क्या परमेश्वर गंभीर पापों को माफ करता है?
बाइबल का दृष्टिकोण
क्या परमेश्वर गंभीर पापों को माफ करता है?
दया, परमेश्वर के खास गुणों में से एक है। (भजन 86:15) परमेश्वर किस हद तक इंसानों को दया दिखाता है? भजनहार ने लिखा: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा? परन्तु तू क्षमा करनेवाला है, जिस से तेरा भय माना जाए।” (भजन 130:3, 4) बाइबल की एक और जगह पर लिखा है: “उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उस ने हमारे अपराधों को हम से उतनी ही दूर कर दिया है। जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।”—भजन 103:12-14.
इन आयतों से साफ ज़ाहिर है कि यहोवा, दया का सागर है और वह इंसानों को पूरी तरह माफ करता है। साथ ही, जब वह दया दिखाता है, तो याद रखता है कि हम “मिट्टी” ही हैं। यानी वह इस बात का ध्यान रखता है कि हमारी हदें क्या हैं और असिद्ध होने की वजह से हममें कौन-सी कमज़ोरियाँ हैं। आइए इस मामले में बाइबल की कुछ मिसालों पर एक नज़र डालें।
प्रेरित पतरस ने तीन बार मसीह को जानने से इनकार कर दिया था। (मरकुस 14:66-72) प्रेरित पौलुस ने मसीही बनने से पहले, यीशु के चेलों पर बहुत ज़ुल्म ढाए थे। उसने उन्हें सज़ा-ए-मौत देने के पक्ष में ‘अपनी सम्मति’ भी दी थी। यहाँ तक कि वह एक मसीही के मार डाले जाने के फैसले से सहमत था। (प्रेरितों 7:60; 8:1, 3; 9:1, 2, 11; 26:10, 11; गलतियों 1:13) इसके अलावा, कुरिन्थ में कई लोग मसीही बनने से पहले पियक्कड़, अंधेर करनेवाले और चोर थे। (1 कुरिन्थियों 6:9-11) फिर भी, कुछ समय बाद परमेश्वर ने इन सब पर अनुग्रह किया। आखिर, परमेश्वर ने उन्हें माफ क्यों किया?
परमेश्वर की दया पाने के तीन कदम
पौलुस ने लिखा: “मुझ पर दया हुई, क्योंकि मैं ने अविश्वास की दशा में बिन समझे बूझे, ये काम किए थे।” (1 तीमुथियुस ) ईमानदारी से कही पौलुस की यह बात दिखाती है कि परमेश्वर की दया पाने का पहला कदम क्या है। वह है, अपनी आँखों पर से अज्ञानता का परदा हटाना। और ऐसा हम यहोवा और उसके स्तरों के बारे में बाइबल से सही ज्ञान लेकर कर सकते हैं। ( 1:132 तीमुथियुस 3:16, 17) आखिर, जब तक हम परमेश्वर को जानेंगे नहीं, तब तक हम उसे खुश करेंगे कैसे। यीशु ने अपने पिता से प्रार्थना करते वक्त कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।”—यूहन्ना 17:3.
जब नेकदिल लोग यह ज्ञान हासिल करते हैं, तो उन्हें अपने पापों पर गहरा अफसोस होता है। और यह अफसोस, उन्हें दिल से पश्चाताप करने के लिए उभारता है। परमेश्वर की दया पाने का यह दूसरा कदम है। प्रेरितों 3:19 (NHT) कहता है: “इसलिए पश्चात्ताप करो और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं।”
इस आयत में तीसरा कदम भी बताया गया है और वह है, लौट आना यानी बदलाव करना। बदलाव करने का मतलब है, अपने पुराने रवैए और तौर-तरीकों को छोड़कर परमेश्वर के स्तर और नज़रिया अपनाना। (प्रेरितों 26:20) दूसरे शब्दों में कहें तो जब एक इंसान अपनी ज़िंदगी में बदलाव करता है, तो वह दिखाता है कि उसने सच्चे दिल से परमेश्वर से माफी माँगी है।
परमेश्वर सभी को माफ नहीं करता
परमेश्वर कुछ लोगों के पापों को कतई माफ नहीं करता। पौलुस ने लिखा: “सच्चाई की पहिचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। हां, दण्ड का एक भयानक बाट जोहना . . . बाकी है।” (इब्रानियों 10:26, 27) जब एक इंसान ‘जान बूझकर पाप करता रहता है,’ तो इससे ज़ाहिर होता है कि उसमें बुराई कूट-कूटकर भरी है और वह दिल का खोटा है।
ऐसा ही एक इंसान था, यहूदा इस्करियोती। उसके बारे में यीशु ने कहा: “यदि उस मनुष्य का जन्म न होता, तो उसके लिये भला होता।” (मत्ती 26:24, 25) इसके अलावा, अपने ज़माने के कुछ धर्म-गुरुओं के बारे में यीशु ने कहा: “तुम अपने पिता शैतान से हो, . . . जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, बरन झूठ का पिता है।” (यूहन्ना 8:44) शैतान की तरह, इन धर्म-गुरुओं की रग-रग में भी बुराई बसी थी। उन्हें अपने किए पर ज़रा भी पछतावा नहीं था। इसके बजाय, वे और भी ढीठ हो गए थे। * यह सच है कि असिद्धता और कमज़ोरियों की वजह से, सच्चे मसीही भी कभी-कभी गंभीर पाप कर बैठते हैं। मगर इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं कि वे स्वभाव ही से बुरे हैं।—गलतियों 6:1.
मरते दम तक दयालु
यहोवा न सिर्फ पाप को देखता है, बल्कि पाप करनेवाले के रवैए पर भी गौर करता है। (यशायाह 1:16-19) आइए कुछ पल के लिए उन दो कुकर्मियों पर ध्यान दें, जिन्हें यीशु के दोनों तरफ लटकाया गया था। उन दोनों ने ज़रूर संगीन जुर्म किए होंगे, तभी तो उनमें से एक ने कबूल किया: “हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इस [यीशु] ने कोई अनुचित काम नहीं किया।” उस कुकर्मी की यह बात दिखाती है कि वह यीशु के बारे में थोड़ा-बहुत जानता था। शायद इस जानकारी की वजह से ही उसके रवैए में बदलाव आया हो। यह हमें उसकी आगे कही बात से पता चलता है: “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।” दिल से की गयी इस गुज़ारिश का यीशु ने क्या जवाब दिया? उसने उस कुकर्मी से कहा: “मैं आज तुझ से सच सच कहता हूँ, तू मेरे साथ फिरदौस में होगा।” (NW)—लूका 23:41-43.
ज़रा सोचिए: इंसान के तौर पर यीशु ने जो आखिरी बातें कहीं, उनमें से एक में हमें दया की झलक मिलती है। उसने यह दया एक ऐसे इंसान के लिए दिखायी, जिसने खुद कबूल किया कि वह सज़ा-ए-मौत के लायक है। इस बात से हमें क्या ही हौसला मिलता है! जी हाँ, हम यकीन रख सकते हैं कि यीशु मसीह और उसका पिता, यहोवा उन सभी पर दया करेंगे, जो सच्चे दिल से पश्चाताप करते हैं, फिर चाहे उन्होंने बीते कल में गंभीर पाप क्यों न किए हों।—रोमियों 4:7. (g 2/08)
[फुटनोट]
^ 1 अगस्त, 2007 की प्रहरीदुर्ग के पेज 12-15 पर दिया लेख, “क्या आपने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया है?” देखिए।
क्या आपने कभी सोचा है?
◼ आप परमेश्वर की दया के बारे में क्या कह सकते हैं?—भजन 103:12-14; 130:3, 4.
◼ परमेश्वर की दया पाने के लिए कौन-से कदम उठाना ज़रूरी है?—यूहन्ना 17:3; प्रेरितों 3:19.
◼ यीशु ने पास में लटके एक कुकर्मी से क्या वादा किया?—लूका 23:43, NW.