी जगह खड़े हो जाते हैं, फिर संगीत की धुन के साथ पूजा-पाठ किया जाता है।

पूजा-पाठ खत्म होते ही साज़ बजानेवालों से लेकर नौकरों तक, हर कोई एक छोटा-सा प्याला लेता है और ताँबे की एक हाँडी में से खास किस्म की दवा लेकर पीता है। इस मौके के लिए हर कोई अपना-अपना प्याला लेकर आया है जो या तो मिट्टी, पत्थर या किसी और धातु का बना होता है। दवा पीने के बाद सभी एक-दूसरे के बगल में, चुपचाप अपने-अपने गलीचे पर सलीके से लेट जाते हैं और हमेशा के लिए मौत की नींद सो जाते हैं। फिर एक व्यक्‍ति फटाफट जानवरों को काटता है। मज़दूर, कब्र के अंदर जाने के रास्ते को मिट्टी से भर देते हैं और कब्र को बंद कर देते हैं। सुमेरी लोगों का विश्‍वास है कि उनका राजा, जिसे वे देवता भी मानते हैं, अब पूरे शान के साथ, दफनाए गए रथ पर सवार होकर अगले लोक में प्रवेश कर रहा है। और उसके साथ-साथ चलता शाही नौकरों और सैनिकों का दल मौके की शान बढ़ा रहा है।

यह रहा प्राचीन ऊर के शाही कब्रिस्तान का ब्यौरा। पुरातत्वविज्ञानी, सर लियोनार्ड वूली ने दक्षिण ईराक के प्राचीन ऊर में खुदाई करते वक्‍त इस तरह के 16 कब्रिस्तान ढूँढ़ निकाले थे। ये कब्रिस्तान हैं तो बड़े भयानक, मगर यह एक बेमिसाल खोज है। पॉल बान अपनी किताब, कब्रें, मकबरे और ममियाँ (अँग्रेज़ी) में कहता है: “इन कब्रों में ऐसा खज़ाना पाया गया है, जो मसोपोटामिया में अब तक की खुदाई से मिले खज़ानों से एकदम निराला है। इन कब्रों में कुछ बहुत ही मशहूर सुमेरी कला-कृतियाँ मिली हैं जो आज ब्रिटिश म्यूज़ियम और यूनिवर्सिटी ऑफ पेनिसिल्वेनिया म्यूज़ियम की दीवारों की शोभा बढ़ा रही हैं।”

मगर इस तरह की कब्रें सिर्फ ऊर में ही नहीं बल्कि दूसरी प्राचीन सभ्यताओं में भी पायी गयी हैं। यहाँ तक कि इंसानों और जानवरों की बलियाँ चढ़ाने की खौफनाक रस्म भी ऊर की तरह वहाँ मनायी जाती थी। बहुत-सी प्राचीन सभ्यताओं में, कुलीन वर्ग और शाही घराने के लोगों की मौत और उनके अगले जीवन से जुड़ी रस्म बहुत ही धूम-धाम से मनायी जाती थी। कभी-कभी तो क्रूरता-भरे दस्तूरों का पालन किया जाता था। कुछ कब्रें बेहतरीन कला-कृतियों से इस कदर जगमगातीं और खज़ाने से भरी होती थीं कि ज़िंदा लोगों के महल उनके सामने फीके पड़ जाते थे। मगर आज ये शाही कब्रें, साथ ही दूसरी आम कब्रें, हमारे लिए बीते कल की झलक देनेवाले झरोखे हैं। इनकी मदद से हम पुराने ज़माने के लोगों और अतीत में गुम हो चुकी सभ्यताओं के विश्‍वास, उनकी संस्कृति, कला और तकनीकी हुनर की जाँच कर पाते हैं।

पूरी शान से सड़ना—मगर अकेले नहीं

सन्‌ 1974 में चीन के शीआन शहर के पास जब कुछ किसान एक कुआँ खोद रहे थे, तो उन्हें पानी के बजाय मिट्टी की प्रतिमाओं के टुकड़े, कांसे के आड़े धनुष और तीरों के सिरे हाथ लगे। अनजाने में उन्होंने 2,100 साल पुरानी चिन साम्राज्य की मिट्टी से बनी सेना को खोज निकाला, जिनमें 7,000 से ज़्यादा सैनिकों और घोड़ों के मिट्टी के बुत मिले। ये बुत, ज़िंदा सैनिकों और घोड़ों की तरह जीते-जागते और उनसे भी बड़े आकार के थे। इनको ऐसे दफनाया गया था मानो पूरी-की-पूरी फौज अपने-अपने ओहदे के मुताबिक कतार में खड़ी हो! यह चीन के सबसे बड़े शाही मकबरे का एक हिस्सा था। चिन की इस सेना का नाम, सम्राट चिन शिर वॉन्ग दी के नाम पर पड़ा, जिसने सा.यु.पू. 221 में चीन के उन राज्यों को एक किया था जो आपस में युद्ध कर रहे थे।

चिन का मकबरा अपने-आप में ज़मीन के अंदर बसा एक राजमहल था। मगर उसमें मिट्टी की बनी सेना को क्यों दफनाया गया था? द किन टेर्राकोटा आर्मी नाम की अपनी किताब में जॉन वन्ली समझाता है कि चिन का “मकबरा किन साम्राज्य की एक निशानी है [और उसके साथ सेना को इसलिए दफनाया गया था] ताकि किन शी वॉन्गदी [चिन शिर वॉन्ग दी] को अपनी मौत के बाद भी वह सारी ताकत और शानो-शौकत मिले जिसका उसने जीते-जी लुत्फ उठाया था।” आज यह मकबरा 400 कब्रों और गड्ढों से बने एक विशाल अजायबघर का हिस्सा है।

जॉन कहता है कि इस कब्र को बनाने के लिए “चिन साम्राज्य के कोने-कोने से 7,00,000 से भी ज़्यादा लोगों को काम पर लगाया गया था।” सा.यु.पू. 210 में चिन की मौत के बाद भी काम जारी रहा और इसे पूरा होने में कुल 38 साल लगे। मगर चिन के साथ जितने लोग दफनाए गए थे, वे सब-के-सब मिट्टी के पुतले नहीं थे। चिन के उत्तराधिकारी ने यह हुक्म दिया था कि चिन की सारी बेऔलाद रखैलियों को चिन के साथ दफनाया जाए। इतिहासकार कहते हैं कि इस हुक्म की वजह से “बड़े पैमाने पर” मौतें हुईं। ऐसे रीति-रिवाज़ चीन देश तक ही सीमित नहीं थे।

मेक्सिको सिटी के उत्तर-पूर्वी इलाके में प्राचीन शहर टेओटीवाकान के खँडहर पाए जाते हैं। इस शहर में एक सड़क थी जिसका नाम था ‘मरे हुओं की सड़क।’ बान, जिसका ज़िक्र पहले भी किया गया था, लिखता है: “इस सड़क पर दुनिया की सबसे विशाल कला-कृतियों की कुछ मिसालें पायी जाती हैं।” इनमें शामिल हैं, ‘पिरामिड ऑफ द सन’ और ‘पिरामिड ऑफ द मून,’ जो सा.यु. पहली सदी के दौरान बनाए गए थे, और क्वाकेटसालसल मंदिर के बचे-खुचे खँडहर।

‘पिरामिड ऑफ द सन’ के अंदर झाँकने से ऐसा लगता है कि यह कब्र शायद बड़े-बड़े लोगों की थी, जिनमें पंडित-पुजारी भी दफनाए जाते थे। पास ही में बड़े पैमाने पर एक-साथ दफनाए लोगों की अस्थियाँ भी मिलीं। इससे सुराग मिलता है कि कब्र के अंदर दफनाए गए बड़े लोगों की हिफाज़त करने के लिए बाहर शायद योद्धाओं की बली चढ़ायी गयी थी। इन कब्रों का अनोखा ढाँचा देखकर पुरातत्वविज्ञानी यह मानने लगे हैं कि इस जगह पर करीब 200 लोगों की अस्थियाँ हैं। वे मानते हैं कि इनमें वे बच्चे भी शामिल हैं जिन्हें उन यादगार इमारतों के समर्पण कार्यक्रम के दौरान बलि चढ़ाया गया था।

मौत के बाद की ज़िंदगी का सफर—कश्‍ती में या घोड़े पर

वाइकिंग कहलानेवाले स्कैन्डिनेविया के समुद्री योद्धा मानते थे कि वे मौत के बाद भी शान से ज़िंदगी का मज़ा लूट सकेंगे। ये वही लोग थे जिन्होंने करीब 1,000 साल पहले पूरे यूरोप में आतंक मचा रखा था। उनका मानना था कि उनके पूर्वज, अपने घोड़ों पर या लंबी कश्‍तियों पर सवार होकर दूसरी दुनिया में रुख्सत हो गए हैं। इसलिए, आज उनकी कब्रों में मारे गए घोड़ों के कंकालों से लेकर लंबी-लंबी कश्‍तियों की सड़ती लकड़ियाँ तक पायी जा सकती हैं। वाइकिंग लोगों का इतिहास (अँग्रेज़ी) नाम की किताब में ग्विन जोन्स ने लिखा: “कब्रों में वह सारी चीज़ें रखी जाती थीं जिनसे मरहूम आदमी या औरत अगली ज़िंदगी भी उतने ही आराम और इज़्ज़त के साथ गुज़ार सके जितनी उसने धरती पर ज़िंदा रहते वक्‍त गुज़ारी थी। . . . डेनमार्क के लेदब्यू में [दफन] एक जहाज़ पर . . . तो लंगर भी लगा था ताकि उसका मालिक अपनी मंज़िल तक पहुँचने पर लंगर डाल सके।”

वाइकिंग जाति जंग लड़ने के बड़े शौकीन थे। उनकी धारणा थी कि अगर वे जंग लड़ते-लड़ते दम तोड़ दें, तो देवताओं के निवास-स्थान में पहुँच जाएँगे जिसे वे एसगार्ड कहते थे। वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक उनका मानना था कि “वहाँ पर वे दिन-भर लड़ सकते और सारी रात खा-पीकर मज़ा कर सकते हैं।” वे लाशों को दफनाते वक्‍त ज़िंदा लोगों की भी बली चढ़ाते थे। द वाइकिंग्स किताब कहती है: “जब किसी सरदार की मौत हो जाती, तो उसके गुलामों और सेवकों से पूछा जाता था कि कौन उसके साथ मरना चाहेगा।”

उत्तरी यूरोप की केल्ट नाम की प्राचीन जाति का यहाँ तक मानना था कि ज़िंदा रहते वक्‍त लिया हुआ कर्ज़, मरने के बाद दूसरी दुनिया में जाने के बाद भी चुकाया जा सकता है। शायद यह धारणा कर्ज़ लौटाने में मुलतवी करने का एक बहाना था! मसोपोटामिया में बच्चों की लाशों के साथ खिलौनें भी दफनाए जाते थे। प्राचीन ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में सैनिकों को दफनाते वक्‍त साथ में खाने की चीज़ें भी रखी जाती थीं, जैसे मेम्ने की टँगड़ी वगैरह, ताकि ये सैनिक अगली ज़िंदगी का सफर भूखे पेट शुरू न करें। मध्य-अमरीका में, माया नाम के राजवंश के लोगों को यशब से बने गहनों के साथ दफनाया जाता था। माना जाता था कि यह हरा रत्न यशब, संघनित नमी और सांसों की निशानी है। तो हो सकता है कि वे यशब से बनी चीज़ें यह सोचकर डालते थे कि मौत के बाद राजवंश के लोगों की ज़िंदगी कायम रहेगी।

सामान्य युग पूर्व 1000 के कुछ वक्‍त बाद, थ्रेस नाम के इलाके में एक अलग जाति रहती थी। यह इलाका आज बल्गेरिया, उत्तरी यूनान और तुर्की, इन तीन देशों में फैला है। यह जाति थी तो बड़ी खौफनाक मगर यह सुनारी के लाजवाब काम के लिए मशहूर थी। इनकी कब्रों का मुआयना करने से पता चलता है कि वे अपने सरदारों को पूरे वैभव के साथ दफनाते थे। साथ में उनके रथों, घोड़ों, बेहतरीन हथियारों, और हाँ, उनकी पत्नियाँ को भी दफन किया जाता था। दरअसल, थ्रेस जाति में एक पत्नी अपने पति की खातिर बलि होकर उसके साथ दफनाया जाना एक सम्मान की बात मानती थी!

कुछ ही वक्‍त बाद और थ्रेस से थोड़ी ही दूरी पर, काले सागर के उत्तर की तरफ, स्कूती नाम की एक जाति रहती थी। हमेशा लड़ने को तैयार ये लोग अपने दुश्‍मनों को मारकर उनकी खोपड़ी को कटोरे की तरह इस्तेमाल करते थे और उनके सिर की खालों से कपड़े बनाकर पहनते थे। एक स्कूती कब्र में एक स्त्री का कंकाल पाया गया जिसके साथ कैनाबिस नाम की एक जड़ी-बूटी भी रखी गयी। उस स्त्री की खोपड़ी में तीन छोटे-छोटे छेद किए हुए थे, शायद सूजन और उससे उठनेवाले दर्द को कम करने के लिए। और जड़ी-बूटी शायद इसलिए रखी गयी थी ताकि अगले लोक में जब भी उसे सिरदर्द हो तो वह राहत पा सके।

मौत के बाद ज़िंदगी के बारे में मिस्री धारणा

कायरो शहर के पास बने मिस्रियों के पिरामिड और लुक्सर शहर के पास, राजाओं की घाटी में पाए जानेवाले मकबरे, प्राचीन समय के सबसे मशहूर मकबरों में गिने जाते हैं। पुराने ज़माने के मिस्री, “कब्र” और “घर” दोनों के लिए एक ही शब्द, पार इस्तेमाल करते थे। इसलिए अपनी किताब प्राचीन मिस्र की ममियाँ, पौराणिक कथाएँ और जादूगरी (अँग्रेज़ी) में क्रिस्टीन एल माहडी कहती हैं: “तो इसका मतलब है कि [मिस्रियों के मुताबिक] ज़िंदा रहते वक्‍त भी उनका एक घर होता है और मौत के बाद भी।” वह आगे कहती हैं: “[मिस्रियों की] धारणा थी कि एक इंसान की मौत के बाद भी उसके शरीर का ज़िंदा रहना ज़रूरी था, तभी उसके बाकी तत्त्व, का, बा और अख्‌ भी ज़िंदा रह पाते।”

उनके मुताबिक पहला तत्त्व का, शरीर का ही एक आध्यात्मिक रूप होता है जिसमें इंसान की उम्मीदें, ख्वाहिशें और ज़रूरतें शामिल होती हैं। मरने पर यह का शरीर को त्यागकर कब्र में चला जाता था। और क्योंकि का को उन सभी चीज़ों की ज़रूरत पड़ती है जिनका एक व्यक्‍ति जीते-जी इस्तेमाल करता है, इसलिए “कब्रों में रखी जानेवाली चीज़ें खासकर उसकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए होती थीं।” यह बात एल माहडी ने अपनी किताब में लिखी। बा का मतलब इंसान का स्वभाव या उसकी शख्सियत हो सकती है। इसे एक ऐसे पक्षी से दर्शाया जाता था जिसका सिर इंसान का था। बा एक इंसान के जन्म के वक्‍त उसके शरीर में प्रवेश करता और मरने पर उससे निकल आता है। तीसरा तत्त्व, अख्‌ एक ममि के अंदर उस वक्‍त “अंकुरित” होता है जब ममि पर मंत्र पढ़े जाते हैं। * अख्‌ का बसेरा देवताओं के लोक में होता है।

एक इंसान को तीन तत्त्वों में बाँटकर मिस्री लोग, प्राचीन समय के यूनानी तत्त्वज्ञानियों से एक कदम आगे निकल गए थे। यूनानी तत्त्वज्ञानियों ने इंसान को दो तत्त्वों में बाँटा था, शरीर और सचेत “आत्मा।” हालाँकि यह आज भी एक जानी-मानी धारणा है, मगर बाइबल शिक्षा से बिलकुल मेल नहीं खाती, क्योंकि बाइबल कहती है: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते।”—सभोपदेशक 9:5.

मौत को लेकर इतना जुनून क्यों?

अपनी किताब इतिहास से पहले के धर्म (अँग्रेज़ी) में ई. ओ. जेम्स्‌ लिखता है: “आज तक इंसान को जितने भी किस्म के . . . हालात का सामना करना पड़ा है, उन सब में मौत ने ही उसे सबसे ज़्यादा बेचैन किया है, और सबसे ज़्यादा दुःख दिया है। . . . इसलिए ताज्जुब नहीं कि मरे हुओं को पूजने की रस्म जब से शुरू हुई है, तब से यह समाज पर पूरी तरह छा गयी है और अहम भूमिका निभाती रही है।”

सच्ची बुद्धि देनेवाली दुनिया की सबसे पुरानी किताब बाइबल, मौत को इंसान का दुश्‍मन कहती है। (1 कुरिन्थियों 15:26) कितनी सच बात है! हर जाति और हर सभ्यता ने इस विचार का डटकर विरोध किया है कि इंसान की मौत के वक्‍त उसका सबकुछ खत्म हो जाता है। मगर उत्पत्ति 3:19 में बाइबल बताती है कि असल में कब्र में क्या होता है: “तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” मगर बाइबल कई मरे हुओं का ज़िक्र करते वक्‍त शब्द “स्मारक कब्र,” (NW) का भी इस्तेमाल करती है। ऐसा क्यों? क्योंकि कब्र में दफन कई लोग, यहाँ तक कि वे भी जो पूरी तरह सड़ चुके हैं, अब भी परमेश्‍वर की याद में ताज़ा हैं। जब यह धरती फिरदौस बना दी जाएगी, तो परमेश्‍वर उन्हें ज़िंदा करेगा और खुशियों से भरे उस वक्‍त में हमेशा की ज़िंदगी जीने का सुनहरा मौका देगा।—लूका 23:43; यूहन्‍ना 5:28, 29.

उस समय के आने तक मरे हुए अचेत हैं। यीशु ने उनकी हालत की तुलना नींद से की थी। (यूहन्‍ना 11:11-14) ऐसी हालत में एक इंसान को न तो किसी चीज़ की और ना ही नौकर-चाकरों की ज़रूरत होती है। देखा जाए तो अकसर इन दफन खज़ानों का फायदा मरे हुए नहीं मगर ज़िंदा लोग उठाते हैं! जी हाँ, कब्रों को लूटनेवाले चोर-लुटेरे! इसलिए बाइबल यह सिखाने के साथ-साथ कि मरे हुए अचेत हैं, इसी से मेल खाती यह बात भी कहती है: “न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं।” (1 तीमुथियुस 6:7) मसीही, बाइबल से यह सच्चाई जानकर कितने एहसानमंद हैं, क्योंकि यह उन्हें पुराने ज़माने की और आज की भी कुछ ऐसी क्रूरता-भरी प्रथाओं से ‘स्वतंत्र करती है’!—यूहन्‍ना 8:32.

हालाँकि इन प्रथाओं के आज कोई मायने नहीं हैं, फिर भी पुराने ज़माने के ये आलीशान मकबरे एकदम बेकार नहीं हैं। इनमें पायी गयी कला-कृतियों, और यहाँ तक कि मरे हुओं के अवशेषों के बिना हम गुज़रे ज़माने के रहन-सहन से और लुप्त हो चुकी कुछ सभ्यताओं से पूरी तरह अनजान रहते। (g05 12/8)

[फुटनोट]

^ पैरा. 20 शब्द “ममी” दरअसल अरबी शब्द मूमीया से निकला है, जिसका मतलब है “गारा” या “डामर।” यह शब्द सबसे पहले राल से लथ-पथ शव के लिए इस्तेमाल किया जाता था क्योंकि वह दिखने में काला होता था। आज यह शब्द ऐसे किसी भी इंसान या जानवर के शव के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो आज तक महफूज़ है, फिर चाहे वह संयोग से हुआ हो या जानबूझकर किया गया हो।

[पेज 24 पर बक्स/तसवीरें]

पुराने ज़माने के लोग कितने तंदुरुस्त थे?

जब वैज्ञानिकों ने अवशेषों की जाँच की, खासकर उन अवशेषों की जिन्हें कब्रों में सही-सलामत रखा गया था, और जो दलदल, रेगिस्तान की गर्म रेत या बर्फ में कुदरती तरीके से सलामत रहे थे, तो उन्हें बहुत पुराने ज़माने के लोगों की सेहत के बारे में काफी कुछ पता चला है। खासकर जीन्स पर अध्ययन में हुई तरक्की की वजह से वैज्ञानिक उनके बारे में तकरीबन हर मामले पर जानकारी हासिल कर पाए हैं, जैसे मिस्र के राजा फिरौन और उनकी रानियों के पारिवारिक रिश्‍तों से लेकर इंका जातियों की कुँवारियों के ब्लड टाइप तक के बारे में पता कर पाए हैं। ये अध्ययन दिखाते हैं कि हमारे पूर्वजों ने भी ऐसी कई बीमारियाँ झेली थीं जो आज हमें होती हैं, जैसे आर्थ्राइटिस और मस्से।

ऐसा लगता है कि बाकी सभी देशों से ज़्यादा प्राचीन मिस्र, बीमारियों की गिरफ्त में था, खासकर इसलिए क्योंकि यहाँ रोगाणुओं का अड्डा था। नील नदी और सिंचाई के लिए बनायी गयी नहरों में तरह-तरह के बेहिसाब रोगाणु पाए जाते थे, जैसे ब्लड फ्लूक्स, नहरूआ और फीता कृमि। और इन्हीं नदी-नहरों के साथ संपर्क में आने की वजह से लोग बीमारियों के शिकार होते थे। मिस्र की यह हालत हमें परमेश्‍वर के उन शब्दों की याद दिलाती है जो उसने इस्राएलियों से सा.यु.पू. 1513 में मिस्र से उनके छुटकारे के बाद कहे थे: “मिस्र की बुरी बुरी व्याधियां जिन्हें तू जानता है उन में से किसी को भी [यहोवा] तुझे लगने न देगा।”—व्यवस्थाविवरण 7:15.

[चित्र का श्रेय]

© R Sheridan/ANCIENT ART & ARCHITECTURE COLLECTION LTD

[पेज 20 पर तसवीर]

ऊर की एक शाही कब्र में दफन एक सुमेरी नौकरानी की टोपी और उसके गहने

[चित्र का श्रेय]

© The British Museum

[पेज 21 पर तसवीरें]

चिन साम्राज्य की मिट्टी से बनी सेना—हरेक सैनिक के नैन-नक्श दूसरे से इस तरह अलग बनाए गए थे कि वह अपने आप में अनोखा था

[चित्र का श्रेय]

अंदर की तसवीर: Erich Lessing/Art Resource, NY; © Joe Carini / Index Stock Imagery

[पेज 23 पर तसवीर]

मेक्सिको के टेओटीवाकान शहर का ‘पिरामिड ऑफ द सन’ और ‘मरे हुओं की सड़क’

[चित्र का श्रेय]

ऊपर: © Philip Baird www.anthroarcheart.org; चित्रकारी: Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.

[पेज 23 पर तसवीरें]

बायीं तरफ: मिस्री राजा तुंतआखमन का ठोस सोने का अंत्येष्टि मुखौटा; नीचे: कब्र की एक चित्रकारी जिसमें बा को इंसानी सिरवाले पक्षी के रूप में दर्शाया गया है