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जल्दी घर आने का नियम मानूँ या न मानूँ?

जल्दी घर आने का नियम मानूँ या न मानूँ?

नौजवान पूछते हैं

जल्दी घर आने का नियम मानूँ या न मानूँ?

रात काफी हो चुकी है, आप अपने दोस्तों के घर से वापस लौटते हैं। आप दरवाज़ा खोलने जाते हैं, पर फिर यह सोचकर रुक जाते हैं कि आपके मम्मी-पापा ने जिस समय तक घर लौटने के लिए कहा था, वह समय कब का पार हो चुका है। आप उम्मीद करते हैं कि अब तक वे सो चुके होंगे। इस पर आप धीरे से दरवाज़ा खोलते हैं, मगर यह क्या? आपके मम्मी-पापा जागे हुए हैं और आपको देखकर उनकी नज़र सीधे घड़ी पर जाती है। उनके चेहरे के भाव से साफ है कि वे जानना चाहते हैं, आखिर आपको इतनी देरी क्यों हुई।

क्या ये हालात आपको जाने-पहचाने-से लगते हैं? घर वापस आने का कौन-सा समय सही है, इस बात को लेकर क्या आपकी अपने मम्मी-पापा से कभी बहस हुई है? 17 साल की दिव्या * कहती है: “हमारा घर एक अच्छे और सुरक्षित इलाके में है। फिर भी, अगर मैं आधी रात तक घर से बाहर रहूँ, तो चिंता के मारे मेरे मम्मी-पापा की जान सूख जाती है।”

आपके घर लौटने का माता-पिता जो समय ठहराते हैं, उसे मानना आपको क्यों मुश्‍किल लगता है? क्या और भी आज़ादी पाने की चाहत रखना गलत है? जब आपके माता-पिता सख्ती से कहते हैं कि आपको फलाँ वक्‍त तक घर आ जाना चाहिए, तो उनका कहा मानने में क्या बात आपकी मदद कर सकती है?

मसले

रात को जल्दी घर आने के नियम से जवान लोग खीझ उठते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि इस नियम की वजह से वे अपने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने या घूमने-फिरने में ज़्यादा वक्‍त नहीं बिता पाते। 17 साल की नवीशा कहती है: “उफ! रात को जल्दी घर आने के नियम ने मेरा जीना दुश्‍वार कर दिया है। एक बार तो मेरे मम्मी-पापा को मालूम था कि मैं अपने दोस्तों के संग पास के एक घर में फिल्म देख रही हूँ। फिर भी, लौटने में मुझे दो मिनट की देरी क्या हुई, उन्होंने फौरन फोन लगाकर पूछा कि मैं अभी तक घर क्यों नहीं पहुँची।”

स्वाती एक और परेशानी बताती है: “मेरे मम्मी-पापा के सोने से पहले मुझे घर पहुँचना पड़ता था। वरना उनके गुस्से का सामना करना तय था। एक तो वे पहले से थके होते थे, ऊपर से अगर उन्हें मेरा इंतज़ार करना पड़ता, तो वे बहुत ही चिड़चिड़े हो जाते थे।” इसके बाद क्या होता था? स्वाती कहती है: “वे मुझे दोषी महसूस कराने के लिए क्या कुछ नहीं कहते। और इसी बात पर मुझे बहुत गुस्सा आता था। मुझे समझ नहीं आता था कि वे सो क्यों नहीं जाते थे।” हो सकता है आपकी भी अपने मम्मी-पापा के साथ कुछ इस तरह की तकरार होती हो। ऐसे में आप शायद 18 साल की कीर्ति की तरह महसूस करें, जो कहती है: “काश, मेरे मम्मी-पापा मुझ पर भरोसा करते और मुझे ज़्यादा छूट देते, ताकि मैं इस भावना से मुक्‍त हो जाती कि ज़्यादा आज़ादी पाने के लिए मैं उन पर दबाव डाल रही हूँ।”

आप भी शायद इन नौजवानों की तरह महसूस करें। अगर हाँ, तो खुद से पूछिए:

मुझे घर से बाहर रहना क्यों पसंद है? (नीचे दी वजहों में से एक पर निशान लगाइए।)

❑ क्योंकि इससे मुझे ऐसा लगता है जैसे कि मैं आज़ाद पंछी हूँ।

❑ क्योंकि इससे मेरी थकावट दूर होती है।

❑ क्योंकि मैं अपने दोस्तों के साथ वक्‍त बिता पाता हूँ।

इन वजहों से आपका घर से बाहर रहना आम है। जैसे-जैसे आप बड़े हो रहे हैं, वैसे-वैसे आपमें और भी आज़ादी की चाह होना लाज़िमी है। इसके अलावा, सही किस्म के मनोरंजन से आपकी थकावट भी दूर हो सकती है। और जहाँ तक दोस्तों की बात है, तो बाइबल बढ़ावा देती है कि आप ऐसे लोगों से दोस्ती करें, जिनका आप पर अच्छा असर हो। (भजन 119:63; 2 तीमुथियुस 2:22) और बेशक, यह सब घर बैठे नहीं किया जा सकता!

लेकिन भला आप इस तरह की आज़ादी का मज़ा कैसे ले सकते हैं, जबकि आप पर घर जल्दी आने का ऐसा नियम लगाया गया है, जो आपको बहुत ही सख्त लगता है? आइए नीचे दी बातों पर गौर करें।

पहली चुनौती: रात को जल्दी घर आने के नियम से आपको लग सकता है कि आप अब भी बच्चे हैं। 21 साल की अनामिका कहती है: “एक शाम मैं अपने दोस्तों के संग थी। फिर जब मैंने उनसे कहा कि कोई मुझे जल्दी घर छोड़ दे, तो सभी का मूड उचट गया। और मुझे ऐसा लगा मानो मैं कोई दूध पीती बच्ची हूँ।”

क्या बात आपकी मदद कर सकती है? मान लीजिए, आपको अभी-अभी गाड़ी चलाने का लाइसेंस मिला है। कुछ जगहों पर यह नियम है कि जिन जवानों को नया-नया लाइसेंस मिलता है, वे फलाँ उम्र तक सिर्फ चुनिंदा इलाकों में एक तय समय पर ही गाड़ी चला सकते हैं। साथ ही, उन्हें यह भी बताया जाता है कि गाड़ी चलाते वक्‍त कौन उनके साथ होना चाहिए। अब अगर आपके यहाँ भी ऐसा ही नियम है, तो क्या आप यह कहकर अपने लाइसेंस को ठुकरा देंगे कि “जब तक मुझे गाड़ी चलाने की पूरी आज़ादी नहीं मिल जाती, नहीं चलानी है मुझे गाड़ी?” बिलकुल नहीं! इसके बजाय, लाइसेंस पा लेने पर आपको बड़ा गर्व होगा और ऐसा महसूस होगा कि आपने कोई किला फतह कर लिया हो।

उसी तरह, जब आपके लिए जल्दी घर आने का नियम बाँधा जाता है, तो इसे तरक्की की निशानी समझिए। यह एक ऐसा कदम है, जो आपको सही दिशा में ले जाएगा। इसलिए इस नियम के साथ आनेवाली बंदिशों पर ध्यान मत दीजिए, बल्कि इस बात पर ध्यान दीजिए कि इससे आपको क्या आज़ादी मिल रही है। क्या आपको नहीं लगता कि अब आपको पहले से कहीं ज़्यादा छूट मिल रही है?

इस सुझाव पर अमल करना क्यों फायदेमंद है: अगर आप घर जल्दी आने के नियम को एक रुकावट समझने के बजाय, यह समझेंगे कि इससे आपको अपने मन मुताबिक काम करने का मौका मिल रहा है, तो यह नियम मानना आपके लिए ज़्यादा आसान होगा। यही नहीं, आज अगर आप अपने मम्मी-पापा का कहा मानेंगे, तो आगे चलकर वे आपको और भी ज़्यादा आज़ादी दे सकते हैं।—लूका 16:10.

दूसरी चुनौती: आपको समझ में नहीं आता कि आखिर, आपको रात को इतनी जल्दी क्यों घर वापस आना है। निक्की, जिसे एक वक्‍त पर घर जल्दी आने का नियम नागवार लगता था, कहती है: “मुझे आज भी याद है कि उस वक्‍त मेरी यह सोच थी कि मम्मी मेरे लिए नियम इसलिए बनाती हैं, क्योंकि उन्हें नियम बनाने का शौक है।”

क्या बात आपकी मदद कर सकती है? नीतिवचन 15:22 (NHT) में दिया सिद्धांत लागू कीजिए। इसमें लिखा है: बिना सलाह के, योजनाएं निष्फल हो जाती हैं, परन्तु अनेक सलाहकारों की सलाहों से वे सफल हो जाती हैं।” इस विषय पर अपने मम्मी-पापा के साथ इत्मीनान से बात कीजिए। यह जानने की कोशिश कीजिए कि उन्होंने आपके घर लौटने का फलाँ समय क्यों तय किया है। *

इस सुझाव पर अमल करना क्यों फायदेमंद है: अगर आप अपने मम्मी-पापा की बात ध्यान से सुनेंगे, तो आप उनकी भावनाओं को और भी अच्छी तरह समझ पाएँगे। शशांक कहता है: “पापा ने मुझे बताया कि जब तक मैं सही-सलामत घर नहीं पहुँच जाता, तब तक मेरी मम्मी की आँखों से नींद कोसों दूर रहती है। मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था।”

याद रखिए: किसी भी मसले पर चर्चा करते वक्‍त तैश में आकर बात करने के बजाय ठंडे दिमाग से बात करना ज़्यादा बेहतर होता है। क्योंकि आपा खोने से बात बनने के बजाय और भी बिगड़ सकती है। नवीशा, जिसका ज़िक्र पहले भी किया गया था, कहती है: “मैंने पाया है कि जब भी मैं अपने मम्मी-पापा पर झल्लाती हूँ, तो वे मुझे कुछ ऐसे काम करने नहीं देते, जो मैं करना चाहती हूँ।”

तीसरी चुनौती: आपको ऐसा लगता है मानो आप अपने मम्मी-पापा के हाथों की कठपुतली हैं। कभी-कभी माता-पिता कहते हैं कि घर के नियम-कानून, जिनमें जल्दी घर आने का नियम भी शामिल होता है, बच्चों की भलाई के लिए ही होते हैं। 20 साल की भारती कहती है: “जब मेरे मम्मी-पापा मुझसे यह बात कहते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे मुझे न तो कोई चुनाव करने का हक है और ना ही कुछ कहने का।”

क्या बात आपकी मदद कर सकती है? आप मत्ती 5:41 में दर्ज़ यीशु की सलाह पर चलने का चुनाव कर सकते हैं। इसमें लिखा है: “जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।” आयुषी और उसके बड़े भाई ने यह सलाह मानने का एक कारगर तरीका निकाला। वह कहती है: “हम, मम्मी-पापा के तय किए गए समय से 15 मिनट पहले ही घर पहुँचने की कोशिश करते हैं।” क्या आप भी कुछ ऐसा कर सकते हैं?

इस सुझाव पर अमल करना क्यों फायदेमंद है: जब हम कोई काम करना चाहते हैं, तो उसे करते वक्‍त हमें बड़ा मज़ा आता है। लेकिन वही काम जब हम यह सोचकर करते हैं कि इसे हमें करना ही है, तो यह हमारे लिए एक बोझ बन सकता है। फिर यह भी तो सोचिए, जब आप वक्‍त से पहले घर पहुँच जाते हैं, तो यह दिखाता है कि आपका अपने वक्‍त पर काबू है। आपको शायद यह सिद्धांत भी याद आए: “तेरा नेक काम लाचारी से नहीं बल्कि ख़ुशी से हो।”—फिलेमोन 14, हिन्दुस्तानी बाइबल।

इसके अलावा, अगर आप जल्दी घर आएँगे, तो आपके मम्मी-पापा का आप पर भरोसा बढ़ेगा। नतीजा, आगे चलकर वे आपको और भी ज़्यादा आज़ादी दे सकते हैं। 18 साल का विशाल कहता है: “अगर आप अपने मम्मी-पापा का भरोसा जीत लें, तो वे आपको और भी छूट दे सकते हैं।”

एक और चुनौती लिखिए।

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इस चुनौती का सामना करने में क्या बात आपकी मदद कर सकती है?

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आपको क्यों लगता है कि इस सुझाव पर अमल करना फायदेमंद है?

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हो सकता है एक दिन आप अपने परिवार से अलग रहने लगें। उस वक्‍त आपके पास अपने मन मुताबिक काम करने की काफी आज़ादी होगी। मगर तब तक सब्र रखिए। 20 साल की तान्या कहती है: “आपको शायद पूरी आज़ादी न मिले, लेकिन अगर आप अपने मम्मी-पापा की लगायी बंदिशों में रहें, तो किशोर उम्र में आनेवाली समस्याओं से आप काफी हद तक बचे रहेंगे।” (g 10/08)

“नौजवान पूछते हैं” के और भी लेख, वेब साइट www.watchtower.org/ype पर उपलब्ध हैं।

[फुटनोट]

^ इस लेख में नाम बदल दिए गए हैं।

^ सुझाव के लिए, जनवरी-मार्च 2007 की सजग होइए! में दिया लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . मैं इतने सारे नियमों का पालन क्यों करूँ?” देखिए।

इस बारे में सोचिए

◼ आपके मम्मी-पापा घर जल्दी आने का जो नियम बनाते हैं, उससे कैसे ज़ाहिर होता है कि उन्हें आपकी परवाह है?

◼ अगर आपने जल्दी घर आने का नियम तोड़ दिया है, तो आप अपने मम्मी-पापा का भरोसा दोबारा जीतने के लिए क्या कर सकते हैं?

[पेज 24 पर बक्स]

आपके हमउम्र क्या कहते हैं

“मेरा मानना है कि मेरे मम्मी-पापा ने मेरे घर लौटने का जो समय तय किया है, वह बिलकुल सही है। तभी तो मैं भरपूर नींद ले पाता हूँ। वरना, मैं बहुत चिड़चिड़ा हो सकता हूँ!” —17 साल का गौरव।

“घर जल्दी आने के नियम ने न जाने कितनी बार मुझे मुश्‍किल हालात से बचाया है। एक बार तो कुछ नाबालिग लड़के एक पार्टी में शराब लाए। जैसे ही मेरी और मेरी सहेली की नज़र शराब पर पड़ी, हम जल्दी घर जाने का बहाना बनाकर वहाँ से चलते बने।” —18 साल की कीर्ति।

[पेज 22 पर बक्स/तसवीर]

अगर आप घर लौटने का समय बढ़ाना चाहते हैं, तो . . .

◼ इस बारे में सही वक्‍त पर बात कीजिए।—सभोपदेशक 3:1,7.

◼ वक्‍त के पाबंद रहने में एक अच्छा रिकॉर्ड बनाइए।—मत्ती 5:37.

◼ मम्मी-पापा से गुज़ारिश कीजिए कि वे कुछ दिन के लिए आपके घर लौटने का समय बढ़ाकर देख लें।—मत्ती 25:23.

[पेज 23 पर बक्स]

माता-पिता के लिए एक पैगाम

◼ आपने अपने बेटे को जिस वक्‍त तक घर आने के लिए कहा था, उसे पार हुए आधा घंटा हो चुका है। अचानक आप देखते हैं कि कोई आहिस्ते से दरवाज़ा खोल रहा है। आप मन-ही-मन कहते हैं, ‘क्यों बरखुरदार, तुम्हें लगता है कि मैं अब तक तो खर्राटे भर रहा हूँगा।’ पर आप तो जागे हुए हैं। और उस वक्‍त से दरवाज़े के पास बैठे अपने बेटे का इंतज़ार कर रहे हैं, जिस वक्‍त उसे घर में होना चाहिए था। अब दरवाज़ा पूरी तरह खुल जाता है और आपके बेटे की नज़र आपकी नज़र से टकराती है। अब आप क्या करेंगे?

आपके पास कई चुनाव हैं। आप यह कहकर मामले को अनदेखा कर सकते हैं, ‘लड़के आखिर लड़के होते हैं। बड़े लापरवाह!’ या फिर, आप कड़क आवाज़ में कह सकते हैं: “आज से तुम्हारा घर से बाहर निकलना बंद!” इस तरह आग-बबूला होने के बजाय, अच्छा होगा कि पहले आप अपने बेटे की सुनें। हो सकता है उसके देर से आने की कोई जायज़ वजह हो। इसके बाद, आप मौके का फायदा उठाकर अपने बेटे को एक अहम सबक सिखा सकते हैं। वह कैसे?

सुझाव: अपने बच्चे से कहिए कि आप उससे इस बारे में अगले दिन बात करेंगे। फिर अगले दिन, सही समय पर उसके साथ बैठकर बात कीजिए। कुछ माता-पिताओं ने यह तरकीब अपनायी है: अगर उनका बच्चा जल्दी घर आने का नियम तोड़ता है, तो वे उससे कहते हैं कि अगली बार उसे तय किए गए समय से 30 मिनट पहले लौटना होगा। दूसरी तरफ, अगर उनका बच्चा हमेशा सही समय पर घर वापस आता है और इस तरह खुद को भरोसेमंद साबित करता है, तो कुछ मौकों पर वे उसे थोड़ी-बहुत छूट देने की सोच सकते हैं। यहाँ तक कि वे उसके घर लौटने का समय बढ़ा सकते हैं। आपके बच्चे को अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि उसे कितने बजे तक घर पहुँचना है। और यह भी कि अगर वह ऐसा करने से चूक गया, तो उसे क्या सज़ा मिलेगी। और हाँ, जब आपका बच्चा यह नियम तोड़ता है, तो उसे सज़ा देने से पीछे मत हटिए।

एहतियात के दो शब्द: बाइबल कहती है: ‘सब लोग यह जान जाएँ कि तुम लिहाज़ करनेवाले इंसान हो।’ (फिलिप्पियों 4:5, NW) इससे पहले कि आप अपने बच्चे के घर लौटने का समय तय करें, आप उससे इस बारे में बात कर सकते हैं। आप उससे पूछ सकते हैं कि वह घर वापस आने के लिए कौन-सा समय चुनना चाहेगा और क्यों। आप उसकी गुज़ारिश के बारे में सोच सकते हैं। अगर आपके बच्चे ने साबित किया है कि वह एक ज़िम्मेदार इंसान है और आपको उसकी गुज़ारिश ठीक लगती है, तो आप उसकी गुज़ारिश कबूल कर सकते हैं।

वक्‍त का पाबंद होना, ज़िंदगी का एक हिस्सा है। इसलिए अपने बच्चे के लिए जल्दी घर आने का नियम बनाने से आप न सिर्फ उसे मुसीबतों से बचाते हैं, बल्कि उसमें एक ऐसी काबिलीयत बढ़ा रहे होते हैं, जो आगे चलकर उसके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।—नीतिवचन 22:6.