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खतरे की घंटी?

खतरे की घंटी?

खतरे की घंटी?

द न्यू ज़ीलैंड हैरल्ड अखबार रिपोर्ट करता है, “टूवालू के एक गाँव में रहनेवाले 73 साल के वल लिसा को यह जानने के लिए वैज्ञानिक रिपोर्टों की ज़रूरत नहीं कि समुद्र का जलस्तर ऊँचा उठता जा रहा है। बचपन में वह जिन समुद्री किनारों पर खेला करता था, वे अब गायब होते जा रहे हैं। जो फसल उसके परिवार का पेट भरती थी, वह समुद्र के खारे पानी से बरबाद हो गयी। अप्रैल [2007] में एक ऐसा ज्वार उठा कि समुद्र की लहरों ने उसके घर को अपनी चपेट में ले लिया। लहरों के साथ आए पत्थरों और कूड़े-करकट ने उसका घर तबाह कर दिया। इसलिए उसे वहाँ से सबकुछ छोड़-छाड़कर जाना पड़ा।”

टूवालू द्वीप, कई द्वीपों का एक समूह है, जो समुद्र-तल से 13 फुट की ऊँचाई पर है। हैरल्ड अखबार कहता है कि धरती का तापमान भले ही वैज्ञानिकों के लिए चर्चा का विषय हो, मगर यहाँ के वासियों के लिए तो यह “रोज़ाना की बात” है। * इसकी वजह से हज़ारों लोग वहाँ के द्वीपों को छोड़कर जा चुके हैं और कई इसकी तैयारी में हैं।

ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन शहर के रहनेवाले रॉबर्ट की ही बात लीजिए। वह अपने बगीचे को हफ्ते के कुछ खास दिनों में ही सींच पाता है। वह भी पाइप से नहीं बल्कि बाल्टी में पानी लेकर। पानी की कमी की वजह से वह अपनी कार के शीशे, खिड़कियाँ और नंबर प्लेट ही साफ कर पाता है। उसकी कार पूरी तरह तभी धुल पाती है, जब वह उसे बाहर धुलवाने ले जाता है। वहाँ गंदे पानी को साफ पानी में तबदील करके इस्तेमाल किया जाता है। आखिर पानी की इतनी किल्लत क्यों? रॉबर्ट, जिस इलाके में रहता है, वहाँ ऐसा सूखा पड़ा है, जैसा पिछले सौ सालों में कभी नहीं पड़ा। दूसरे इलाकों की हालत तो और भी बुरी है। क्या ऑस्ट्रेलिया और टूवालू पर यह आफत धरती के बढ़ते तापमान की वजह से आयी है?

कुछ लोगों का अनुमान

लोगों का मानना है कि धरती के बढ़ते तापमान के ज़िम्मेदार खासकर इंसान हैं, और इसका जलवायु और पर्यावरण पर बड़ा भयानक अंजाम हो सकता है। मसलन, बर्फ पिघलने और पानी के गर्म होने से महासागर जिस तरह से फैलते जा रहे हैं, उससे समुद्र का जलस्तर खतरनाक तरीके से ऊँचा उठ सकता है। और टूवालू जैसे द्वीप, जो समुद्र-तल से ज़्यादा ऊँचाई पर नहीं हैं, वे पूरी तरह डूब सकते हैं। इसी तरह नैदरलैंड्‌स और फ्लॉरिडा के भी कई इलाके पानी में समा सकते हैं। साथ ही बेजींग, शेंघाई, कोलकाता और बाँग्लादेश के कुछ इलाकों से भी लाखों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर जाना पड़ सकता है।

बढ़ते तापमान की वजह से तूफान और बाढ़, साथ ही सूखा पड़ने का खतरा और बढ़ सकता है। हिमालय की वे हिम नदियाँ गायब होती जा रही हैं, जिनसे सात नदियों को पानी मिलता है। इसका अंजाम यह होगा कि दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी को मीठा पानी मयस्सर नहीं हो पाएगा। इसके अलावा, जानवरों की हज़ारों प्रजातियाँ भी खतरे में हैं। उनमें से एक प्रजाति है बर्फीले सफेद भालू, जो ज़्यादातर बर्फ पर रहकर शिकार करते हैं। रिपोर्टें भी इस बात को पुख्ता करती हैं कि कई भालू दुबले होते जा रहे हैं, यहाँ तक कि कुछ तो भूखे मर रहे हैं।

तापमान के बढ़ने से मच्छर, कीट और दूसरे जीव, साथ ही फफूँद तेज़ी से बढ़ने लगते हैं, जो दूर-दूर तक बीमारियाँ फैलाते हैं। बुलेटिन ऑफ एटोमिक साइंटिस्ट्‌स पत्रिका कहती है, “जलवायु में होनेवाले बदलाव की वजह से उतना ही नुकसान होता है, जितना कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से। इसका असर भले ही आज लोगों को नज़र ना आए, लेकिन इससे अगले तीस-चालीस सालों में धरती की हालत इतनी बिगड़ सकती है कि वह अपने आपको फिर कभी दुरुस्त नहीं कर पाएगी, और ना ही यह इंसानों के जीने लायक रह पाएगी।” इससे भी बुरी खबर यह है कि कुछ वैज्ञानिक मानते हैं, धरती का तापमान उनकी उम्मीद से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है।

क्या हमें इन अनुमानों पर विश्‍वास करना चाहिए? क्या धरती पर जीवन वाकई खतरे में है? आलोचकों का कहना है कि बढ़ते तापमान के भयानक अंजामों के बारे में लगायी गयी अटकलें खोखली हैं। ऐसे में कुछ लोग समझ नहीं पाते कि क्या सच है और क्या झूठ। तो सच्चाई का पता कैसे लगाया जा सकता है? क्या वाकई धरती का और हमारा भविष्य खतरे में है? (g 8/08)

[फुटनोट]

^ धरती के तापमान (Global Warming) का मतलब है, वायुमंडल और महासागरों का दिन-पर-दिन बढ़ता हुआ तापमान।