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सच्चे धर्म की तलाश कैसे करें

सच्चे धर्म की तलाश कैसे करें

सच्चे धर्म की तलाश कैसे करें

कुछ लोग कहते हैं: “अगर परमेश्‍वर ने अपने बारे में कोई सच्चाई बयान की है, तो उसे तलाश करने की क्या ज़रूरत है? अगर उसके पास इंसानों के लिए कोई ज़रूरी संदेश होता, तो क्या वह इसे साफ-साफ नहीं जता देता, ताकि लोग बगैर जाँच-पड़ताल के उसे फौरन समझ सकें?”

इसमें कोई शक नहीं कि परमेश्‍वर सच्चाई साफ-साफ बयान कर सकता है। मगर सवाल उठता है कि क्या उसने ऐसा करने का चुनाव किया है?

परमेश्‍वर सच्चाई कैसे ज़ाहिर करता है

दरअसल, परमेश्‍वर अपना संदेश इस तरीके से ज़ाहिर करता है, जिससे कि सच्चाई की तलाश करनेवाले नेकदिल लोग उसकी जाँच करके उसे समझ सकें। (भजन 14:2) आज से सदियों पहले, परमेश्‍वर ने अपने एक नबी यिर्मयाह के ज़रिए जो संदेश सुनाया था, ज़रा उस पर गौर कीजिए। यह संदेश परमेश्‍वर के अपने लोगों यानी इस्राएलियों के लिए था, जो उससे दूर जा चुके थे। और संदेश यह था कि यरूशलेम, बाबुलियों के हाथों नाश किया जाएगा।—यिर्मयाह 25:8-11; 52:12-14.

लेकिन उसी दौरान, दूसरे नबी भी थे जो परमेश्‍वर की तरफ से पैगाम सुनाने का दम भर रहे थे। जैसे कि हनन्याह नबी ने भविष्यवाणी की कि यरूशलेम में अमन-चैन होगा। यह पैगाम, यिर्मयाह के संदेश से बिलकुल उलट था। तो ऐसे में लोग किस पर यकीन करते—यिर्मयाह पर या दूसरे नबियों पर?—यिर्मयाह 23:16, 17; 28:1, 2, 10-17.

यह पता लगाने के लिए कि कौन सच बोल रहा था और कौन झूठ, नेकदिल यहूदियों को चाहिए था कि वे यहोवा परमेश्‍वर को अच्छी तरह जानें। उन्हें उसके नियमों और सिद्धांतों को भी समझने की ज़रूरत थी। साथ ही, इस बात को भी कि यहोवा, पाप को किस नज़र से देखता है। अगर इस्राएली ऐसा करते, तो वे यिर्मयाह के ज़रिए कही परमेश्‍वर की इस बात से ज़रूर हामी भरते कि ‘अपनी बुराई से पछतानेवाला कोई नहीं है।’ (यिर्मयाह 8:5-7) इसके अलावा, वे भाँप लेते कि यरूशलेम की बदहाली, उसकी और उसके रहनेवालों की बरबादी का इशारा है।—व्यवस्थाविवरण 28:15-68; यिर्मयाह 52:4-14.

यिर्मयाह ने यरूशलेम के बारे में जितनी भी भविष्यवाणियाँ कीं, वे सब-की-सब पूरी हुईं। सामान्य युग पूर्व 607 में, बाबुलियों ने आकर यरूशलेम की ईंट से ईंट बजा दी।

परमेश्‍वर की आज्ञा तोड़ने की वजह से इस्राएलियों का क्या अंजाम होनेवाला था, इसकी अरसों पहले ही भविष्यवाणी की गयी थी। मगर फिर भी, यह पहचानने के लिए कि यहोवा की कार्रवाई करने का वक्‍त आ पहुँचा है, यिर्मयाह के ज़माने के नेकदिल यहूदियों को जाँच-पड़ताल करने की ज़रूरत थी।

यीशु की सिखायी सच्चाई के बारे में क्या?

यीशु मसीह ने जिस सच्चाई का ऐलान किया, उसके बारे में क्या? क्या सभी लोगों ने उस सच्चाई को परमेश्‍वर का संदेश माना? जी नहीं। यीशु ने इस्राएलियों के बीच रहकर उन्हें सिखाया, यहाँ तक कि उनके सामने कई चमत्कार भी किए। मगर ज़्यादातर लोग यह पहचानने से चूक गए कि भविष्यवाणी में बताया गया मसीहा यानी, ख्रिस्त या अभिषिक्‍त जन वही है।

एक बार जब कुछ फरीसियों ने यीशु से पूछा कि परमेश्‍वर का राज्य कब आएगा, तब यीशु ने जवाब दिया: “परमेश्‍वर का राज्य प्रगट रूप से नहीं आता।” इसके बाद, उसने कहा: “परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।” (लूका 17:20, 21) जी हाँ, परमेश्‍वर के राज्य का अभिषिक्‍त राजा, यीशु उनके बीच मौजूद था! इसके बावजूद भी, इन फरीसियों ने इस बात को नकार दिया कि यीशु, मसीहा के बारे में की गयी भविष्यवाणियों को पूरा कर रहा है। और-तो-और, उन्होंने उसे ‘परमेश्‍वर के पुत्र, मसीह’ के तौर पर कबूल करने से भी इनकार कर दिया।—मत्ती 16:16.

पहली सदी में जब मसीह के चेलों ने सच्चाई के बारे में ऐलान किया, तब भी ज़्यादातर लोगों ने फरीसियों के जैसा रवैया दिखाया। हालाँकि उन चेलों के चमत्कारों से साबित हुआ कि परमेश्‍वर उनके साथ है, फिर भी लोग सच्चाई को पहचान न सके। (प्रेरितों 8:1-8; 9:32-41) यीशु ने अपने चेलों को यह आज्ञा दी थी कि वे दूसरों को ‘चेला बनाने’ के लिए उन्हें सिखाएँ। इसलिए सच्चाई की तलाश करनेवाले नेकदिल लोगों ने जब शास्त्र में दर्ज़ सच्चाई के बारे में सुना और सीखा, तो वे विश्‍वासी बन गए।—मत्ती 28:19; प्रेरितों 5:42; 17:2-4, 32-34.

पहली सदी में लोगों ने सच्चाई की तरफ जो रवैया दिखाया, आज भी लोग वही रवैया दिखाते हैं। ‘राज्य का सुसमाचार, सारे जगत में प्रचार किया जा रहा है कि सब जातियों पर गवाही हो।’ (मत्ती 24:14) मगर यह किसी “प्रगट रूप” से नहीं किया जा रहा है। यानी, यह इतना खुलकर नहीं किया जा रहा है जिससे धरती का हरेक इंसान फौरन पहचान सके कि यह सुसमाचार, परमेश्‍वर का संदेश है। फिर भी, जो लोग दिल से परमेश्‍वर के बताए तरीके से उसकी उपासना करना चाहते हैं, वे उससे मिलनेवाली सच्चाई को पहचान लेते हैं और उसके मुताबिक कदम उठाते हैं।—यूहन्‍ना 10:4, 27.

क्योंकि आप बाइबल पर आधारित पत्रिका पढ़ रहे हैं, इससे ज़ाहिर होता है कि आप सच्चाई की तलाश करनेवाले नेकदिल इंसान हैं। तो फिर, आप कैसे पता लगा सकते हैं कि कौन-सा धर्म सच्चाई सिखाता है?

सच्चे धर्म की तलाश करने का एक बढ़िया तरीका

पहली सदी में जब बिरीया के कुछ लोगों को गवाही दी गयी, तब उन्होंने जैसा रवैया दिखाया, उसके लिए प्रेरित पौलुस ने उनकी तारीफ की। हालाँकि उन्होंने बड़े आदर के साथ पौलुस का संदेश सुना, मगर उन्होंने उसे फौरन सच्चाई मानकर कबूल नहीं किया। तो फिर, उन्होंने क्या किया? और इससे हम क्या सीख सकते हैं?

बाइबल कहती है: “[बिरीया के] लोग थिस्सलुनीके वालों से अधिक सज्जन थे, क्योंकि उन्होंने बड़ी उत्सुकता से वचन को ग्रहण किया और प्रतिदिन पवित्रशास्त्रों में से खोज-बीन करते रहे कि देखें ये बातें ऐसी ही हैं या नहीं। अतः उनमें से बहुतों ने . . . विश्‍वास किया।” (प्रेरितों 17:10-12, NHT) इससे ज़ाहिर होता है कि उन्होंने सिर्फ नाम के वास्ते खोजबीन नहीं की। और ना ही उन्होंने यह सोचा कि पौलुस के साथ बस एक-दो छोटी चर्चा करने के बाद, वे किसी ठोस नतीजे पर पहुँच जाएँगे।

इसके अलावा, ध्यान दीजिए कि बिरीया के लोगों ने “बड़ी उत्सुकता से वचन को ग्रहण किया” था। यह दिखाता है कि उन्होंने किस रवैए के साथ शास्त्र का अध्ययन किया। वे आँख मूँदकर सभी बातों पर यकीन करनेवाले नहीं थे और ना ही वे मीन-मेख निकालनेवाले थे। उन्होंने पौलुस की बातों में नुक्स निकालने की कोशिश नहीं की, जो परमेश्‍वर के इंसानी नुमाइंदों में से एक था।

एक और बात पर गौर कीजिए। वह यह कि बिरीया के लोग, मसीही धर्म के बारे में पहली बार सुन रहे थे। उन्हें पौलुस का संदेश अच्छा तो लगा, मगर साथ ही इस पर यकीन करना उन्हें थोड़ा मुश्‍किल भी लगा होगा। लेकिन इस वजह से उन्होंने संदेश को ठुकरा नहीं दिया। इसके बजाय, उन्होंने शास्त्र में बड़े ध्यान से खोजबीन करके देखा कि ‘पौलुस ने जो कहा, वह ऐसा ही है या नहीं।’ एक और गौरतलब बात है कि बिरीया और थिस्सलुनीके में जिन लोगों ने मन लगाकर शास्त्र का अध्ययन किया था, वे विश्‍वासी बन गए। (प्रेरितों 17:4, 12) वे हार मानकर इस नतीजे पर नहीं पहुँचे कि सच्चाई को तलाशना नामुमकिन है। इसके बजाय, उन्होंने सच्चे धर्म का पता लगा ही लिया।

सच्चाई का लोगों पर क्या असर होता है

बिरीया के लोगों की तरह, जब एक इंसान को सच्चाई मिल जाती है, तो वह बड़े जोश के साथ दूसरों को इस बारे में बताने लगता है। मगर कुछ लोगों को शायद यह बात रास न आए। वे शायद उससे कहें कि यह कबूल करना कि सभी धर्म सही हैं, नम्रता दिखाना है। लेकिन एक बार जब एक इंसान को बाइबल की सच्चाई मिल जाती है, तो उसमें दृढ़ विश्‍वास पैदा होता है। वह इस कशमकश में नहीं रहता कि सच्चाई की तलाश करना मुमकिन है या नहीं। और ना ही वह यह सोचता है कि सभी धर्म उद्धार की ओर ले जाते हैं। लेकिन सच्चाई को ढूँढ़ने का पहला कदम है, दिल से खोजबीन करना। और इसके लिए बेशक नम्रता के गुण की ज़रूरत पड़ती है।

यहोवा के साक्षियों ने इसी तरीके से खोजबीन की है। इसलिए वे मानते हैं कि उन्होंने सच्चा धर्म पा लिया है। अब वे आपको भी न्यौता देते हैं कि आप शास्त्र की जाँच करें, ताकि आप यह जान सकें कि सच्चे धर्म के माननेवाले कौन हैं। हालाँकि इसके लिए एक आसान-सी पड़ताल सूची तो नहीं तैयार की जा सकती, फिर भी इस पेज पर दिए बक्स में पहली सदी के मसीहियों के बारे में जो जानकारी दी गयी है, उसकी मदद से आप सच्चे धर्म की तलाश शुरू कर सकते हैं।

यहोवा के साक्षी, सभी को मुफ्त में बाइबल अध्ययन करने का न्यौता देते हैं। इसलिए अगर आप उनके न्यौते को कबूल करें, तो आप इस बारे में गहराई से जाँच कर पाएँगे कि बाइबल असल में क्या सिखाती है। बाइबल का यह ज्ञान हासिल करने के बाद, आप सच्चे धर्म की तलाश करने में कामयाब हो जाएँगे। (g 3/08)

[पेज 27 पर बक्स]

सच्चे धर्म की खासियतें

पहली सदी के मसीहियों के कामों और शिक्षाओं पर एक नज़र:

वे परमेश्‍वर के वचन को अपना मार्गदर्शक मानते थे।—2 तीमुथियुस 3:16; 2 पतरस 1:21.

वे सिखाते थे कि यीशु, परमेश्‍वर का बेटा है; वह, परमेश्‍वर से बिलकुल अलग और उसके अधीन है।—1 कुरिन्थियों 11:3; 1 पतरस 1:3.

वे सिखाते थे कि भविष्य में मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा।—प्रेरितों 24:15.

वे अपने आपसी प्यार के लिए मशहूर थे।—यूहन्‍ना 13:34, 35.

वे अपने-अपने तरीके से उपासना नहीं करते थे। इसके बजाय, उन्हें अलग-अलग कलीसियाओं में संगठित किया जाता था। कलीसियाओं के अध्यक्ष और एक ही जगह पर मौजूद प्राचीनों का समूह, सभी मसीहियों में एकता बनाए रखते थे। ये सभी अध्यक्ष और प्राचीन, यीशु को अपना मुखिया मानते थे।—प्रेरितों 14:21-23; 15:1-31; इफिसियों 1:22; 1 तीमुथियुस 3:1-13.

वे जोशो-खरोश के साथ ऐलान करते थे कि सिर्फ परमेश्‍वर का राज्य ही इंसान की समस्याओं का हल है।—मत्ती 24:14; 28:19, 20; प्रेरितों 1:8.

[पेज 25 पर तसवीर]

लोग कैसे पता लगा सकते थे कि यिर्मयाह सच्चा नबी है, जबकि दूसरे उसके बिलकुल उलट बात कह रहे थे?

[पेज 26,27 पर तसवीर]

पहली सदी में, बिरीया के लोगों ने पौलुस का संदेश सुना और फिर शास्त्र में जाँच करके देखा कि उसने जो कहा, वह सच है कि नहीं

[पेज 26,27 पर तसवीर]

बाइबल का गहरा अध्ययन करने से आप सच्चे धर्म की तलाश कर पाएँगे