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“यहोवा के संगठन में आपका स्वागत है”

“यहोवा के संगठन में आपका स्वागत है”

“यहोवा के संगठन में आपका स्वागत है”

फिनलैंड का रहनेवाला एक परिवार कुछ समय से यहोवा के साक्षियों के साथ संगति कर रहा था। यह देखकर कई लोग उनका विरोध करने लगे थे। उन्होंने इस परिवार को चेतावनी दी: “देखना, यहोवा के साक्षी तुम्हारा सारा पैसा ऐंठ लेंगे।” दूसरे कहने लगे: “तुम एक दिन अपने घर से भी हाथ धो बैठोगे।” इत्तफाक से एक रात उनके घर के उस हिस्से में ज़बरदस्त आग लगी जहाँ हीटर यानी कमरों को गर्म रखनेवाला सिस्टम लगा हुआ था। इससे इमारत को बुरी तरह नुकसान पहुँचा। यह हादसा उस परिवार के लिए बहुत भारी पड़ा क्योंकि उनके यहाँ उत्तर में कड़ाके की ठंड पड़ती है।

उन्होंने जो बीमा करवाया था उससे उन्हें इतना पैसा नहीं मिला कि वे दोबारा मकान बनाने के लिए चीज़ें खरीद सकें। ऐसा लग रहा था मानो आग ने वाकई लोगों की बातों को सच साबित कर दिया था। पिता ने उस घटना को याद करके आहें भरते हुए कहा: “हम तो बिलकुल टूट चुके थे।” इसके बावजूद उस पति-पत्नी ने तीन हफ्ते बाद बपतिस्मा लेने का अपना इरादा नहीं बदला।

उस इलाके की कलीसिया ने देखा कि बाइबल की इस सलाह पर अमल करने का मौका अब उनके सामने है: “हे बालको, हम वचन और जीभ ही से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें।” (1 यूहन्‍ना 3:18) मसीही भाइयों ने उस परिवार के मकान की मरम्मत करने के लिए योजना बनाना शुरू किया। फिनलैंड के यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ्तर ने इस योजना पर काम करने के बारे में कुछ कारगर सलाहें दीं। नक्शे बनाए गए, इमारत के परमिट हासिल किए गए, ज़रूरी चीज़ों की सूचियाँ बनायी गयीं और दूसरी कलीसियाओं से भी स्वयंसेवकों की गुज़ारिशें की गयीं।

हादसे के करीब एक महीने के अंदर, काम पूरे ज़ोरों पर होने लगा था। एक दिन बुधवार को उस इलाके के भाई-बहनों ने इमारत के जले हुए हिस्से को ढहाकर जगह साफ की। फिर उसी हफ्ते के शुक्रवार तक, दूसरी कलीसियाओं से आए भाई-बहन की मदद से नयी इमारत का ढाँचा बनाया जाने लगा। एक दिन जब उस परिवार का मुखिया शहर जा रहा था, तो रास्ते में उसकी मुलाकात उस इलाके के एक अधिकारी से हुई। उस आदमी ने उससे पूछा कि क्या उसने अपनी जली हुई इमारत को बरसात से बचाने के लिए छत पर तिरपाल लगा दिया है। पिता ने बड़े गर्व के साथ जवाब दिया: “जी नहीं, छत पर तिरपाल तो नहीं है, मगर हाँ 30 आदमी ज़रूर हैं!”

शनिवार के दिन तकरीबन 50 भाई-बहनों ने इमारत बनाने में हिस्सा लिया। वे बहुत खुश थे कि उन्हें इस काम में हाथ बँटाने का सुअवसर मिला है। एक पड़ोसी ने भी इस काम में भाई-बहनों की मदद की। उसने कहा: “पिछली रात मैं काफी देर तक यही सोचता रहा कि आप लोग कितने अलग हैं! आप सचमुच एक-दूसरे की परवाह और मदद करते हैं।”

उसी शाम सारा काम निपट गया। यह नयी इमारत मानो पुकार-पुकारकर उन अनिष्ट शब्दों का मुँहतोड़ जवाब दे रही थी जो एक वक्‍त कई लोगों ने उस परिवार से कहे थे। एक कलीसिया के प्राचीन को वह पल अभी-भी याद है जब वह और उस परिवार का मुखिया दोनों साथ खड़े होकर अपनी मेहनत का नतीजा देख रहे थे। प्राचीन कहता है: “वह क्या ही अनोखा एहसास था जब मैंने नए-नए बपतिस्मा पाए उस भाई के कंधे पर अपना हाथ रखकर उससे कहा: ‘यहोवा के संगठन में आपका स्वागत है।” (g05 12/8)

[पेज 31 पर तसवीर]

आग से हुआ नुकसान

[पेज 31 पर तसवीर]

मरम्मत के दौरान