किशोर बच्चों की परवरिश करने में समझ की अहमियत
किशोर बच्चों की परवरिश करने में समझ की अहमियत
मान लीजिए कि आप घूमने के लिए कहीं विदेश गए हैं, मगर आपको वहाँ की भाषा नहीं आती। ऐसे में वहाँ के लोगों से बातचीत करना बेशक आपके लिए मुश्किल होगा, मगर नामुमकिन नहीं। आप या तो एक अनुवादक के ज़रिए उनसे बात कर सकते हैं या फिर एक ऐसी किताब खरीद सकते हैं, जिससे आप उस भाषा की कुछ बुनियादी बातें बोलना सीख सकें।
किशोर बच्चों के माता-पिता कभी-कभी खुद को कुछ इस तरह के हालात में पाते हैं। बच्चों का व्यवहार विदेशी भाषा की तरह है, जिसे समझना मुश्किल तो है मगर नामुमकिन नहीं। ऐसे में माता-पिताओं को क्या करना चाहिए? उन्हें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि जवानी के इस दौर में उनके बच्चों पर क्या गुज़र रही है। यह एक ऐसा दौर है, जो माँ-बाप और बच्चों, दोनों के लिए खुशियाँ भी लाता है और उलझनें भी।
बच्चों के व्यवहार की वजह
जब एक जवान अपने माँ-बाप से थोड़ी आज़ादी पाने की ख्वाहिश करता है, तो इसका हमेशा यह मतलब नहीं होता कि वह एक बागी बन गया है। याद रखिए कि बाइबल भी कहती है कि वक्त आने पर ‘पुरुष अपने माता पिता को छोड़ देगा।’ (उत्पत्ति 2:24) जब बच्चे बड़े होते हैं, तो उन पर कई भारी ज़िम्मेदारियाँ आती हैं। और इन ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए वे तभी तैयार हो पाएँगे, जब उन्हें फैसले लेने का कुछ तजुरबा होगा।
ध्यान दीजिए कि पिछले लेख में बताए बच्चों के व्यवहार की क्या वजह हो सकती है।
ब्रिटेन की रहनेवाली लिआ अपना दुःख ज़ाहिर करते हुए कहती है: “मेरा बेटा अचानक बड़ा ज़िद्दी बन गया और हमारे अधिकार पर उँगली उठाने लगा।”
किशोर लड़के-लड़कियाँ, बच्चों की तरह बार-बार एक ही सवाल करते हैं: “क्यों?” मगर बच्चों की तरह वे एक छोटे-से जवाब से संतुष्ट नहीं होते। आखिर इसकी वजह क्या हो सकती है? बाइबल के एक लेखक, पौलुस ने लिखा: ‘जब मैं बच्चा था तब मुझमें बच्चे की सी समझ थी।’ (1 कुरिन्थियों 13:11, आर.ओ.वी.) जी हाँ, जैसे-जैसे नौजवानों की सोचने-समझने की काबिलीयत बढ़ती है, वैसे-वैसे उन्हें और भी खुलकर समझाने की ज़रूरत पड़ती है। नतीजा, वे अपनी ‘ज्ञानेन्द्रियों’ को भले-बुरे में फर्क करने के लिए पक्का कर पाते हैं।—इब्रानियों 5:14.
घाना का रहनेवाला जॉन कहता है: “हमारी बेटियाँ अपने रंग-रूप को लेकर कुछ ज़्यादा ही फिक्रमंद रहने लगीं।”
जवान होने की एक उम्र होती है। मगर कुछ बच्चे उम्र से पहले ही जवान होने लगते हैं, तो कुछ उसके बाद होते हैं। इस दौरान उनके शरीर में तेज़ी से बदलाव होने लगते हैं, जिस वजह से बहुत-से नौजवान अपने रंग-रूप को लेकर कुछ ज़्यादा ही फिक्रमंद रहने लगते हैं। इस उम्र में जहाँ कुछ लड़कियों को अपना बड़ा होना अच्छा लगता है, वहीं कुछ को अपना बड़ा होना बिलकुल भी नहीं भाता। और कुछ ऐसी भी हैं, जो इस बात से खुश भी होती हैं और परेशान भी। इसके अलावा, चेहरे पर से कील-मुँहासे दूर करने या आईने के सामने सजने-सँवरने में जवान लोग इतने घंटे बिता देते हैं कि वे अपनी पढ़ाई पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाते।
फिलिपाईन्स का रहनेवाला डैनियल कहता है: “हमारे बच्चे हमसे कई बातें छिपाने लगे और वे अकेले में ज़्यादा वक्त बिताना
चाहते थे। उन्हें अकसर हमसे ज़्यादा अपने दोस्तों के संग रहना पसंद था।”बातें छिपाना खतरनाक हो सकता है। (इफिसियों 5:12) मगर अकेले में कुछ वक्त बिताना फायदेमंद हो सकता है। यीशु इस बात से अच्छी तरह वाकिफ था, इसलिए वह “किसी सुनसान जगह एकान्त में” वक्त बिताने के मौके तलाशता था। (मत्ती 14:13) जैसे-जैसे जवान बड़े होते हैं, उनमें भी अकेले में कुछ वक्त बिताने की ख्वाहिश होती है। साथ ही, वे यह भी चाहते हैं कि बड़े उनकी इस ख्वाहिश की कदर करें। अगर जवानों को अकेले में कुछ वक्त बिताने दिया जाए, तो इस दौरान वे मामलों पर गहराई से सोचना सीख सकते हैं। यह एक ऐसी काबिलीयत है, जो उनके बड़े होने पर काफी काम आ सकती है।
उसी तरह, जैसे-जैसे जवान बड़े होते हैं, वे दोस्ती करना भी सीखते हैं। यह सच है कि “बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (1 कुरिन्थियों 15:33) लेकिन बाइबल की यह बात भी सौ-फीसदी सच है कि “मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।” (नीतिवचन 17:17) सही लोगों के साथ दोस्ती करना और उसे बनाए रखना, एक ऐसी अहम काबिलीयत है जो सालों-साल काम आ सकती है।
जब माँ-बाप ऊपर बताए हालात में से किसी एक का सामना करते हैं, तो उन्हें समझ से काम लेने की ज़रूरत है। इस तरह, वे अपने किशोर बच्चों के व्यवहार का गलत मतलब निकालने से दूर रहेंगे। मगर समझ के साथ-साथ माता-पिताओं को बुद्धि से भी काम लेने की ज़रूरत है। क्योंकि बुद्धि का मतलब है, हालात का इस तरह से सामना करना जिससे बढ़िया-से-बढ़िया नतीजा निकले। किशोर बच्चों के माता-पिता इस काबिलीयत का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? (g 6/08)
[पेज 21 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
जैसे-जैसे बच्चों की सोचने-समझने की काबिलीयत बढ़ती है, उन्हें घर के नियमों के बारे में और भी खुलकर समझाने की ज़रूरत है