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आखिर गाली-गलौज करने में क्या बुराई है?

आखिर गाली-गलौज करने में क्या बुराई है?

युवा लोग पूछते हैं

आखिर गाली-गलौज करने में क्या बुराई है?

“मैं अपनी स्कूल की सहेलियों की तरह बनना चाहती थी। इसलिए उनकी देखा-देखी मैं भी गाली-गलौज करने लगी।”—मेलॉनी। *

“मुझे नहीं लगता था कि गाली-गलौज करने में कोई खराबी है। क्योंकि स्कूल में और घर पर, मैं हर वक्‍त ऐसे लोगों से घिरा रहता था, जो बात-बात पर गाली देते थे।”—डेविड।

ऐसा क्यों होता है कि जब बड़े लोग गाली-गलौज करते हैं, तो यह एक आम बात मानी जाती है, लेकिन जब जवान लोग ऐसी गंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, तो सब चौंक जाते हैं? क्या गाली-गलौज करने की भी कोई उम्र होती है? आजकल देखने में आता है कि बहुत-से लोग गंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं और ऐसा लगता है कि इस मामले में बड़ों के लिए एक स्तर है, तो छोटों के लिए एक। ऐसे में आप शायद यह सवाल पूछें: “आखिर गाली-गलौज करने में क्या बुराई है?”

गंदी भाषा का इस्तेमाल करने की आदत पड़ना—कैसे?

इसमें कोई शक नहीं कि आजकल जिसे देखो, उसके मुँह से गाली ही निकलती है। यहाँ तक कि स्कूल के लड़के-लड़कियाँ भी बेलगाम गालियाँ बकते हैं। 15 साल की ईव कहती है: “मेरे स्कूल की सहेलियाँ जब भी आपस में गप्पे लड़ाती हैं, तो वे बगैर गालियों के एक बात भी पूरी नहीं करतीं। पूरे दिन इस तरह की भाषा सुन-सुनकर तो किसी की भी ज़बान गंदी हो सकती है।”

ईव की तरह, क्या आप भी गाली-गलौज करनेवाले लोगों से घिरे रहते हैं? क्या गालियाँ देने की आदत आपको भी लग गयी है? * अगर हाँ, तो कुछ पल के लिए खुद की जाँच करके देखिए कि ऐसा करने के लिए क्या बात आपको उकसाती है। एक बार जब आप यह पता लगा लेंगे, तो इस बुरी आदत को छोड़ना आपके लिए आसान होगा।

इस बात को मन में रखते हुए, नीचे दिए सवालों के जवाब देने की कोशिश कीजिए।

ज़्यादातर मामलों में आप गाली क्यों देते हैं?

❑ अपना गुस्सा उतारने या खीझ ज़ाहिर करने के लिए

❑ दूसरों का ध्यान खींचने के लिए

❑ दोस्तों जैसे बनने के लिए

❑ हेकड़ी दिखाने के लिए

❑ अधिकार का विरोध करने के लिए

❑ किसी और वजह से

आपको किन हालात में गाली देने का ज़्यादा मन करता है?

❑ स्कूल में

❑ काम की जगह पर

❑ ई-मेल, इंस्टेंट मैसेज या टेक्स्ट मैसेज भेजते वक्‍त

❑ अकेले में

गाली देने की आप क्या सफाई देंगे?

❑ मेरे दोस्त ऐसा करते हैं

❑ मेरे मम्मी-पापा ऐसा करते हैं

❑ मेरे टीचर ऐसा करते हैं

❑ मनोरंजन इनसे भरा पड़ा है

❑ इसमें क्या खराबी है, ये तो सिर्फ शब्द हैं

❑ मैं तो सिर्फ ऐसे लोगों के बीच गाली-गलौज करता हूँ, जो बुरा नहीं मानते

❑ कोई और सफाई

आखिर, इस आदत को छोड़ने की आपको क्यों पुरज़ोर कोशिश करनी चाहिए? क्या गाली-गलौज करना वाकई बुरी आदत है? आइए नीचे दी बातों पर गौर करें।

ये सिर्फ शब्द नहीं हैं। यीशु ने कहा: ‘जो मन में भरा है, वही मुंह पर आता है।’ (लूका 6:45) गौर कीजिए कि हम जो कहते हैं, उससे न सिर्फ यह ज़ाहिर होता कि हम आगे चलकर कैसे इंसान बनना चाहते हैं, बल्कि यह भी कि हम आज कैसे इंसान हैं। अगर आप दूसरों की देखा-देखी गंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, तो इसका मतलब यही होगा कि आप ‘बहुतों के पीछे हो लेते’ हैं और आपका अपना कोई व्यक्‍तित्व नहीं।—निर्गमन 23:2.

जब हम गालियाँ बकते हैं, तो इससे हमारे बारे में एक और बात ज़ाहिर होती है। भाषा के विशेषज्ञ, जेम्स वी. अकॉनर कहते हैं: “जो लोग गाली-गलौज करते हैं, वे अकसर रूखे, गुस्सैल, झगड़ालू, साथ ही नुक्‍ताचीनी और शिकायत करनेवाले होते हैं।” मिसाल के लिए, कुछ गड़बड़ होने पर जब एक इंसान गाली बकता है, तो इससे ज़ाहिर होता है कि वह चाहता है, सबकुछ वैसा ही हो जैसा वह सोचता है। उसे मानो ज़रा भी भूल-चूक बरदाश्‍त नहीं होती। दूसरी तरफ, अकॉनर कहते हैं कि जो लोग गाली-गलौज नहीं करते, वे “शांत-स्वभाव के, . . . और सुलझे हुए लोग होते हैं, जो हर दिन की गड़बड़ी से निपटना जानते हैं।” तो फिर, आप किस तरह के इंसान बनना चाहेंगे?

गाली-गलौज करने से आपका नाम खराब होता है। ज़्यादातर जवानों की तरह आप भी शायद अपने रंग-रूप का बहुत ख्याल रखते होंगे। आखिर आप भी यही चाहते होंगे कि आप दूसरों की नज़रों में छा जाएँ। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपके रंग-रूप से ज़्यादा, आपकी बातों से लोगों पर गहरा असर होता है? दरअसल, आपकी बोली से कई बातें तय होती हैं, जैसे:

◼ किस तरह के लोग आपसे दोस्ती करेंगे।

◼ कोई आपको नौकरी पर रखेगा या नहीं।

◼ आपको कितनी इज़्ज़त मिलेगी।

एक हकीकत पर गौर कीजिए: लोग शुरू-शुरू में हमारा बाहरी रूप देखकर राय कायम करते हैं, मगर जब हम बोलना शुरू करते हैं, तो वे अपनी राय बदल देते हैं। अकॉनर कहते हैं: “बिना सोचे-समझे गंदी भाषा का इस्तेमाल करने की वजह से हमने दोस्ती करने के न जाने कितने मौके गँवा दिए होंगे। या हमने कितने ही लोगों को खुद से दूर कर दिया होगा, या खुद को बदनाम किया होगा।” इससे आप क्या सीख सकते हैं? यही कि अगर आपकी बोली गंदी है, तो आप अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं।

गाली-गलौज करने से हम बोली के दाता की तौहीन करते हैं। मान लीजिए कि आपने अपने किसी दोस्त को तोहफे में कोई कपड़ा खरीदकर दिया है। मगर वह उस कपड़े को पायदान या झाड़न के तौर पर इस्तेमाल करता है। यह देखकर आपको कैसा लगेगा? उसी तरह, हमारे सिरजनहार ने हमें बोलने का वरदान दिया है। इसलिए अगर हम इस वरदान का गलत इस्तेमाल करें, यानी गाली-गलौज करें, तो सोचिए उसे कैसा लगेगा? परमेश्‍वर का वचन साफ-साफ कहता है: “सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।”—इफिसियों 4:31.

तो फिर, आप देख सकते हैं कि गाली-गलौज करने की आदत से पीछा छुड़ाने के हमारे पास कई वाजिब कारण हैं। लेकिन अगर यह आदत आपमें जड़ पकड़ चुकी है, तो इसे छुड़ाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

पहली बात: आपको कबूल करना चाहिए कि आपको अपनी बोली में बदलाव करने की ज़रूरत है। ज़ाहिर है कि जब तक आप इसके फायदे नहीं जानेंगे, तब तक आप गाली-गलौज करना नहीं छोड़ेंगे। नीचे दी कौन-सी बातें आपको यह आदत छोड़ने के लिए उभार सकती हैं?

❑ बोली के दाता को खुश करना

❑ दूसरों से ज़्यादा इज़्ज़त पाना

❑ अपना शब्द-ज्ञान बढ़ाना

❑ अपनी शख्सियत निखारना

दूसरी बात: पता लगाइए कि क्या बात आपको गाली-गलौज करने के लिए उकसाती है। मेलॉनी कहती है: “गाली-गलौज करने से मुझे ऐसा लगता था कि मैं भी किसी से कम नहीं। मैं नहीं चाहती थी कि लोग मुझ पर धौंस जमाएँ। इसके बजाय, मैं दूसरों पर अपना रोब झाड़ना चाहती थी, ठीक जैसे मेरी सभी सहेलियाँ करती थीं।”

आपके बारे में क्या? आप गाली-गलौज क्यों करते हैं, इसकी वजह जानना आपके लिए ज़रूरी है। क्योंकि तभी आप इस समस्या से निपटना जान पाएँगे। मिसाल के लिए, अगर आप सिर्फ इसलिए गाली-गलौज करते हैं क्योंकि सभी ऐसा करते हैं, तो आपको अपना आत्म-विश्‍वास बढ़ाने की ज़रूरत है। खुद तय कीजिए कि क्या सही है, क्या गलत और फिर उसी पर अटल बने रहिए। प्रौढ़ होने के लिए यह एक ज़रूरी कदम है और इससे आपको गाली देने की आदत छोड़ने में काफी मदद मिलेगी।

तीसरी बात: आपको अपनी बात कहने के लिए कोई और तरीका अपनाने की ज़रूरत है। गाली-गलौज करने की अपनी आदत छुड़ाने में सिर्फ अपनी ज़बान पर लगाम देना शामिल नहीं। इसमें ‘नया मनुष्यत्व’ पहनना भी शामिल है। (इफिसियों 4:22-24) ऐसा करने से आप खुद पर ज़्यादा संयम रख पाएँगे और अपना आत्म-सम्मान भी बरकरार रख पाएँगे। इसके अलावा, आप दूसरों को भी इज़्ज़त दे पाएँगे।

आगे दी आयतें आपको नया मनुष्यत्व पहनने और उसे बनाए रखने में मदद देंगी।

कुलुस्सियों 3:2: “स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ।”

यह आयत आप पर कैसे लागू होती है: अपने दिमाग को तालीम दीजिए कि वह खरी बातों की कदर करे। क्योंकि आप जो सोचते हैं, वही आपकी ज़बान पर आता है।

नीतिवचन 13:20: “बुद्धिमानों की संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।”

यह आयत आप पर कैसे लागू होती है: आपके दोस्त जैसी भाषा इस्तेमाल करते हैं, वैसी ही भाषा आप भी इस्तेमाल करने लग सकते हैं।

भजन 19:14: ‘हे यहोवा परमेश्‍वर, मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों!’

यह आयत आप पर कैसे लागू होती है: यहोवा देख रहा है कि हम बोलने के अपने वरदान का किस तरह इस्तेमाल करते हैं।

क्या आपको और भी मदद की ज़रूरत है? अगर हाँ, तो ऊपर दिए चार्ट में लिखिए कि आप हर दिन कितनी बार गाली देते हैं। इस तरह, गाली-गलौज करने की आदत से छुटकारा पाने में आप जो तरक्की करते हैं, उसे आप परख पाएँगे। आपको यह देखकर शायद हैरानी होगी कि आपने कितनी तेज़ी से अपनी बोली में सुधार किया है! (g 3/08)

“युवा लोग पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं

इस बारे में सोचिए

गाली-गलौज करने की आपकी आदत की वजह से

◼ किस तरह के लोग आपसे दोस्ती करेंगे?

◼ क्या कोई आपको नौकरी पर रखेगा?

◼ दूसरे आपको किस नज़र से देखेंगे?

[फुटनोट]

^ इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।

^ मसीहियों को गंदी भाषा का इस्तेमाल करने से दूर रहना चाहिए, क्योंकि बाइबल कहती है: “कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले।” “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो।”—इफिसियों 4:29; कुलुस्सियों 4:6.

[पेज 21 पर चार्ट]

अपनी तरक्की को परखिए

सोमवार मंगलवार बुधवार गुरुवार शुक्रवार शनिवार रविवार

पहला हफ्ता ..... ..... ..... ..... ..... ..... .....

दूसरा हफ्ता ..... ..... ..... ..... ..... ..... .....

तीसरा हफ्ता ..... ..... ..... ..... ..... ..... .....

चौथा हफ्ता ..... ..... ..... ..... ..... ..... .....

[पेज 20 पर तसवीर]

आप बेशक एक अनमोल तोहफे का कभी गलत इस्तेमाल नहीं करेंगे। तो क्या बोलने के वरदान का गलत इस्तेमाल करना सही होगा?