क्या आपकी परेशानियाँ परमेश्वर की तरफ से सज़ा है?
बाइबल क्या कहती है?
क्या आपकी परेशानियाँ परमेश्वर की तरफ से सज़ा है?
करीब पचपन साल की एक औरत को जब पता चला कि उसे कैंसर है तो उसने कहा: “लगता है, मुझे अपने किए की सज़ा मिल रही है।” सालों पहले उसने जो गलती की थी, उसे याद करते हुए वह कहती है, “हो सकता है इस तरह परमेश्वर मुझे एहसास कराना चाहता हो कि मैंने पाप किया है।”
जब लोग मुसीबतों से गुज़रते हैं, तो अकसर उन्हें लगता है कि परमेश्वर उन्हें उनके किए की सज़ा दे रहा है। जब उन पर अचानक मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है तो वे दुखी होकर कहते हैं: “आखिर मुझ पर ही ये मुसीबतें क्यों आयीं? मैंने ऐसा क्या गुनाह किया?” ऐसे में क्या हमें इस नतीजे पर पहुँचना चाहिए कि हमारी मुसीबतें इस बात की निशानी हैं कि परमेश्वर हमसे नाखुश है? क्या परमेश्वर वाकई हमें सज़ा दे रहा है?
विश्वासी जनों ने भी मुसीबतें सहीं
गौर कीजिए कि एक इंसान अय्यूब के बारे में बाइबल क्या कहती है। बिना किसी अंदेशे के एक झटके में उसकी सारी धन-दौलत फना हो गयी। यह तो कुछ भी नहीं, एक तूफान में उसके दसों बच्चों की जानें चली गयीं। इसके फौरन बाद उसे बड़ी घिनौनी बीमारी हो गयी, जिसने उसके शरीर को तोड़कर रख दिया। (अय्यूब 1:13-19; 2:7,8) इस वजह से उसके दिल से यह आह निकली: “ईश्वर ने मुझे मारा है।” (अय्यूब 19:21) दुख-तकलीफ से गुज़रते वक्त आज लोग जैसा महसूस करते हैं, वैसा ही अय्यूब ने भी किया कि परमेश्वर उसे सज़ा दे रहा है।
ध्यान दीजिए, बाइबल बताती है कि अय्यूब पर मुसीबतें आने से पहले, खुद परमेश्वर ने उसे “निर्दोष और खरा, तथा परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने वाला” इंसान कहा था। (अय्यूब 1:8, NHT) इससे ज़ाहिर होता है कि परमेश्वर अय्यूब से बेहद खुश था और उस पर आनेवाली मुसीबतों के लिए वह ज़िम्मेदार नहीं था।
सच पूछिए तो बाइबल में परमेश्वर के ऐसे कई वफादार सेवकों के बारे में बताया गया है, जिन्हें मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। मिसाल के लिए यूसुफ पर गौर कीजिए। उसे लगभग दो साल तक सलाखों के पीछे रहना पड़ा, जबकि उसका कोई कसूर नहीं था। (उत्पत्ति 39:10-20; 40:15)
1 तीमुथियुस 5:23) यहाँ तक कि यीशु मसीह के साथ भी बड़ा बुरा सलूक किया गया और बाद में उसे दर्दनाक मौत मरना पड़ा, इसके बावजूद कि उसने कोई गलती नहीं की थी। (1 पतरस 2:21-24) इसलिए ऐसा कहना गलत होगा कि हम पर आनेवाली मुसीबतें इस बात की निशानी हैं कि परमेश्वर हमसे खफा है। मगर सवाल उठता है कि अगर परमेश्वर मुसीबतों के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, तो फिर कौन है?
वफादार मसीही तीमुथियुस भी “बार बार बीमार” पड़ता था। (मुसीबतों की जड़
बाइबल बताती है कि अय्यूब पर आनेवाली मुसीबतों के लिए इब्लीस यानी शैतान ज़िम्मेदार था। (अय्यूब 1:7-12; 2:3-8) इसके अलावा, बाइबल कहती है कि हम पर आनेवाली मुसीबतों के लिए भी खास तौर पर शैतान ज़िम्मेदार है। वह कहती है: “हे पृथ्वी, और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” (प्रकाशितवाक्य 12:12) “इस जगत का सरदार” होने के नाते शैतान ने बहुतों को बुरे काम करने के लिए उभारा है। इस वजह से दुनिया को इतनी पीड़ा और तड़प सहनी पड़ी है कि उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।—यूहन्ना 12:31; भजन 37:12,14. *
इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी हर परेशानी का दोष शैतान के मत्थे मढ़ दें। हमें जो पाप और असिद्धता विरासत में मिली है उसकी वजह से हम अकसर गलत फैसले कर बैठते हैं। नतीजा, हमें उसके बुरे अंजाम भुगतने पड़ते हैं। (भजन 51:5; रोमियों 5:12) मान लीजिए एक आदमी न तो ठीक से खाता है, न ही भरपूर आराम लेता है, जिसकी वजह से उसे गंभीर बीमारियाँ हो जाती हैं। ऐसे में क्या उसका शैतान को दोषी ठहराना सही होगा? बिलकुल नहीं। उस इंसान को अपनी करनी का फल तो भुगतना ही पड़ेगा। (गलतियों 6:7) ऐसे मामले में एक इंसान का वही हाल होता है, जैसा कि बाइबल का यह नीतिवचन कहता है: “मनुष्य की अपनी मूर्खता उसका सत्यानाश करती” है।—नीतिवचन 19:3, बुल्के बाइबिल।
आखिर में हमें यह बात भी समझनी चाहिए कि हम सब “समय और संयोग के वश” में हैं, जिस वजह से हम पर कभी-भी कोई आफत आ सकती है। (सभोपदेशक 9:11) ज़रा एक ऐसे आदमी की कल्पना कीजिए जो अचानक बरसाती तूफान में घिर जाता है। वह थोड़ा-बहुत भीगेगा या पानी में तर-बतर हो जाएगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बारिश शुरू होने पर वह कहाँ था। उसी तरह इस “कठिन समय” में बुरे हालात किसी भी पल मुसीबतों की भारी बरसात का रूप ले सकते हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5) हम पर इसका कितना असर होगा, यह काफी हद तक समय और संयोग के बस में है। इस पर हमारा कोई ज़ोर नहीं। तो क्या इसका मतलब हम पर हमेशा मुसीबतों के काले बादल छाए रहेंगे?
सारी मुसीबतों का अंत, तुरंत
खुशी की बात है कि यहोवा परमेश्वर बहुत जल्द सारी मुसीबतों का अंत करनेवाला है। (यशायाह 25:8; प्रकाशितवाक्य 1:3; 21:3,4) तब तक के लिए वह सही “शिक्षा” और “पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा” देता है, ताकि हम जल्द आनेवाले सुंदर भविष्य का सपना अपनी आँखों में सँजोए सारी तकलीफें सह सकें। (रोमियों 15:4; 1 पतरस 5:7) उस वक्त परमेश्वर की नज़र में धर्मी लोग नए संसार में हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी का लुत्फ उठाएँगे, जहाँ बुराई का नामो-निशान नहीं होगा।—भजन 37:29,37. (g 1/09)
[फुटनोट]
^ 15 नवंबर, 2005 की प्रहरीदुर्ग का यह लेख देखिए कि “क्या इब्लीस आपके लिए एक हकीकत है?”
क्या आपने कभी सोचा है?
◼ क्या सिर्फ बुरे लोग ही मुसीबतें सहते हैं?—अय्यूब 1:8.
◼ क्या हमारी सभी परेशानियों की वजह शैतान है?—गलतियों 6:7.
◼ क्या बुराइयाँ हमेशा रहेंगी?—प्रकाशितवाक्य 21:3,4.
[पेज 18 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“सब समय और संयोग के वश में है।”–सभोपदेशक 9:11.