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जब मेरा भाई या बहन खुदकुशी कर लेता/ती है, तो मैं क्या करूँ?

जब मेरा भाई या बहन खुदकुशी कर लेता/ती है, तो मैं क्या करूँ?

युवा लोग पूछते हैं

जब मेरा भाई या बहन खुदकुशी कर लेता/ती है, तो मैं क्या करूँ?

कैरन की ज़िंदगी उसी दिन बदल गयी थी, जिस दिन उनके पिता ने उसे एक बुरी खबर दी। वे बस इतना ही कह पाए: “शीला हमें छोड़कर चली गयी।” शीला, कैरन की छोटी बहन थी, जिसने आत्म-हत्या की थी। इसके बाद, बाप-बेटी दोनों एक-दूसरे से लिपटकर खूब रोए। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर शीला ने ऐसा क्यों किया। *

किसी नौजवान की मौत पर अकसर नाते-रिश्‍तेदार और दोस्त उसके माता-पिता को दिलासा देते हैं, मगर वे उसके भाई-बहनों को दिलासा देना भूल जाते हैं। वे मरनेवाले के भाई-बहनों से यह तो पूछते हैं कि “अब तुम्हारे माता-पिता कैसे हैं?” मगर वे उनसे यह नहीं पूछते कि “तुम कैसे हो?”

एक खोज से पता चला है कि किसी जवान की मौत का उसके छोटे भाई-बहनों पर ज़बरदस्त असर होता है। डॉ. पी. गिल व्हाइट ने अपनी किताब, भाई या बहन की मौत के गम से उबरना (अँग्रेज़ी) में लिखा: “परिवार में एक बच्चे की मौत से दूसरे बच्चों की सेहत, व्यवहार, स्कूल की पढ़ाई, आत्म-सम्मान और विकास पर बहुत ही बुरा असर होता है।”

मगर सिर्फ छोटे बच्चों पर ही नहीं, बड़े बच्चों पर भी उनके भाई या बहन की मौत का गहरा असर होता है। कैरन, जिसका ज़िक्र लेख की शुरूआत में किया गया है, 22 साल की थी, जब उसकी बहन शीला ने अपनी जान ली। मगर आज भी वह उसकी याद में आँसू बहाती है और कभी-कभी तो यह गम उसके लिए बरदाश्‍त से बाहर हो जाता है। वह कहती है: “मैं यह तो नहीं कह सकती कि मेरे माँ-बाप से ज़्यादा मुझे अपनी बहन को खोने का गम है। मगर हाँ, उन्होंने जिस तरह अपने दुःख पर काबू पाया, मैं उतनी अच्छी तरह नहीं कर पायी हूँ।”

क्या आपने भी कैरन की तरह अपने किसी भाई या बहन को मौत में खोया है? अगर हाँ, तो आप शायद भजनहार दाऊद की तरह महसूस करें, जिसने लिखा: “मैं दुख से झुक कर बहुत नीचे दब गया हूं, और दिन भर विलाप करता फिरता हूँ।” (भजन 38:6, NHT) आप इस गम को कैसे सह सकते हैं?

दोष की भावना

जब आपका भाई या बहन खुदकुशी करता/ती है, तो आप पर दोष की भावना हावी हो सकती है। आप शायद मन-ही-मन कहें: ‘काश! मैंने यह किया होता या वह किया होता, तो आज वह ज़रूर ज़िंदा होता/ती।’ यहाँ तक कि आपको लग सकता है कि उसने आपकी वजह से आत्म-हत्या की। क्रिस भी ऐसा ही महसूस करता था। वह 21 साल का था, जब उसके 18 साल के भाई ने खुदकुशी की। वह कहता है: “मेरे भाई से बात करनेवाला आखिरी शख्स मैं ही था। इसलिए मुझे लगा कि कम-से-कम मुझे पता होना चाहिए था कि उसके मन में क्या चल रहा है। मैं बार-बार खुद से यही कहता था कि काश, मैं उसका सच्चा दोस्त होता, तो वह शायद अपने दिल की बात मुझे बताता।”

क्रिस तो इस बात से खुद को और भी कसूरवार मानने लगा क्योंकि उसकी अपने भाई से नहीं पटती थी। वह दुःख के साथ कहता है: “मरने से पहले मेरे भाई ने एक नोट लिखा था। उसमें उसने कहा कि मैं और भी अच्छा भाई बन सकता था। मैं जानता हूँ कि उसके कहने का वह मतलब नहीं था, क्योंकि जिस वक्‍त उसने यह बात लिखी उस वक्‍त वह मायूसी के दौर से गुज़र रहा था। मगर फिर भी उन शब्दों की मार से आज भी मैं लहूलुहान हो जाता हूँ।” अकसर एक व्यक्‍ति को दोष की भावना तब और आ घेरती है, जब वह याद करता है कि अपने भाई या बहन की मौत से पहले उसके साथ उसका ज़बरदस्त झगड़ा हुआ था। डॉ. व्हाइट ने, जिनका ज़िक्र पहले भी किया है, सजग होइए! को बताया: “अपने भाई या बहन की मौत पर शोक करनेवाले कई जवानों ने मुझे बताया है कि मरनेवाले के साथ महीनों या सालों पहले हुए झगड़े की याद अब भी रह-रहकर उन्हें तड़पाती है।”

अगर आप अपने भाई या बहन की आत्म-हत्या के लिए खुद को कसूरवार मानते हैं, तो अपने आपसे पूछिए: ‘क्या दुनिया में ऐसा एक भी इंसान है, जिसका दूसरे इंसान की ज़िंदगी पर पूरा काबू हो?’ कैरन कहती है: “एक इंसान अपने जिस दर्द से निजात पाने की कोशिश करता है और इसके लिए वह जो भयानक तरीका अपनाता है, उसमें आप कुछ नहीं कर सकते।”

लेकिन तब क्या जब लाख कोशिशों के बावजूद आप उन कड़वी बातों को नहीं भुला पाते, जो आपने बिना सोचे-समझे अपने भाई या बहन से कहे थे? इस मामले में बाइबल आपको एक सही नज़रिया रखने में मदद दे सकती है। यह कहती है: “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं: जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है।” (याकूब 3:2; भजन 130:3) वाकई, अगर आप बार-बार उन्हीं वाकयों के बारे में सोचें, जिनमें आपने अपने भाई या बहन को बुरा-भला कहा था या उनके साथ बुरा बर्ताव किया था, तो इससे आपका दुःख हलका होने के बजाय और बढ़ेगा। ये सारी यादें चाहे कितनी ही दिल दुखानेवाली क्यों न हों, मगर सच तो यह है कि आप अपने भाई या बहन की मौत के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं। *

गम से उबरना

अपने अज़ीज़ की मौत पर सभी इंसान एक जैसा मातम नहीं मनाते। कुछ लोग दूसरों के सामने रोते हैं और ऐसा करना गलत नहीं। बाइबल बताती है कि जब दाऊद के बेटे अम्नोन की मौत हुई, तब दाऊद “बिलख बिलख कर रोने लगा।” (2 शमूएल 13:36) यीशु ने भी जब अपने दोस्त लाजर की मौत पर लोगों को रोते देखा, तो उसके “आंसू बहने लगे।”—यूहन्‍ना 11:33-35.

दूसरी तरफ, कुछ ऐसे भी हैं जो फौरन मातम नहीं मनाते, खासकर तब जब उनके अज़ीज़ की मौत अचानक होती है। कैरन अपनी बहन की मौत के बारे में याद करते हुए कहती है: “मैं पूरी तरह सुन्‍न हो गयी थी मानो मेरे शरीर में जान ही ना हो। कुछ समय के लिए रोज़मर्रा के काम करना मेरे लिए नामुमकिन हो गया था।” जब किसी का भाई या बहन खुदकुशी करता/ती है, तो उसका इस तरह महसूस करना आम बात है। डॉ. व्हाइट ने सजग होइए! को बताया: “जब कोई आत्म-हत्या करता है, तो इससे उसके घरवालों को गहरा सदमा पहुँचता है। ऐसे में शोक करना तो बाद की बात है, सबसे पहले उन्हें इस सदमे से उबरने की ज़रूरत होती है। मगर देखा गया है कि कुछ मनोरोग-चिकित्सक आत्म-हत्या करनेवालों के घरवालों को रोने और शोक मनाने की ज़बरदस्ती करते हैं, जबकि वे इसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं होते। क्योंकि अपने अज़ीज़ के मरने की खबर पाते ही वे पूरी तरह सुन्‍न हो जाते हैं।”

हम समझ सकते हैं कि अपने भाई या बहन की मौत को कबूल करने में आपको वक्‍त लगेगा। क्रिस कहता है: “एक टूटे हुए फूलदान को चाहे कितनी भी अच्छी तरह से क्यों न जोड़ा जाए, मगर थोड़े-से दबाव में उसके फिर से ‘टूटने’ का खतरा रहता है। हमारा हाल भी उस फूलदान की तरह है, अब हम ज़्यादा तनाव नहीं झेल पाते।” ऐसे हालात से निपटने के लिए, आगे दिए सुझावों को लागू कीजिए:

बाइबल से दिलासा देनेवाले कुछ वचनों की फेहरिस्त बनाइए और उसे दिन में कम-से-कम एक बार ज़रूर पढ़िए।—भजन 94:19.

किसी ऐसे व्यक्‍ति से अपने दिल की बात कहिए, जो आपसे हमदर्दी जता सके। ऐसा करने से आप अपने दिल का बोझ हलका कर सकेंगे।—नीतिवचन 17:17.

◼ मरे हुओं को दोबारा ज़िंदा करने का जो वादा बाइबल में दिया गया है, उस पर गहराई से सोचिए।—यूहन्‍ना 5:28, 29.

इसके अलावा, कुछ समय के लिए अपनी भावनाओं को लिख लेने से भी आपको अपने दुःख से उबरने में मदद मिल सकती है। इसके लिए क्यों न आप नीचे दिए गए बक्स का इस्तेमाल करें?

इस बात का यकीन रखिए कि “परमेश्‍वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है।” (1 यूहन्‍ना 3:20) वह इंसानों से बेहतर जानता है कि आपके भाई या बहन ने किन वजहों या हालात के चलते खुदकुशी की। यही नहीं, वह आपको भी आपसे बेहतर जानता है। (भजन 139:1-3) इसलिए भरोसा रखिए, उसे अच्छी तरह पता है कि आप पर क्या गुज़र रही है। जब कभी आपको लगता है कि आपका गम बरदाश्‍त से बाहर हो गया है, तो भजन 55:22 में दर्ज़ इन शब्दों को याद कीजिए: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।” (g 6/08)

इस बारे में सोचिए

◼ अगर आपको लगता है कि आपका गम बरदाश्‍त से बाहर हो गया है, तो आप किससे अपने दिल की बात कह सकते हैं?

◼ आप एक ऐसे जवान की मदद कैसे कर सकते हैं, जो अपने भाई या बहन की मौत के गम में डूबा हुआ है?

[फुटनोट]

^ इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।

^ यह तब भी सच है, जब किसी बीमारी से या दुर्घटना में आपके भाई या बहन की मौत हो जाती है। आप चाहे उससे कितना ही प्यार क्यों न करते हों, फिर भी आप उसे उन बातों से पूरी तरह नहीं बचा सकते, जो “समय और संयोग के वश में” हैं।—सभोपदेशक 9:11.

[पेज 31 पर बक्स]

अपनी भावनाओं को लिखने से आपको अपना गम सहने में बड़ी मदद मिल सकती है। इसलिए नीचे दिए वाक्यों को पूरा कीजिए और सवालों के जवाब दीजिए।

मेरे भाई या बहन से जुड़ी तीन मीठी यादें, जो आज भी मेरे ज़हन में ताज़ी हैं:

1 ․․․․․

2 ․․․․․

3 ․․․․․

काश! उसके जीते-जी मैं उससे ये बातें कह पाता/ती:

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आप एक ऐसे नौजवान से क्या कहेंगे, जो अपने भाई या बहन की मौत के लिए खुद को दोषी ­मानता/ती है?

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इन आयतों में से किस आयत से आपको सबसे ज़्यादा दिलासा मिलता है, और क्यों?

“यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।”—भजन 34:18.

“उस ने दुःखी को तुच्छ नहीं जाना और न उस से घृणा करता है, और न उस से अपना मुख छिपाता है; पर जब उस ने उसकी दोहाई दी, तब उसकी सुन ली।”—भजन 22:24.

“वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, [यीशु का] शब्द सुनकर निकलेंगे।”—यूहन्‍ना 5:28, 29.