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मछुवारों का गाँव बना महानगर

मछुवारों का गाँव बना महानगर

मछुवारों का गाँव बना महानगर

जापान में सजग होइए! लेखक द्वारा

अगस्त 1590. गर्मियों का एक सुहाना दिन था, जब इयासू टोकुगावा (दायीं तरफ) ने पूर्वी जापान के मछुवारों के गाँव, एदो में पहली बार अपना कदम रखा था। कुछ सालों बाद वह पहला टोकुगावा शोगून बना। * शोगून का शहर—टोक्यो का इतिहास (फ्रांसीसी) किताब कहती है कि उस समय “एदो में मुश्‍किल से सौ झोंपड़ियाँ थीं और वह भी खस्ताहाल। कुछ झोंपड़ियों में किसान रहते थे, तो कुछ में मछुवारे।” उस गाँव में सौ साल पुराना एक किले का खंडहर भी था।

एदो सदियों तक गुमनामी के अंधेरे में खोया रहा। मगर आज, यह गाँव न सिर्फ जापान की राजधानी टोक्यो बन गया है, बल्कि चहल-पहलवाला एक महानगर भी। टोक्यो की आबादी 1.2 करोड़ से भी ज़्यादा है। यह टेकनॉलजी, संचार, यातायात और व्यापार जगत का मुख्य केंद्र है। इस शहर में जाने-माने बैंकों के मुख्यालय भी हैं। आखिर इस गाँव की यह कायापलट हुई कैसे?

मछुवारों के गाँव से लेकर शोगून के शहर तक

सन्‌ 1467 के बाद के सौ सालों के दौरान, जागीरदारों ने युद्ध कर पूरे जापान देश का कई जागीरों में बँटवारा कर दिया। आखिरकार, हीडेयोशी टोयोटोमी ने कुछ हद तक देश को फिर से एक कर दिया। वह असल में एक गरीब किसान का लड़का था, मगर देखते-ही-देखते वह अपने ज़माने का सबसे काबिल सेनानी बन गया। सन्‌ 1585 में, वह सम्राट की तरफ से हुकूमत करने लगा। शुरू-शुरू में इयासू, ताकतवर हीडेयोशी के खिलाफ जंग लड़ा, लेकिन बाद में वह उसके साथ हाथ मिला लिया। दोनों ने मिलकर ओडावारा शहर के किले की घेराबंदी की और उस पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। यह किला, शक्‍तिशाली होजो कुल का मज़बूत गढ़ था। इस तरह, इयासू और हीडेयोशी ने पूर्वी जापान के कानटो प्रदेश पर जीत हासिल की।

हीडेयोशी ने इयासू को कानटो प्रदेश के आठ प्रांतों पर अधिकारी ठहराया। यह बहुत ही बड़ा इलाका था, जिसके ज़्यादातर हिस्से होजो कुल के थे। इस तरह हीडेयोशी ने, इयासू को अपनी रियासत से दूर पूर्वी इलाके में भेज दिया। इससे पता चलता है कि यह सोच-समझकर चली गयी एक चाल थी। हीडेयोशी, इयासू को क्योटो से दूर रखना चाहता था, जहाँ सम्राट रहता था। दरअसल, सम्राट सिर्फ नाम के वास्ते था, मगर हुकूमत करने का उसे न के बराबर अधिकार दिया जाता था। इयासू ने हीडेयोशी की बात मान ली और जैसे लेख की शुरूआत में बताया गया है, वह एदो पहुँचा। इयासू, एदो को अपने इलाके का केन्द्र बनाने के लिए, मछुवारों के इस मामूली गाँव को एक नया रूप देने में जुट गया।

हीडेयोशी की मौत के बाद, इयासू पूर्वी जापान की ज़्यादातर सेनाओं को मिलाकर, पश्‍चिमी जापान की फौजों के खिलाफ लड़ने के लिए निकल पड़ा। सन्‌ 1600 में एक ही दिन में उसने जंग जीत ली। सन्‌ 1603 में इयासू को शोगून ठहराया गया और वह जापान देश का असली शासक बन गया। अब एदो, जापान के सरकारी कामकाज की एक खास जगह बन गया था।

इयासू ने एक बड़ा-सा किला बनवाने के लिए, जागीरदारों को मज़दूर भेजने और सामान मुहैया कराने का हुक्म दिया। एक बार तो, ग्रेनाइट के बड़े-बड़े पत्थरों को लाने के लिए करीब 3,000 जहाज़ों का इस्तेमाल किया गया। इन पत्थरों को एदो से 100 किलोमीटर दूर दक्षिण की तरफ, ईज़ू प्रायद्वीप के चट्टानों से खोदा गया था। इन पत्थरों को एदो के बंदरगाह पर उतारा गया और फिर 100 या उससे भी ज़्यादा मज़दूर इन्हें घसीटकर निर्माण की जगह पर ले गए।

पचास साल बाद जाकर, यानी तृतीय शोगून की हूकूमत के दौरान यह किला पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। यह पूरे जापान का सबसे बड़ा किला था और टोकुगावा के शक्‍तिशाली शासन की बेमिसाल निशानी था। शोगून की सेवा करनेवाले समुराई योद्धा किले के आस-पास बसने लगे। शोगून ने जागीरदारों से माँग की कि उनका अपनी-अपनी जागीर में सिर्फ किला ही नहीं होना चाहिए, बल्कि एदो में उनकी अपनी हवेलियाँ भी होनी चाहिए।

एदो किला के इर्द-गिर्द रहनेवाले समुराई योद्धाओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए, देश के कोने-कोने से व्यापारी और कारीगर बड़ी तादाद में आने लगे। सन्‌ 1695 तक, यानी इयासू का इस इलाके में कदम रखने के करीब सौ साल बाद, एदो की आबादी बढ़कर 10 लाख हो गयी! इस तरह, एदो उस समय की दुनिया का सबसे घनी आबादीवाला शहर बन गया।

तलवार की जगह गिनतारा

शोगून ने इतने बढ़िया तरीके से पूरी रियासत में शांति बनाए रखी कि समुराई योद्धाओं के लिए ज़्यादा काम ही नहीं रहता था। हालाँकि इन योद्धाओं को अब भी अपने पेशे पर बड़ा घमंड था, मगर फिर भी उनका अधिकार धीरे-धीरे जाता रहा, जबकि व्यापारियों का दबदबा बढ़ने लगा। दूसरे शब्दों में कहें तो तलवार की जगह गिनतारा (ऐबकस) ने ले ली। गिनतारा एक ऐसा यंत्र है, जिसमें कुछ छड़ों पर ऊपर-नीचे करनेवाले मनके लगे होते हैं, जिनसे हिसाब किया जाता है। यह यंत्र पूर्वी देशों में बहुत मशहूर है। 250 से भी ज़्यादा सालों तक चारों तरफ अमन-चैन बना रहा। आम जनता, खासकर व्यापारी मालामाल हो गए और उन्हें काफी आज़ादी भी दी गयी। इस वजह से एक अनोखी संस्कृति की शुरूआत हुई।

लगभग सभी लोग अलग-अलग किस्म के मनोरंजन का लुत्फ उठाने लगे। जैसे, मशहूर काबूकी नाटक (इतिहास पर आधारित ड्रामे), बुनराकू (कठपुतलियों का खेल) और राकूगो (हास्य तरीके से कहानी सुनाना)। कड़ी गर्मियों की शामों में लोग सूमीडा नदी के किनारे, जहाँ एदो बसा था, ठंडी-ठंडी हवा का आनंद उठाने के लिए इकट्ठा होते थे। साथ ही, वे आतिशबाज़ी के शानदार प्रदर्शनों का मज़ा लेने के लिए भी नदी के किनारे आते थे। आतिशबाज़ी का प्रदर्शन यहाँ की मशहूर परंपरा रही है, जिसे आज भी मनाया जाता है।

इसके बावजूद, एदो बाकी दुनिया के लिए गुमनाम बना रहा। अगले 200 से भी ज़्यादा सालों तक जापानियों पर यह पाबंदी लगायी गयी कि वे विदेशियों के साथ कोई ताल्लुक नहीं रख सकते, सिवाय नेदरलैंडस्‌, चीन और कोरिया देशों के लोगों के साथ, मगर वह भी सिर्फ कुछ हद तक। फिर एक दिन एक ऐसी घटना घटी, जिससे एदो शहर क्या, पूरे देश की शकल ही बदल गयी।

एदो बना टोक्यो

एदो के किनारे खड़े मछुवारों को जब अचानक दूर पर काला धुँआ उड़ाते, चार अजीबो-गरीब जहाज़ नज़र आए, तो वे हक्के-बक्के रह गए। उन्होंने सोचा कि ये पानी में तैरते ज्वालामुखी हैं! यह बात पूरे एदो में आग की तरफ फैल गयी और बहुत-से लोग शहर छोड़कर भाग खड़े हुए।

इन जहाज़ों का कमोडोर (कमांडर) था, अमरीकी नौसेना के मैथ्यू सी. पेरी। इन जहाज़ों ने 8 जुलाई,1853 को एदो खाड़ी में लंगर डाला (बायीं तरफ)। पेरी ने शोगून से गुज़ारिश की कि उसके देश अमरीका को जापान के साथ व्यापार करने की इजाज़त दी जाए। पेरी के आने के बाद, जापानियों को एहसास हुआ कि फौज और टेकनॉलजी के विकास में वे दूसरे देशों से कितने पीछे रह गए हैं।

फिर एक-के-बाद-एक कई घटनाएँ घटती गयीं, जिसका नतीजा यह हुआ कि टोकुगावा की सरकार का तख्ता पलट गया और सम्राट को हुकूमत करने का अधिकार लौटा दिया गया। सन्‌ 1868 में एदो का नाम टोक्यो रखा गया, जिसका मतलब है “पूर्वी राजधानी।” यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह जगह, क्योटो के पूर्व में थी। सम्राट, क्योटो का महल छोड़कर एदो के किले में रहने लगा। कुछ समय बाद, उस किले को नए सम्राट महल में तबदील किया गया।

पश्‍चिमी संस्कृति के असर में नयी सरकार, जापान को एक आधुनिक देश बनाने के काम में जुट गयी। ऐसा करने के लिए बहुत काम था। कुछ लोग इस दौर को चमत्कारी युग कहते हैं। सन्‌ 1869 में, टोक्यो और योकोहामा शहर के बीच तार-सेवा शुरू की गयी। इसके कुछ ही समय बाद, इन दो शहरों के बीच पहला रेलमार्ग बिछाया गया। फिर देखते-ही-देखते लकड़ी के घरों के बीच में ईंट से बनी इमारतें खड़ी की गयीं। बैंक, होटल, दुकानें और रेस्तराँ बनाए गए। पहला विश्‍वविद्यालय बनाया गया। कच्ची सड़कों की जगह पक्की सड़कों ने ले ली। सूमीडा नदी पर स्टीमर बोट (भाप का जहाज़) चलने लगीं।

यहाँ तक कि पश्‍चिमी संस्कृति का असर जापानी लोगों के रंग-रूप पर भी होने लगा। हालाँकि ज़्यादातर स्त्रियाँ अब भी अपना पारंपरिक कपड़ा किमोनो पहन रही थीं, मगर ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग पश्‍चिमी कपड़े पहनने लगे थे। एक तरफ, पुरुष अपनी मूँछें बढ़ाने लगे, लंबी-लंबी टोपियाँ पहनने लगे और हर समय हाथ में छड़ी (वॉकिंग स्टिक) लेकर चलने लगे। वहीं दूसरी तरफ, कुछ स्त्रियाँ शानदार कपड़े पहनने लगीं और वॉल्ट्‌स (एक तरह का नाच) सीखने लगीं।

जापानी शराब, साकी (जो चावल की बनी होती है) के साथ-साथ बियर भी लोगों का पसंदीदा पेय बन गयी। पश्‍चिम देशों में खेला जानेवाला बेसबॉल गेम उतना ही मशहूर हो गया, जितना कि जापान का राष्ट्रीय खेल, सूमो कुश्‍ती है। टोक्यो के लोगों ने आव देखा न ताव, बस उस ज़माने के मशहूर सांस्कृतिक और राजनैतिक विचारों को अपना लिया और उन्हें अपनी ज़िंदगी का एक हिस्सा बना लिया। टोक्यो शहर, बेलगाम तरक्की करता गया और फिर एक दिन अचानक उस पर विपत्तियों का कहर टूट पड़ा।

तबाही से उबरना

1 सितंबर,1923 को जब कई लोग दोपहर का खाना बना रहे थे, तब इतना ज़बरदस्त भूकंप आया कि कानटो का पूरा इलाका बुरी तरह हिल गया। इसके बाद, सैकड़ों छोटे-छोटे भूकंप आए। फिर 24 घंटे बाद एक ज़ोरदार भूकंप आया। भूकंप से भारी नुकसान तो हुआ ही, मगर उससे भी ज़्यादा नुकसान भूकंप की वजह से लगनेवाली आग से हुआ। इस आग में लगभग पूरा टोक्यो जलकर भस्म हो गया। इस विपत्ति में 1,00,000 से भी ज़्यादा लोग मारे गए, जिनमें से 60,000 लोग टोक्यो के रहनेवाले थे।

टोक्यो के लोगों ने अपने शहर को फिर से बसाने का बीड़ा उठाया। जब उन्होंने काफी हद तक अपने शहर को पहले जैसा बना दिया था, तब उन पर एक और विपत्ति आ पड़ी। वह थी, दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान होनेवाले हवाई हमले। सबसे ज़्यादा तबाही 9 से 10 मार्च,1945 की रात को मची। अनुमान लगाया गया है कि रात के 12 बजे से लेकर अगले दिन के सुबह 3 बजे तक, टोक्यो पर 7,00,000 बम गिराए गए। वहाँ ज़्यादातर मकान लकड़ियों के बने थे और टोक्यो पर नेपाम बम और नए अग्निबम गिराए गए थे, जिनमें मैग्निशियम और लेसदार जिलेटिनस गैसोलीन थे। इस बमबारी का अंजाम यह हुआ कि शहर का बिज़नेस इलाका जो लोगों से खचाखच भरा था, उसके चारों तरफ आग लग गयी और इसमें 77,000 से भी ज़्यादा लोग मारे गए। यह वाकई इतिहास की ऐसी सबसे विनाशकारी बमबारी थी, जिसमें परमाणु हथियार का बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं किया गया था।

दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद, टोक्यो तबाही से बड़े पैमाने पर उबरने लगा। 20 सालों के अंदर शहर की इस हद तक बहाली हुई कि सन्‌ 1964 की गर्मियों में यहाँ ऑलम्पिक खेल आयोजित किए गए। पिछले 40 सालों के दरमियान, टोक्यो के कोने-कोने में पक्की सड़कें तैयार करने और गगनचुंबी इमारतें खड़ी करने का काम ज़ोर-शोर से चला। आज, टोक्यो मानो इमारतों का घना जंगल बन गया है।

टोक्यो के लोगों के जज़्बे ने उन्हें मुश्‍किलों का सामना करने की ताकत दी

आज का टोक्यो शहर चाहे 400 साल पुराना क्यों न हो, मगर दुनिया के बड़े-बड़े शहरों के मुकाबले यह अब भी बच्चा है। हालाँकि शहर के कुछ भागों में अभी-भी बीते कल की यादें समायी हुई हैं, फिर भी ज़्यादातर इलाकों में पुराने ज़माने की बहुत कम इमारतें बची हैं। लेकिन अगर आप शहर को ध्यान से देखें, तो आप पाएँगे कि इसकी बनावट प्राचीन एदो के समय की है।

टोक्यो महानगर के बीचोंबीच एक बड़ा-सा हरा-भरा इलाका है। पहले जहाँ एदो का किला हुआ करता था, आज वहाँ सम्राट का महल खड़ा है और उसके आस-पास बाग हैं। यहीं से शहर को जानेवाली कई मुख्य सड़कें निकलती हैं, जो दिखने में मकड़ी के जाल जैसी लगती हैं। इन सड़कों की बनावट से पुराने एदो की झलक मिलती है। यही नहीं, पूरे शहर में आड़े-तिरछे रास्तों का भूल-भुलैया, पुराने समय के एदो की याद दिलाता है। ज़्यादातर सड़कों को नाम नहीं दिए गए हैं! दुनिया के दूसरे बड़े-बड़े शहरों में इलाकों को बाकायदा आयताकार में बाँटा गया है, जबकि टोक्यो के इलाकों को तरह-तरह के आकार और नाप में बाँटा गया है।

लेकिन प्राचीन समय से लेकर आज तक टोक्यो में जो बात बरकरार रही है, वह है लोगों का जज़्बा। भूकंप आए, लंबे समय तक तंगहाली छायी रही, यहाँ तक कि बढ़ती आबादी ने कई मुश्‍किलें पैदा कीं, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। इसके बजाय, अटल इरादे के साथ वे आगे बढ़ते रहे। साथ ही, उनमें नए-से-नए, खासकर बाहर देश के विचारों को अपनाने की गज़ब की काबिलीयत भी है। आइए और खुद अपनी आँखों से टोक्यो के लोगों की ज़िंदादिली देखिए। जो टोक्यो एक वक्‍त पर मछुवारों का एक छोटा-सा गाँव था, आज वही टोक्यो गुमनामी के अँधेरे से बाहर निकल आया है और उसने पूरी दुनिया में अपना एक मुकाम बना लिया है। (g 1/08)

[फुटनोट]

^ ‘शोगून’ जापान की फौज का सेनापति होता था। यह पद एक बेटे को अपने पिता से विरासत में मिलता था। जापान के सम्राट की अगुवाई में, शोगून को हुकूमत करने का पूरा-पूरा अधिकार सौंपा जाता था।

[पेज 11 पर नक्शा]

जापान

टोक्यो (एदो)

योकोहामा

क्योटो

ओसाका

[पेज 12, 13 पर तसवीर]

आज का टोक्यो

[चित्र का श्रेय]

Ken Usami/photodisc/age fotostock

[पेज 11 पर चित्र का श्रेय]

© The Bridgeman Art Library

[पेज 13 पर चित्र का श्रेय]

The Mainichi Newspapers