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‘मेरे पास बहुत सारा काम है!’

‘मेरे पास बहुत सारा काम है!’

‘मेरे पास बहुत सारा काम है!’

ओलंपिक में वज़न उठानेवाले खिलाड़ी रोज़ नए खिताब नहीं बनाते। वे हर दिन थोड़ा-थोड़ा वज़न उठाते हैं और इस तरह वे ज़्यादा वज़न उठाने के काबिल बनते हैं। अगर वे हर दिन अपनी सीमा से बाहर वज़न उठाएँ तो उनकी मांसपेशियों और जोड़ों पर ऐसा बुरा दबाव पड़ेगा कि भविष्य में वे कभी वज़न उठाने के लायक नहीं रहेंगे।

उसी तरह विद्यार्थी होने के नाते आप शायद स्कूल में बहुत मेहनत करते हों। इसके अलावा, जब कोई मुश्‍किल काम या इम्तहान सिर पर आ जाता है तो आप और भी कड़ी मेहनत करते होंगे। * लेकिन अगर आपका हर दिन, स्कूल के और दूसरे कामों में पूरी तरह व्यस्त रहे, तब क्या? ऐसे में शायद आपको ठीक से खाने और सोने की भी फुरसत न मिले। इस तरह अगर आप पर लगातार दबाव बना रहे तो आखिरकार आप बीमार पड़ जाएँगे। हो सकता है, इस वक्‍त आप ऐसा ही महसूस कर रहे हों। *

होमवर्क खत्म होने का नाम ही नहीं लेता

जापान में रहनेवाली 15 साल की एक विद्यार्थी हिरोको * कहती है: “जैसे-जैसे मैं बड़ी क्लास में जाती हूँ, वैसे-वैसे होमवर्क भी बढ़ता जाता है और ज़्यादा मुश्‍किल होता जाता है। उसे निपटाने में बहुत वक्‍त लगता है। . . . मेरे पास बहुत-से दूसरे काम भी होते हैं, मगर होमवर्क पूरा करना सबसे ज़रूरी होता है क्योंकि अगले दिन क्लास में दिखाना जो होता है। कभी-कभी तो मैं एकदम घबरा जाती हूँ।” रूस में रहनेवाली 14 साल की श्‍वेतलाना अपने होमवर्क के बारे में इस तरह कहती है: “होमवर्क पूरा करना मेरे लिए बहुत मुश्‍किल होता जा रहा है। हर साल विषय बढ़ते जाते हैं, ऊपर से टीचर और ज़्यादा काम देते हैं। हर टीचर को लगता है कि उसका विषय सबसे ज़रूरी है और उस पर ज़्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। समझ में नहीं आता कि सभी विषयों पर एक बराबर ध्यान कैसे दूँ?”

होमवर्क पर इतना ज़ोर क्यों दिया जाता है? ब्राज़ील में रहनेवाला 18 साल का ज़िलबर्टो लिखता है: “टीचर कहते हैं कि आज लोगों को नौकरी पाने के लिए जूते घिसने पड़ते हैं, मगर वे हमें तैयार कर रहे हैं ताकि हमें कोई मुश्‍किल न आए।” अगर यह सही भी है, तब भी विद्यार्थियों को शायद लगे कि उन्हें इतना सारा होमवर्क मिलता है कि उनके होश उड़ जाते हैं। मगर होमवर्क से मिलनेवाले तनाव को कम किया जा सकता है। इसके लिए आपको अपना नज़रिया बदलना होगा और उसे तरतीब से करने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे।

बढ़ती क्लास के हिसाब से आपको जो होमवर्क मिलता है, उसे बोझ नहीं बल्कि तालीम समझिए जो बड़े होने पर आपके बहुत काम आएगी। आपको लगता होगा कि होमवर्क तो खत्म होने का नाम ही नहीं लेता। लेकिन स्कूल के ये दिन कब गुज़र जाएँगे आपको पता भी नहीं चलेगा। जब आप अपने पैरों पर खड़े हो जाएँगे और पीछे मुड़कर देखेंगे तो आपको खुशी होगी कि आपने स्कूल में “परिश्रम करते हुए” जो वक्‍त गुज़ारा वह बेकार नहीं गया बल्कि इससे आगे चलकर आप “सुखी” रहेंगे।—सभोपदेशक 2:24.

खुद पर कड़ाई बरतने और तरतीब से काम करने के ज़रिए आप अपना तनाव काफी हद तक कम कर सकते हैं। (“तनाव कम करने के कारगर कदम” बक्स देखिए।) अगर आप अपना होमवर्क समय पर और ध्यान से करने की आदत डालें, तो टीचर भी आप पर भरोसा करेंगे और ज़रूरत पड़ने पर आपकी मदद करने को तैयार रहेंगे। कल्पना कीजिए कि आपकी टीचर आप पर पूरा भरोसा रखती है। और अचानक आपके सामने कोई ज़रूरी काम आ जाता है और आप अपनी टीचर को पहले से बता देते हैं कि आप अपना होमवर्क पूरा नहीं कर पाएँगे। ऐसे में क्या आपको नहीं लगता कि आपकी टीचर आपकी मदद करेगी? परमेश्‍वर के एक सेवक दानिय्येल की बात लीजिए। वह “विश्‍वासयोग्य था, और उसके काम में कोई भूल वा दोष न निकला।” वह दिल लगाकर मेहनत से काम करता था, जिस वजह से उसने राजा का भरोसा जीत लिया और राजा उसकी इज़्ज़त करता था। (दानिय्येल 6:4) अगर आप भी दानिय्येल की मिसाल पर चलते हुए अपने स्कूल का काम निपटाएँ, तो ज़रूरत पड़ने पर आपको भी रियायत दी जाएगी।

क्लास में ध्यान देने, अपना होमवर्क और सारे प्रोजेक्ट समय पर खत्म करने से क्या आप तनाव से पूरी तरह मुक्‍त हो जाएँगे? नहीं। थोड़ा-बहुत तनाव आप पर इसलिए भी आ सकता है, क्योंकि आप कुछ अच्छा करना चाहते हैं। ऐसे में आप होमवर्क से छुटकारा पाने के बजाय, क्लास में ज़्यादा-से-ज़्यादा सीखने और उससे फायदा पाने के बारे में सोचेंगे।

इस तरह का तनाव अच्छा है और ज़रूरी भी। मगर आप पर कुछ ऐसा तनाव भी हावी हो सकता है जो बेमतलब का और नुकसानदेह होता है।

स्कूल के दूसरे कार्यक्रम—समय खाऊ

एक ऐसे इंसान की कल्पना कीजिए जो अंधाधुंध गाड़ी चलाता है और सिग्नल आने पर ऐसा ब्रेक लगाता है कि गाड़ी घिसटते हुए रुकती है। सिग्नल होने के बाद वह इतनी ज़ोर से एक्सीलेटर दबाता है कि गाड़ी फौरन हवा में उड़ने लगती है। सोचिए उसकी कार की क्या गत होगी? मुमकिन है कि गाड़ी का इंजन और दूसरे पुरज़े खराब हो जाएँगे। लेकिन इससे पहले वह शायद किसी भयंकर दुर्घटना में उस गाड़ी के परखचे उड़ा दे।

उसी तरह बहुत-से विद्यार्थी स्कूल से पहले और बाद में अपने शरीर और दिमाग का इस हद तक इस्तेमाल करते हैं कि पूछिए मत। डेनीज़ क्लार्क पोप ऐसे बहुत-से विद्यार्थियों से मिली थीं। उनके बारे में उन्होंने अपनी किताब स्कूल के दौरान (अँग्रेज़ी) में इस तरह लिखा: “आम तौर पर नौकरी-पेशा लोग जब अपना काम शुरू करते हैं, उससे एक-दो घंटे पहले ही विद्यार्थियों का काम शुरू हो जाता है और अकसर देर रात को खत्म होता है। वे फुटबॉल या डांस का अभ्यास करने, विद्यार्थियों की सलाह क्लास में हाज़िर होने, पार्ट टाइम नौकरी करने और होमवर्क करने में जुटे रहते हैं।”

इस तरह भागम-भाग की ज़िंदगी जीने से विद्यार्थी अपने लिए ही मुसीबत की खाई खोदते हैं। हद-से-ज़्यादा तनाव की वजह से उन्हें पेट की बीमारी या सिर दर्द की समस्या शुरू हो सकती है। लगातार थकान रहने से उनमें बीमारियों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है और वे बीमार पड़ सकते हैं। इसके बाद उनकी भागम-भाग की ज़िंदगी कछुआ चाल बन जाती है। उन्हें अपनी ताकत दोबारा पाने के लिए काफी जद्दोजेहद करनी पड़ती है। क्या ऐसा ही कुछ आपके साथ भी हो रहा है?

अपने अच्छे लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए मेहनत करना अच्छी बात है। लेकिन आपमें चाहे कितनी ही ताकत क्यों न हो, आप एक दिन में एक सीमा तक ही काम कर सकते हैं। इस मामले में बाइबल एक बढ़िया सलाह देती है: “सब लोग यह जान जाएँ कि तुम लिहाज़ करनेवाले इंसान हो।” (फिलिप्पियों 4:5) लिहाज़ करनेवाला या समझदार इंसान हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। वह जो भी फैसला लेता है, उससे उसे या दूसरों को कोई नुकसान नहीं पहुँचता। वह सूझ-बूझ से काम लेता है। यह एक ऐसा गुण है, जो इस हिचकोले खाती दुनिया में बहुत कम नज़र आता है। तो अपनी सेहत का खयाल रखते हुए समझदारी दिखाइए और ऐसे कुछ गैर-ज़रूरी कामों से निजात पाइए जिनमें आप पूरी तरह डूब गए थे।

पैसे के पीछे भागना

कुछ नौजवान सोचते हैं कि लिहाज़ करना उनके लक्ष्यों को पाने में एक बाधा है। ऐसे विद्यार्थियों का मानना है कि मोटी तनख्वाहवाली नौकरी और उससे मिलनेवाली सुख-सुविधा की चीज़ें ही एक इंसान को कामयाब बनाती हैं। डेनीज़ क्लार्क पोप जिन जवानों से मिलीं, उनमें से कुछ की सोच ऐसी ही थी। वे कहती हैं: “ऐसे विद्यार्थी चाहते तो हैं कि कुछ ज़्यादा घंटे सो लें, अपनी सेहत बना लें मगर वे स्कूल, परिवार और नौकरी में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें इन सब बातों के लिए समय ही नहीं मिलता। वे यह भी चाहते हैं कि वे अपने दोस्तों के साथ ज़्यादा समय बिताएँ, कुछ दूसरे काम करें, या कुछ दिन की छुट्टी ले लें। लेकिन ज़्यादातर विद्यार्थियों को लगता है कि अगर वे अपनी ये इच्छाएँ पूरी करने के चक्कर में रहेंगे तो क्लास में अच्छे नंबर लाना मुश्‍किल हो जाएगा। वे जानते हैं कि उन्हें चुनाव करने की ज़रूरत है और उनके लिए कल की कामयाबी, आज की खुशी से ज़्यादा मायने रखती है।”

इस तरह अपनी ज़िंदगी की गाड़ी अंधाधुंध चलानेवाले विद्यार्थियों के लिए अच्छा होगा कि वे एक बुद्धिमान इंसान की कही बात पर गौर करें, जिसने कहा: “अगर एक इंसान सारा जहान हासिल कर ले, मगर इसकी कीमत चुकाने के लिए उसे अपनी जान देनी पड़े, तो इसका क्या फायदा? या एक इंसान अपनी जान के बदले में क्या देगा?” (मत्ती 16:26) इन शब्दों के ज़रिए यीशु मसीह ने हमें इस हकीकत से दो-चार कराया कि अगर हम अपने जज़्बातों को दबाकर, अपनी सेहत और परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को दाँव पर लगाकर इस दुनिया के लक्ष्य हासिल कर भी लें तो उसका कोई फायदा नहीं।

अपनी किताब दुनियावी शोहरत की कीमत (अँग्रेज़ी) में मनोवैज्ञानिक मेडलन लवाइन ने लिखा: “पैसा, शिक्षा, ताकत, नामो-शोहरत और ऐशो-आराम की चीज़ें एक इंसान को दुख के भँवर से कभी नहीं बचा सकतीं।” पोप कहती हैं: “मैंने देखा है कि कितने ही बच्चों और माता-पिताओं के मन में एक गलत धारणा बैठी है कि कामयाबी पाने के लिए उन्हें अपने काम में शत-प्रतिशत खरा उतरना होगा। इसलिए वे दिन-रात एक कर देते हैं। . . . हमें दरअसल शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तौर पर स्वस्थ रहने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी चाहिए।”

दुनिया में कुछ बातें पैसे से ज़्यादा अहमियत रखती हैं। वे हैं तन-मन से स्वस्थ रहना, अच्छा विवेक होना और अपने बनानेवाले के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम करना। ये परमेश्‍वर की तरफ से अनमोल तोहफे हैं। अगर आप दौलत और शोहरत के चक्कर में इन्हें गँवा दें तो शायद कभी हासिल न कर पाएँ। इसी बात को मन में रखते हुए गौर कीजिए यीशु ने क्या सिखाया: “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है, क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।”—मत्ती 5:3.

कई जवानों ने इस सच्चाई को कबूल किया है। हालाँकि वे स्कूल में पूरा मन लगाकर पढ़ाई करते हैं, मगर वे यह भी जानते हैं कि पढ़ाई में अव्वल आने और खूब रुपया-पैसा कमाने से हमेशा की खुशी नहीं मिलती। वे जानते हैं कि ऐसे लक्ष्यों के पीछे भागने से उन पर बेकार का तनाव हावी हो सकता है। इन विद्यार्थियों ने यह जाना है कि “परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख” ही खुशहाल भविष्य की बुनियाद है। इस पत्रिका के प्रकाशकों या आपके इलाके के यहोवा के साक्षियों को आपको यह बताते हुए बेहद खुशी होगी कि आप कैसे परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख मिटाकर सच्ची खुशी पा सकते हैं। (g 4/09)

[फुटनोट]

^ ऐसे विद्यार्थियों के लिए जो कम नंबर लाते हैं, या ज़्यादा मेहनत नहीं करते, 8 अप्रैल, 1998 की सजग होइए! में पेज 15-17 पर दिया यह लेख देखिए, “युवा लोग पूछते हैं . . . क्या मैं स्कूल में ज़्यादा सफल हो सकता हूँ?”

^ ज़्यादा जानकारी के लिए 8 अप्रैल, 1993 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) में पेज 13-15 पर दिया यह लेख देखिए, “युवा लोग पूछते हैं . . . इतना सारा होमवर्क कैसे पूरा करूँ?”

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

आपमें चाहे कितनी ही ताकत क्यों न हो, आप एक दिन में एक सीमा तक ही काम कर सकते हैं

[पेज 8 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

अपने सिरजनहार के बारे में ज्ञान हासिल करना ही सबसे बेहतर शिक्षा है

[पेज ५ पर बक्स/तसवीर]

तनाव कम करने के कारगर कदम

❑ क्या आप अपने कागज़ों और किताब-कॉपियों में कुछ ढूँढ़ने के चक्कर में काफी वक्‍त बरबाद करते हैं? कुछ लोगों को अपनी चीज़ें तरतीब से रखने के लिए मदद की ज़रूरत होती है। तो इस मामले में दूसरों से मदद माँगने से झिझकिए मत।

❑ क्या आप अपना काम टालते रहते हैं? एक बार ऐसा करके देखिए: जब आपको कोई काम मिले तो उसे समय से पहले खत्म करने की कोशिश कीजिए। इससे आपको जो सुकून और खुशी मिलेगी उससे आप हैरान रह जाएँगे। फिर कभी आप अपना होमवर्क टालने की नहीं सोचेंगे।

❑ क्या आप अकसर क्लास में खयाली पुलाव पकाते हैं? एक महीने के लिए ऐसा करके देखिए: क्लास में होनेवाली चर्चा को कान लगाकर सुनिए और अच्छी तरह नोट्‌स लीजिए, ताकि आप बाद में उन पर गौर कर सकें। आपको यह जानकर बड़ी खुशी होगी कि ऐसा करने से आपका होमवर्क कितना आसान हो गया। इससे आप स्कूल से मिलनेवाला तनाव काफी हद तक कम कर सकते हैं।

❑ क्या आप ऐसी क्लासों में जाते हैं जहाँ आपके स्कूल का कोर्स जल्दी-जल्दी तो कराया जाता है, मगर इसके लिए आपको काफी समय देना पड़ता है और कड़ी मेहनत करनी पड़ती है? क्या ऐसी क्लासों में जाना ज़रूरी है? इस बारे में अपने माता-पिता से बात कीजिए। किसी ऐसे व्यक्‍ति की राय लीजिए जो पढ़ाई-लिखाई के बारे में सही नज़रिया रखता हो। आपको पता चलेगा कि इस तरह की क्लासें आपके ग्रेजुएशन में कोई खास मददगार नहीं होतीं।

[पेज 5 पर बक्स]

कल्पना की शहरपनाह

“धनी का धन उसकी दृष्टि में गढ़वाला नगर, और ऊंचे पर बनी हुई शहरपनाह है।” (नीतिवचन 18:11) पुराने ज़माने में लोग दुश्‍मनों के हमलों से बचने के लिए बड़ी-बड़ी दीवारें या शहरपनाह बनाते थे। अब ज़रा कल्पना कीजिए कि आप ऐसे शहर में रहते हैं जिसकी कोई शहरपनाह नहीं है, फिर भी आप सोचते हैं कि वह चारदीवारी से घिरा है। आप चाहे खुद को कितना ही भरोसा दिलाएँ कि आप शहर की चारदीवारी में महफूज़ हैं, मगर हकीकत तो यह है कि आपकी कल्पना की शहरपनाह आपको दुश्‍मनों के हमलों से नहीं बचा सकती।

आज जो नौजवान धन-दौलत पाने पर अमादा हैं, वे भी एक तरह से ऐसे शहर में जी रहे हैं जिसकी कोई शहरपनाह नहीं है। और वे उस मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ निराशा के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगता। क्या आप एक माता-पिता हैं? आप अपने बच्चों की मदद कीजिए ताकि वे धन-दौलत के जाल में न फँसें और ना ही ऐसे शहर में जीएँ जहाँ सिर्फ कल्पना की शहरपनाह है।

नीचे दी गयी बाइबल सच्चाइयों के ज़रिए आप अपने बच्चे को समझा सकते हैं कि:

◼ धन-दौलत का अंबार इंसान की समस्या सुलझाने के बजाय और बढ़ा देता है। “धनी के धन के बढ़ने के कारण उसको नींद नहीं आती।”सभोपदेशक 5:12; 1 तीमुथियुस 6:9, 10.

◼ अच्छी योजना बनायी जाए तो खुशी पाने के लिए दौलत की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। “परिश्रमी की योजनाएं निःसन्देह लाभदायक होती हैं।”नीतिवचन 21:5, NHT; लूका 14:28.

◼ तनख्वाह भले ही ज़्यादा न हो, लेकिन उससे अगर इंसान की ज़रूरतें पूरी हो जाएँ तो बड़ा संतोष मिलता है। “मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना।”नीतिवचन 30:8. *

[फुटनोट]

^ धन-दौलत के फँदे के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए 8 अप्रैल, 2003 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के पेज 20-21 देखिए।

[पेज 7 पर तसवीरें]

एक-साथ बहुत कुछ करने के चक्कर में कुछ हासिल नहीं होगा

[पेज 7 पर तसवीर]

होमवर्क को बोझ नहीं बल्कि तालीम समझिए जो बड़े होने पर आपके बहुत काम आएगी