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किशोर बच्चों के हैरान-परेशान माँ-बाप

किशोर बच्चों के हैरान-परेशान माँ-बाप

किशोर बच्चों के हैरान-परेशान माँ-बाप

एक दिन जब स्कॉट और सैन्ड्रा * की 15 साल की बेटी घर आयी, तो उसे देखकर दोनों का चेहरा फक पड़ गया। उनकी बेटी के बालों का रंग सुनहले से लाल हो गया था! इसके बाद, बेटी से जो बातचीत हुई, उससे तो वे और भी हक्के-बक्के रह गए।

“यह सब तुमने किससे पूछकर किया?”

“किसी से नहीं।”

“तुमने एक बार भी हमसे पूछने की ज़रूरत नहीं समझी?”

“क्या फायदा, आप लोग मना कर देते!”

स्कॉट और सैन्ड्रा फौरन इस बात की हामी भरेंगे कि बच्चे जब जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते हैं, तो इससे न सिर्फ बच्चों की ज़िंदगी में बल्कि माँ-बाप की ज़िंदगी में भी उथल-पुथल मच जाती है। दरअसल, जब बच्चे जवान होने लगते हैं, तो उनमें अचानक बड़े-बड़े बदलाव आने लगते हैं, जिसके लिए माँ-बाप बिलकुल भी तैयार नहीं होते। कनाडा में रहनेवाली एक माँ, बारब्रा कहती है: “हमारी बेटी रातों-रात बदल गयी। इसलिए मैं सोच में पड़ जाती थी कि ‘आखिर, मेरी लाडली को हुआ क्या है?’ यह ऐसा था मानो जब हम सो रहे थे, तब किसी ने आकर उसे उठा लिया और उसकी जगह दूसरी लड़की को छोड़ दिया!”

ऐसी भावनाओं से गुज़रने में बारब्रा अकेली नहीं है, ज़्यादातर माँ-बाप ऐसा ही महसूस करते हैं। आइए देखें कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहनेवाले माता-पिताओं ने सजग होइए! को क्या बताया।

“जब मेरा बेटा करीब 17 साल का हुआ, तो वह अचानक बड़ा ज़िद्दी बन गया और हमारे अधिकार पर उँगली उठाने लगा।”—लीआ, ब्रिटेन।

“हमारी बेटियाँ अपने रंग-रूप को लेकर कुछ ज़्यादा ही फिक्रमंद रहने लगीं।”—जॉन, घाना।

“मेरा बेटा अपने फैसले खुद करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि कोई उसे बताए कि उसे क्या करना है और क्या नहीं।”—सेलीना, ब्राज़ील।

“हमारी बेटी चाहती थी कि हम उसे गले लगाना और उसे दुलार करना बंद कर दें। क्योंकि अब उसे ये बातें अच्छी नहीं लगती थीं।”—एन्ड्रू, कनाडा।

“हमारे बेटे और भी तुनक मिज़ाज़ के हो गए। हमारे फैसले मानने के बजाय, वे उन पर सवाल करने लगे और हमसे हुज्जत करने लगे।”—स्टीव, ऑस्ट्रेलिया।

“मेरी बेटी ने अपने दिल की बात बताना बंद कर दिया। वह अपनी ही दुनिया में खोयी रहती थी। और जब मैं उसके दिल को टटोलने की कोशिश करती, तो वह मुझसे खफा हो जाती थी।”—जोएन, मेक्सिको।

“हमारे बच्चे हमसे कई बातें छिपाने लगे और वे अकेले में ज़्यादा वक्‍त बिताना चाहते थे। उन्हें अकसर हमसे ज़्यादा अपने दोस्तों के संग रहना पसंद था।”—डैनियल, फिलिपाईन्स।

अगर आपका बच्चा किशोर उम्र का है, तो शायद आपको भी अपने बच्चों से यही शिकायत हो। लेकिन हिम्मत रखिए, आप अपने घर में रह रहे “अजनबी” यानी अपने किशोर बेटे या बेटी को समझ सकते हैं। इसमें बाइबल आपकी मदद कर सकती है। कैसे?

बुद्धि और समझ

बाइबल का एक नीतिवचन कहता है: “बुद्धि को प्राप्त कर, समझ को भी प्राप्त कर।” (नीतिवचन 4:5) अपने किशोर बच्चे के साथ व्यवहार करते वक्‍त, आपको इन दोनों गुणों की ज़रूरत है। अगर आप समझ से काम लें, तो आप न सिर्फ उसके व्यवहार को देखेंगे बल्कि यह भी जान सकेंगे कि उसके दिल पर क्या बीत रही है। आपको बुद्धि की भी ज़रूरत है, जिससे कि आप अपने किशोर बच्चे को एक ज़िम्मेदार इंसान बनने में लगातार मदद दे सकें।

ऐसा मत सोचिए कि आपके और आपके बच्चे के बीच बढ़ती दरार का मतलब यह है कि उसे आपकी कोई ज़रूरत नहीं। सच तो यह है कि किशोर बच्चे जब अपनी ज़िंदगी के सबसे मुश्‍किल दौर से गुज़रते हैं, तो उन्हें न सिर्फ अपने माँ-बाप के मार्गदर्शन की ज़रूरत पड़ती है, बल्कि वे चाहते भी हैं कि उनके माँ-बाप उन्हें सही राह दिखाएँ। ऐसा करने में समझ और बुद्धि के गुण आपकी मदद कैसे कर सकते हैं? (g 6/08)

[फुटनोट]

^ इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।