इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

‘जब दिन में ही रात हो गयी’

‘जब दिन में ही रात हो गयी’

‘जब दिन में ही रात हो गयी’

बेनिन में सजग होइए! लेखक द्वारा

“सूर्यग्रहण देखकर लाखों लोग बोल उठे: वाह!” यह सुर्खी, 30 मार्च, 2006 के दिन घाना के डेली ग्राफिक अखबार में छपी थी। इसके एक दिन पहले, यानी 29 मार्च को पूर्ण सूर्यग्रहण हुआ था। इसका नज़ारा सबसे पहले ब्राज़ील के एकदम पूरब में देखा गया। फिर यह लगभग 1,600 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से एटलांटिक महासागर से होते हुए अफ्रीका की तरफ बढ़ा। वहाँ के तटवर्ती देशों: घाना, टोगो और बेनिन में यह ग्रहण सुबह करीब 8 बजे से दिखायी देने लगा। उस दौरान वहाँ का नज़ारा कैसा था?

घाना में पिछला पूर्ण सूर्यग्रहण सन्‌ 1947 में हुआ था। थीयडोर, जो तब 27 साल का था, उस वाकये को याद करते हुए कहता है: “उस वक्‍त तक बहुत-से लोगों ने कभी सूर्यग्रहण नहीं देखा था। इसलिए उन्हें बिलकुल पता नहीं था कि आखिर हो क्या रहा है। इसी के चलते, लोगों ने उस घटना के बारे में यूँ कहा कि ‘दिन में ही रात हो गयी थी।’”

लोगों में जागरूकता पैदा करने का अभियान

29 मार्च, 2006 को हुए पूर्ण सूर्यग्रहण से पहले, अधिकारियों ने लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए एक अभियान चलाया। उन्होंने सभी को खबरदार किया कि ग्रहण के दौरान, सीधे सूरज को देखने के क्या-क्या खतरे हैं। टोगो में तो बड़े-बड़े और रंगीन पोस्टर लगाए गए, जिनमें लिखा था: “अपनी आँखें बचाओ! वरना आपकी आँखें जा सकती हैं!”

सूर्यग्रहण देखने के सिलसिले में, सरकारी अधिकारियों ने लोगों को दो उपाय बताए। एक, वे घर के अंदर ही रहकर टी.वी. पर ग्रहण देखें। दूसरा, अगर वे बाहर जाते हैं, तो आँखों की सुरक्षा के लिए बनाए गए खास चश्‍मे पहनें। लाखों लोग उस दिलकश नज़ारे को देखने के लिए टी.वी. और कंप्यूटर के आगे अपनी आँखें गड़ाए बैठे रहे। मगर घर के बाहर खड़े होकर ग्रहण देखने में जो मज़ा था, वह मज़ा टी.वी. या कंप्यूटर के सामने बैठकर देखने में कहाँ। बाहर की फिज़ा बिलकुल अलग थी। ग्रहण से पहले और उसके दौरान, लोगों में खलबली मची हुई थी और उनमें उमंग की लहर दौड़ रही थी। आइए देखें कि उस वक्‍त क्या हुआ था।

बेकरारी बढ़ने लगती है

हर दिन की तरह, 29 मार्च की सुबह को भी पश्‍चिम अफ्रीका में आसमान साफ है और खिली धूप है। ऐसे में सवाल उठता है, क्या वाकई सूर्यग्रहण होगा? ग्रहण लगने की घड़ी जैसे-जैसे नज़दीक आती है, बाहर खड़े लोग अपने-अपने खास चश्‍मे पहनने लगते हैं और आसमान की तरफ टकटकी लगाकर देखने लगते हैं। कुछ लोग तो मोबाइल फोन के ज़रिए दूसरे इलाके में रहनेवाले अपने जान-पहचानवालों से पूछते हैं कि उन्हें क्या नज़र आ रहा है।

सूर्यग्रहण के लगने में चन्द्रमा का सबसे बड़ा हाथ होता है, जो धरती से 3,50,000 किलोमीटर से भी ज़्यादा दूर है। हालाँकि लोगों को पहले-पहल चाँद नज़र नहीं आता, मगर फिर भी यह सूरज और पृथ्वी के बीच एक सीध में आने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ता है, ताकि ग्रहण लग सके। कुछ ही समय बाद, अचानक लोगों को सूरज के किनारे पर एक छोटा-सा काला भाग दिखायी देता है, जो कि चन्द्रमा का ही हिस्सा है। फिर आहिस्ते-आहिस्ते चन्द्रमा सूरज को ढकने लगता है। एक-के-बाद-एक जब सभी लोग इस ग्रहण को देखने लगते हैं, तो माहौल में सनसनी-सी छा जाती है।

पहले घंटे में तो लोगों को अपने आस-पास के माहौल में कोई बदलाव नज़र नहीं आता। लेकिन जैसे-जैसे चन्द्रमा, सूरज को निगलता जाता है, तो माहौल एकदम अजीब-सा हो जाता है। नीला अंबर काला हो जाता है। तापमान गिर जाता है। सड़कों की लाइटें और सुरक्षा के लिए लगायी गयी बत्तियाँ, सब जल उठती हैं। रास्ते सुनसान हो जाते हैं। दुकानें बंद हो जाती हैं। चिड़ियाँ चहचहाना बंद कर देती हैं और जानवर अपने-अपने बिलों और गुफाओं में घुस जाते हैं और सोने की तैयारी करते हैं। चारों तरफ घुप अँधेरा छाने लगता है। आखिरकार, पूर्ण सूर्यग्रहण हो जाता है और हर कहीं सन्‍नाटा छा जाता है।

ऐसा ग्रहण जो भुलाए नहीं भूलता

जब पूर्ण सूर्यग्रहण लग जाता है, तो तारे टिमटिमाने लगते हैं। अब चन्द्रमा बिलकुल काला दिखायी देता है। उसके चारों तरफ, सूरज के शानदार कोरोना (सूरज के वायुमंडल की बाहरी परत) का मोती जैसा सफेद घेरा दिखायी पड़ता है। फिर जब सूरज, चन्द्रमा की घाटियों और उबड़-खाबड़ सतह से झाँकता है, तो चन्द्रमा के किनारों पर झिलमिलाती हुई रोशनी दिखायी देती है। ऐसा लगता है कि यह मूँगों (बीड्‌स) की माला हो। इस रोशनी को ‘बेलीज़ बीड्‌स’ कहा जाता है। * इसके बाद, नज़ारा ऐसा हो जाता है, मानो आसमान में हीरे की अँगूठी चमचमा रही हो। क्रोमोस्फियर (कोरोना के नीचे की परत) में गुलाबी रंग की रोशनी दमकने लगती है। एक आदमी ने कहा: “वाह! क्या नज़ारा था! ऐसा अजब नज़ारा मैंने आज तक कभी नहीं देखा।”

पूर्ण सूर्यग्रहण करीब तीन मिनट तक रहता है। इसके बाद, सूरज एक बार फिर गगन में अपनी धाक जमाने लगता है। यह देखकर बहुत-से लोग खुशी से तालियाँ बजाते हैं। आसमान फिर से उजियाला हो जाता है और तारे गायब हो जाते हैं। डरावना माहौल, सुबह के कोहरे की तरह हवा हो जाता है।

चन्द्रमा ‘आकाशमण्डल का विश्‍वासयोग्य साक्षी’ है। (भजन 89:37) इसलिए अगला ग्रहण कब होगा, इसका सदियों पहले पता लगाया जा सकता है। पश्‍चिम अफ्रीका को इस पूर्ण सूर्यग्रहण को देखने के लिए, करीब 60 साल इंतज़ार करना पड़ा था। अनुमान लगाया गया है कि वहाँ अगला पूर्ण सूर्यग्रहण सन्‌ 2081 में देखा जाएगा। हो सकता है, इससे कहीं पहले आपको अपने इलाके में यह कभी न भूलनेवाला ग्रहण देखने का मौका मिल जाए। (g 3/08)

[फुटनोट]

^ यह नाम ब्रिटेन के खगोल-शास्त्री, फ्रांसिस बेली के नाम पर रखा गया था। क्योंकि उन्होंने ही पहली बार सन्‌ 1836 में इस अनोखी घटना के बारे में लिखा था।

[पेज 11 पर बक्स/तसवीर]

क्या यीशु की मौत के वक्‍त पूर्ण सूर्यग्रहण हुआ था?

मरकुस 15:33 कहता है: “दोपहर होने पर, सारे देश में अन्धियारा छा गया; और तीसरे पहर तक रहा।” दोपहर 12 बजे से लेकर 3 बजे तक, यानी तीन घंटे का अंधकार एक चमत्कार था। यह सूर्यग्रहण की वजह से नहीं हो सकता था। क्यों? इसकी पहली वजह यह है कि धरती पर पूर्ण सूर्यग्रहण ज़्यादा-से-ज़्यादा साढ़े सात मिनट तक ही होता है। दूसरी वजह यह है कि यीशु की मौत चंद्र महीने, निसान के 14 तारीख को हुई थी। निसान की पहली तारीख नए चाँद के नज़र आने से तय की जाती है, जिस दौरान चन्द्रमा, सूरज और पृथ्वी के बीच होता है और इससे ग्रहण लग सकता है। जब तक निसान 14 आता है, तब तक चन्द्रमा अपनी कक्षा का आधा चक्कर लगा चुका होता है। इस दरमियान पृथ्वी, सूरज और चन्द्रमा के बीच होती है। मगर पृथ्वी, सूरज की रोशनी को रोकने के बजाय, उसे पूरी तरह चाँद तक पहुँचने देती है। नतीजा, हमें पूरा चाँद नज़र आता है और इस तरह, यीशु का स्मारक बनाने का बढ़िया माहौल पैदा होता है।

[तसवीर]

निसान की 14 तारीख हमेशा या तो पूर्णिमा को या उसके आस-पास पड़ती है

[पेज 10,11 पर नक्शा/रेखाचित्र]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

पृथ्वी की वह पट्टी जिस पर सूर्यग्रहण दिखायी दिया

⇧ अफ्रीका

बेनिन ●

टोगो ●

घाना ●

[चित्र का श्रेय]

नक्शा: Based on NASA/Visible Earth imagery

[पेज 10 पर तसवीर]

29 मार्च, 2006, जब पूर्ण सूर्यग्रहण हुआ था

[पेज 10 पर तसवीर]

आँखों की सुरक्षा के लिए बनाए गए खास चश्‍मों की मदद से, लोग ग्रहण देख सके