इंटरनेट की दुनिया में नन्हे कदम माता-पिताओं को क्या जानने की ज़रूरत है
इंटरनेट की दुनिया में नन्हे कदम माता-पिताओं को क्या जानने की ज़रूरत है
कुछ समय तक लोगों का मानना था कि अगर माता-पिता कंप्यूटर को घर की बैठक या किसी खुली जगह में रखें, तो वे अपने बच्चों को इंटरनेट के खतरों से बचा सकते हैं। वे सोचते थे कि इससे बच्चे खतरनाक या गलत किस्म की वेब साइटों पर नहीं जाएँगे। हालाँकि आज भी ऐसा सोचना सही है, मगर एहतियात के तौर पर सिर्फ यह कदम उठाना काफी नहीं। वह क्यों? क्योंकि आज मोबाइल फोन जैसे बिना तार के कई यंत्र पाए जाते हैं, जिनके ज़रिए बच्चे जब चाहें, जहाँ चाहें इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा, जगह-जगह पर इंटरनेट कैफे पाए जाते हैं। कई लाइब्रेरियों में भी इंटरनेट की सुविधा पायी जाती है। कहीं नहीं तो बच्चे अपने उन दोस्तों के घर जाकर इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं, जिनके यहाँ कंप्यूटर है। जब इंटरनेट इस्तेमाल करने के इतने ढेरों तरीके मौजूद हैं, तो ज़ाहिर-सी बात है कि माँ-बाप के लिए अपने बच्चों पर नज़र रखना एक चुनौती हो सकती है।
आइए कुछ ऐसी इंटरनेट सेवाओं पर गौर करें, जो बच्चों के मन को लुभाती हैं। साथ ही, यह भी देखें कि उनमें क्या-क्या खतरे हैं।
ई-मेल
यह क्या है? इंटरनेट के ज़रिए भेजा जानेवाला लिखित संदेश।
क्यों लुभाता बच्चों का मन? ई-मेल के ज़रिए हम झटपट अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को संदेश भेज सकते हैं और उनका जवाब पा सकते हैं। और यह किफायती भी है।
खतरों से रहिए खबरदार! आपको कई अनचाहे ई-मेल मिल सकते हैं, जिन्हें अकसर ‘स्पैम’ कहा जाता है। इस तरह के ई-मेल न सिर्फ नाक में दम कर देते हैं, बल्कि इनमें गंदी जानकारी दी होती है या फिर खुल्लम-खुल्ला सेक्स के बारे में बताया जाता है। कई बार ई-मेल में ऐसे लिंक होते हैं, जिन पर क्लिक करके ई-मेल पढ़नेवाले, यहाँ तक कि भोले-भाले बच्चे ऐसे दस्तावेज़ों में जा सकते हैं, जहाँ उन्हें अपने बारे में जानकारी देने के लिए उभारा जाता है। नतीजा, उनकी निजी जानकारी चुरायी जा सकती है। इस तरह के ई-मेल का जवाब देना, यहाँ तक कि ऐसे ई-मेल दोबारा न भेजने के लिए सख्ती से मना करना भी मुसीबत को दावत देना है। वह कैसे? ऐसे ई-मेल का जवाब देने से उनके भेजनेवालों को मालूम चल जाता है कि आपका ई-मेल पता काम कर रहा है और वे आपको बेसिरपैर के संदेश भेजने लग सकते हैं।
वेब साइट
यह क्या है? इलेक्ट्रॉनिक पेजों का संग्रह। तरह-तरह के संगठन, स्कूल-कॉलेज, कंपनियाँ और अलग-अलग लोग वेब साइटें तैयार करते हैं। यही नहीं, वे इन साइटों में ताज़ा-तरीन जानकारी भी भरते रहते हैं।
क्यों लुभाता बच्चों का मन? आजकल ऐसी लाखों वेब साइट मौजूद हैं, जिन पर जाकर नौजवान मनचाही खरीदारी कर सकते हैं, किसी भी विषय पर खोजबीन कर सकते हैं और दोस्तों से मेल-जोल रख सकते हैं। साथ ही, वे इन साइटों पर जी-भरकर गेम खेल सकते हैं और संगीत सुन सकते हैं, या फिर उन्हें डाउनलोड कर सकते हैं।
खतरों से रहिए खबरदार! कई बदचलन लोग, वेब साइटों का गलत इस्तेमाल करते हैं। बहुत-सी वेब साइटों पर लोगों को लैंगिक संबंध रखते हुए दिखाया जाता है। और ऐसी साइटों पर अकसर लोग इत्तफाक से पहुँच जाते हैं। मिसाल के लिए, अमरीका में जब 8 से 16 साल के बच्चों का सर्वे लिया गया, तो उनमें से 90 प्रतिशत का कहना था कि वे अनजाने में पोर्नोग्राफी की साइटों पर पहुँचे हैं। और ज़्यादातर मामलों में उनके साथ ऐसा तब हुआ जब वे इंटरनेट पर अपना होमवर्क कर रहे थे।
यही नहीं, ऐसी कई वेब साइटें भी हैं, जो जवानों को जुआ खेलने का बढ़ावा देती हैं। कनाडा में जब 10वीं और 11वीं क्लास में पढ़नेवाले लड़कों का सर्वे लिया गया, तो हर 4 में से 1 ने कबूल किया कि वह ऐसी साइटों पर गया है। यह जानकार लोगों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि जो कोई एक बार इंटरनेट पर जुआ खेलता है, उसे इसकी लत लग जाती है। इसके अलावा, कुछ वेब साइटें “एनोरेक्सिया” का बढ़ावा देती हैं। * (एनोरेक्सिया एक ऐसी बीमारी है, जिसके शिकार लोगों को हरदम मोटे होने का डर लगा रहता है। इसलिए वे बहुत ही कम खाना खाते हैं।) कुछ वेब साइटें ऐसी भी हैं, जो छोटे-छोटे धर्म या जाति के लोगों के खिलाफ नफरत की आग भड़काती हैं। कुछ साइटें तो बम बनाने, ज़हर तैयार करने और आतंकवादी हमलों की योजना बनाने की तरकीबें सुझाती हैं। और-तो-और, आजकल इंटरनेट पर जो गेम पेश किए जाते हैं, उनमें मार-काट और खून-खच्चरवाले सीन भरे पड़े होते हैं।
चैट रूम
यह क्या है? ऐसी वेब साइट जिसमें लोग संदेश टाइप करके एक-दूसरे से बात करते हैं। आम तौर पर यह बातचीत किसी शौक या खास विषय को लेकर होती है।
क्यों लुभाता बच्चों का मन? आपका बच्चा ऐसे कई लोगों से बातें कर सकता है, जिनसे शायद ही वह कभी मिला हो, मगर जिनके शौक एक-जैसे हैं।
खतरों से रहिए खबरदार! चैट रूम का इस्तेमाल अकसर ऐसे लोग करते हैं, जो मासूम बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनाने की फिराक में रहते हैं। उनका इरादा होता है, किसी बच्चे को फुसलाना ताकि वे उसके साथ इंटरनेट पर या आमने-सामने मिलकर लैंगिक संबंध रख सकें। इस सिलसिले में, आखिर इंटरनेट पर आपके बच्चे कर क्या रहे हैं? (अँग्रेज़ी) किताब की एक लेखिका के अनुभव पर गौर कीजिए। जब वह इस बात पर खोजबीन कर रही थी कि इंटरनेट का सावधानी से कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है, तो उसने एक बार इंटरनेट पर खुद को 12 साल की लड़की बताया। इसके बाद क्या हुआ, इस बारे में किताब कहती है: “फौरन एक व्यक्ति ने उसे प्राइवेट चैट रूम में आने के लिए कहा। (प्राइवेट चैट रूम में सिर्फ गिने-चुने लोग जा सकते हैं।) इस पर उस लेखिका ने बताया कि उसे प्राइवेट चैट रूम में जाना नहीं आता। तब उस व्यक्ति ने लेखिका को प्राइवेट चैट रूम में आने में मदद दी। आखिर में, उसने लेखिका से पूछा कि क्या वह उसके साथ [इंटरनेट पर] लैंगिक संबंध रखना चाहती है।”
इंस्टंट मैसेज
यह क्या है? एक ऐसी इंटरनेट सेवा, जिससे दो या ज़्यादा लोग एक-दूसरे को फौरन संदेश भेजकर बातें करते हैं।
क्यों लुभाता बच्चों का मन? इंस्टंट मैसेज में एक नौजवान अपने दोस्तों की एक सूची बनाता है, जिसमें से वह किसी से भी बातचीत करने का चुनाव कर सकता है। इसलिए इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि कनाडा में लिए गए एक सर्वे के मुताबिक, 16 और 17 साल के 84 प्रतिशत नौजवान इंस्टंट मैसेज के ज़रिए अपने दोस्तों से बातचीत करते हैं। और वे इसमें हर दिन एक से भी ज़्यादा घंटे बिता देते हैं।
खतरों से रहिए खबरदार! इंस्टंट मैसेज के ज़रिए होनेवाली बातचीत, आपके बच्चे की पढ़ाई या किसी ऐसे काम में अड़ंगा डाल सकती है, जो उसे पूरा मन लगाकर करने की ज़रूरत है। और फिर यह पता लगाना भी मुश्किल है कि आपका बेटा या बेटी किससे बातें कर रहा/रही है। क्योंकि इंस्टंट मैसेज के ज़रिए होनेवाली बातचीत किसी को सुनायी नहीं देती।
ब्लौग
यह क्या है? एक ऐसी वेब साइट जो एक डायरी का काम करती है।
क्यों लुभाता बच्चों का मन? ब्लौग में नौजवानों को अपने खयालों, दिल की गहराई में छिपे जज़बातों और दूसरे कामों को लिखाई में उतार लेने का पूरा-पूरा मौका मिलता है। ज़्यादातर ब्लौग में लेख पढ़नेवालों के लिए खाली जगह दी होती है, जहाँ वे अपने विचार लिख सकते हैं। बहुत-से बच्चे यह जानकर खुशी से झूम उठते हैं कि किसी ने उनका लेख पढ़कर जवाब दिया है।
खतरों से रहिए खबरदार! ब्लौग में दिए लेख कोई भी पढ़ सकता है। कुछ नौजवान बिना सोचे-समझे ऐसी बातें लिख देते हैं, जिनसे दूसरों को उनके परिवार या स्कूल के बारे में पता चल जाता है। या फिर लोग जान जाते हैं कि वे कहाँ रहते हैं। एक और गौर करने लायक बात यह है कि ब्लौग के ज़रिए लोगों पर कीचड़ उछाला जा सकता है। यहाँ तक कि खुद लेख लिखनेवालों की इज़्ज़त मिट्टी में मिल सकती है। इससे एक इंसान का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। क्योंकि कुछ कंपनियों के मालिक किसी को नौकरी पर रखने से पहले उसका ब्लौग पढ़ते हैं।
ऑनलाइन सोशल नेटवर्क
यह क्या है? ऐसी वेब साइट जिस पर नौजवान एक वेब पेज बना सकते हैं। साथ ही, वेब पेज को और भी खूबसूरत बनाने के लिए वे उसमें तसवीरें डाल सकते हैं, वीडियो और ब्लौग शामिल कर सकते हैं।
क्यों लुभाता बच्चों का मन? वेब पेज बनाने और उसे निखारने से एक नौजवान को अपनी शख्सियत ज़ाहिर करने का मौका मिलता है। ऑनलाइन सोशल नेटवर्क के ज़रिए नौजवान बहुत-से नए “दोस्त” बना पाते हैं।
खतरों से रहिए खबरदार! जोएना नाम की एक लड़की कहती है: “सोशल नेटवर्क पर जाना, किसी पार्टी में जाने के बराबर है। और इस पार्टी में कुछ भयानक किस्म के लोग भी आते हैं।” सोशल नेटवर्क में जो निजी जानकारी दी जाती है, उसका बेईमान और धोखेबाज़ लोग गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए पैरी अफताब (इंटरनेट का सावधानी से इस्तेमाल करने पर खोजबीन करनेवाली जानकार) कहती हैं कि ऐसी वेब साइटें, बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनानेवालों के लिए अड्डा हैं।
इसके अलावा, इंटरनेट पर की जानेवाली दोस्ती खोखली होती है। कुछ नौजवान इंटरनेट पर हर ऐरे-गैरे से दोस्ती कर लेते हैं। इस तरह, वे अपने वेब पेज पर दोस्तों की एक लंबी सूची बनाते हैं। वे ऐसा सिर्फ इसलिए करते हैं, क्योंकि वे अपनी साइट पर आनेवाले लोगों पर अपना सिक्का जमाना चाहते हैं। कैनडिस कैलसी अपनी किताब ‘माइस्पेस’ की पीढ़ी (अँग्रेज़ी) में कहती हैं: “जिस तरह लोग किसी भी कंपनी पर अपना पैसा लगाने से पहले यह देखते हैं कि शेयर बाज़ार में उसकी कितनी कीमत है, उसी तरह आजकल के बच्चे किसी से भी दोस्ती करने से पहले यह देखते हैं कि उसे कितने लोग पसंद करते हैं।” * वे आगे कहती हैं: “जब बच्चे सट्टेबाज़ी की तरह दोस्ती करना सीखते हैं, तो उनमें इंसानियत खत्म हो जाती है। साथ ही, उन पर इस बात का ज़बरदस्त दबाव पड़ता है कि वे खुद को ऐसे पेश करें कि उन्हें ज़्यादा दोस्त मिल सकें।” इसलिए आखिर आपके बच्चे इंटरनेट पर कर क्या रहे हैं? किताब एक वाजिब सवाल पूछती है: “आप अपने बच्चों को यह कैसे समझा सकते हैं कि उन्हें अपने अंदर हमदर्दी और करुणा का गुण बढ़ाने की ज़रूरत है, जबकि इंटरनेट की दुनिया सिखाती है कि पहले लोगों से दोस्ती करो और फिर उन्हें रद्दी समझकर फेंक दो?”
ये तो सिर्फ ऐसी छः इंटरनेट सेवाएँ हैं, जिनका जादू आज बच्चों के सिर चढ़कर बोलता है। अगर आप एक माँ या पिता हैं, तो आप अपने बच्चों को इंटरनेट के खतरों से कैसे बचा सकते हैं? (g 10/08)
[फुटनोट]
^ ऐसी कई वेब साइटों और संगठनों का दावा है कि वे एनोरेक्सिया का बढ़ावा नहीं देते। लेकिन सच पूछिए तो इनमें से कुछ साइटें और संगठन, एनोरेक्सिया को एक बीमारी नहीं बताते। इसके बजाय, उनका कहना है कि यह जीने का एक तरीका है, जिसे चाहे तो एक इंसान चुन सकता है। इतना ही नहीं, इन साइटों पर ऐसी चर्चाएँ रखी जाती हैं, जिनमें इस बात पर नुस्खे दिए जाते हैं कि एक शख्स अपना असली वज़न और कम खाने की अपनी आदत अपने माँ-बाप से कैसे छिपा सकता है।
^ ‘माइस्पेस’ एक बहुत ही मशहूर ऑनलाइन सोशल नेटवर्क का नाम है।
[पेज 12 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करनेवालों की गिनती में एक बड़ा उछाल आया है। एक साल के अंदर उनकी गिनती करीब 54 प्रतिशत बढ़ गयी है और इनमें ज़्यादातर बच्चे हैं
[पेज 15 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“माता-पिता की नज़रों में वेबकैम (कंप्यूटर से जुड़ा वीडियो कैमरा) शायद एक सस्ता और आसान ज़रिया हो, जिससे उनके बच्चे रिश्तेदारों और दोस्तों से बात कर सकते हैं। लेकिन इसी वेबकैम का इस्तेमाल करके बदचलन लोग मासूम बच्चों को अपनी हवस का शिकार बना सकते हैं।”—रॉबर्ट एस. म्यूलर, फेड्रल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन (एफ.बी.आई.) के निदेशक