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विश्‍व-दर्शन

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“आज महासागरों के हरेक वर्ग किलोमीटर के इलाके में 18,000 से ज़्यादा प्लास्टिक के टुकड़ों का कूड़ा-कचरा पानी में फैला हुआ है।”—संयुक्‍त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम। (7/07)

पूरे दक्षिण अफ्रीका में, हर दिन अदालतों में 82 बच्चों पर “दूसरे बच्चों का बलात्कार करने या उनके साथ घिनौना व्यवहार करने” का मुकदमा दायर किया जाता है। कुछ लोगों के मुताबिक, इनमें से ज़्यादातर बच्चों ने यह कहा है कि “उन्होंने टी.वी पर इस तरह के काम होते देखे थे, इसलिए उन्होंने ऐसी हरकतें कीं।”—द स्टार, दक्षिण अफ्रीका। (8/07)

होटल में ठहरनेवाले “50 प्रतिशत लोगों को ज़ुकाम होने का खतरा रहता है,” क्योंकि वे दरवाज़ों के हैंडल, लैम्प, टेलिफोन, और टी.वी. के रिमोट कंट्रोल को छूते हैं।—मैक्लेन्स, कनाडा। (9/07)

अच्छे दोस्त बनाइए, लंबी उम्र पाइए!

‘रोग-विज्ञान और समाज के लोगों की सेहत पत्रिका’ (अँग्रेज़ी) कहती है कि ढेर सारे अच्छे दोस्त होने से एक इंसान ज़्यादा साल ज़िंदा रह सकता है। इंसानी रिश्‍तों का लंबी उम्र पर क्या असर पड़ता है, इसकी जाँच करने के लिए ऑस्ट्रेलिया में 70 या उससे ज़्यादा उम्रवाले करीब 1,500 लोगों पर 10 सालों तक अध्ययन किया गया। अध्ययन से पता चला कि जिन लोगों के कम दोस्त थे, उनके मुकाबले जिनके बहुत सारे दोस्त थे, उनमें मृत्यु दर 22 प्रतिशत कम थी। पत्रिका आगे कहती है कि जिन बुज़ुर्गों के पक्के दोस्त होते हैं, उनमें अच्छे नतीजे देखने को मिलते हैं। वे आसानी से ‘हताश नहीं होते, उनमें चुनौतियों से लड़ने की ताकत और समस्याओं का सामना करने की काबिलीयत होती है। उनमें आत्म-सम्मान होता है और वे ज़िंदादिल होते हैं। साथ ही, उन्हें यह एहसास होता है कि वे खुद अपनी ज़िंदगी के मालिक हैं।’ (7/07)

ईंधन के लिए गेहूँ जलाना कितना सही है?

गेहूँ का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करना, नैतिक रूप से सही है या गलत? जर्मनी का अखबार, फ्रांगफुर्टर आलजेमाइना सॉनटाग्साइटुंग बताता है कि गेहूँ के दाम गिर रहे हैं और जलाने के तेल का भाव बढ़ रहा है। इस वजह से एक किसान के लिए गेहूँ बेचकर तेल खरीदने से ज़्यादा गेहूँ को ही ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करना सस्ता पड़ता है। एक किसान को ढाई किलो गेहूँ की पैदावार के लिए 11 रुपए लगाने पड़ते हैं। लेकिन अगर वह ईंधन के लिए उसी ढाई किलो गेहूँ को जलाए, तो उसे एक लीटर तेल (जिसकी कीमत 33 रुपए है) के बराबर ऊर्जा मिलेगी। अखबार बताता है कि अब दुविधा यह है कि “जहाँ एक तरफ लोग भूख से मर रहे हैं,” ऐसे में क्या कोई “अनाज जलाने की सोच सकता है?” (8/07)

ऐमज़ॉन के कीड़े-मकोड़ों की गिनती करना

कीड़े-मकोड़ों के विशेषज्ञ अब तक ऐमज़ॉन के घने जंगलों में करीब 60,000 कीड़े-मकोड़ों की अलग-अलग किस्मों का पता लगा पाए हैं। फोल्या ऑनलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, अनुमान लगाया गया है कि तकरीबन 1,80,000 दूसरी किस्मों का अभी-भी पता लगाया जाना बाकी है। फिलहाल, ऐमज़ॉन के जंगलों में 20 विशेषज्ञ काम कर रहे हैं। हाल के आँकड़े बताते हैं कि ये विशेषज्ञ एक साल में 2 या 3 किस्म के कीड़े-मकोड़ों को पहचानकर उनके बारे में जानकारी देते हैं। अगर इसी रफ्तार से खोजबीन की गयी, तो सभी किस्म के कीड़ों का पता लगाने के लिए विशेषज्ञों की करीब 90 पीढ़ियों को तकरीबन 3,300 साल काम करना पड़ेगा, यानी हर पीढ़ी को 35 साल।

ऊर्जा की कमी

संयुक्‍त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के ज़रिए प्रकाशित की गयी पत्रिका, हमारा ग्रह (अँग्रेज़ी) बताती है: “अनुमान लगाया गया है कि 160 करोड़ लोग यानी दुनिया की करीब 25 प्रतिशत आबादी के पास बिजली नहीं है। यही नहीं, 240 करोड़ लोग खाना बनाने और ऊर्जा के लिए कोयले, गोबर या लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। इन ईंधनों से निकलनेवाले धुँए से हर साल, करीब पच्चीस लाख औरतें और बच्चे मारे जाते हैं।” (9/07)

[पेज 18 पर चित्र का श्रेय]

AP Photo/Thanassis Stavrakis