परमेश्वर आपसे क्या उम्मीद करता है?
बाइबल का दृष्टिकोण
परमेश्वर आपसे क्या उम्मीद करता है?
आज हम पर बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ हैं और कभी-कभी इन्हें निभाने के लिए हमें काफी जद्दोजेहद करनी पड़ती है। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यह ज़िंदगी परमेश्वर से मिला एक तोहफा है। (भजन 36:9) तो फिर परमेश्वर हमसे उसकी सेवा में कितना समय और ताकत लगाने की उम्मीद करता है? यह जानकर हमें हौसला मिलता है कि बाइबल के मुताबिक, परमेश्वर हमसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता।
किसी और से ज़्यादा यीशु जानता था कि परमेश्वर हमसे क्या उम्मीद करता है। (मत्ती 11:27) जब यीशु से पूछा गया कि सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है, तो उसने कहा: “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।” (मरकुस 12:30) यीशु के कहने का क्या मतलब था? क्या परमेश्वर हमसे बहुत ज़्यादा की माँग कर रहा है?
परमेश्वर से अपने सारे प्राण से प्रेम करने में क्या शामिल है
परमेश्वर ने हमें बेशुमार आशीषें दी हैं। और जब हम इन आशीषों पर गौर करते हैं, तो उसके लिए हमारा प्यार बढ़ता है। अगर हमें परमेश्वर से जी-जान से प्यार है, तो यह हमें उभारेगा कि हम उसे अपना अच्छे-से-अच्छा दें। हम बिलकुल बाइबल के उस लेखक के जैसा ही महसूस करेंगे जिसने कहा: “यहोवा ने मेरे जितने उपकार किए हैं, उनका बदला मैं उसको क्या दूं?” (भजन 116:12) अगर हम परमेश्वर से जी-जान से प्यार करते हैं, तो हम अपने समय का कैसे इस्तेमाल करेंगे?
बाइबल यह नहीं बताती कि हमें हर हफ्ते परमेश्वर की भक्ति में कितने घंटे बिताने चाहिए। लेकिन वह यह ज़रूर बताती है कि हमें किन कामों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देनी चाहिए और क्यों देनी चाहिए। मिसाल के लिए, यीशु ने सिखाया कि “अनन्त जीवन” पाने के लिए परमेश्वर के बारे में ज्ञान लेना बहुत ज़रूरी है। (यूहन्ना 17:3) उसने अपने चेलों से यह भी कहा कि वे यह ज्ञान दूसरों के साथ भी बाँटें, ताकि उन्हें भी हमेशा की ज़िंदगी मिल सके। (मत्ती 28:19, 20) बाइबल यह भी हिदायत देती है कि हमें नियमित तौर पर अपने मसीही भाई-बहनों के साथ मिलते रहना चाहिए, ताकि परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत हो और हम एक-दूसरे की हौसला-अफज़ाई कर सकें। (इब्रानियों 10:24, 25) इन सभी कामों को करने में समय लगता है।
क्या परमेश्वर चाहता है कि हम अपना सब काम-धाम छोड़कर चौबीसों घंटे उसकी भक्ति करते रहें और सन्यासी बन जाएँ। बिलकुल नहीं! हमें ज़िंदगी की रोज़मर्रा की बातों पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है। जैसे कि बाइबल परिवार के मुखियाओं को निर्देश देती है कि उन्हें अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करना चाहिए और आगे कहती है: “यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह ... अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।”—1 तीमुथियुस 5:8.
परमेश्वर ने इंसान को इस काबिलीयत के साथ बनाया है कि वह ज़िंदगी का पूरा लुत्फ उठा सके। इसलिए अगर हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ वक्त गुज़ारते हैं और बढ़िया खाने और सही किस्म के मनोरंजन का मज़ा लेते हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं। सभोपदेशक 3:12, 13.
राजा सुलैमान ने लिखा: “मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं; और यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे।”—यहोवा परमेश्वर हमारी हदों को भी जानता है और “उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:14) बाइबल खुद कहती है कि हमें आराम की ज़रूरत है। यीशु के चेले जब काम करके थक गए थे, तो यीशु ने उनसे कहा कि “एकान्त में चलकर कुछ देर विश्राम” कर लो।—मरकुस 6:31, NHT.
तो फिर परमेश्वर को भानेवाली ज़िंदगी जीने का मतलब यह नहीं कि हम सिर्फ उसकी भक्ति में लगे रहें। इसके बजाय ऐसी ज़िंदगी जीने में और भी कई काम शामिल हैं। लेकिन हमें एक बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए, वह यह कि हमारे सभी कामों में परमेश्वर के लिए हमारा प्यार ज़ाहिर हो, फिर चाहे वे उपासना से सीधे-सीधे जुड़े हों या नहीं। जैसा कि 1 कुरिन्थियों 10:31 में भी लिखा है, “तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो।”
सही कामों को पहली जगह देने में कामयाब होइए
क्या आपको लगता है कि परमेश्वर की उपासना से जुड़े कामों को ज़िंदगी में पहली जगह देना नामुमकिन है या आपके बस के बाहर है? यह बात सच है कि परमेश्वर हमसे जो उम्मीद करता है वैसा करने के लिए हमें शायद अपनी ज़िंदगी में कुछ फेरबदल करना पड़े। जो समय पहले हम दूसरे कामों में लगाते थे, शायद उसे अब परमेश्वर की उपासना से जुड़े कामों में लगाना पड़े। मगर यकीन मानिए, हमसे प्यार करनेवाले सिरजनहार ने हमसे ऐसी किसी चीज़ की माँग नहीं की है, जो हमारे लिए नामुमकिन हो। दरअसल देखा जाए तो वह हमें उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए बेहिसाब मदद देता है। अगर हम “उस शक्ति” पर भरोसा रखें “जो परमेश्वर देता है”, तो हम कामयाब हो सकते हैं।—1 पतरस 4:11.
उपासना से जुड़े कामों को करने के लिए अपने शेड्यूल में फेरबदल करना शायद आपको थोड़ा मुश्किल लगे। ऐसे में, वक्त निकालकर “प्रार्थना के सुननेवाले” यहोवा परमेश्वर से बार-बार बिनती कीजिए। (भजन 65:2) प्रार्थना में आप अपनी किसी भी उलझन के बारे में परमेश्वर को बता सकते हैं, क्योंकि आपको मालूम है कि ‘उसको आपकी फिक्र है।’ (1 पतरस 5:7, हिन्दुस्तानी बाइबल) राजा दाऊद ने प्रार्थना में कहा: “मुझे सिखा कि मैं तेरी इच्छा कैसे पूरी करूं, क्योंकि तू मेरा परमेश्वर है।” (भजन 143:10, NHT) दाऊद की तरह आप भी ज़रूरी फेरबदल करने के लिए परमेश्वर से मदद माँग सकते हैं।
बाइबल में यह प्यार-भरा न्यौता दिया गया है: “परमेश्वर के निकट आओ, तो वह भी तुम्हारे निकट आएगा।” (याकूब 4:8) जब आप उन कामों में हिस्सा लेना शुरू करेंगे जिनसे परमेश्वर खुश होता है, जैसे कि बाइबल का अध्ययन करना और मसीही सभाओं में हाज़िर होना, तो आप परमेश्वर के और भी करीब आएँगे। बदले में वह आपको उसकी सेवा में आगे बढ़ने के लिए हिम्मत देगा।
जेलेना की मिसाल लीजिए, जो यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन कर रही है। उपासना से जुड़ी बातों को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देने की खुद की कोशिशों के बारे में वह कहती है: “मेरे लिए यह आसान नहीं रहा है।” लेकिन फिर वह कहती है: “जब एक बार मैंने मसीही सभाओं में जाना शुरू किया, तो मुझे बाइबल की बातों को लागू करने की हिम्मत मिली। दूसरों ने भी इस मामले में मेरी काफी मदद की।” परमेश्वर की सेवा से मिलनेवाली आशीषों का जब हम अनुभव करते हैं, तो हमें उसकी सेवा को पहली जगह देने के लिए और भी हौसला मिलता है। (इफिसियों 6:10) जेलेना कहती है, “अपने पति के साथ मेरा रिश्ता और भी अच्छा हो गया है और जिस तरह से मैं अपने बच्चों को अनुशासन देती हूँ, उसमें भी सुधार आया है।”
यह सच है कि मौजूदा ज़िंदगी में हमें काफी तनाव झेलने पड़ते हैं। लेकिन यहोवा की पवित्र शक्ति हमारी मदद करेगी और हमें उभारेगी कि हम उसकी सेवा करने के लिए ‘समय मोल’ (NW) लें और ज़रूरी कामों को ज़िंदगी में पहली जगह दें। (इफिसियों 3:16; 5:15-17) जैसा कि यीशु ने कहा, “जो मनुष्य से नहीं हो सकता, वह परमेश्वर से हो सकता है।”—लूका 18:27. (g 4/08)
क्या आपने कभी सोचा है?
◼ आपको अपनी ज़िंदगी में परमेश्वर की मरज़ी को पहली जगह क्यों देनी चाहिए? —भजन 116:12; मरकुस 12:30.
◼ परमेश्वर आपसे किन कामों में हिस्सा लेने की उम्मीद करता है? —मत्ती 28:19, 20; यूहन्ना 17:3; इब्रानियों 10:24, 25.
◼ परमेश्वर को खुश करने के लिए आप अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बातों को पहली जगह देने में कैसे कामयाब हो सकते हैं?—इफिसियों 5:15-17; याकूब 4:8.
[पेज 14 पर तसवीर]
परमेश्वर को खुश करने के लिए ज़रूरी है कि हम उपासना से जुड़े कामों और दूसरे कामों में सही तालमेल बिठाएँ