अँधेरे में जगमगानेवाली “नन्ही रेलगाड़ियाँ”
अँधेरे में जगमगानेवाली “नन्ही रेलगाड़ियाँ”
◼ शाम ढल चुकी है। ब्राज़ील के एक घने जंगल में चारों तरफ खामोशी छायी हुई है। इतने में ज़मीन पर बिखरे पत्तों के नीचे से एक नन्ही-सी “रेलगाड़ी” निकलती है। उसके सामने की तरफ लाल रंग की दो “बड़ी बत्तियाँ” हैं जो उसके रास्ते को रोशन कर रही हैं और उसकी दायीं और बायीं तरफ 11 जोड़ी हरी-पीली बत्तियाँ दमक रही हैं। लेकिन यह कोई सचमुच की रेलगाड़ी नहीं, बल्कि एक लार्वा है। यह दो इंच लंबा है और उत्तर और दक्षिण अमरीका में पायी जानेवाली फेनगोडीडे जाति के गुबरैला (बीटल) का लार्वा है। इस जाति की मादाएँ लार्वा के रूप में ही रहती हैं और क्योंकि ये रेलगाड़ियों की तरह दिखती हैं, इसलिए इन्हें अकसर रेलरोड कीड़े कहा जाता है। ब्राज़ील के गाँवों में लोग इन्हें नन्ही रेलगाड़ियाँ कहते हैं।
दिन के वक्त यह हलके भूरे रंग का लार्वा बड़ी मुश्किल से नज़र आता है। लेकिन रात के वक्त अपनी रंग-बिरंगी बत्तियों की वजह से वह बड़ी आसानी से नज़र आ जाता है। यह लार्वा अपने शरीर में मौजूद ल्यूसिफरीन पदार्थ और लूसीफरेस एनज़ाइम का इस्तेमाल करके ऐसी रोशनी पैदा करता है, जो गरमी नहीं देती। ये बत्तियाँ लाल, नारंगी, पीले और हरे रंग की होती हैं।
सामने की बड़ी लाल बत्तियाँ बराबर जलती रहती हैं जबकि हरी-पीली बत्तियाँ लगातार नहीं चमकतीं। अध्ययन से पता चला है कि लार्वा लाल बत्तियों की मदद से अपने मनपसंद शिकार कनखजूरा को ढूँढ़ता है। लेकिन वह अपनी हरी-पीली बत्तियों का उस वक्त इस्तेमाल करता है जब उसे चींटी, मेंढक, और मकड़ी जैसे शिकारी जानवरों से खतरा महसूस होता है। ये बत्तियाँ इन जानवरों को उसके पास आने से रोकती हैं और मानो उन्हें खबरदार करती हैं: “दूर रहो! खाओगे तो पछताओगे!” इसके अलावा, ये हरी-पीली बत्तियाँ उस वक्त भी चमकती हैं जब लार्वा, कनखजूरे पर हमला करता है और जब मादा लार्वा अपने अंडों को घेरकर बैठती है। जब यह लार्वा ऐसा कुछ नहीं कर रहा होता है, तो उस वक्त वह अपनी हरी-पीली बत्तियों को कुछ सेकेंड के लिए एकदम तेज़ करके बंद कर देता है। और यह सिलसिला वह ज़रूरत के हिसाब से दोहराता रहता है।
है ना यह कमाल की बात कि जंगलों की ज़मीन पर सड़ी-गली पत्तियों के बीच भी कितनी खूबसूरती पायी जाती है! इससे हमें भजनहार के वे शब्द याद आते हैं जो उसने सिरजनहार की स्तुति में लिखे थे: “तेरे द्वारा रचे गए जीवों से पृथ्वी परिपूर्ण है।”—भजन 104:24, नयी हिन्दी बाइबिल। (g 11/06)
[पेज 20 पर चित्र का श्रेय]
Robert F. Sisson / National Geographic Image Collection