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क्या अधिकारियों को आदर देने के लिए उपाधियों का इस्तेमाल करना सही है?

क्या अधिकारियों को आदर देने के लिए उपाधियों का इस्तेमाल करना सही है?

बाइबल का दृष्टिकोण

क्या अधिकारियों को आदर देने के लिए उपाधियों का इस्तेमाल करना सही है?

पहली सदी के मसीही जब अपने रोज़मर्रा के काम करते थे या परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी सुनाते थे, तो उनकी मुलाकात कई सरकारी अधिकारियों से होती थी। इनमें से कुछ अधिकारी कम ओहदे के होते थे, तो कुछ ऊँचे ओहदे के। उसी तरह, यीशु के चेले भी समाज के अलग-अलग तबके से थे और उनका पेशा भी एक-दूसरे से अलग था। मगर आपस में बातचीत करते वक्‍त वे कभी-भी किसी उपाधि का इस्तेमाल नहीं करते थे। लेकिन उस ज़माने में, बड़े-बड़े अधिकारियों को आदर देने के लिए उपाधियों का इस्तेमाल करना आम था। जैसे उस समय के रोमी सम्राट को “महाराजाधिराज” कहा जाता था।—प्रेरितों 25:21.

तो फिर, यीशु के चेले जब सरकारी अफसरों के सामने जाते थे, तब उन्हें आदर देने के लिए क्या वे उपाधियों का इस्तेमाल करते थे? क्या आज हमें उपाधियों का इस्तेमाल करना चाहिए?

आदर देने का मतलब बुरे चालचलन को सही करार देना नहीं है

प्रेरित पौलुस ने अपने साथी मसीहियों को यह सलाह दी: “हर एक का हक्क चुकाया करो, . . . जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।” (रोमियों 13:7) सरकारी अधिकारियों का आदर करने में उपाधियों का इस्तेमाल करना भी शामिल है। आज भी “महामहिम” या “माननीय” जैसी उपाधियाँ इस्तेमाल करने का दस्तूर है। लेकिन कुछ लोग यह सवाल पूछ सकते हैं, ‘अगर एक अधिकारी का चालचलन अच्छा नहीं है या वह भ्रष्ट है, तो भला मैं उसे “माननीय” कहकर आदर कैसे दे सकता हूँ?’

कई सरकारी अफसर अपनी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाते हैं, मगर सभी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। फिर भी, बाइबल हमें उकसाती है कि हम “प्रभु के लिये” राजाओं और हाकिमों के अधीन रहें। (1 पतरस 2:13, 14) अगर हम यह कबूल करें कि परमेश्‍वर की इजाज़त से ही एक इंसान को अधिकारी का पद मिलता है, तो हम उस अधिकारी को आदर देने के लिए उभारे जाएँगे।—रोमियों 13:1.

एक सरकारी अधिकारी को आदर दिया जाना चाहिए या नहीं, यह उसके चालचलन से तय नहीं होता। दूसरी तरफ, उसे आदर देने के लिए किसी उपाधि का इस्तेमाल करने का यह मतलब नहीं कि हम उसके बुरे चालचलन को सही करार दे रहे हैं। यह बात अच्छी तरह समझने के लिए आइए प्रेरित पौलुस की ज़िंदगी में हुए एक वाकये पर गौर करें।

पौलुस ने उपाधियों का इस्तेमाल किया

प्रेरित पौलुस जब यरूशलेम में था, तब उसे झूठे इलज़ाम पर गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद उसे यहूदिया के गवर्नर फेलिक्स के सामने पेश किया गया। फेलिक्स एक बदनाम अधिकारी था। रोमी इतिहासकार टेसिटस ने लिखा कि फेलिक्स “सोचता था कि वह चाहे जितने भी बुरे काम कर ले, वह सज़ा से बच जाएगा।” उस पर इंसाफ करने से ज़्यादा रिश्‍वत लेने की धुन सवार रहती थी। यह जानते हुए भी पौलुस, फेलिक्स का आदर करता रहा। जब पौलुस दो साल तक हिरासत में था, तब फेलिक्स अकसर उसे बुलाकर बातें किया करता था, इस उम्मीद में कि पौलुस खुद को छुड़ाने के लिए उसे घूस देगा। मगर पौलुस ने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, वह मौके का फायदा उठाकर फेलिक्स को गवाही देता रहा।—प्रेरितों 24:26.

कुछ समय बाद, फेलिक्स की जगह एक नया गवर्नर फेस्तुस आया। फेस्तुस ने कैसरिया में पौलुस के मामले के बारे में सुना। उसने यहूदी अगुवों का मन जीतने के लिए यह सुझाव दिया कि पौलुस के मुकदमे की सुनवाई यरूशलेम में हो। लेकिन पौलुस जानता था कि वहाँ उसे इंसाफ किसी भी सूरत में नहीं मिलेगा। इसलिए उसने अपने रोमी नागरिक होने का फायदा उठाकर यह कहा: “मैं कैसर की दोहाई देता हूं।”—प्रेरितों 25:11.

अब फेस्तुस इस कशमकश में पड़ गया कि वह कैसर को कैसे समझाए कि पौलुस पर क्या इलज़ाम लगाए गए हैं। लेकिन जल्द ही उसकी यह कशमकश दूर हो गयी। जब राजा अग्रिप्पा द्वितीय, फेस्तुस से मिलने आया और उसने पौलुस के मामले में दिलचस्पी दिखायी, तो फेस्तुस ने बयान तैयार करने के लिए फौरन उससे मदद माँगी। इसके अगले दिन, राजा अग्रिप्पा बड़े धूमधाम से सेनापतियों और नगर के बड़े-बड़े लोगों के साथ दरबार में आया।—प्रेरितों 25:13-23.

जब पौलुस को दरबार में लाया गया और अपनी सफाई पेश करने को कहा गया, तब उसने अपनी बात शुरू करते वक्‍त अग्रिप्पा को “हे राजा” कहा। उसने अग्रिप्पा की तारीफ में यह भी कहा कि वह यहूदियों के रीति-रिवाज़ों और वाद-विवादों में बड़ा ज्ञानी है। (प्रेरितों 26:2, 3) गौर करने लायक बात यह है कि उस वक्‍त, अग्रिप्पा का अपनी बहन के साथ नाज़ायज संबंध था और यह बात सभी जानते थे। बेशक, पौलुस भी अग्रिप्पा की बदचलनी के बारे में जानता था। इसके बावजूद, उसने अग्रिप्पा का आदर किया क्योंकि वह एक राजा था।

पौलुस जब अपने बचाव में बातें कह रहा था, तो उस दौरान फेस्तुस ने कहा: “हे पौलुस, तू पागल है”! यह सुनकर पौलुस गुस्से से भड़क नहीं उठा। इसके बजाय उसने शांति से गवर्नर को जवाब दिया और उसे “हे महाप्रतापी” कहा। (प्रेरितों 26:24, 25) पौलुस ने फेस्तुस का आदर उसके पद की वजह से किया। फिर भी, इस मिसाल से एक सवाल ज़रूर उठता है: क्या अधिकारियों को आदर देने की कोई सीमा है?

आदर दो मगर एक हद तक

सरकारों को सिर्फ कुछ हद तक अधिकार दिया गया है। यह बात रोमियों 13:1 से साफ ज़ाहिर होती है, जिसमें लिखा है: “जो अधिकार हैं, वे परमेश्‍वर के ठहराए हुए हैं।” इसलिए सरकारी अधिकारियों को आदर देने के लिए उपाधियों का इस्तेमाल करने की भी एक हद होती है। यह हद यीशु ने ठहरायी है, जब उसने अपने चेलों से कहा: “तुम रब्बी न कहलाना; क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है: और तुम सब भाई हो। और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। और स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात्‌ मसीह।”—मत्ती 23:8-10.

धर्म से जुड़ी उपाधियों और सरकारी उपाधियों में फर्क है और इसी फर्क से सरकारी अफसरों को आदर देने की हद तय होती है। पौलुस ने रोमियों 13:7 में अधिकारियों का आदर करने की जो सलाह दी, उसमें सरकारी उपाधियों का इस्तेमाल करना शामिल है, न कि धर्म से जुड़ी उपाधियों का। इसलिए जब कोई अधिकारी धर्म से जुड़ी उपाधि अपनाता है, तो एक मसीही उसका आदर तो ज़रूर करेगा, मगर बाइबल से तालीम पाया उसका विवेक उसे ऐसी उपाधियों का इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं देगा। क्योंकि उसका फर्ज़ बनता है कि ‘जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को दे।’—मत्ती 22:21. (g 9/08)

क्या आपने कभी सोचा है?

◼ यीशु के चेले, सरकारी अधिकारियों के बारे में क्या नज़रिया रखते थे?—रोमियों 13:7.

◼ क्या प्रेरित पौलुस ने सरकारी अधिकारियों को आदर देने के लिए उपाधियों का इस्तेमाल किया था? —प्रेरितों 25:11; 26:2, 25.

◼ यीशु ने किस तरह की उपाधियों का इस्तेमाल करने से मना किया था?—मत्ती 23:8-10.

[पेज 22,23 पर तसवीर]

पौलुस ने अग्रिप्पा के लिए कौन-सी उपाधि का इस्तेमाल किया?