विश्व-दर्शन
विश्व-दर्शन
◼ “ब्रिटेन में औसतन छः साल के बच्चे अपना एक पूरा साल टी.वी. देखने में बिता देते हैं। यही नहीं, ब्रिटेन में जितने तीन साल के बच्चे हैं, उनमें से 50 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चों के सोने के कमरे में टी.वी. है।”—दी इंडिपेंडेन्ट, ब्रिटेन। (g 1/08)
◼ चीन में जब 16 साल से ऊपरवाले जवानों से पूछा गया कि क्या वे धर्म में आस्था रखते हैं, तो उनमें से 31.4 प्रतिशत जवानों ने हाँ में जवाब दिया। अगर ये जवान पूरे देश को दर्शाते हैं, तो इसका मतलब यह है कि चीन में “करीब 30 करोड़ लोग धर्म पर आस्था रखते हैं . . . जबकि सरकार का रिकॉर्ड दिखाता है कि धर्म के माननेवाले सिर्फ 10 करोड़ लोग हैं।”—चाइना डेली, चीन। (g 1/08)
फायदे कम, नुकसान ज़्यादा
कुछ साल पहले, हॉलैंड के राजनेताओं और पर्यावरण-रक्षकों ने सोचा था कि उन्हें उर्जा पैदा करने का एक ऐसा साधन मिल गया है, जिसके ज़रिए इतनी उर्जा पैदा की जाएगी कि वह कभी खत्म नहीं होगी। वह साधन था बायोफ्यूल, खासकर ताड़ का तेल, जिनका जनरेटर में इस्तेमाल किया जाता। मगर द न्यू यॉर्क टाइम्स पत्रिका कहती है कि उनकी इस हसरत का “वातावरण पर बहुत ही बुरा असर पड़ा।” “यूरोप में ताड़ के तेल की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए, दक्षिण-पूर्वी एशिया के वर्षा वन के बड़े इलाके को साफ कर दिया गया और रासायनिक कीटनाशकों का हद-से-ज़्यादा इस्तेमाल किया गया।” ताड़ के पेड़ों का बागान लगाने के लिए, दलदली ज़मीन को सुखाया गया और उसमें उगनेवाली पाँस को जलाया गया, जिससे “बड़ी मात्रा” में निकली कार्बन गैसों से हवा में प्रदूषण फैल गया। टाइम्स पत्रिका कहती है कि इसका नतीजा यह हुआ कि इंडोनेशिया रातों-रात सबसे ज़्यादा कार्बन गैसें पैदा करनेवाला तीसरा देश बन गया है। और वैज्ञानिकों के मुताबिक, यही कार्बन गैसें पृथ्वी के बढ़ते तापमान के लिए ज़िम्मेदार हैं। (g 1/08)
“कयामत के दिन की घड़ी” का काँटा आगे बढ़ा
बुलेटिन ऑफ एटोमिक साइंटिस्ट्स (BAS) पत्रिका के पहले पन्ने पर सालों से कयामत के दिन की एक घड़ी की तसवीर छपती आयी है। यह घड़ी दिखाती है कि इंसान, परमाणु बमों से विनाश होने के कितने करीब आ चुके हैं। आज, इस घड़ी के काँटे को दो मिनट आगे दिखाया गया है। यानी, अब इस घड़ी में रात के 12 बजने में पाँच मिनट रह गए हैं और रात के 12 बजने का मतलब है, “लाक्षणिक तौर पर सभ्यता का अंत।” बुलेटिन पत्रिका में इस घड़ी की तसवीर पहली बार, 60 साल पहले छपी थी। तब से लेकर आज तक, उसके समय में सिर्फ 18 बार फेरबदल किया गया है। पिछली बार इसका समय फरवरी 2002 में बदला गया था, यानी न्यू यॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकवादी हमले के बाद। बुलेटिन पत्रिका कहती है कि परमाणु हथियारों की मौजूदगी, और भी नए-नए परमाणु हथियारों का लगातार ईजाद किया जाना और उन्हें सुरक्षित बनाने से चूक जाना, यह सब “इस बात की निशानी है कि धरती के सबसे विनाशकारी टेकनॉलजी ने जो समस्याएँ पैदा की हैं, उन्हें सुलझाने में इंसान बुरी तरह नाकाम रहे हैं।” बुलेटिन पत्रिका यह भी कहती है कि “आबोहवा में हुए बदलाव की वजह से आज जो खतरे पैदा हुए हैं, वे करीब उतने ही भयंकर हैं जितने कि परमाणु हथियारों से पैदा हुए खतरे।” (g 1/08)
गर्भावस्था के दौरान तनाव
हाल की एक खोज से पता चला है कि जब एक गर्भवती स्त्री का अपने साथी के साथ झगड़ा हो जाता है या जब उसका साथी उसे मारता है, तो इससे उसे जो तनाव होता है, उसकी वजह से उसके कोख में पल रहे बच्चे का दिमाग ठीक से नहीं बढ़ पाता। लंडन के इमपीरियल कॉलेज की प्रोफेसर, विवेट ग्लवर कहती हैं: “हमने पाया है कि अगर एक स्त्री के गर्भावस्था के दौरान उसका पुरुष-साथी बार-बार उसकी भावनाओं को चोट पहुँचाता है, तो इसका आगे चलकर बच्चे के विकास पर बहुत बुरा असर पड़ता है। जी हाँ, बच्चे के विकास में पिता का बहुत बड़ा हाथ होता है।” वह आगे समझाती हैं कि माता-पिता के आपसी रिश्ते से “माँ के शरीर के हार्मोंनों और रसायनों के संतुलन पर असर होता है और फिर, इसका बच्चों के दिमाग के विकास पर असर पड़ता है।” (g 1/08)
ध्यान दिए बगैर गाड़ी चलाना
जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑफ ड्यूसबर्ग-एसन में ट्रैफिक पर अध्ययन करनेवाले वैज्ञानिक मीक्खाएल श्रेकनबर्ग कहते हैं, जो लोग हर दिन एक ही रास्ते से गाड़ी चलाते हैं, वे अपने मस्तिष्क का वह हिस्सा इस्तेमाल नहीं करते, जो हम सोचने-समझने के लिए इस्तेमाल करते हैं। ये लोग आए दिन एक ही रास्ते से सफर करने के इतने आदी हो जाते हैं कि गाड़ी चलाते वक्त रास्ते पर ध्यान देने के बजाय, वे दूसरे कामों में उलझे रहते हैं। नतीजा, वे खतरे को फौरन भाँप नहीं पाते। श्रेकनबर्ग ऐसे लोगों को बढ़ावा देते हैं कि वे गाड़ी चलाते वक्त दूसरी चीज़ों की तरफ अपना ध्यान न भटकने दें, बल्कि रास्ते पर नज़र रखें। साथ ही, खुद को यह बात याद दिलाते रहें कि उन्हें चौकन्ना रहना है। (g 1/08)