जुर्म क्या यह इंसान के बस के बाहर हो गया है?
जुर्म क्या यह इंसान के बस के बाहर हो गया है?
◼ मानसिक तौर पर बीमार एक विद्यार्थी, हथियारों से लैस स्कूल में दाखिल होता है और अपने साथी विद्यार्थियों और टीचरों को गोलियों से भून देता है।
◼ एक नन्ही-सी बच्ची को अगवा किया जाता है और इससे उसके माँ-बाप को जो सदमा पहुँचता, उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
◼ एक किशोर कबूल करता है कि उसने एक इंसान का कत्ल सिर्फ मज़े के लिए किया और वह लाश उसने अपने दोस्तों को दिखायी, जिन्होंने हफ्तों तक उसे राज़ ही रखा।
◼ मासूम बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनानेवाला एक आदमी, इंटरनेट के ज़रिए अपने ही जैसे गिरे हुए लोगों को बच्चों को फुसलाने की तरकीबें बताता है।
ये कुछ ऐसे दिल दहलानेवाले जुर्मों की खबरें हैं, जो हमें आए-दिन सुनने को मिलती हैं। इसी के चलते, क्या आप अपने मुहल्ले में, खासकर रात के वक्त खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं? क्या आप या आपका परिवार कभी किसी जुर्म का शिकार हुआ है? दुनिया में ऐसे लाखों लोग हैं, जो कबूल करते हैं कि अपराध और हिंसा का डर उनके दिलों में समाया हुआ है। यही हाल उन लोगों का भी है, जो ऐसे देशों में रहते हैं जिन्हें एक वक्त पर सुरक्षित माना जाता था। आइए अलग-अलग देशों से मिली रिपोर्टों पर एक नज़र डालें।
जापान: एशिया टाइम्स रिपोर्ट करती है: “एक ज़माना था जब जापान को . . . दुनिया के सबसे सुरक्षित देशों में से एक माना जाता था। मगर आज वहाँ सुरक्षा का नामो-निशान तक नहीं है। लोग हर पल जुर्म और दुनिया-भर में फैले आतंकवाद के खौफ में जीते हैं।”
लातीनी अमरीका: सन् 2006 की एक समाचार रिपोर्ट के मुताबिक, ब्राज़ील के कुछ जाने-माने लोगों का कहना है कि आगे चलकर साओ पोलो शहर में छापामार (गुरिल्ला) युद्ध छिड़ेगा। यह उन्होंने इसलिए कहा, क्योंकि शहर के कई हिस्सों में हफ्तों से हिंसा की आग भड़क रही थी। और इस पर देश के राष्ट्रपति ने फौरन वहाँ की सड़कों पर सेना तैनात कर दी थी। स्पैनिश अखबार ट्येमपोस डेल मुंडो की एक रिपोर्ट कहती है कि मध्य अमरीका और मेक्सिको में “तकरीबन 50,000 नौजवान अलग-अलग गिरोहों में शामिल हैं। इस वजह से वहाँ के अधिकारी लगातार चौकन्ने रहते हैं।” वही रिपोर्ट आगे कहती है: “सिर्फ सन् 2005 में एल साल्वाडर, ग्वाटेमाला और होण्डुरास में इन गिरोहों के हाथों करीब 15,000 लोगों की मौत हुई है।”
कनाडा: सन् 2006 में यू.एस.ए. टुडे ने कहा: “गिरोहों का दिन दूना रात चौगुना बढ़ना, जुर्म पर अध्ययन करनेवाले विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बन गया है। . . . पुलिस ने पता लगाया है कि टोरन्टो शहर में 73 गिरोहों ने आतंक मचा रखा है।” यू.एस.ए. टुडे के मुताबिक, टोरन्टो के एक पुलिस अधीक्षक ने कहा कि शहर में बढ़ती गिरोहबंदी को रोकना कोई आसान काम नहीं।
दक्षिण अफ्रीका: जुर्म पर अध्ययन करनेवाले खोजकर्ता, पैट्रिक बर्टन ने फायनैनशल मेल अखबार में कहा: “दक्षिण अफ्रीका का हर नौजवान जो भी फैसला या काम करता है, रह-रहकर उसे यही डर सताता है कि कहीं वह जुर्म का शिकार न हो जाए।” अखबार आगे कहता है कि “ऐसे भयानक जुर्मों में डकैती, डरा-धमकाकर दूसरों की गाड़ी अपने कब्ज़े में कर लेना और बैंकों को लूटना शामिल हैं।”
फ्रांस: कॉलोनियों में रहनेवाले बहुत-से लोग हर दिन डर-डरकर जीते हैं। “जब भी वे ऐसी सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते हैं, जिन्हें गुंडों ने तोड़ा-फोड़ा है, तो उनका दिल काँपता है। गाड़ियाँ खड़ी करने की जगहों पर भी उन्हें डर लगा रहता है, क्योंकि वहाँ हर घड़ी खतरा मँडराता रहता है। यहाँ तक कि अँधेरा हो जाने के बाद बस-ट्रेन से आने-जाने में उन्हें घबराहट होती है, क्योंकि ऐसे वक्त पर इनसे सफर करना खतरे से खाली नहीं होता।”—गार्डियन वीकली अखबार।
अमरीका: संगठित गिरोहों की वजह से जुर्म की दर आसमान छू रही है। अमरीका के एक राज्य में पुलिस ने एक सर्वे लिया, जिसकी रिपोर्ट द न्यू यॉर्क टाइम्स में छपी थी। यह रिपोर्ट बताती है कि उस राज्य में लगभग 700 गिरोह हैं। उनमें से एक गिरोह में अब करीब 17,000 नौजवान (जिनमें लड़के-लड़कियाँ दोनों शामिल हैं) हैं। इसका मतलब है कि सिर्फ 4 सालों के अंदर उस गिरोह में करीब 10,000 सदस्य बढ़ गए हैं।
ब्रिटेन: बच्चों पर जुर्म का जो असर हो रहा है, उस पर तैयार की गयी यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र बाल निधि) की एक रिपोर्ट के बारे में, लंदन का द टाइम्स अखबार कहता है: “ब्रिटेन में गोली मारकर हत्या किए जानेवाले नौजवानों की दर बढ़ती जा रही है। आजकल सिर्फ बालिग लोग ही नहीं, बल्कि कई जवान और बच्चे भी बंदूक-पिस्तौल लिए घूम रहे हैं या गोली के शिकार हो रहे हैं।” इंग्लैंड और वेल्स में कैदियों की गिनती तेज़ी से बढ़कर लगभग 80,000 हो गयी है।
केन्या: एक समाचार रिपोर्ट कहती है कि गाड़ी छीननेवाले कुछ बदमाशों ने एक ऐसे हाइवे पर माँ और बेटी की गोली मारकर हत्या कर दी, जहाँ गाड़ियों की काफी आवा-जाही थी। उन्होंने ऐसा बस इसलिए किया, क्योंकि माँ-बेटी उनके कहने पर अपनी गाड़ी से फौरन बाहर नहीं निकलीं। केन्या की राजधानी, नैरोबी हर तरह के जुर्म के लिए बदनाम हो गयी है। जैसे, गाड़ियाँ छीनकर भागना, लूटमार करना और घुसपैठ करना।
क्या जुर्म वाकई इंसान के बस के बाहर हो गया है? आखिर इसकी जड़ क्या है? क्या एक ऐसे समय की उम्मीद करने का कोई आधार है, जब लोग सच्ची शांति और सुरक्षा में रहेंगे? इन सवालों की जाँच अगले लेख में की जाएगी। (g 2/08)