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पहली सदी में बड़े पैमाने पर लोगों के लिए मनोरंजन

पहली सदी में बड़े पैमाने पर लोगों के लिए मनोरंजन

पहली सदी में बड़े पैमाने पर लोगों के लिए मनोरंजन

दक्षिण इटली के एक ऐम्फिथियेटर या स्टेडियम में, दो पड़ोसी शहरों के बीच एक खेल चल रहा था। अचानक, खेल के चाहनेवालों के बीच दंगा शुरू हो गया। इस दंगे में न जाने कितने लोग घायल हो गए और कितने मारे गए। मरनेवालों में से कुछ बच्चे भी थे। इस हादसे की वजह से अधिकारियों ने उस ऐम्फिथियेटर को दस साल तक बंद रखने का आदेश दिया।

आजकल के अखबारों में ऐसे दंगों की खबरें कोई नयी बात नहीं हैं। मगर यह घटना, आज से करीब 2,000 साल पहले, सम्राट नीरो के शासन के दौरान घटी थी। इस दंगे के बारे में ज़्यादा जानकारी रोमी इतिहासकार टेसिटस ने दी। यह दंगा पॉम्पे के ऐम्फिथियेटर में उस वक्‍त हुआ था, जब ग्लैडियेटरों या योद्धाओं के बीच हो रहे मुकाबले के दौरान पॉम्पे के लोग, पड़ोसी शहर न्यूकेरीआ से आए दर्शकों के साथ मार-पीट करने लगे।

पहली सदी के ज़्यादातर लोगों पर मनोरंजन का काफी दबदबा था। रोमी साम्राज्य के बड़े-बड़े शहरों में नाटक-घर, ऐम्फिथियेटर या अखाड़े हुआ करते थे, और कुछ शहरों में तो तीनों हुआ करते थे। किताब एटलस ऑफ द रोमन वर्ल्ड कहती है: “इस तरह के खेलों से दर्शकों में सनसनी दौड़ जाती क्योंकि इनमें खिलाड़ियों को खतरों से खेलना होता था, . . . [और] खून की नदियाँ भी बहायी जाती थीं।” रथ दौड़ानेवाले खिलाड़ी अलग-अलग रंग के कपड़े पहनते थे। हर खिलाड़ी और उसके घोड़ों की टीम समाज या राजनीति के किसी समूह की तरफ से खेल में हिस्सा लेती थी। जब भी कोई खिलाड़ी अपने घोड़ों के साथ अखाड़े में उतरता, तो उसके चाहनेवाले जोश में आकर चीखना-चिल्लाना शुरू कर देते थे। ये खिलाड़ी इतने मशहूर हो जाते थे कि लोग अपने घरों को उनकी तसवीरों से सजाते थे। इतना ही नहीं, इन खिलाड़ियों को प्रतियोगिता के बहुत पैसे मिलते थे।

इस खेल के अलावा, शहरों में योद्धाओं के बीच और इंसानों और जानवरों के बीच भी मुकाबले होते थे। कभी-कभी इंसानों को निहत्थे ही जानवरों के साथ लड़ना पड़ता था। ऐसे मुकाबलों में बहुत खून-खराबा होता था। इतिहासकार विल ड्यूरंट के मुताबिक, “मौत की सज़ा सुनाए गए अपराधियों को कभी-कभी जानवरों की खाल पहनाकर ऐसे खूँखार जानवरों के आगे फेंक दिया जाता था जिन्हें कई दिनों तक भूखा रखा जाता था। ऐसे में इन अपराधियों को क्या ही बदतर और दर्दनाक मौत मिलती थी।”

इसमें कोई शक नहीं कि इस तरह के घिनौने मनोरंजन का मज़ा लेनेवालों की “बुद्धि अन्धेरी हो गयी” थी और अच्छे-बुरे की उनकी समझ “सुन्‍न” हो गयी थी। (इफिसियों 4:17-19) दूसरी सदी में टर्टलियन ने लिखा था: “[मसीही] जो कुछ बोलते, देखते या सुनते हैं, उसका और स्टेडियम के पागलपन, नाटक-घरों की निर्लज्जता [और] अखाड़े की क्रूरता का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं।” आज के सच्चे मसीहियों के बारे में भी यह बात सच है। वे किताबों, टी.वी. और कंप्यूटर गेम्स्‌ जैसे उन सभी मनोरंजन से दूर रहते हैं जिनमें हिंसा दिखायी जाती है। क्यों? क्योंकि वे जानते हैं कि यहोवा उन लोगों से नफरत करता है, जो “हिंसा से प्रीति रखते हैं।”—भजन 11:5, ईज़ी-टू-रीड वर्शन। (11/06)

[पेज 14 पर तसवीर]

रथ-दौड़ में जीतनेवाले एक खिलाड़ी का मोज़ेइक

[पेज 14 पर तसवीर]

पलस्तर पर बनी एक आदमी की तसवीर जो एक सिंहनी के साथ लड़ रहा है

[पेज 14 पर तसवीर]

पहली सदी का एक रोमी नाटक-घर

[चित्र का श्रेय]

Ciudad de Mérida

[पेज 14 पर चित्रों का श्रेय]

ऊपर और नीचे बायीं तरफ की तसवीर: Museo Nacional de Arte Romano, Mérida