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प्राचीन हस्तलिपियाँ इनकी लिखाई के समय का पता कैसे लगाया जाता है?

प्राचीन हस्तलिपियाँ इनकी लिखाई के समय का पता कैसे लगाया जाता है?

प्राचीन हस्तलिपियाँ इनकी लिखाई के समय का पता कैसे लगाया जाता है?

बात सन्‌ 1844 की है। बाइबल विद्वान कॉनस्टानटीन वॉन टिशनडॉर्फ, सेंट कैथरीन मठ में गए, जो मिस्र देश में सिनाई पहाड़ के नीचे बना है। वहाँ की लाइब्रेरियों में ढूँढ़-ढाँढ़ करते वक्‍त उसे कुछ खास चर्मपत्र मिले। टिशनडॉर्फ ने पुरालिपि-विज्ञान * की भी पढ़ाई की थी। इसलिए उसने फौरन पहचान लिया कि ये चर्मपत्र सेप्टुआजेंट, यानी इब्रानी शास्त्र या ‘पुराने नियम’ के यूनानी अनुवाद का हिस्सा थे। इन चर्मपत्रों के बारे में उसने लिखा: “मैंने आज तक इन साइनाइटिक पन्‍नों (सिनाई पहाड़ के पास मिली हस्तलिपियाँ) जितने पुराने चर्मपत्र कभी नहीं देखे।”

माना जाता है कि टिशनडॉर्फ को जो चर्मपत्र मिले, वे सा.यु. चौथी सदी में लिखे गए थे। ये चर्मपत्र उस हस्तलिपि का हिस्सा बने, जिसे आगे चलकर साइनाइटिक हस्तलिपि (कोडेक्स साइनाइटिकस) नाम दिया गया। साइनाइटिक हस्तलिपि, इब्रानी और यूनानी शास्त्र की उन हज़ारों हस्तलिपियों में से एक है, जिनका विद्वान अध्ययन करते हैं।

यूनानी पुरालिपि-विज्ञान का इतिहास

यूनानी हस्तलिपियों का तरतीब से अध्ययन करनेवाला पहला विद्वान था, बर्नार डे मोन्फोकॉन (सन्‌ 1655-1741)। वह बेनेडिक्टाइन नाम के धार्मिक संघ का मठवासी था। उसके बाद, और भी दूसरे विद्वानों ने इन हस्तलिपियों का अध्ययन करके लेख या किताबें छापीं। टिशनडॉर्फ ने बाइबल की उन सबसे पुरानी यूनानी हस्तलिपियों की सूची तैयार करने का बीड़ा उठाया, जो यूरोप की अलग-अलग लाइब्रेरियों में रखी थीं। यही नहीं, उसने कई बार पश्‍चिम एशिया का भी दौरा किया, ताकि वहाँ रखे सैकड़ों दस्तावेज़ों का वह अध्ययन कर सके। इसके बाद, उसने अध्ययन से मिले नतीजों पर लेख छापे।

बीसवीं सदी में पुरालिपिशास्त्रियों के अध्ययन के लिए और भी साधन उपलब्ध हुए। इनमें से एक था, मार्सेल रीशार सूची। इसमें तकरीबन 900 सूची-पत्र (कैटेलॉग) हैं, जिनमें 55,000 यूनानी हस्तलिपियों का ब्यौरा दिया गया है। इनमें से कई हस्तलिपियाँ, बाइबल की हैं और बाकी दूसरे लेखों की। ये हस्तलिपियाँ, 820 सरकारी लाइब्रेरियों और लोगों की निजी लाइब्रेरियों में पायी जाती हैं। जानकारी का यह भंडार, अनुवादकों को उनके काम में और पुरालिपिशास्त्रियों को हस्तलिपियों की लिखाई का सही-सही समय पता लगाने में मदद देता है।

हस्तलिपियाँ कितनी पुरानी हैं, यह कैसे पता लगाया जाता है

कल्पना कीजिए कि आप एक पुराने घर की परछत्ती साफ कर रहे हैं। अचानक आपको हाथ का लिखा एक बहुत ही पुराना खत मिलता है। लेकिन उसमें कोई तारीख नहीं लिखी है। आप शायद मन-ही-मन सोचें: ‘यह खत कितना पुराना होगा?’ कुछ ही देर बाद, आपको एक और पुराना खत मिलता है। जब आप उसे खोलकर देखते हैं, तो आप पाते हैं कि उसकी लिखावट, विराम-चिन्ह और दूसरी खासियतें, पहले खत से काफी मिलती-जुलती हैं। और खुशी की बात तो यह है कि इस दूसरे खत में तारीख लिखी हुई है। हालाँकि इस खत से आप यह तो नहीं पता लगा सकते कि पहला खत ठीक किस साल में लिखा गया था, मगर हाँ, आप इतना ज़रूर पता लगा सकते हैं कि यह लगभग किस दौरान लिखा गया था।

प्राचीन समय के ज़्यादातर नकलनवीसों ने बाइबल हस्तलिपियों की अपनी कॉपियों पर उनके पूरे होने की तारीख नहीं लिखी थी। इसलिए उनकी लिखाई कब पूरी हुई, इसका अंदाज़न समय पता लगाने के लिए विद्वान उनकी तुलना ऐसी हस्तलिपियों से करते हैं, जिनमें तारीख लिखी होती है। इनमें ऐसी प्राचीन हस्तलिपियाँ शामिल हैं, जिनका बाइबल से कोई नाता नहीं। विद्वान दोनों हस्तलिपियों की लिखावट, विराम-चिन्ह, संकेत-चिन्ह वगैरह की तुलना करके समय का पता लगाते हैं। लेकिन बाइबल की ऐसी सैकड़ों हस्तलिपियाँ भी पायी गयी हैं, जिनमें तारीख लिखी हुई है। ये हस्तलिपियाँ यूनानी भाषा में लगभग सा.यु. 510 से सा.यु. 1593 के दौरान लिखी गयी थीं।

लिखावट से सुराग

प्राचीन यूनानी नकलनवीस दो तरह की लिखावट का इस्तेमाल करते थे। और इसी हिसाब से आज के पुरालिपिशास्त्री, प्राचीन यूनानी लिखावट को दो वर्गों में बाँटते हैं। एक है बुक हैंड लिखावट, जो दिखने में सुंदर लगती है और नियमों के मुताबिक होती है। और दूसरा है कर्सिव लिखावट, जो कि घसीटा होती है और जिसका इस्तेमाल साहित्यों में नहीं बल्कि दूसरे दस्तावेज़ों में किया जाता है। इसके अलावा, प्राचीन यूनानी नकलनवीस अक्षरों की अलग-अलग शैलियाँ भी इस्तेमाल करते थे। जैसे, कैपिटल (बड़े अक्षर), अंशियल (कैपिटल अक्षरों का एक रूप), कर्सिव (घसीटा अक्षर) और मिन्यूस्क्यूल (छोटे अक्षर)। अंशियल अक्षर, बुक हैंड लिखावट का ही एक रूप है और इन्हें सा.यु.पू. चौथी सदी से सा.यु. आठवीं या नौवीं सदी तक इस्तेमाल किया गया था। मिन्यूस्क्यूल अक्षर, बुक हैंड लिखावट का एक छोटा रूप है और इन्हें सा.यु. आठवीं या नौवीं सदी से 15वीं सदी के मध्य तक इस्तेमाल किया गया था, जब यूरोप में मूवबल टाइप से छपाई करने की शुरूआत हुई थी। (मूवबल टाइप में हरेक अक्षर को एक अलग धातु के टुकड़े से बनाया जाता था और इन अक्षरों को जानकारी के मुताबिक क्रम में रखा जाता था।) मिन्यूस्क्यूल अक्षरों को जल्दी-जल्दी और जोड़-जोड़कर लिखा जाता था, जिससे समय और चर्मपत्र, दोनों की बचत होती थी।

हरेक पुरालिपिशास्त्री, हस्तलिपियों की लिखाई का समय पता लगाने के लिए अपना एक अलग तरीका अपनाता है। मगर मोटे तौर पर, वे सभी पहले लिखावट पर सरसरी नज़र डालते हैं और फिर एक-एक अक्षर का मुआयना करके लिखावट की करीबी से जाँच करते हैं। हालाँकि यह तरीका फायदेमंद है, मगर इससे लिखावट का सिर्फ अंदाज़न समय पता लगता है। क्योंकि आम तौर पर एक लेखन-शैली में भारी बदलाव काफी लंबे समय बाद आता है।

हम इस बात से खुश हो सकते हैं कि हस्तलिपियों की लिखावट का और भी सही-सही समय पता लगाने के दूसरे तरीके मौजूद हैं। इनमें से एक है, लिखावट की खासियतों को पहचानना और यह पता लगाना कि उनके इस्तेमाल की शुरूआत कब से हुई। मिसाल के लिए, सा.यु. 900 के बाद से यूनानी लेखों में दो या उनसे ज़्यादा अक्षरों को जोड़कर (लिगेचर्स्‌) लिखा जाने लगा। यही नहीं, नकलनवीसों ने कुछ यूनानी अक्षरों को लाइन के नीचे लिखना (इनफ्रालिनीयर राइटिंग) और ‘ब्रीदिंग मार्क्स’ नाम के उच्चारण-चिन्हों का भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

आम तौर पर, एक इंसान की लिखावट ज़िंदगी-भर एक ही रहती है। इसलिए एक हस्तलिपि का अध्ययन करते वक्‍त, बस इतना ही पता लगाया जा सकता है कि वह हस्तलिपि किन 50 सालों के दौरान लिखी गयी थी। और-तो-और, नकलनवीस कभी-कभी पुरानी हस्तलिपियों को नमूने के तौर पर इस्तेमाल करते थे, जिस वजह से उनकी कॉपी उन हस्तलिपियों की तरह ही पुरानी दिखती थी। मगर इन तमाम चुनौतियों के बावजूद, बाइबल की कई अहम हस्तलिपियों की लिखाई का करीब-करीब समय पता लगाया गया है।

बाइबल की अहम यूनानी हस्तलिपियों की लिखाई के समय का पता लगाना

एलैक्ज़ैंड्रीन हस्तलिपि (कोडेक्स एलैक्ज़ैंड्रीनस), जो अब ब्रिटिश लाइब्रेरी में है, बाइबल की उन अहम हस्तलिपियों में से सबसे पहली थी, जो विद्वानों को उपलब्ध करायी गयी थीं। इस हस्तलिपि में बाइबल का ज़्यादातर हिस्सा पाया जाता है। यह बहुत ही बढ़िया किस्म के चर्मपत्र, वेलम से तैयार की गयी है और इसमें यूनानी अंशियल लिखावट इस्तेमाल की गयी है। कहा जाता है कि यह कोडेक्स, करीब पाँचवीं सदी की शुरूआत में तैयार किया गया था। ऐसा कहने की सबसे बड़ी वजह यह है कि पाँचवीं और छठी सदी के बीच, अंशियल लिखावट में बदलाव आया था। ऐसा ही बदलाव, वियन्‍ना शहर की डायसकोराइडीज़ नाम के दस्तावेज़ में साफ देखा गया था, जिसकी लिखाई की तारीख का पता लगाया जा चुका था। *

बाइबल की दूसरी अहम हस्तलिपि, जो विद्वानों को उपलब्ध करायी गयी थी, वह है साइनाइटिक हस्तलिपि (कोडेक्स साइनाइटिकस)। यह हस्तलिपि, टिशनडॉर्फ को सेंट कैथरीन मठ में मिली थी। यह हस्तलिपि, चर्मपत्र से तैयार की गयी है और इसमें यूनानी अंशियल लिखावट का इस्तेमाल किया गया है। इसमें यूनानी सेप्टुआजेंट से लिए गए इब्रानी शास्त्र के कुछ हिस्से और पूरा मसीही यूनानी शास्त्र मौजूद है। इस कोडेक्स के 43 पन्‍ने जर्मनी के लिप्ज़िग शहर में, 347 पन्‍ने लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी में और 3 पन्‍नों के कुछ भाग रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में रखे हैं। बताया जाता है कि यह हस्तलिपि सा.यु. चौथी सदी के आखिरी हिस्से में लिखी गयी थी। ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसकी सुसमाचार की किताबों के हाशिए में दूसरी आयतों के हवाले (क्रॉस-रेफ्रेन्स) दिए गए हैं। और माना जाता है कि ये हवाले, चौथी सदी के इतिहासकार कैसरिया के यूसेबियस ने तैयार किए थे। *

बाइबल की तीसरी अहम हस्तलिपि है, वैटिकन हस्तलिपि नं. 1209 (कोडेक्स वैटिकनस)। इस कोडेक्स का नाम पहली बार सन्‌ 1475 में वैटिकन लाइब्रेरी की सूची में शामिल किया गया था। यह कोडेक्स बढ़िया किस्म के चर्मपत्र, वेलम से तैयार किया गया है और इसमें 759 पन्‍ने हैं। इसमें यूनानी अंशियल लिखावट का इस्तेमाल किया गया है। इस कोडेक्स में पहले यूनानी भाषा में पूरी बाइबल मौजूद थी। मगर अब इसमें उत्पत्ति के ज़्यादातर हिस्से, साथ ही भजन और मसीही यूनानी शास्त्र के कुछ भाग नहीं पाए जाते। विद्वानों ने पता लगाया है कि यह हस्तलिपि सा.यु. चौथी सदी की शुरूआत में लिखी गयी थी। वे इस नतीजे पर कैसे पहुँचे? इसकी लिखावट साइनाइटिक हस्तलिपि की लिखावट से काफी मिलती-जुलती है, जो कि चौथी सदी में लिखी गयी थी। फिर भी, माना जाता है कि कोडेक्स वैटिकनस, साइनाइटिक हस्तलिपि से भी थोड़ा पुराना है, क्योंकि इसमें कई खासियतें नहीं हैं, जैसे कि यूसेबियस कैनन्स्‌ (यानी आयतों के हवाले)।

कूड़े के ढेर में मिला खज़ाना

सन्‌ 1920 में, इंग्लैंड के मन्चेस्टर शहर की जॉन रायलन्ड्‌स लाइब्रेरी तक भारी तादाद में हस्तलिपियाँ पहुँचायी गयी थीं। ये हस्तलिपियाँ, कुछ ही समय पहले प्राचीन मिस्र में खोदे गए एक कूड़े के ढेर से मिली थीं। इनमें खत, रसीदें, जनगणना के दस्तावेज़ वगैरह शामिल थे। विद्वान, कोलन रॉबट्‌र्स इन कागज़ातों की जाँच कर ही रहा था कि तभी उसे एक दस्तावेज़ का टुकड़ा मिला, जिसमें यूहन्‍ना के अध्याय 18 की कुछ आयतें लिखी थीं। यह उस वक्‍त तक का ऐसा सबसे पहला मसीही यूनानी लेख था, जिसे पहचाना गया था।

कुछ समय बाद, दस्तावेज़ के इस टुकड़े को ‘जॉन रायलन्ड्‌स पपाइरस 457’ नाम दिया गया। और आज दुनिया-भर में यह P52 के नाम से जाना जाता है। इसमें यूनानी अंशियल लिखावट का इस्तेमाल किया गया है। माना जाता है कि यह पपाइरस सा.यु. दूसरी सदी की शुरूआत में लिखा गया था। यानी सुसमाचार की किताब, यूहन्‍ना की मूल हस्तलिपि के लिखे जाने के कुछ ही दशकों बाद! गौरतलब बात यह है कि इसके लेख और काफी समय बाद पायी गयी हस्तलिपियों के लेख लगभग एक-जैसे हैं।

पुराना मगर एकदम सही!

ब्रिटेन के लेख आलोचक, सर फ्रेड्रिक केन्यन ने अपनी किताब, बाइबल और पुरातत्व (अँग्रेज़ी) में मसीही यूनानी शास्त्र के बारे में लिखा: “यह कहा जा सकता है कि नए नियम की किताबों की सच्चाई और इनमें कोई भी फेरबदल न किए जाने की बात आखिरकार साबित हो ही गयी है।” उसी तरह, इब्रानी शास्त्र में कोई बदलाव न किए जाने के बारे में विद्वान, विलियम एच. ग्रीन कहता है: “यह कहना सही होगा कि प्राचीन समय की रचनाओं में से यही एक रचना है, जिसे हम तक बिना किसी फेरबदल के बिलकुल सही-सही पहुँचाया गया है।”

विद्वानों की कही बातों से हमें प्रेरित पतरस के ये शब्द याद आते हैं: “हर एक प्राणी घास की नाईं है, और उस की सारी शोभा घास के फूल की नाईं है: घास सूख जाती है, और फूल झड़ जाता है। परन्तु प्रभु का वचन युगानुयुग स्थिर रहेगा।”—1 पतरस 1:24, 25. (g 2/08)

[फुटनोट]

^ “पुरालिपि-विज्ञान . . . का मतलब है, प्राचीन और मध्य युग की लिखावट का अध्ययन करना। इसमें खासकर नष्ट होनेवाली चीज़ों में इस्तेमाल की गयी लिखावट का अध्ययन किया जाता है। नष्ट होनेवाली कुछ चीज़ें हैं पपाइरस (एक तरह के सरकंडे से बना कागज़), चर्मपत्र और कागज़।”—द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया।

^ वियन्‍ना शहर का डायसकोराइडीज़ दस्तावेज़, खासकर जूलियाना आनीसीआ नाम की स्त्री के लिए लिखा गया था, जिसकी मौत सा.यु. 527 या 528 में हुई थी। यह दस्तावेज़ “वेलम चर्मपत्र में अंशियल लिखावट के इस्तेमाल किए जाने की सबसे पहली मिसाल है, जिसकी लिखाई का करीब-करीब समय पता लगाया जा सकता है।”—यूनानी और लातिनी पुरालिपि का परिचय (अँग्रेज़ी), लेखक ई. एम. थॉम्पसन।

^ आयतों के इन हवालों को ‘यूसेबियस कैनन्स्‌’ कहा जाता है। ये हवाले “दिखाते हैं कि एक सुसमाचार की किताब की फलाँ आयत से मिलती-जुलती जानकारी दूसरी सुसमाचार की किताबों में कहाँ पायी जा सकती है।”—यूनानी बाइबल की हस्तलिपियाँ (अँग्रेज़ी), लेखक ब्रूस एम. मेट्‌सगर।

[पेज 17 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

पुरालिपिशास्त्री पहले उन हस्तलिपियों की बारीकी से जाँच करते हैं, जिनमें तारीख दी होती है। फिर इसकी मदद से वे उन हस्तलिपियों की लिखाई के समय का पता लगाते हैं, जिनमें तारीख नहीं दी होती है

[पेज 16 पर बक्स]

यशायाह के मृत सागर चर्मपत्र की लिखाई के समय का पता लगाना

बाइबल की किताब, यशायाह का पहला मृत सागर चर्मपत्र सन्‌ 1947 में पाया गया था। यह हस्तलिपि चमड़े की बनी है और इसमें मसोरा युग से पहले की इब्रानी लिखाई का इस्तेमाल किया गया है। बताया जाता है कि यह हस्तलिपि सा.यु.पू. दूसरी सदी के आखिरी हिस्से में लिखी गयी थी। विद्वान इस नतीजे पर कैसे पहुँचे? उन्होंने इस हस्तलिपि की तुलना दूसरे इब्रानी लेखों और शिलालेखों से की और फिर तय किया कि यह सा.यु.पू. 125 से 100 के बीच लिखी गयी थी। इसके अलावा, उन्हें ‘कार्बन-14 डेटिंग’ के ज़रिए इस चर्मपत्र की तारीख के और भी सबूत मिले। *

ताज्जुब की बात है कि जब मृत सागर चर्मपत्र की तुलना, मसोरा लेख से की गयी, जिसे कई सदियों बाद मसोरा लेखक नाम के बाइबल नकलनवीसों ने तैयार किया था, तो दोनों की शिक्षाओं में कोई फर्क नहीं पाया गया। * ज़्यादातर फर्क सिर्फ उनकी वर्तनी और व्याकरण को लेकर है। एक और गौरतलब बात यह है कि यशायाह के चर्मपत्र में कई बार परमेश्‍वर के नाम, यहोवा के लिए इब्रानी भाषा के चार व्यंजनों का इस्तेमाल किया गया है।

[फुटनोट]

^ ‘कार्बन-14 डेटिंग’ एक ऐसा तरीका है, जिसमें प्राचीन समय की चीज़ों की तारीख का पता लगाया जाता है। इसमें कार्बन-14 नाम के एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप (समस्थानिक) का इस्तेमाल किया जाता है।

^ मसोरा लेखक, यहूदी नकलनवीस थे जो बड़े सावधानी से हस्तलिपियों की कॉपियाँ बनाते थे। वे करीब सा.यु. 500 से 1000 के बीच जीए थे।

[पेज 16, 17 पर चार्ट/तसवीरें]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

यूनानी लिखावट

बुक हैंड (अंशियल)

सा.यु.पू. चौथी सदी से लेकर सा.यु. आठवीं या नौवीं सदी तक

बुक हैंड (मिन्यूस्क्यूल)

सा.यु. आठवीं या नौवीं सदी से लेकर पंद्रहवीं सदी तक

अहम हस्तलिपियाँ

400

200

मृत सागर चर्मपत्र

सा.यु.पू. दूसरी सदी के आखिरी हिस्से में

सा.यु.पू.

सा.यु.

100

जॉन रायलन्ड्‌स पपाइरस 457

सा.यु. 125

300

वैटिकन हस्तलिपि नं. 1209

चौथी सदी की शुरूआत में

साइनाइटिक हस्तलिपि

चौथी सदी में

400

एलैक्ज़ैंड्रीन हस्तलिपि

पाँचवीं सदी की शुरूआत में

500

700

800

[पेज 15 पर तसवीरें]

ऊपर: कॉनस्टानटीन वॉन टिशनडॉर्फ

दायीं तरफ: बर्नार डे मोन्फोकॉन

[चित्र का श्रेय]

© Réunion des Musées Nationaux/ Art Resource, NY

[पेज 16 पर चित्र का श्रेय]

मृत सागर चर्मपत्र: Shrine of the Book, Israel Museum, Jerusalem

[पेज 17 पर चित्रों का श्रेय]

वैटिकन हस्तलिपि नं. 1209 की नकल: From the book Bibliorum Sacrorum Graecus Codex Vaticanus, 1868; साइनाइटिक हस्तलिपि की नकल: 1 Timothy 3:16, as it appears in the Codex Sinaiticus, 4th century C.E.; एलैक्ज़ैंड्रीन हस्तलिपि: From The Codex Alexandrinus in Reduced Photographic Facsimile, 1909, by permission of the British Library