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विश्‍व-दर्शन

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दुनिया का सबसे पसंदीदा जानवर

“कुत्ता चाहे इंसान का सबसे वफादार साथी क्यों न हो, मगर दुनिया का सबसे पसंदीदा जानवर है शेर।” यह खबर लंदन के दी इंडिपेंडेन्ट अखबार ने दी। तिहत्तर देशों के 52,000 से ज़्यादा लोगों को 10 जानवरों में से हरेक पर कई डॉक्यूमेंट्री दिखायी गयीं। इसके बाद जब उनसे पूछा गया कि उनका मनपसंद जानवर कौन-सा है, तो शेर अव्वल नंबर पर आया जबकि कुत्ता सिर्फ 17 वोटों से दूसरे नंबर पर चला गया। तीसरे नंबर पर थी डॉल्फिन, उसके बाद घोड़ा, फिर सिंह, साँप, हाथी, चिम्पैंज़ी, ओरैंगटन और फिर व्हेल। जानवरों की हरकतों का अध्ययन करनेवाली विशेषज्ञ डॉ. कैंडी डीसा समझाती हैं कि इंसान अपने और “शेर में समानता देखता है। क्योंकि शेर बाहर से खूँखार और ताकतवर नज़र आता है मगर उसके अंदर एक तरह की शान और समझ-बूझ से काम लेने की काबिलीयत होती है। कुत्ता शेर से बिलकुल अलग है। वह वफादार और दूसरों का लिहाज़ करनेवाला जानवर है और लोगों को और भी दोस्ताना बनने को उकसाता है।” पर्यावरण की रक्षा करनेवाले, शेर की इस जीत से बहुत खुश हुए। ‘कुदरत के बचाव के लिए विश्‍वव्यापी फंड’ नाम के संगठन के कैलम रैंगकन ने बताया: “लोगों ने जब शेर को अपना मनपसंद जानवर चुना है, तो इसका मतलब है कि वे इस जानवर की अहमियत समझते हैं। इसलिए उम्मीद है कि वे इसके बचाव के लिए भी कुछ करेंगे।” अनुमान है कि फिलहाल दुनिया-भर के जंगलों में सिर्फ 5,000 शेर रह गए हैं। (g05 12/22)

मुँह के कीटाणुओं का हमारी सेहत पर असर

साइंस पत्रिका कहती है कि “हमारा मुँह अपने आपमें एक जटिल पारितंत्र है, यानी इसका हमारे शरीर के दूसरे हिस्सों से संबंध है। पिछले 40 सालों से मुँह-संबंधी जीव-विज्ञानी उन बेहिसाब कीटाणुओं का अध्ययन कर रहे हैं जो हमारे दाँतों, मसूड़ों और जीभ पर और इनके आस-पास फल-फूल रहे हैं।” हाल ही में जीव-विज्ञानियों ने जाना है कि मुँह में पाए जानेवाले आम बैक्टीरिया शरीर के दूसरे हिस्सों में जाकर वहाँ भी नुकसान कर सकते हैं। यह बात तो पता लग चुकी है कि मुँह में पाए जानेवाले एक किस्म के बैक्टीरिया से दिल का रोग हो सकता है। अध्ययनों से यह बात भी सामने आयी है कि एक और किस्म के बैक्टीरिया की वजह से गर्भवती स्त्रियाँ समय से पहले बच्चे को जन्म देती हैं। बेशक जो खराब बैक्टीरिया हैं, वे ज़्यादातर मुँह को ही नुकसान पहुँचाते हैं। अगर ऐसे कई बैक्टीरिया साथ मिलकर अच्छे बैक्टीरिया को खत्म कर दें, तो दाँत सड़ जाते हैं, मसूड़ों से खून आने लगता है और साँस में बदबू आने लगती है। एक रिपोर्ट कहती है: “पैंसठ की उम्र पार करनेवाले 10 लोगों में से तीन के सारे दाँत गिर गए हैं। अमरीका में बालिगों में से आधे लोगों को या तो मसूड़ों की बीमारी है या उनके दाँत सड़ गए हैं।” खोजकर्ताओं को उम्मीद है कि इन बैक्टीरिया के अध्ययन से वे “ऐसे माउथवॉश बना पाएँगे जो अच्छे और खराब दोनों कीटाणुओं का सफाया करने के बजाय सिर्फ खराब कीटाणुओं का खातमा कर सके।” (g05 12/22)

कौन कितना सोता है

टी.वी. का अलजाज़ीरा न्यूज़ चैनल रिपोर्ट करता है: “दुनिया-भर के लोगों की सोने की आदत पर हुए एक सर्वे से पता चला है कि ज़्यादातर अमरीकी और यूरोपीय लोगों के मुकाबले एशिया के लोग रात को काफी देर से सोते हैं और सुबह जल्दी उठ जाते हैं।” अट्ठाइस देशों के 14,000 से भी ज़्यादा लोगों से उनके सोने और जागने का समय पूछा गया। पुर्तगाल में, 4 में से 3 लोगों का कहना था कि वे आधी रात के बाद ही सोते हैं। एशिया के लोग बाकियों के मुकाबले सुबह जल्दी उठते हैं। इसमें सबसे आगे है, इंडोनेशिया “जहाँ के 91 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे सुबह सात बजे तक उठ जाते हैं।” जापानी लोग सबसे कम सोते हैं। 40 प्रतिशत से ज़्यादा जापानी रात को सिर्फ छः घंटे या उससे कम सोते हैं। दूसरी तरफ हैं ऑस्ट्रेलिया के लोग, जो सबसे ज़्यादा सोते हैं। इस देश में रात को दस बजे से पहले सोनेवालों की तादाद सबसे ज़्यादा है। इतना ही नहीं, सर्वे में जवाब देनेवालों में से एक-तिहाई लोगों ने कहा कि उन्हें हर रात औसतन 9 घंटे से ज़्यादा नींद मिलती है। (g05 12/22)

बच्चों के लिए “कंगारू जैसी देखभाल”

जापान का डेली योमीउरी अखबार कहता है: “जिन बच्चों की कंगारू जैसी देखभाल की जाती है, वे ज़्यादा सोते हैं, ठीक से साँस ले पाते हैं और उनका वज़न भी जल्दी बढ़ता है।” “कंगारू जैसी देखभाल” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि माँ या पिता, हर दिन बिस्तर पर पीठ के बल लेटकर, एक-दो घंटे तक बच्चे को अपनी खुली छाती पर सुलाए रखे। ‘टोक्यो मेट्रोपॉलिटन बोकुटो हॉस्पिटल’ में नवजात शिशु विभाग की प्रमुख, टोयोको वाटानाबे कहती हैं: “कंगारू जैसी देखभाल की शुरूआत कोलम्बिया में हुई थी जहाँ बच्चों को रखने के लिए इन्क्यूबेटर की भारी कमी थी। यूनिसेफ ने गौर किया कि कंगारू जैसी देखभाल की वजह से, समय से पहले जन्म लेनेवाले बच्चों की मृत्यु दर घट गयी और उन्हें ज़्यादा दिनों तक अस्पताल में रखने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी।” अखबार आगे कहता है कि अब “अमीर देशों में भी, वक्‍त से पहले जन्म लेनेवाले बच्चों और नौ महीने पूरे करके पैदा होनेवाले आम बच्चों की देखभाल करने के लिए यही तरीका ज़ोर पकड़ रहा है।” इस तरह त्वचा-से-त्वचा के संपर्क से कई फायदे होते हैं। एक यह है कि माता-पिता अपने बच्चों के साथ एक अटूट बंधन कायम कर पाते हैं। इसके अलावा, इसमें कोई पैसा भी नहीं लगता और किसी खास यंत्र की ज़रूरत नहीं पड़ती। (g05 12/22)

युवा पीढ़ी और मोबाइल फोन

लंदन के ‘डेली टेलीग्राफ’ अखबार में यह खबर छपी कि “अगर ब्रिटेन के जवानों से उनके मोबाइल फोन ले लिए जाएँ, तो उनका जीना मुश्‍किल हो जाएगा।” खोजकर्ताओं ने 15 से 24 साल के कुछ जवानों से दो हफ्ते के लिए उनके मोबाइल फोन ले लिए। रिपोर्ट कहती है: “मोबाइल फोन के बिना उन्हें सब कुछ अजीबो-गरीब लगने लगा। जवानों को मजबूरन कुछ नए-नए अनुभवों से गुज़रना पड़ा: जैसे, अपने ही माता-पिता से बात करना, दोस्तों से मिलने के लिए उनके घर जाना और दोस्तों के माँ-बाप से मुलाकात करना।” इंग्लैंड के लैंकस्टर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल ह्‍यूम कहते हैं कि इन जवानों के लिए सॆलफोन पर बातचीत करना “खुद को तसल्ली देने और अपनी एक पहचान कायम करने का तरीका” है। अखबार कहता है कि एक लड़की ने मोबाइल फोन के बगैर बहुत “बेचैनी और तनाव” महसूस किया। दूसरा एक लड़का खुद को अकेला महसूस करने लगा और उसे “जब चाहे अपने दोस्तों के साथ फोन पर बात करने” के बजाय “उनसे वक्‍त पर मिलने के लिए काफी पहले से सब कुछ तय करना पड़ा।” (g05 11/8)

“घर की सजावट में सबसे बेहतरीन चीज़”?

लंदन का द संडे टेलिग्राफ कहता है: “पश्‍चिमी देशों से चीन में आनेवाले जो सैलानी और बिज़नेसमैन गैर-कानूनी रूप से शेर की खालें खरीद रहे हैं, वे एक ऐसे जानवर की हत्या के लिए ज़िम्मेदार हैं जिसका वजूद सबसे ज़्यादा खतरे में है।” सौ साल पहले जंगली शेरों की गिनती करीब 1,00,000 थी, मगर अब 5,000 से भी कम है। इनमें सबसे ज़्यादा शेर भारत में पाए जाते हैं और कुछ दक्षिण-एशिया और पूर्वी एशिया के देशों में। लंदन का एक खैराती संगठन ‘दी एनवायरनमेंटल इनवेस्टीगेशन एजंसी’ रिपोर्ट करता है कि ग्राहक इन खालों को “घर की सजावट में सबसे बेहतरीन चीज़” मानते हैं, “मगर सच तो यह है कि वे शेरों का वजूद मिटा रहे हैं। . . . आज इन जानवरों के लुप्त होने का खतरा इतना बढ़ गया है कि अब हरेक शेर का ज़िंदा रहना ज़रूरी है ताकि उसकी जाति का वजूद बचा रहे।” सन्‌ 1994 से 2003 तक, 684 शेरों की खालें बरामद की गयी थीं, मगर कहा जाता है कि यह चोरी-छिपे बेची गयी खालों का सिर्फ छोटा-सा हिस्सा है। (g05 11/8)

हँसी में कितना दम है

पोलैंड की साप्ताहिक पत्रिका प्शियाचुका रिपोर्ट करती है: “वैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया है कि सिर्फ आधे मिनट की ठहाकेदार हँसी, 45 मिनट तक अच्छी तरह आराम करने के बराबर है। अचानक किसी बात को लेकर ठहाके मारना, तीन मिनट तक खुली हवा में जमकर कसरत करने के बराबर है, और दस बार प्यार से मुस्कराना, दस मिनट तक रोइंग मशीन पर ज़बरदस्त कसरत करने के बराबर है।” हँसी के कुछ और फायदे हैं, फेफड़ों में तीन गुना ज़्यादा हवा ले पाना, रक्‍त का अच्छी तरह से बहाव, बेहतर उपापचय (मेटाबॉलिज़्म), हाज़मा, दिमाग का तेज़ होना और शरीर से नुकसानदेह चीज़ों का निकलना। पत्रिका सुझाव देती है कि अच्छा मिज़ाज बनाए रखने के लिए आप सुबह उठने के बाद सबसे पहले खुद को और अपने साथी और बच्चों को देखकर मुस्कराएँ। पत्रिका आगे कहती है: “खुद पर हँसना सीखिए ताकि आप अपनी खामियों को लेकर हद-से-ज़्यादा परेशान न हों। मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी उम्मीद बनाए रखने की कोशिश कीजिए।” (g05 10/22)