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क्या विज्ञान सारी बीमारियों को दूर करेगा?

क्या विज्ञान सारी बीमारियों को दूर करेगा?

क्या विज्ञान सारी बीमारियों को दूर करेगा?

क्या आधुनिक विज्ञान, सारी बीमारियों को दूर करेगा? बाइबल में, यशायाह और प्रकाशितवाक्य की किताबों में दर्ज़ भविष्यवाणियाँ, क्या यह दिखाती हैं कि खुद इंसान ही इस दुनिया को बीमारियों की गिरफ्त से आज़ाद करेगा? कुछ लोगों का मानना है कि इंसान ऐसा कर सकता है, क्योंकि उसने इलाज के मामलों में कई बड़ी-बड़ी कामयाबियाँ हासिल की हैं।

आजकल सरकारें, दानी लोग और खैराती संगठन, संयुक्‍त राष्ट्र के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर बीमारियों से लड़ने पर जुटे हुए हैं। उन सभी की एक कोशिश यह रही है, गरीब देशों में बच्चों को टीका लगवाना। संयुक्‍त राष्ट्र बाल निधि के मुताबिक, अगर अलग-अलग देश इस मामले में अपने-अपने लक्ष्यों को हासिल करने में कामयाब हो गए, तो “सन्‌ 2015 के आते-आते, हर साल दुनिया के सबसे गरीब देशों में रहनेवाले 7 करोड़ से भी ज़्यादा बच्चों को टीके लग चुकेंगे जो उन्हें इन बीमारियों से बचाएँगे: टी.बी., डिफ्थीरिया, टिटेनस, काली खाँसी, खसरा, हलका खसरा (रूबेला), पीत-ज्वर, हेमोफिलस इन्फ्लूएन्ज़ा टाइप बी, हिपैटाइटिस बी, पोलियो, रोटावाइरस, न्यूमोकॉक्कस, मैनिंजोकोकस और जापानी मस्तिष्क-ज्वर।” इसके अलावा, स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए भी ज़ोर-शोर से कदम उठाए जा रहे हैं। जैसे, साफ पानी, अच्छा खान-पान और साफ-सफाई के बारे में शिक्षा।

लेकिन वैज्ञानिक बस स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएँ ही नहीं देना चाहते हैं, बल्कि वे और भी कुछ करने की तमन्‍ना रखते हैं। आधुनिक तकनीक, चिकित्सा क्षेत्र की पूरी कायापलट कर रही है। कहा जाता है कि लगभग हर आठ साल में, चिकित्सा के बारे में वैज्ञानिकों का ज्ञान दुगुना हो जाता है। हाल ही में, वैज्ञानिक बीमारियों के खिलाफ लड़ने के लिए, नयी-नयी तकनीकें ईजाद करने में कामयाब हुए हैं और उन्होंने भविष्य में इसी तरह की और भी तकनीकियाँ ईजाद करने के लक्ष्य रखे हैं। आइए इसकी कुछ मिसालें देखें।

एक्स-रे इमेजिंग पिछले 30 से भी ज़्यादा सालों से, डॉक्टर और अस्पताल सीटी स्कैन का इस्तेमाल करते आए हैं। सीटी का पूरा नाम है, कंप्यूटिड टोमोग्राफी। सीटी स्कैनिंग मशीन, एक्स-रे की मदद से हमारे शरीर के अंदरूनी हिस्से की थ्री-डी तसवीरें (जिसमें लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई होती हैं) खींचती है। फिर इन तसवीरों को स्कैनिंग मशीन से जुड़े कंप्यूटर के स्क्रीन पर दिखाया जाता है। ये तसवीरें, बीमारी का पता लगाने और शरीर के अंदर कहाँ गड़बड़ी है, इसकी जाँच करने में बहुत मददगार साबित होती हैं।

सीटी स्कैन में रेडिएशन का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसके खतरे के बारे में फिलहाल कुछ वाद-विवाद चल रहा है। इसके बावजूद, चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस तकनीक से, जिसे लगातार बेहतर बनाया जा रहा है, भविष्य में सभी को बहुत फायदा होगा। शिकागो अस्पताल के विश्‍वविद्यालय में, रेडियोलॉजी के प्रोफेसर माइकल वानीर कहते हैं: “पिछले कुछ ही सालों में, इस तकनीक में इतनी ज़बरदस्त तरक्की हुई है कि उसके बारे में जानकर आप दाँतों तले उँगली दबा लेंगे।”

सीटी स्कैनिंग मशीन अब पहले से ज़्यादा तेज़ काम करती है, एकदम सही एक्स-रे लेती है और यह सस्ती भी है। सबसे नयी स्कैनिंग मशीन का एक अहम फायदा है, उसकी रफ्तार। यह रफ्तार खासकर तब काम आती है जब दिल का स्कैन लेना होता है। इंसान का दिल लगातार धड़कता रहता है, इसलिए पहले जब एक्स-रे लिया जाता था, तो तसवीरें साफ नहीं बल्कि धुँधली आती थीं। नतीजा, एक्स-रे की सही-सही जाँच करना मुश्‍किल होता था। लेकिन अब, जैसे न्यू साइंटिस्ट पत्रिका समझाती है कि नयी स्कैनिंग मशीनों को “पूरे शरीर का एक्स-रे लेने में सिर्फ एक-तिहाई सेकंड लगता है और यह रफ्तार, दिल की एक धड़कन से भी तेज़ है।” इस तरह, दिल की बहुत साफ तसवीरें खींची जाती हैं।

अब डॉक्टर नयी स्कैनिंग मशीनों की मदद से न सिर्फ शरीर के अंदर का एक-एक अंग देख सकते हैं, बल्कि किसी खास जगह पर होनेवाली जैव-रसायनिक प्रक्रिया की भी जाँच कर सकते हैं। इस जाँच से कैंसर का पता उसके शुरूआती चरण में ही लगाया जा सकता है।

रोबोट की मदद से ऑपरेशन अब जटिल-से-जटिल रोबोटों का इस्तेमाल, वैज्ञानिक किताबों की कोरी-कल्पना नहीं रहा। कम-से-कम चिकित्सा क्षेत्र में यह एक हकीकत बन चुका है। फिलहाल हज़ारों ऑपरेशन रोबोट की मदद से किए जा रहे हैं। कुछ मामलों में तो सर्जन रिमोट कंट्रोल से कई हाथोंवाले रोबोट को चलाकर ऑपरेशन करते हैं। रोबोट के एक-एक हाथ में सर्जरी के औज़ार होते हैं, जैसे छुरी, कैंची, कैमरा, कॉटरी (गर्म लोहा या कोई जलानेवाला पदार्थ) वगैरह। इस तकनीक से सर्जन बहुत ही पेचीदा ऑपरेशन अचूक तरीके से कर पाते हैं। न्यूज़वीक पत्रिका रिपोर्ट करती है: “यह तकनीक इस्तेमाल करनेवाले सर्जनों ने पाया है कि इसमें ना तो मरीज़ों का ज़्यादा खून बहता है और ना ही उन्हें ज़्यादा दर्द होता है। साथ ही, ऑपरेशन के दौरान या उसके बाद उठनेवाली समस्याओं का कम खतरा होता है। इस तकनीक के इस्तेमाल से मरीज़ों को अस्पताल में कम दिन बिताने पड़ते हैं और वे जल्दी ठीक हो जाते हैं। जबकि आम ऑपरेशन में ये सबकुछ नहीं होता।”

नैनोमेडिसिन नैनोमेडिसिन का मतलब है, चिकित्सा क्षेत्र में नैनो तकनीक का इस्तेमाल करना। और नैनो तकनीक, विज्ञान की ऐसी शाखा है जिसमें सूक्ष्म मशीने बनायी जाती हैं और तरह-तरह के कामों के लिए उनका इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में माप के लिए इस्तेमाल की जानेवाली इकाई को नैनोमीटर कहते हैं, जो एक मीटर का एक अरबवाँ हिस्सा है। *

यह माप कितना छोटा है, इस बात को अच्छी तरह समझने के लिए आइए कुछ मिसालों पर ध्यान दें। आप अभी जो पेज पढ़ रहे हैं, उसकी मोटाई करीब 1,00,000 नैनोमीटर है। इंसान का एक बाल करीब 80,000 नैनोमीटर मोटा होता है। एक लाल रक्‍त कोशिका का व्यास लगभग 2,500 नैनोमीटर होता है। एक जीवाणु तकरीबन 1,000 नैनोमीटर और एक वाइरस तकरीबन 100 नैनोमीटर लंबा होता है। आपके डी.एन.ए. का व्यास करीब 2.5 नैनोमीटर है।

इस तकनीक के हिमायतियों का मानना है कि बहुत जल्द, वैज्ञानिक ऐसी छोटी-छोटी मशीन बना पाएँगे, जो इंसान के शरीर के अंदर घुसकर इलाज करेंगी। इन मशीनों को आम तौर पर नैनोमशीन कहा जाता है। दरअसल, ये मशीन छोटे-छोटे रोबोट की तरह होंगी जिन पर सूक्ष्म कंप्यूटर लगाए जाएँगे। इन कंप्यूटरों को खास हिदायतों के साथ प्रोग्राम किया जाएगा। और हैरानी की बात तो यह है कि इन जटिल मशीनों के पुर्ज़े का माप केवल 100 नैनोमीटर होगा, उससे ज़्यादा नहीं। यानी, ये पुर्ज़े लाल रक्‍त कोशिकाओं के व्यास से 25 गुना छोटे होंगे!

नैनोमशीन इतनी छोटी हैं कि वैज्ञानिकों को उम्मीद है, एक-न-एक-दिन ये मशीन खून की छोटी-छोटी नलियों (कैपिलरी) से सफर करके बड़े-बड़े कारनामे कर पाएँगी। जैसे, उन ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुँचाना जिनमें खून की कमी है, खून की नलिकाओं से कोई भी रुकावट दूर करना, मस्तिष्क की कोशिकाओं से प्लाक हटाना, यहाँ तक कि वाइरस, जीवाणुओं और रोग फैलानेवाले दूसरे जीवों को ढूँढ़कर नाश करना। इसके अलावा, नैनोमशीन के ज़रिए खास कोशिकाओं तक दवाइयाँ भी पहुँचायी जा सकती हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि नैनोमेडिसिन की मदद से, आगे चलकर कैंसर का पता लगाने में ज़बरदस्त सुधार आएगा। चिकित्सा, भौतिक-विज्ञान और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर, डॉ. सैमुएल विकलाइन कहते हैं: “आज पहले से कहीं ज़्यादा इस बात की गुंजाइश बढ़ गयी है कि छोटे-से-छोटे कैंसर का पता लगाया जा सकता है। फिर जहाँ वे पाए जाते हैं, वहीं पर असरदार दवाइयों के साथ उन्हें नष्ट किया जा सकता है। साथ ही, इससे साइड इफेक्ट्‌स भी कम होंगे।”

हालाँकि भविष्य की ये बातें एक ख्वाब लग सकती हैं, मगर कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ये सचमुच मुमकिन हैं। इस क्षेत्र के जाने-माने खोजकर्ता उम्मीद करते हैं कि अगले 10 सालों के अंदर, जीवित कोशिकाओं की आणविक बनावट की मरम्मत करने और उनके क्रम को बदलने में नैनो तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तकनीक का एक हिमायती दावा करता है: “नैनोमेडिसिन, 20वीं सदी की लगभग सभी आम बीमारियों के साथ-साथ, उनसे होनेवाले दर्द और तकलीफ को भी हमेशा के लिए मिटा देगी। इस तरह, इंसान की काबिलीयतें और भी लंबे समय तक बरकरार रहेंगी।” यहाँ तक कि आज, कुछ वैज्ञानिक यह रिपोर्ट दे रहे हैं कि प्रयोगशाला के जानवरों पर आज़माए नैनोमेडिसिन से उन्हें काफी कामयाबी मिल रही है।

जीनोमिक्स जीन की बनावट के अध्ययन को जीनोमिक्स कहा जाता है। इंसान के शरीर की हर कोशिका ऐसे अंशों से मिलकर बनी है जो जीवन के लिए निहायत ज़रूरी हैं। इनमें से एक अंश है, जीन्स। हममें से हरेक में लगभग 35,000 जीन्स हैं। इन्हीं जीन्स से तय होता है कि हमारे बालों का रंग क्या होगा, वे मुलायम होंगे या रूखे; हमारी त्वचा और आँखों का रंग क्या होगा, हमारा कद क्या होगा और हमारे रूप से जुड़ी और भी कई बातें। यही नहीं, हमारे अंदरूनी अंग बढ़िया तरीके से काम करेंगे या नहीं, यह तय करने में भी जीन्स एक अहम भूमिका अदा करते हैं।

जब हमारे जीन्स को कोई नुकसान पहुँचता है, तो इससे हमारी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। दरअसल, कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि सभी बीमारियों की जड़ है, जीन्स में गड़बड़ी। कुछ खराब जीन्स हमें अपने माँ-बाप से विरासत में मिलते हैं, तो कुछ जीन्स को हमारे वातावरण से होनेवाले खतरों से नुकसान पहुँचता है।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वह दिन दूर नहीं, जब वे ठीक-ठीक पता लगा पाएँगे कि किस-किस जीन्स से एक इंसान बीमार पड़ता है। इससे डॉक्टर बहुत-सी बातें समझ पाएँगे, जैसे कि औरों के मुकाबले कुछ लोगों को कैंसर होने का ज़्यादा खतरा क्यों रहता है? या, क्यों एक किस्म का कैंसर कुछ लोगों में भयानक रूप लेता है, जबकि दूसरों पर इतना कहर नहीं ढाता? जीनोमिक्स से शायद यह भी गुत्थी सुलझ जाए कि क्यों फलाँ दवा कुछ मरीज़ों पर बढ़िया असर करती है, मगर वही दवा दूसरों के लिए बेअसर साबित होती है।

इस तरह, जीन्स के बारे में ठीक-ठीक जानकारी हासिल करने से ऐसा इलाज करवाना मुमकिन हो सकता है जिसे ‘निजी इलाज’ कहा जाता है। आप इस तकनीक से कैसे फायदा पा सकते हैं? निजी इलाज का मतलब है कि आपके जीन्स की अनोखी संरचना के हिसाब से आपका इलाज किया जाएगा। मिसाल के लिए, अगर आपके जीन्स के अध्ययन से पता चलता है कि आपको फलाँ बीमारी होने की गुंजाइश है, तो उसका एक भी लक्षण उभरने से पहले डॉक्टर उस बीमारी का पता लगा लेंगे। इस तकनीक के पैरोकार दावा करते हैं कि ऐसे में, बीमारी के आने से बहुत पहले अगर सही इलाज किया जाए, खान-पान पर ध्यान दिया जाए और आदतों में बदलाव लाया जाए, तो उस बीमारी से पूरी तरह बचा जा सकता है।

आपके जीन्स के अध्ययन से, डॉक्टर इस बात से भी खबरदार हो सकते हैं कि फलाँ दवा का आप पर बुरा असर (रिएक्शन) होगा। इस जानकारी की बदौलत, डॉक्टर आपको सही दवा और उसकी सही खुराक दे सकेंगे। द बॉस्टन ग्लोब अखबार की एक रिपोर्ट कहती है: “सन्‌ 2020 के आते-आते, [निजी इलाज] का दूर-दूर तक इतना बढ़िया असर होगा कि आज हम शायद ही इसकी कल्पना कर पाएँ। हरेक के जीन्स की बिना पर, इन बीमारियों के लिए नयी-नयी दवाइयाँ तैयार की जाएँगी: डायबिटीज़, दिल की बीमारियाँ, अल्ज़ाइमर्स, स्किड्‌ज़ोफ्रीनीया और दूसरी कई बीमारियाँ जिनका भारी खमियाज़ा हमारे समाज को उठाना पड़ता है।”

ऊपर बतायी तकनीकियाँ, इस बात की सिर्फ एक झलक है कि विज्ञान, भविष्य में क्या-क्या करने का वादा करता है। चिकित्सा क्षेत्र का ज्ञान दिन-दूना, रात-चौगुना बढ़ता जा रहा है। मगर वैज्ञानिकों को नहीं लगता कि वे इतनी जल्दी, सारी बीमारियों को मिटा पाएँगे। उनके रास्ते में अब भी कई पहाड़ जैसी रुकावटें हैं।

पहाड़ जैसी रुकावटें

बीमारियों को मिटाने की कोशिश में इंसान के तौर-तरीके एक रुकावट बन सकते हैं। मिसाल के लिए, वैज्ञानिकों का मानना है कि इंसान ने वातावरण और उसमें रहनेवाले जीव-जंतुओं को नुकसान पहुँचाया है, जिसकी वजह से और भी नयी खतरनाक बीमारियाँ उभरी हैं। न्यूज़वीक पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में, ‘वाइल्डलाइफ ट्रस्ट’ की सभापति, मॆरी पर्ल ने समझाया: “सन्‌ 1975 से 30 नयी बीमारियाँ सामने आयी हैं, जिनमें एड्‌स, ईबोला, लाइम रोग और सार्स भी शामिल हैं। इनमें से ज़्यादातर बीमारियों के बारे में माना जाता है कि ये पहले जंगली जानवरों में पायी जाती थीं, मगर अब ये इंसानों में फैल गयी हैं।”

इसके अलावा, लोग ताज़े-ताज़े फल और साग-सब्ज़ियाँ कम, मगर शक्कर, नमक और चिकना भोजन ज़्यादा खा रहे हैं। ऊपर से वे एक ही जगह बैठे काम करते हैं और उनकी कई बुरी आदतें भी हैं। इन सारी वजहों से उनमें दिल की बीमारियाँ बढ़ गयी हैं। दुनिया-भर में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग सिगरेट पीते हैं, जिससे उनमें सेहत को लेकर गंभीर समस्याएँ पैदा हो रही हैं और लाखों लोग मौत के मुँह में जा रहे हैं। हर साल करीब 2 करोड़ लोग, सड़क दुर्घटनाओं में या तो बुरी तरह घायल हो जाते हैं या फिर अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। युद्ध और दूसरे किस्म की हिंसा में बेहिसाब लोगों की जानें चली जाती हैं या वे ज़िंदगी-भर के लिए अपाहिज हो जाते हैं। इसके अलावा, लाखों लोग हद-से-ज़्यादा शराब पीने या ड्रग्स लेने की वजह से अपनी सेहत बिगाड़ लेते हैं।

बीमारियों को जड़ से मिटाने में आनेवाली रुकावट चाहे जो भी हो, और चिकित्सा क्षेत्र में चाहे कितनी भी तरक्की क्यों न हुई हो, हकीकत तो यह है कि आज भी कुछ बीमारियाँ लगातार इंसान का जीना दूभर कर रही हैं। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, ‘15 करोड़ से भी ज़्यादा लोग अपनी ज़िंदगी के किसी-न-किसी मोड़ पर घोर निराशा के शिकार होते हैं। करीब 2.5 करोड़ लोगों को स्किड्‌ज़ोफ्रीनीया बीमारी होती है और 3.8 करोड़ लोगों को मिरगी के दौरे पड़ते हैं।’ एच.आइ.वी./एड्‌स, मलेरिया, खसरा, निमोनिया, टी.बी. और दस्त से जुड़ी तरह-तरह की बीमारियाँ, लाखों लोगों को अपनी आगोश में भर लेती हैं और बेशुमार बच्चों और जवानों को मौत की नींद सुला देती हैं।

बीमारियों को मिटाने में और भी कई पहाड़ जैसी रुकावटें हैं। इनमें दो सबसे बड़ी बाधाएँ हैं, गरीबी और भ्रष्ट सरकार। हाल ही में, विश्‍व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि छूत की बीमारियों से पीड़ित लाखों लोगों को मौत के मुँह से बचाया जा सकता था। मगर सरकार की नाकामी और पैसों की मदद न देने की वजह से उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

क्या विज्ञान की जानकारी और चिकित्सा क्षेत्र की तकनीकों में हुए बड़े-बड़े बदलाव से इन रुकावटों को पार किया जा सकता है? क्या हम बहुत जल्द ऐसी दुनिया देख पाएँगे जहाँ एक भी बीमारी नहीं रहेगी? हालाँकि ऊपर दी जानकारी से इन सवालों का कोई साफ जवाब नहीं मिलता, मगर बाइबल इनका जवाब ज़रूर देती है। अगले लेख में बताया जाएगा कि बाइबल एक ऐसे भविष्य के बारे में क्या कहती है जब सभी बीमारियों का नामो-निशान मिट जाएगा। (1/07)

[फुटनोट]

^ पैरा. 10 “नैनो” जिस यूनानी शब्द से लिया गया है, वह बौना के लिए इस्तेमाल किया जाता है। और उस शब्द का मतलब है, “एक अरबवाँ।”

[पेज 7 पर बक्स/तसवीरें]

एक्स-रे इमेजिंग

इंसान के शरीर का और भी साफ और सही एक्स-रे लेने से बीमारी का उसके शुरूआती चरण में ही पता लगाया जा सकता है

[चित्रों का श्रेय]

© Philips

Siemens AG

रोबोट की मदद से ऑपरेशन

तरह-तरह के औज़ारों से लैस रोबोट, सर्जनों को बहुत ही पेचीदा ऑपरेशन अचूक तरीके से करने में मदद देते हैं

[चित्र का श्रेय]

© 2006 Intuitive Surgical, Inc.

नैनोमेडिसिन

इंसान की बनायी सूक्ष्म मशीनों के ज़रिए डॉक्टर कोशिकाओं में ही बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। यह तसवीर एक चित्रकार की कल्पना है कि कैसे नैनोमशीनें हू-ब-हू लाल रक्‍त कोशिकाओं जैसे काम करती हैं

[चित्रों का श्रेय]

चित्रकार: Vik Olliver (vik@diamondage.co.nz)/ रचनाकार: Robert Freitas

जीनोमिक्स

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि एक इंसान के जीन्स की बनावट का अध्ययन करके, वे उसमें बीमारी के लक्षण नज़र आने से पहले ही बीमारी का पता लगा पाएँगे और उसका इलाज कर पाएँगे

[चित्र का श्रेय]

क्रोमोसोम: © Phanie/ Photo Researchers, Inc.

[पेज 8, 9 पर बक्स]

छः दुश्‍मन जिन्हें आज तक हराया नहीं गया

चिकित्सा-क्षेत्र का ज्ञान बढ़ता ही जा रहा है और इससे जुड़ी तकनीकियाँ, आसमान की बुलंदियाँ छू रही हैं। इसके बाद भी, छूत की बीमारियाँ पूरी दुनिया में तबाही मचा रही हैं। नीचे कुछ ऐसी जानलेवा बीमारियों के बारे में बताया गया है, जिन्हें आज तक मिटाया नहीं जा सका।

एच.आई.वी./एड्‌स

करीब 6 करोड़ लोग एच.आई.वी. से संक्रमित हैं और एड्‌स से लगभग 2 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है। सन्‌ 2005 में, 50 लाख लोग एच.आई.वी. से संक्रमित हुए और 30 लाख से भी ज़्यादा लोगों की मौत एड्‌स से हुई। मरनेवालों में 5 लाख से भी ज़्यादा बच्चे थे। एच.आई.वी. के शिकार ज़्यादातर लोगों के पास इलाज की अच्छी सहूलियतें नहीं हैं।

दस्त

इसे गरीबों का सबसे बड़ा कातिल कहा जाता है। हर साल तकरीबन 4 अरब लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं। दस्त अलग-अलग संक्रमणों की वजह से होता है और ये संक्रमण, दूषित खान-पान या साफ-सफाई का ध्यान न रखने के कारण फैल सकते हैं। इन संक्रमणों के फैलने से हर साल 20 लाख से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो जाती है।

मलेरिया

हर साल, मलेरिया की वजह से लगभग 30 करोड़ लोग बीमार पड़ते हैं और लगभग 10 लाख लोगों की जानें चली जाती हैं। मरनेवालों में से ज़्यादातर बच्चे होते हैं। अफ्रीका में लगभग हर 30 सेकंड में एक बच्चे की मौत मलेरिया से होती है। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, “विज्ञान अभी तक मलेरिया को पूरी तरह मिटाने के लिए कोई जादुई दवा नहीं ढूँढ़ पाया है और बहुतों को नहीं लगता कि ऐसी कोई दवा कभी बन सकती है।”

खसरा

सन्‌ 2003 के दौरान, खसरा ने 5,00,000 से ज़्यादा लोगों की जानें ली हैं। यह बीमारी, बच्चों में होनेवाली मौत की एक बड़ी वजह है। खसरा बहुत तेज़ी से फैलता है। और ताज्जुब की बात तो यह है कि पिछले 40 सालों से खसरा को मिटाने के लिए एक असरदार और सस्ता टीका मौजूद है, फिर भी हर साल तकरीबन 3 करोड़ लोग खसरा के शिकार होते हैं।

निमोनिया

विश्‍व स्वास्थ्य संगठन का दावा है कि निमोनिया की वजह से जितने बच्चे मरते हैं, उतना किसी दूसरी छूत की बीमारी से नहीं मरते। हर साल, पाँच से भी कम उम्र के करीब 20 लाख बच्चे, निमोनिया के शिकार होकर मौत के मुँह में चले जाते हैं। इनमें से ज़्यादातर मौत अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया में होती है। दुनिया के कई हिस्सों में, स्वास्थ्य-सुविधाओं की कमी होने की वजह से मरीज़ों का वक्‍त पर इलाज नहीं किया जाता और उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है।

टी.बी.

सन्‌ 2003 के दौरान, टी.बी. की वजह से 17,00,000 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी। स्वास्थ्य अधिकारियों को इस बात की बड़ी चिंता है कि टी.बी. के ऐसे जीवाणु उभरे हैं, जिन पर दवाइयों का कोई असर नहीं होता। कुछ जीवाणु तो ऐसे हैं जिन पर टी.बी. को मिटानेवली तमाम अहम गोलियाँ बेअसर साबित हो रही हैं। ये जीवाणु ऐसे मरीज़ों में पनपते हैं, जिनके इलाज की या तो सही से निगरानी नहीं की गयी थी या फिर जिन्होंने बीच में ही दवाइयाँ लेना बंद कर दिया था।

[पेज 9 पर बक्स/तसवीर]

ज़ोर पकड़ रहे हैं, इलाज के दूसरे तरीके

आम तौर पर, जाने-माने तरीकों (कनवेनशनल मेडिसिन) से इलाज करनेवाले डॉक्टर इलाज के उन अलग-अलग तरीकों को कबूल नहीं करते जो उनसे हटकर होते हैं। इनमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलनेवाले इलाज के तरीके (ट्रडिशनल मेडिसिन) और दूसरे तरीके (अल्टरनेटिव थेरपी) भी शामिल हैं। गरीब देशों में, ज़्यादातर लोग बीमार पड़ने पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलनेवाले इलाज के तरीके अपनाते हैं। क्यों? क्योंकि बहुतों की इतनी हैसियत नहीं कि वे जाने-माने तरीकों से अपना इलाज करवा सकें। जबकि दूसरे बस यूँ ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलनेवाले इलाज के तरीके अपनाना पसंद करते हैं।

मगर अमीर देशों में भी इलाज के दूसरे तरीके ज़ोर पकड़ रहे हैं। इनमें से सबसे मनपसंद तरीके हैं: एक्यूपंक्चर, काइरोप्रैकटिक, होमियोपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा (नैचुरोपैथी) और जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल। वैज्ञानिकों ने इनमें से कुछ तरीकों का अध्ययन किया है और उन्होंने पाया है कि कुछ बीमारियों का इन तरीकों से इलाज करना फायदेमंद साबित हुआ है। लेकिन दूसरे कुछ तरीके कितने असरदार हैं, इसका अभी तक सही से पता नहीं लग पाया है। इलाज के दूसरे तरीके मशहूर होते जा रहे हैं, इसलिए इससे कुछ मसले भी खड़े हुए हैं कि ये तरीके कहाँ तक सुरक्षित हैं। कई देशों में, इलाज के इन तरीकों के बारे में कायदे-कानून नहीं बनाए गए हैं। नतीजा, लोग डॉक्टरी सलाह के बगैर खुद का इलाज करते हैं, बाज़ार में नकली दवाइयों की बिक्री होती है और हर कोई नीम-हकीम बन बैठता है। इसके अलावा, दोस्त और रिश्‍तेदार अकसर इलाज के इन तरीकों के बारे में कई सलाह देते हैं। हालाँकि वे ऐसा नेक इरादे से करते हैं, मगर सच तो यह है कि उन्हें इस मामले में कोई तालीम नहीं मिली होती है। इन सारी वजहों से काफी बुरे असर हुए हैं और सेहत को लेकर कई खतरे भी पैदा हो गए हैं।

दूसरी तरफ, कई देशों में जहाँ इलाज के इन तरीकों के बारे में कानून बनाए गए हैं, वहाँ जाने-माने तरीकों से इलाज करनेवाले डॉक्टर इन्हें कबूल कर रहे हैं। यही नहीं, वे अपने मरीज़ों को भी इन्हीं तरीकों से इलाज करने की सलाह देते हैं। मगर फिर भी, यह दावा नहीं किया जा सकता कि इन तरीकों से कभी दुनिया, बीमारियों की गिरफ्त से आज़ाद होगी।